Wednesday 29 April 2020

पंच तत्व… जल सर्वत्र

शीतलता धारण करके
पवित्रता का आंचल भरके
तृष्णा यही बुझाता है,
जीवनदायी बन जाता है ।

काम सभी में आता है ।
काम सभी के आता है ।
काम सभी संभव करता है ।
पानी जल बन जाता है ।

पानी, नीर, जल के रूप में
अपना कृत्य निभाता है ।
प्रकृति की अभिन्न धरोहर
पानी ही कहलाता है ।

जल के रूप में नदियों में
प्रयोग के रूप में घर के नल में
नीर के रूप में नयनों में
यह अपना रूप दिखता है ।

काम सभी संभव इससे हैं
जीवन में यह अमृत है ।
अनुष्ठानों में जल के रूप में
पानी बिन सब निर्झर हैं ।

खेत खलिहान इसी से सुंदर
हरियाली फैलाते हैं ।
फूलों के उर चंचल होकर
भवरों संग मस्ताते हैं ।

जंगल में मयूर भी देखो 
अपने पंख फैलाते हैं ।
वर्षा के शीतल जल के साथ
अपनी खुशी दर्शाते हैं ।

जल ही बाहर, जल ही भीतर
जल से ही काया का सृजन
जल नहीं तो जीवन सूना
जल से ही यह जीवन पूरा ।।

Thursday 16 April 2020

शत शत नमन भारत के कर्मवीरों को ( कोरोना काल )

कोरोना महासंग्राम में आज की रचना उनको समर्पित है जो दिन रात अपनी सेवाओं के माध्यम से भूख प्यास त्याजकर देश की सेवा में अपना संपूर्ण योगदान दे रहे हैं और उनके लिए भी जो घर में रहकर देश को कोरोना से मुक्त कराने हेतु अपनी भूमिका निभा रहे है आज की कविता के माध्यम से उनको शत – शत नमन ।

शत – शत नमन उन कर्मवीरों को
जो अपना धर्म निभा रहे
कोरोना के इस महासंग्राम में
विशेषण भूमिका निभा रहे

शत-शत नमन उन कर्मवीरों को
परिवारों को छोड़कर अपने
डॉक्टर होने का फर्ज निभा रहे

शत – शत नमन उन कर्मवीरों को
मौत के मुंह में स्वयं को रखकर
मानवता का धर्म जो निभा रहे

शत – शत नमन उन कर्मवीरों को
अस्पतालों में 24 घंटे ड्यूटी निभा रहे

शत-शत नमन उन कर्मवीरों को
जो दूसरों को बचाने की खातिर
अपनी जान गवां रहे

शत-शत नमन उन कर्मवीरों को
भूखे स्वयं रहकर जो योद्धा
दूसरों का पेट पाल रहे

शत-शत नमन उन कर्मवीरों को
तपती धूप में जगह-जगह
नियमों का पालन करवा रहे

शत – शत नमन उन कर्मवीरों को
जो जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री पहुंचा रहे

शत-शत नमन उन कर्मवीरों को
जो अपना सर्वस्व लुटा रहे
इस महामारी के खिलाफ लड़कर
पूरे देश को बचा रहे

शत-शत नमन उन सभी कर्मवीरों को
जो डॉक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी, सैनिक, प्रेरक वक्ता, नेतागण, समाजसेवी, और साहित्यकार के रूप में अपनी – अपनी भूमिका निभा रहे ।

शत शत नमन उन कर्मवीरों को
जो कोरोना के इस महाकाल में जन – जन में जागरूकता फैला रहे

शत शत नमन उन कर्मवीरों को
जो घर के अंदर रहकर के
अपना फर्ज निभा रहे
देश के इस संक्रमण काल में
संपूर्ण भूमिका निभा रहे
संपूर्ण भूमिका निभा रहे

आप सभी से अनुरोध है कि सभी घर पर रहें और सुरक्षित रहें । घर से बाहर निकलकर स्वयं को और न ही दूसरों को नुकसान पहुंचाने की भूल करें । ध्यान रहे… घर में रहेगा इंडिया तभी तो बचेगा इंडिया आप अपना फर्ज निभाए और दूसरों को अपना फर्ज निभाने दीजिए । अगर हर परिवार यह ठान ले कि उसे अपने परिवार को बचाना है तो शायद कोई भी बाहर नहीं निकलेगा । आपको दूसरों की चिंता नहीं करनी तो मत चिंता कीजिए पर अपने परिवार वालों की जरूर चिंता कीजिए और अगर देश का हर व्यक्ति हर परिवार अपने परिवार को घर के अंदर ही रखेगा उसका ख्याल रखेगा उसे बाहर नहीं जाने देगा तो शायद हम इस महामारी पर काबू पा सकें । अपनी और अपने परिवार की चिंता अवश्य कीजिए तभी देश इस महामारी से बच पाएगा । याद रखिए देश है तो हम हैं हम हैं तो देश है एक सिक्के के दो पहलू हैं यह ।

डॉ. नीरू मोहन ‘ वागीश्वरी ‘

Wednesday 15 April 2020

वही सुबह फिर आएगी ( कविता )

वही सुबह फिर आएगी 
वही स्वर्णिम प्रभात लिए 
पंछी कलरव गान करेंगे 
खुशियों की बारात लिए 

