Thursday 16 November 2017

आत्म अभिव्यक्ति

बचपन जीवन का आईना है । बचपन रेत का घरौंदा है । बचपन तारों का झुरमुट है । बचपन सागर से मिला रतन है । बचपन सीप का मोती है । बचपन दीपक की ज्योति है , जो अपनी अटखेलियों से पूरे घर में रौनक और रोशनी फैलाता है । बचपन एक सुखद लम्हा है जो याद आता है तो मुँख पर मुस्कान फैलाता है । इस पुस्तक में नई कविताओं के माध्यम से कुछ नया करने की कोशिश की है । आज बच्चों के लिए उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध नहीं है और लेखक भी बच्चों के लिए कलम कम ही उठाते हैं । आज बाल साहित्य ओझल होता जा रहा है । बच्चों के लिए पढ़ने की सामग्री नहीं है और जो है वह भी पुरानी हो चली है । आज बच्चे नया चाहते हैं । इस पुस्तक के माध्यम से बच्चों को कुछ अच्छा साहित्य देने की कोशिश की गई है ।
4 से लेकर 14 साल तक के बच्चों के लिए पढ़ने हेतु सामग्री को एक ही पुस्तक में संजोया है , जिसमें कविताओं के साथ-साथ व्याकरण संबंधी ज्ञान भी उपलब्ध है । ज्ञातव्य है कि हमारे नौनिहालों को व्याकरण संबंधी बहुत कठिनाई होती है । मेरी कलम ने उनकी इस परेशानी का कुछ हद तक हल निकाला है और एक नए काव्यात्मक रूप में व्याकरण का कुछ अंश इस पुस्तक के माध्यम से उनके समक्ष प्रस्तुत किया है । ईश्वर की अनुकंपा रही तो भविष्य में बच्चों के लिए उत्कृष्ट साहित्य सामग्री लाने की मेरी कोशिश रहेगी ।

Tuesday 14 November 2017

आत्म अभिव्यक्ति

नारी समाज की ऐसी संवेदनशील पात्र हैं जो सदियों से करुणा दया प्यार ममता की मूरत कही जाती हैं । कहते हैं नारी तेरे रूप अनेक कहीं कौशल्या तो कहीं केकैय अनेक । नारी इस जीव लोक पर ईश्वर का उपहार है जो सृष्टि के निर्माण के लिए ईश्वर द्वारा पृथ्वी पर अवतरित हुआ है । नारी ईश्वर की एक ऐसी संरचना है जो सर्वशक्तिशाली कही गई है जिसमें सभी कार्यों को करने की क्षमता और शक्ति है । नारी सौंदर्य का प्रतीक , वीरता की मिसाल , ममता प्यार करूणा और दया की मूरत कही जाती है ।

नारी संपूर्ण रूप से सक्षम है अगर हम इतिहास की ओर रुख करते हैं तो हमें अनेक ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जिसमें हमें नारी के समस्त रूपों का चित्रण मिलता है । मिसाल के तौर पर झांसी की रानी,  रानी पद्मिनी , हाड़ा रानी, पन्नाधाय, मदर टेरेसा, महादेवी वर्मा ऐसे कुछ उदाहरण आज भी जीवांत हैं । हम सदियों से कहते आ रहे हैं , "नारी तू कमजोर नहीं शक्ति शक्ति की संवाहक है, नारी सर्व शक्तिशाली है , नारी नर को जन्म देने वाली है।" फिर भी आज इस समाज में उसी नारी को ,जो पूजनीय हैं कन्या के रूप में निर्ममता से मारा जाता है । उसका अपमान किया जाता है । उसको सरेआम बेपर्दा किया जाता है । यह कैसा समाज है जो जिससे जन्म लेता है उसको ही जन्म से पहले ही मार देता है ।

आज भी समाज में ऐसे समुदाय हैं जो लड़कियों को जन्म से पहले ही मार देते हैं उनको शिक्षा का अधिकार नहीं देते उनको घर से बाहर नहीं निकलने देते । मेरी पुस्तक में समाहित रचनाओं के माध्यम से साहित्य की अनेक विधाओं द्वारा नारी के प्रत्येक रूप का चित्रण किया गया है । समाज में उनकी व्यथा और उसके सुधार की ओर दिशा निर्देश किया गया है । यह एक कोशिश मात्र है नारी की समस्त रूपों का चित्रण समाज के सामने प्रस्तुत करने का । आज की नारी को किसी सहारे की जरूरत नहीं , किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है और किसी के सहारे की जरूुरत नहीं है बल्कि आज वह इतनी सक्षम है कि अकेले कंधों पर पूरे परिवार का पालन पोषण कर सकती हैं घर के साथ-साथ बाहर भी अपनी भूमिका निभा सकती है । आज नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चल रही है। बल्कि एक कदम आगे है कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा ।

समर्पण

माँ शब्द की अनुभूति ही मन के तारों को झंकृत कर देती है । किताब को लिखने की प्रेरणा मेरी माँ स्वर्गीय 'श्रीमती पदम देवी' हैं । जो आज अपने स्थूल रूप में इस जीव लोक में विद्यमान नहीं है परंतु अपने सूक्ष्म रुप में हमेशा मेरे मन मस्तिष्क में निवास करती है । मेरी माँ ही मेरी प्रेरणा हैं जो मेरे पास न होते हुए भी हमेशा मेरी प्रेरणा रही  हैं । इस किताब में जितनी भी रचनाएँ रची गई हैं उनको लिखते श्रण मेरी माँ मेरी प्रेरणा बन कर मेरी आँखों में और मस्तिष्क के हर कोने में विद्यमान रही हैं जहाँ से विचार बाहर निकल कर लेखनी के रूप में इस श्वेत पत्र पर सिमट कर आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहे हैं ।

इस पुस्तक का प्रत्येक शब्द मेरी माँ और उन सभी महिलाओं को समर्पित है जो अपने परिवार के लिए अपने जीवन का हर अंश समर्पित करती हैं । पूरे ब्रह्मांड की समस्त नारी प्रजाति को शब्दों से गुंफित सुमन सुरभि अर्पित करती हूँ । और ईश्वर से कामना करती हूँ कि वह हर नारी को इतनी शक्ति धैर्य साहस प्रदान करें कि वह इस जीव लोक पर हमेशा अच्छे संस्कार और गुणों को प्रवाहित करती रहें और अपने कर्तव्य मार्ग पर बने रह कर इस लोक का उद्यार करती रहे।

Monday 13 November 2017

नारे

आज का विशेष - नारे

१. रोशन घर हो जाता है
बिजली का बल्ब जलाते ही
देश को अब रोशन करना है
बल्ब का बटन दबाकर ही

२. आज भी कल भी गूँजेगा
जिसके कार्यों का शंखनाद
सौरभ सिंह सोनू की भार्या
सुशोभित होगी नभ पर मान

३. बल्ब का बटन दबाओगे
आने वाला कल सुरक्षित बनाओगे
नेहा सौरभ सिंह बहन को गर तुम
भारी मतों से जीत दिलवाओगे

४. घर को स्वर्ग बनाने वाले
देश का भी उद्धार करेगी
हिंदी नगर की पार्षद बन कर
खुशहाली का सिर्फ ध्यान रखेगी

५. श्रमशील कर्मठ नारी ये
विकास की दिशा प्रवाह करेगी
पर्यावरण, शिक्षा, सुरक्षा और
सुधार के लिए ही काम करेगी

Saturday 11 November 2017

यह कैसी शिक्षा लेख

विषय – नई शिक्षा नीति

नीति चाहे नई हो या पुरानी उसका उद्देश्य केवल विद्यार्थियों का सर्वाँगिण विकास होना चाहिए । क्योंकि आज जिनके भविष्य को हम संवारने की बात कर रहें है वही कल देश के भविष्य के निर्माता की भूमिका निभाएँगे । कहा भी गया है कि भवन निर्माण करते समय अगर एक भी ईंट गलत लग जाती है तो भवन का गिरना संभंव है और अगर ईंट और नींव दोनों मज़बूत होंगी तो दुनिया की कोई भी शक्ति उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती ।
शिक्षा किसी राष्ट्र अथवा समाज की प्रगति का मापदंड है । जो राष्ट्र शिक्षा को जितना अधिक प्रोत्साहन देता है वह उतना ही विकसित होता है । किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति इस पर निर्भर करती है कि वह राष्ट्र अपने नागरिकों में किस प्रकार की मानसिक अथवा बौद्धिक जागृति लाना चाहता है । नई नीतियों के अनुसार वह अनेक सुधारों और योजनाओं को कार्यान्वित करने का प्रयास करता है जिससे भावी पीढ़ी को लक्ष्य के अनुसार मानसिक एवं बौद्‌धिक रूप से तैयार किया जा सके। नयी शिक्षा-नीति में परीक्षा की विधि एवं पूर्व परीक्षा विधि की तरह परीक्षा भवन में बैठ बैठकर रटे रटाए प्रश्नोत्तर लिखने तक सीमित नहीं रह गई है, अपितु विद्यार्थियों के व्यावहारिक अनुभव को भी परीक्षा का आधार बनाया गया है। इसमें प्रत्याशी अपने व्यावहारिक स्तर के मूल्यांकन के आधार पर कोई पद, व्यवसाय या उच्चतम अध्ययन को चुनने के लिए बाध्य होगा। नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य है कि शिक्षा इंसान को बंधनों से मुक्त करे और उसे सक्षम बनाए। इसमें इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि शिक्षा रट्टा मार परंपरा से मुक्त हो जिसमें शिक्षा को स्कूल की चारदीवारी के बाहर की दुनिया से जोड़ने की बात कही गयी है। हम एक अद्भुत दुनिया में रह रहे हैं। यहाँ पर कुछ लोग वास्तविक गांवों को मिटाने और डिजिटल विलेज बसाने की बात करते हैं। भारत में चुनिंदा टेक्नोक्रेट चाहते हैं कि शिक्षा पर उनका कब्जा हो जाए और टीचर की जगह टेक्नॉलजी को रिप्लेस कर दिया जाए। मगर यह बात सौ फ़ीसदी सच है कि कोई तकनीक एक अच्छे टीचर की जगह कभी भी नहीं ले सकती।
भारत में इंटरनेशनल सेमीनार के नाम पर शब्दावाली का एक खेल हो रहा है, इस सेमीनार में हिस्सा लेने वाले लोग गाँव के स्कूलों की ज़मीनी वास्तविकताओं से अनभिज्ञ हैं। लेकिन स्कूल में इंटरनेट, वीडियो और स्मार्टफ़ोन पर इस्तेमाल होने वाले सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करने की बहुत सी मनगढ़ंत वजहें गिनाते वक़्त उनका आत्मविश्वास देखने लायक होता है। हालांकि स्कूल में तकनीकिकरण को बढ़ावा देने वाले कुछ समर्थक स्वीकार करते हैं कि तकनीक शिक्षक के सहायक की भूमिका निभा सकती है। लेेकिन तकनीक पर इससे ज़्यादा भरोसा शिक्षा को उस मानवीय ऊष्मा से वंचित कर देगा, जिसकी झलक अभी स्कूलों में दिखाई देती है। बुनियादी तौर पर शिक्षकों से यह कहने की कोशिश हो रही है कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाएगा के साथ-साथ कैसे पढ़ाया जाएगा? यह तय करने की जिम्मेदारी भी बाकी लोगों पर होगी। किसी स्कूल में क्या शिक्षक की भूमिका मात्र ऊपर से आने वाले निर्देशों का अनुसरण करने की होगी? अगर ऐसा होता है तो शिक्षक अब अपने ही बच्चों के बीच अज़नबी होने को मजबूर होगा। और बच्चों के बारे में कहा जाएगा कि उनको तो वीडियो गेम और इंटरनेट पर पढ़ना, प्रोजेक्ट बनाना पसंद है ऐसे में शिक्षक की जरूरत क्या है? लेकिन ज़मीनी वास्तविकताएं काफी अलग है। ऐसे में सवाल उठता है कि तकनीक का अत्यधिक लोभ हमें एक ऐसे अंधे रास्ते की तरफ न मोड़ दे…जहां से कोई वापसी नहीं होगी।
***नीतियाँ बनाने वालो
बच्चों के भविष्य से न खिलवाड़ करो ।
नैतिक मूल्यों और संस्कारों की जड़
तुम ऐसे न बर्बाद करो ।
खुशहाली तभी मिलेगी
जब भावी पीढ़ी का ख्याल रखोगे ।
शिक्षा और शिक्षार्थी को राजनीति से दूर रखोगे ।

अवनीता

फोन हानिकारक

घर की घंटी बजती है । माँ दरवाजा खोलती है ।
राजू - माँ आज बहुत भूख लगी है मुझे खाना दे दो स्कूल से बहुत काम मिला है  मुझे पूरा करना है ।

मां - अरे राजू इतनी भी क्या जल्दी है घर में घुसा ही नहीं स्कूल के काम की जल्दी है । रोज़ ही स्कूल से तुझे इतना काम मिलता है ।

राजू - माँ पेपर नजदीक है इसलिए काम ज्यादा मिलता है ।

माँ - चल खाना खा ले फिर थोड़ी देर आराम कर ले ।

राजू - माँ मुझे खाना कमरे में दे दो मैं खाना भी खा लूंगा और पढ़ भी लूंगा ।

माँ राजू को खाना देकर आराम करने चली जाती है । राजू माँ का फोन उठाकर कमरे में ले अाता है और फोन पर गेम खेलने लगता है ।

राजू शैतान तो है ही अब झूठ भी बोलने लगा है आजकल फोन पर गेम खेलने की आदत और अपने दोस्तों से फोन पर बातें करने की आदत पड़ गई है ।

राजू फोन मिलाता है और फोन पर रोहन से बातचीत करता है ।

राजू - रोहन तूने स्कूल का काम कर लिया ।
रोहन - हाँ , आधा किया है । तूने कर लिया ।

राजू - नहीं अभी तो खाना ही खाया है । मम्मी सो रही हैं । चुपके से फोन लिया है ।
रोहन - तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए । हमें अपने माता- पिता को धोखा नहीं देना चाहिए । हमारी पढ़ाई ज्यादा जरूरी है तू फोन बंद कर मुझे पढ़ना है ।

मैं तो यही कहूँगा कि तू भी अब फोन बंद करके पढ़ ले कल क्लास टेस्ट है । वैसे मैं तुझे एक सलाह देता हूँ फोन हमारे लिए बहुत हानिकारक है हमें इसका प्रयोग केवल अपने मम्मी और पापा की निगरानी में ही करना चाहिए । फोन से या इंटरनेट से हमें अच्छी जानकारियाँ प्राप्त करनी चाहिए न कि उसका गलत प्रयोग करके अपने भविष्य का नुकसान करना चाहिए । एक बात और हमें फोन का इस्तेमाल केवल अपने माता-पिता की निगरानी में ही करना चाहिए माता-पिता से छिपकर हमें फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ।

राजू - रोहन मुझे माफ कर दे । मुझे तेरी बात समझ आ गई है । आगे से मैं अपने मम्मी- पापा की निगरानी में ही फोन का इस्तेमाल करूँगा और फोन का प्रयोग सही कार्यों के लिए ही नहीं करूँगा ।

माँ - राजू तुमने याद कर लिया बेटा ।पढ़ाई पूरी हो गई ।

राजू - मुझे माफ कर दो माँ । मैं पढ़ाई नहीं कर रहा था । आपका फोन चुपके से उठा लिया था और रोहन से बात कर रहा था । रोहन ने मुझे समझाया कि फोन का इस्तेमाल बच्चों को ज्यादा नहीं करना चाहिए । माँ मुझे माफ कर दो ।

माँ राजू को गले से लगा लेती है और कहती है मुझे तुम पर पूरा भरोसा है ।

पुस्तक के लिए नाम

नाम
बाल मंच
बाल मन
रेत के घरौंदे
बाल साहित्य
सागर के मोती
सीप के मोती
नखत
चमन
पुलकित पल्लव
कोमल कपोल

पुस्तक के लिए नाम


नाम अर्थ के साथ
अवनीता - नारी
सीमंतिनी - महिला
सीरा - रोशनी
सेजश्री - अनुभूति
अधिलक्ष्मी - लक्ष्मी
अनुप्रिया - बहुत प्रिय
अंजी - एक आशीर्वाद
अन्हीति - उपहार
अनंता - देवी

