Thursday, 18 May 2017

****उड़ान नई सोच की ****

मैं उस देश की बेटी
जिसमें जन्मी सीता और सती |
मुझको मत कमजोर समझ तू ,
मैं ही धरती और नदी |

गंगा जमुना के जैसी हूँ ,
शीतल ठंडी और पवित्र |
ना कर मेला मुझको मानव |
मैं धरती की एक बेटी |

माँ से पाया जीवन मैने ,
माँ जैसी ममता रखती |
जीवन मेरा सफल हुआ है ,
पाई मैंने मानव योनि |

कीट पतंगे ना बन करके ,
आई जग में बेटी बनके |
ना कर मेला जीवन मेरा ,
रहने दे मुझको सूची |

मैं इस जग को जीवन देती ,
देती बेटा और बेटी |
बेटा तो सिर्फ वंश बढ़ाता ,
बेटियाँ हैं यश मान बढ़ाती |
काम ऐसे वह करती जाती
बेटों से भी आगे  बढ़ जाती |

धरती की सैर सभी करते हैं,
आसमां के पार वो जाती  |
कल्पना की उड़ान है भरती,
अंतरिक्ष में पहुँच कल्पना जाती |

हाड माँस को त्याग के भी ,
जीवन में नाम कर जाती |
याद रखे हर नर बच्चा ,
ऐसे काम वह कर जाती |

ऐ मानव जग जा तू अब ,
शक्ति को इसकी कम ना जान |
कंधे से कंधा , पग से पग ,
कदम बढ़ाती जाती है |

ऊँचाई को छू लेती है ,
ऊँची उड़ान भर आती है |
सपनो को सच कर देती है,
आगे ही बढ़ती जाती है |

रोक ना अब तू पाएगा उसको,
पर्दो में ना रख पाएगा |
ठान जो ली आगे बढ़ने की ,
पीछे न कर तू पायेगा |

समझ ना अब तू इसको कम ,
बेड़ी से बाँध ना पाएगा |
निकल पड़ी है तुझसे आगे ,
रोक ना अब तू पाएगा |

समझ इसी में है तेरी अब ,
साथ इसको तू लेकर चल |
कदम मिला संग इसके अब तू ,
कंधे से कंधा बाँध के चल |

संगी बन साथी बन इसका ,
ताकत को इसकी कम ना कर |
इस बेटी,नारी को अब तू ,
अबला समझने की भूल ना करें |

करी जो भूल तूने अब ऐसी,
गर्त में तू गिर जाएगा |
देखेगा जब रुद्र रूप इसका,
समझ ना तू कुछ पाएगा |

अंत हो जाएगा तेरा क्षण में,
सृष्टि पर प्रलय जब आएगा |
सबसे पहले अंत ही अपना,
अपने नज़दीक तू पाएगा |

समय के रहते ही संभल जा,
छोड़ दे अपना झूठा दंभ |
किया नहीं जो तूने एेसा,
अंतिम क्षण को पाएगा |
उस घड़ी सिर्फ हाहाकार ही हाहाकार अपने नज़दीक तू पाएगा |***

******न मानी जो नीरू की तूने ,
नीरू(रोशनी/प्रकाश)****कभी न देख पाएगा |

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