Saturday 29 July 2017

**प्रतिभा पलायन** क्यों ? ज़रा सोचिए !

विधा - भाषण

*देश के हित को सोचकर ही ,
हम सब को आगे बढ़ना है |
प्रतिभा पलायन नहीं निष्कर्ष,
हिंदुस्तान में ही अपना सर्वस्व कायम रखना है |

प्रतिभा संपन्न व्यक्ति ही किसी समाज या राष्ट्र की वास्तविक संपदा होती है| इन्हीं की दशा एवं दिशा पर देश का भविष्य निर्भर करता है अगर भारत के स्वर्णिम अतीत में देखे तो प्रतिभाओं की बहुलता के कारण ही भारत समृद्धि,खुशहाल और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश था| प्रतिभाओं की आज भी पूर्व काल की तरह देश में कोई कमी नहीं है;किंतु उनकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है,और चिंता का विषय है 'ब्रेन ड्रेन' यह कोई बीमारी नहीं है पर बीमारी से कम भी नहीं है|'ब्रेन ड्रेन' का अर्थात प्रतिभा पलायन है| यह ऐसा रोग है जो देश के विकास को खाए जा रहा है;जिसके अंतर्गत देश के बुद्धिमान और अति कुशल व्यक्ति विदेशों में जाकर बस रहे हैं|

**संस्कृत में एक कहावत भी है- "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" परंतु आज के प्रतिभावान शायद इस सत्य से पूर्णता अनभिज्ञ है तभी तो प्रतिभाएँ अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में जा बसने में अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं |अपने कुशल और प्रतिभावान संपन्न व्यक्तियों की हानि से विकासशील देश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं | इसका मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों में बेहतर और अन्य सुविधाओं के रूप में होने वाला लाभ कम है|आज जरूरत है इस देश को वैज्ञानिक सोच को विकसित करने की | आज क्यों ? डॉक्टर से लेकर खगोल वैज्ञानिक या खगोल शास्त्री तक विश्व के दूसरे देशों की तरफ रुख करते हैं | अच्छी तनख्वाह, बेहतर शोध के अवसर, बेहतर रहन-सहन की लालसा में क्यों हमारी प्रतिभाएँ पलायन की बात सोचती हैं |

क्या किसी ने कभी इस बात पर विचार किया है ? क्या हमारी सरकार निंद्रा अवस्था में है ?क्या वह नहीं जानती कि अगर देश के प्रतिभावान व्यक्ति विदेशों में अपनी सेवाएँ देंगे तो अपने देश की प्रगति में कैसे योगदान करेंगे ?बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तर शायद आज क्या कभी ना मिल पाए |

भारत प्रतिभा से संपन्न राष्ट्र है पूरे विश्व को इसने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है और विश्व का हर राष्ट्र भारत के प्रतिभावान व्यक्तियों का, उनकी क्षमताओं का लोहा मानता है | आज कोई राष्ट्र अगर भारत के साथ अपने संबंध मधुर बनाना चाहता है तो उसके पीछे भारत की अपनी प्रतिभा क्षमता है | ऐसे तथ्य किसी राष्ट्र के परिपेक्ष में हो तो यह संभव ही नहीं कि वह राष्ट्र संपन्न और समृद्ध न हो| पर भारत के संदर्भ में यह सच्चाई किस हद तक सार्थक मानी जाएगी | आप एक ओर तो अपनी प्रतिभा का लोहा विश्व को मनवा रहे हैं वहीं दूसरी और देश की अपनी आंतरिक स्थिति सुदृढ़ नहीं है | आप अपने विकास के लिए दूसरे देश के आगे हाथ फैला रहे हैं |ऐसा क्यों ? प्रश्न तो बहुत हैं परंतु उत्तर सिर्फ एक है |

प्रतिभाएँ धन के लालच में और कुछ सुविधाओं के लोभ में दूसरे देशों का रुख कर गए | इसके पीछे सिर्फ कोई एक पक्ष जिम्मेदार नहीं है | इसके पीछे इससे जुड़े सभी तंत्र जिम्मेदार माने जाएँगे| जिस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने ऐसे सर्वश्रेष्ठ संस्थानों की आधारशिला रखी थी तो उस वक्त उनका सिर्फ एक ही लक्ष्य और उद्देश्य था कि किस प्रकार हम अपनी प्रतिभाओं को विकसित कर भारत को आत्मनिर्भर संपन्न राष्ट्र बनाया जाए पर आज हमारे प्रतिभावान शिक्षार्थी इन बातों को नहीं समझ पा रहे हैं |

आज कहीं ना कहीं हमारी सरकार भी ऐसे छात्रों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुकूल उचित संसाधन मुहैया नहीं कर पाई जिसका परिणाम प्रतिदिन भारत से प्रतिभा का पलायन होता है | इसका परिणाम यह हो रहा है कि भारत विकास की दौड़ में पीछे होता जा रहा है और उसकी प्रतिभा संपन्न लोगों का लाभ दूसरा देश उठा रहा है इससे भारत को लगभग हर वर्ष कई अरब डॉलर का नुकसान होता जा रहा है | कहा जाता है कि कोई भी राष्ट्र तभी सुपर पावर बन सकता है जब उसके पास अपनी वैज्ञानिक क्षमता हो | हम वैज्ञानिक उत्पाद से लेकर अस्त्र-शस्त्र तक पर लाखों डॉलर खर्च करते हैं पर जब बात आती है वैज्ञानिक खोज एवं शोध की उस पर खर्च करते हैं पूरे सुरक्षा खर्च का मात्र चार या पाँच प्रतिशत आज इस सोच को बदलने की जरूरत है | जरूरत है वैज्ञानिक खोज को विकसित करने कि | हमें अपनी प्रतिभाओं को उचित अवसर उपलब्ध कराने होंगे | शोध के लिए उचित वातावरण अवसर और स्थान उपलब्ध कराना होगा उनको प्रोत्साहित करना होगा सम्मान दे कर उचित पारिश्रमिक और बेहतर जीवन शैली देकर जिससे कि वह बाहर का रुख न करें | अपने देश अपनी मातृभूमि पर ही रहकर उसके विकास और समृद्धि के बारे में सोचें |

अतः जो भी हो हमारे प्रतिभावान, बुद्धिजीवी और संपन्न लोग अपनी राष्ट्रीयता, अपनी देश सेवा का मान रखें | अगर हमें सुविधाएँ कम भी मिले तो हम कम-से-कम देश की प्रगति देश के स्वावलंबन की खातिर कुछ तो त्याग कर ही सकते हैं | शिक्षा की सार्थकता तभी मानी जाएगी जब वह अपने हित के साथ-साथ सामूहिक हित की बात करें | वहीं दूसरी तरफ हमारी सरकार को भी इस बात का ध्यान रखना है और प्रयास करना है कि हमारे शैक्षणिक प्रतिभावान लोगों को हर संभव सहायता मुहैया कराया जा सके तथा देश को विकास की राह पर अग्रणिय बनाया जा सके | राष्ट्र के विकास को गति देने के लिए प्रतिभाओं के पलायन को रोकना अति आवश्यक है इसके लिए उपयुक्त परिस्थितियां एवं वातावरण बनाना होगा |हमें उन बुद्धिजीवियों का पथ ग्रहण नहीं करना है जिन्होंने विदेशों में जाकर अपनी साख बनाई | पद और सम्मान ग्रहण किए | बेहतर अवसर और शोध कार्य को पूरा करने के लिए विदेशों का रुख किया | हमें डॉक्टर चंद्रशेखरवेंकटरमन, डॉक्टर होमी जहांगीर भामा ,डॉक्टर अब्दुल कलाम जैसी कई सम्मानित विभूतियों का अनुसरण करना है जिन्होंने इन्हीं साधन एवं सुविधाओं के बीच उल्लेखनीय उपलब्धियों से रष्ट्र को गौरवांवित किया है |अंत में मैं यही कहना चाहूँगी |

विकास गर करना है,
देश का उच्च स्तर पर ।
विकसित इसे बनाना है,
गर चिरकाल तक ।
प्रतिभा को अपनी हमको,
करना होगा देश पर न्यौछावर । चकाचौंध को देख अन्य की,
नहीं करना है प्रतिभा पलायन । अपने ही इस देश में रह कर,
देना है अपनी सेवा का
अंतिम क्षण तक ।।

Thursday 27 July 2017

***समय है 'अनमोल' **

**समय का जानो मोल ,
है यह बहुत अनमोल,
हाथ नहीं फिर आएगा,
एक बार निकल जाने पर,
पछतावा ही रह जाएगा,
खाली हाथ रह जाने पर |

**कुछ नहीं कर तुम पाओगे,
एक बार निकल जाने पर,
शून्य में सिमट जाओगे,
कभी फिर न संभल पाओगे,
समय आया हुआ भी गँवाओगे,
मुट्ठी में कभी दोबारा इसे न पकड़ पाओगे|




Tuesday 25 July 2017

भारत के नव निर्वाचित चौदहवें राष्ट्रपति जी को हार्दिक बधाई!!!

अरुणोदय का प्रकाश प्रकाशित
नवप्रभात की लालिमा के साथ
सुगंधित मलय की भांति
महके यह विश्व
आपके सान्निध्य में
सुमन सुरभि के साथ ||

Saturday 22 July 2017

सुविचार !

सुविचार !
छात्रों के लिए शिक्षाप्रद सुविचार !

Friday 21 July 2017

‘भ्रष्टाचार’ भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में !!!