कागज बचाओ पेड़ बचाओ

कागज का उचित प्रयोग करो
दुरूपयोग न इसका आज करो
कल को तुम्हें संवारना है
पर्यावरण को भी संभालना है

कागज को अगर बचाओगे
पेड़ों की जान बचाओगे
पेड़ों से ही कागज मिलता है
पेड़ों से ही वातावरण सजता है

कागज़ को बनाने हेतु
जंगल को उजाड़ा जाता है
पर्यावरण का सौदा करके
पेड़ों को काटा जाता है

कागज का बच्चों न्यून उपयोग
वृक्षों की जान बचाता है
कागज का नुकसान हमें
पेड़ों से दूर कराता है

बच्चों, बड़े जागरुक हो जाओ
कागज के दुरुपयोग को बचाओ
पेपर वर्क को करो अब कम
मिलकर करो अब डिजिटल वर्क

बम पटाखे हानिकारक

रानी देखो क्या है बाहर
धुआं -धुआं ही है बस आज
सांस नहीं ली जाती है
आँखें भी जलन मचीती हैं

दीदी सच में आज धुआं है
पर्यावरण खराब हुआ है
दिवाली के बम बारूद ने
वात को कितना दुषित किया है

पक्षी भी नहीं चहक रहे हैं
पौधे भी मुरझा से गए हैं
मम्मी ने घर के खिड़की पट
सुबह से ही बंद किए हुए हैं

दीदी यह प्रण करना होगा
पर्यावरण संरक्षण करना होगा
पृथ्वी को बचाना है गर
पटाखे नहीं जलाना है अब

दीपों से जग रोशन करना
पटाखों का प्रयोग नहीं अब करना
यही संदेश है सबको आज
दीपोत्सव करना दीपों के साथ

सौतेली माँ

इंसानियत कहीं खो गई
अरुण घर में प्रवेश करता है आज भी रोशनी बहुत गुस्से में दिखाई दे रही थी । बच्चे दूसरे कमरे में सहमे से बैठे थे ।

अरुण- क्या हुआ रोशनी घर में सन्नाटा क्यों कर रखा है बहुत गुस्से में दिखई दे रही हो ।

रोशनी- बस अब मेरे से नहीं उठाई जाती तुम्हारे बच्चों की जिम्मेदारी । मेरे बस का नहीं है इनकी देखभाल करना ।

अरूण- ऐसी क्या बात हो गई जो तुम इतनी आग बबूला हो रही हो

वंश- अरुण का बेटा पापा को देख कर दौड़कर आता है और सीने से लग जाता है । हिचकियाँ मानो खत्म ही नहीं हो रही है ।
शरण- पापा को देखकर दौड़ी-दौड़ी आती है और सीने से लग जाती है ।

अरूण- बच्चों के गाल पर निशान देखकर क्या हुआ बच्चो तुम्हारे गाल पर यह  निशान कैसा।
बच्चे कुछ कह नहीं पाते ।
बच्चों की कमर को सहलाते हुए पूछता है । बच्चे करहाने लगते हैं । अरूण बच्चों की कमर देखता है बच्चों की कमर पर मार के निशान नजर आते हैं ।
उसको समझने में देर नहीं लगती कि रोशनी ने आज भी बच्चों को बिना बात के मारा है ।

अरूण- रोशनी यह कहाँ कि इंसानियत है । यह बच्चे हैं कोई जानवर नहीं है । तुम्हारा बच्चों के प्रति यह बर्ताव अब मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा । तुम्हें शादी से पहले ही पता था कि मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं उनको माँ की जरूरत है । मुझे उनके लिए माँ चाहिए जो उन्हें प्यार दे कसाई नहीं जो रोज-रोज उनको मारे-पीटे ।

रोशनी- मुझे नहीं पता तुम इन्हें कहीं भी छोड़कर आओ मैं नहीं जानती । मैं इनके साथ नहीं रह सकती ।

अरुण-  बिन माँ के बच्चों को मैं कहाँ छोड़कर आऊँ । मेरे सिवा इनका कोई और नहीं है ।

रोशनी- मैं क्या करूँ , इनको भी इनकी माँ के पास पहुँचा दो ।

रोशनी- तुम यह कैसी बात कर रही हो कैसे तुम्हारी ममता तुम्हें यह कहने और करने की इजाज़त देती है ? क्या तुम्हारे अंदर बिल्कुल भी ममता नहीं है ? क्या तुम्हारी ममता मर गई है ?

रोशनी- हाँ मर गई है मेरी ममता । मैं कोई इनकी सगी माँ थोड़ी हूँ जो इनके नाज नखरे उठाऊँ । अपने सीने से लगा कर रखूँ । मैं उनको बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकती इनको अनाथ आश्रम में छोड़ आओ । कल को मेरे भी बच्चे होंगे । मैं अपनी ममता का बँटवारा किसी ओर के बच्चों के साथ नहीं कर सकती ।

अरुण- ये किसी ओर के बच्चे नहीं मेरे बच्चे हैं । रोशनी तुमने आज साबित कर ही दिया कि सगी माँ सगी और सौतेली माँ  सौतेली ही होती है । मुझे अपने बच्चों के लिए सिर्फ माँ चाहिए थी । सौतेली माँ नहीं ।

रश्मि- मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी जब इन बच्चों को अनाथ आश्रम में छोड़ कर आ जाओ तब मुझे संदेश पहुँचा देना मैं वापस आ जाऊँगी । रोशनी झटके से दरवाजा खोलती है ।

अरुण- रश्मि को रोककर कहता है रश्मि तुम्हें वापस आने की जरूरत नहीं है मुझे अपने बच्चों के लिए माँ चाहिए थी जो उन्हें प्यार, दुलार और सुरक्षा दे सके अगर मेरे बच्चे माँ के होते हुए भी सुरक्षित नहीं तो मुझे ऐसा जीवन साथी नहीं चाहिए मैं अपने स्वार्थ के लिए अपने बच्चों के जीवन में काँटे नहीं भर सकता । अलविदा ! वापस आने की सोचना भी मत ।

रोशनी गुस्से से बाहर निकलती है । अरुण और दोनों बच्चों को हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाती है । उसकी ममता बिल्कुल भी उसको झंझोरती नहीं उसकी इंसानियत तनिक भी उसे कचोटती नहीँ । ऐसी भी माँ होती हैं ।

कहते हैं न एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ।

उस दिन से दोनों बच्चों के साथ अरूण अकेले रहने लगा । माँ और पिता का प्यार दोनों बच्चों को पिता से ही मिलने लगा ।

क्या माँ का एक रूप ऐसा भी होता है जिसमें इंसानियत को ढूँढना पड़ता है ? क्या सगा और सौतेला यह दो शब्द रिश्तों और प्यार के मायने बदल देते हैं ?
जरा सोचिए ??
क्यों एक पुरुष को दूसरी शादी करने की जरूरत होती है ?
इस निर्दयी समाज में पुरुष न होते हुए भी जब एक माँ अपने बच्चों को अकेले पाल सकती है, तो पुरुष क्यों नहीं ?

यह जीवन की सच्चाई है जो हमें समाज में कहीं न कहीं देखने को मिल ही जाएगी । कुछ सौतेली माँ बच्चों को स्वयं से भी ज्यादा प्यार करती हैं और कुछ अपने अहम में आकर बच्चों में भी भेदभाव करती है ।
बच्चे तो बच्चे हैं सिर्फ यही सत्य है ।

Friday 10 November 2017

महिला सशक्तिकरण और पुरुष

स्त्री की भूमिका सदियों से सुंदरता, कोमलता, करूणा, प्रेम, अन्नपूर्णा की रही है दूसरी और पुरुष कठोर, शक्ति का प्रतीक, जीवन की हर मुश्किलों को झेलने वाला कहा गया है । कहते हैं --जिस परिवार में पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है उस परिवार के लोग अपने आप को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं अर्थात पुरुष संरक्षक और पालक की भूमिका निभाते हैं ।वैदिक काल से हमारा समाज व्यवस्थित चला आ रहा है जिसमें पुरूष कमाने वाला और घर की नारी घर को संभालने वाले की भूमिका निभाती है । गृहस्थी दोनों चलाते हैं । एक घर में रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है दूसरा जीविकोपार्जन के लिए घर से बाहर जाता है । उस समय पुरूष की किसी बीमरी या शारीरिक विकलांगता के कारण ही महिला को मजबूरी में घर से बाहर जाना पड़ता था ।

सदियों से चली आ रही इस सुचारु व्यवस्था को खुद पुरुषों ने ही भंग किया है । स्वयं पुरुषों का अपने दायित्वों से विमुख हो जाना ही स्त्रियों को घर की चारदीवारी से बाहर लाया है । आखिर क्या हुआ जो एक नारी घर के सुरक्षित माहौल को छोड़ कर घर की चारदीवारी से बाहर निकल आत्मनिर्भर बनने को मजबूर हुई ? इसका श्रेय पुरुषों पर ही जाता है । वैदिक काल में विवाह के वक्त पुरुष और नारी कुछ प्रतिज्ञायों में बंधते थे जब तक मनुष्य ने प्रतिज्ञाओं के अंदर रह कर जीवन निर्वाह किया तब तक कोई दुविधा नहीं हुई ।
जैसे-जैसे समय बीतता गया वैदिक काल का पतन हुआ समाज धर्म से विमुख होता गया और इसकी सजा नारी को भोगनी पड़ी । वैदिक काल में हमारे समाज में नारी को बहुत सम्मान प्राप्त होता था । नारी को गृह लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, त्याग और करुणा की देवी के नाम से पुकारा जाता था मगर पुरुष की सत्तात्मक छवि ने नारी की इज्जत को तार-तार कर दिया । पुरूष  मर्द होने का रौब जमाता । नारी पर घरेलू अत्याचार का अध्याय शुरु हो गया । स्त्री घर की चारदीवारी में रहती थी इसलिए आर्थिक रूप से सक्षम न होने के कारण पुरुषों के अत्याचारों का शिकार होती थी । 'भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति सिर्फ देवता है' । पुरूष के अत्याचारी और गलत होने पर भी नारी यही राग अलापती थी । मानसिक, शारीरिक अत्याचारों ने ही नारी को चार दिवारी लांघने को मजबूर कर दिया और यहाँ से शुरू हुआ महिला सशक्तिकरण की आवाज का आगाज़ इसका परिणाम यह हुआ नारी गृहणी वाली छवि को त्याग कामकाजी महिला बन गई । उसने अब दूसरी महिलाओं को जागरूक करना शुरू कर दिया और एक नारी दूसरी नारी की प्रेरक बन कर सामने आई ।

फलस्वरूप अब प्रत्येक महिला आर्थिक आजा़दी चाहने लगी और पुरुषवादी मानसिकता वाले समाज से मुक्ति चाहने लगी । समाज में गृहस्थ जीवन की गांठे खुलने लगी । महिला अब आजादी चाहने लगी । महिलाएँ हर व्यवसाय से जुड़ने लगीँ । महिलाओं ने धीरे-धीरे पुरुषों के रोजगार के अवसरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया । महिलाएँ पुरुषों से अच्छी कर्मचारी साबित होने लगीं । आज नारी हर क्षेत्र में आगे हैं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है या यूं भी कह सकते हैं कि उससे आगे निकल गई है । आज की नारी सक्षम और सशक्त है । आज के संदर्भ में उसको लाचार कहना अतिशयोक्ति होगा । आज मंज़र ऐसा है कि पुरुष महिलाओं से प्रताड़ित हैं उनको रोजगार के अवसर कम मिलते हैं क्योंकि कार्यस्थल पर भी स्त्री को पुरुषों से ज्यादा सक्षम और मेहनती माना जाता है । यहाँ एक प्रश्न यह उठता है कि क्या महिलाएँ को सशक्तिकरण की आवश्यकता है । वह स्वयं में इतनी शक्तिशाली है उसे  सशक्तिकरण की क्या आवश्यकता । नारी आज हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे है ।

आज भी यह आलम है
शीश झुकता है पुरूषों का
नारी के आगे
घर में रखा था बांधकर जिसको उसने
आज बंधी बना है उसी के आगे ।।