वही सुबह फिर आएगी 
पद चापों की छाप लिए 
वही सुबह फिर आएगी 
एक दूजे का साथ लिए 

अपनाने होंगे सभी नियम 
नहीं निकलना बाहर अब 
निकला तो पछताएगा 
फिर लॉक डाउन बढ़ जाएगा 

अपनी या न किसी कौम की 
चिंता अब तू सबकी कर 
काशी काबा एक है सब 
सब में ही ईश्वर का जप 

वही सुबह फिर आएगी 
वही सुनहरी प्रभात लिए 
कामकाज पर जाएंगे जन 
मोटर वाहन चलेंगे सब 

माना इंडिया है यह डिजिटल 
बंद से नहीं रुकेगा कर्म 
देखो काम हो रहा घर में 
हाजिरी भी लग रही है सब 

सब विद्यालय बंद है फिर भी 
शिक्षक कर रहे अपना धर्म 
कर्म ही पूजा सच्ची इनकी 
ज्ञान बांट रहे घर में सब 

बच्चे भी सहयोग दे रहे 
सपना हो रहा है यह सच 
डिजिटल इंडिया मेरा भारत 
हर घर में दिखता है अब 

वही सुबह फिर आएगी 
वही स्वर्णिम प्रभात लिए 
पंछी कलरव गान करेंगे 
खुशियों की बारात लिए 

नन्हे - नन्हे बच्चे देखो 
कैसे पढ़ते घर में सब 
कौशल सभी हो रहे विकसित 
अभिभावक है हर्षित सब 

मगर भा नहीं रही है फिर भी 
बंदिश की जड़ता यह अब 
जैसे निदाघ में जन करते 
धाराधार की कल्पना सब 

वैसे ही मन विकल है अब तो 
उड़ने को नभ में पर - पर 
मानसरोवर उमड़ रहा है 
बहने को निश्चल ये मन 

नदियां सभी स्वच्छ हो रहीं 
निर्मल बना गंगा का जल 
ओजोन परत में दिखा बदलाव 
पृथ्वी की कंपन कम आज 

पर्यावरण प्रदूषण रहित 
बयार बह रही विष - मुक्त आज 
बिन बरसात मयूर है नाचा 
जंगल में तप है अब कम 

प्रेमभाव जग गया है सब में 
घर में ही बैठे - बैठे 
लैपटॉप मोबाइल को सबने 
दूर किया अपने से अब 

अपनों के नजदीक आ रहे 
साथ कर रहे भोजन सब 
मन की दूरी हो रही कम 
मन से मन का हो रहा संग 

बच्चों के संग, बच्चे संग में 
खेल… खेल रहे घर में सब
मात - पिता संग दादा - दादी
दुख - सुख सबके एक हैं अब 

खोने नहीं है यह पल हमको 
यही उम्मीद जगानी है
बन्द के अब खुलने के बाद 
यही बातें अपनानी हैं 

कोरोना से खोया जो हमने 
उसको याद नहीं करना है 
इस आपदा का एक भी बार 
नाम नहीं हमको लेना है 

पाया जो… सीखा जो हमने 
उसको साथ ले चलना है 
प्रकृति का दोहन अब हमको 
बिल्कुल भी नहीं करना है 

जीव - जंतु से प्रेम है करना 
पेड़ों को अधिक लगाना है 
खिलवाड़ प्रकृति से नहीं करना 
न ही प्रदूषण फैलाना है 

सीख ये लो अब तुम सब 
प्रकृति का सम्मान करो 
वही सुबह फिर आएगी 
अपने पर विश्वास रखो

Sunday 12 April 2020

दोहा कोरोना

सांसे कैद मानव की प्रकृति लेती सांस 
नसीब न मौत के बाद चार कंधों थी आस

Sunday 5 April 2020

5 अप्रैल नई उम्मीद का पर्वप्रकाश पर्व

कविता
5 अप्रैल… नई उम्मीद का पर्व
प्रकाश पर्व

आओ उम्मीद का दीप जलाए
विश्वास, परहित, हौसले, श्रद्धा
सबको लेकर संकल्प उठाएं ।
कोरोना से जंग जीतने हेतु
एकजुट जग करते जाएं ।

अंधकार पर विजय है करनी
कोरोना की छुट्टी अब करनी
संकल्प लिया जो… होगा पूरा
जंग हमको है इससे लड़नी

लोगों में उम्मीद जगी है
दीप श्रृंखला सजी हुई है 
पंक्तिबद्ध प्रज्ज्वलित आशाएं
मोदीजी पर टिकी हुई हैं ।

चहल - पहल जल्दी आएगी
चकाचौंध , रौनक लाएगी
अर्थव्यवस्था जो थप हुई है
फिर आकाश को छू जाएगी ।

साथ सभी को देना होगा
साथ सभी का लेना होगा
कठिन घड़ी के विकट दौर में
साथ - साथ अब रहना होगा 

कोई नहीं हिंदू , मुस्लिम है
नहीं कोई है सिख, ईसाई
सब की रगों में एक ही रक्त है
एकदूजे के हैं भाई - भाई ।

मुश्किल घड़ी जो आन पड़ी है
न तेरी… न मेरी है 
मौत लिए ये हर पंथ पर
पथिक के लिए समान खड़ी है

एकजुट हमको हो जाना है 
एक नारा ही लगाना है
भारत के कोने - कोने से
कोरोना हमें भगाना है ।


डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '