Wednesday 17 May 2017

*****सूरज से थोड़ी सी गप्पें****

दूर हो खूब मगर
हमें जलाकर चले जाते हो
क्या खाते हो ?
जो इतने गर्म तुम नज़र आते हो

कैसे कपड़े पहनते हो?
जो चमकते ही जाते हो
उषा की किरणें हम पर
सदा यूँ ही बरसाते हो

हो तो तुम गोल
कैसे मानू ?
देखने ही नहीं देते
चमकते ही रहते हो
चमकने से बाज़ भी नहीं आते हो

रात में पता नहीं
कहाँ चले जाते हो ?
तुम तो चले जाते हो
और अपने साथ
सारा नीला आकाश भी ले जाते हो

ढूँढने पर भी नहीं मिलते हो
सारी रात गुजर जाती है
यूँ ही आँखों-आँखों में
उषा की पहली किरण के साथ
प्रातः बिना कुछ कहे निकल आते हो

गरमी के मौसम में
तुम हमें बहुत ही सताते हो                                    पर  सर्दी आते ही याद बहुत तुम आते हो ।    

  

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