*सागर ने जाकर अंत में अपने
एक क्षितिज बनाया
जहाँ पर उसने रोज़ की भाँति
धरती,आकाश मिलाया
*तेज लहरों से उसने अपनी
बालू का ज़र्रा बनाया
फिर उसने उस बालू के जर्रे को
तट तक पहुँचाया
*हुआ हर पत्थर ज़र्रा-ज़र्रा
लहरों से टकराकर
मिल गया फिर वह तट की
उस दरदरी रेत में जाकर
*सागर ने अपनी गहराई में
कितने ही राज छुपाए
सीप के हर मोती ने
कई राज़ हमें बतलाए
*छुपा खजाना इसके अंदर
कोई जो भेद ना पाया
इसकी गहराई के तल को
कोई भी समझ ना पाया ||
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