*** रूठे हो तुम जो मुझसे
कैसे तुम्हें मैं मनाऊँ
सोच रही हूँ मैं
कैसे तुम्हें नज़दीक बुलाऊँ |
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इन दूरियों को
एक दिन जरूर मिटाऊँगी मैं
पास तुम्हें मैं अपने
ज़रूर ले आऊँगी मैं
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यकीन है ये मुझको
रूठे हो तुम मुझसे मना लूँगी एक दिन
ये जो दूरिया हैं
सब मिटा दूँगी एक दिन
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तुम नहीं हो बेवफ़ा
जो न वापिस आओगे
दूरियाँ तो नाराज़गी की हैं
नज़दीक तुम जरूर आओगे
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वफा जो न करते हैं
वही दूर जाते हैं
बुलाने पर भी वह वापिस
कभी न आते हैं
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वफा तो मैंने तुमसे ; तुमने मुझसे निभाई है पल-पल
दूरियाँ तो गलतफहमी की हैं
लोटकर दोनों एक दिन आएँगे यहीं पर
लोटकर दोनों एक दिन आएँगे यहीं पर
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