विधा- भाषण

आचार भ्रष्ट, व्यवहार भ्रष्ट
भ्रष्ट सर्वस्व, भ्रष्ट आचरण
भ्रष्टता के आगे पथभ्रष्ट
मनुष्य जन सर्वप्रथम अग्रसर
रुका नहीं, ठहरा नहीं
हुआ भ्रष्ट जब आचरण
गृह खंडित, राष्ट्र विखंडित
बना बाधक हर मार्ग पर ||

किसी ने सही कहा है जब मनुष्य का आचरण भ्रष्ट होता है वह स्थिति भ्रष्टाचार का स्वरूप प्राप्त करती है |आज देश में समाज में भ्रष्टाचार व्यापक रुप में नजर आता है |हर जगह भ्रष्टाचार का बोल बाला है चाहे घर हो या बाहर भ्रष्टाचार हर क्षेत्र में दिखाई देता है । देश में व्याप्त चोरी-चकारी, धर्म के नाम पर लोगों को पथ भ्रमित करना, रिश्वत, कालाबाजारी यह सभी भ्रष्टाचार के प्रारूप है। आज उच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर तक भ्रष्टाचार पनप रहा है । पैसा देकर उच्च पद ग्रहण करना , झूठे मुकदमों का पैसे के बल पर जीत जाना ,गरीब और लाचार व्यक्ति का धन के अभाव के कारण कुंठित जीवन और गलत राह पर निकल पड़ना और भ्रष्टाचार का मार्ग ग्रहण कर लेना आम बात सी हो गई है | यह कैसा दौर है नया ,सत्य स्वयं ही राह से भटक गया इंसान इंसानियत को छोड़ कर भ्रष्टाचार रूपी जहर में लिपट गया |आज की स्थिति यह हो गई है कि सबसे ज्यादा राजनीति में, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार रूपी कीड़ा बड़ी तेजी से पनप रहा है| आज देश पर शासन करने वाला मंत्री वर्ग सबसे अधिक भ्रष्टाचार में लिप्त है| देश में जितने भी गोरखधंधे पनप रहे हैं उन का रास्ता सीधे मंत्रियों तक ही जा कर रुकता है| कहने का तात्पर्य यह है कि भ्रष्टाचार मंत्रियों से ही शुरु होकर मंत्रियों तक ही जाकर अपना पूर्ण लेता है जिसके कारण देश में अनैतिक कृत्य पनपते हैं| लूटमार, पत्थरबाजी, पैसों के दम पर किसी को मरवा देना, गलत कार्य को मान्यता प्रदान करना, भ्रष्ट लोगों का उच्च पद प्राप्त कर लेना भ्रष्टाचार को ही दर्शाता है |आज नौकरशाही पूर्णरूपेण भ्रष्ट आचरण और व्यवहार में लुप्त हो गई है या यूँ कहिए लिप्त हो गई है;जो देश की प्रगति और विकास के लिए घातक सिद्ध हो रही है |भ्रष्टाचार रूपी कीड़े को पनपने से रोका जा सकता है जरूरत है जन जागृति के जागृत होने की| आज हमें अर्थात् भारत के प्रत्येक वर्ग को प्रत्येक जन को सरकार की गलत नीतियों का बहिष्कार करना चाहिए अगर कहीं कुछ गलत होता दिखाई दे रहा है तो अपनी आवाज उठानी चाहिए अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो भ्रष्ट आचरण करने वालों का मनोबल बढ़ेगा और विरोध न होने की अवस्था में भ्रष्टाचारी देश की उन्नति की राह में बाधक बन देश को भ्रष्टाचार की दिशा में एक अंतविहीन मार्ग तक ले जायेंगे जहाँ से शायद वापिस आना दुष्कर होगा इसलिए इस कीड़े को पनपने से पहले ही रोकना होगा | आज के दौर में भ्रष्टाचार भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है | भ्रष्टाचार  एक घुन की भांति भारत के विकास में बाधा बनता जा रहा है| भ्रष्टाचार के कारण ही कार्यालय,दफ्तरो व अन्य कार्यक्षेत्रों में चोरी कालीबाजारी आदि अनैतिक कृत्य पनपते हैं| दुकानों में मिलावटी सामान बेचना तथा अपराधी तत्वों को रिश्वत ले कर मुक्त कर देना अथवा रिश्वत के आधार पर विभागों में भर्ती होना आदि आम बात हो गई है|देश के 100 में से 80 फ़ीसदी लोग इस तरह के कार्य करने की फिराक में रहते हैं|खेद का विषय तो यह है कि स्वयं सरकारी मंत्री करोड़ों अरबों के घोटाले करते नजर आते हैं|आधुनिक युग में व्यक्ति के प्रत्येक कार्य के पीछे स्वार्थ प्रमुख हो गया है|समाज में नैतिकता, अराजकता, स्वार्थपरकता एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है| कभी समाज सेवा के लिए जाना जाने वाला हमारा भारत देश आज भ्रष्टाचार की जननी बन चुका है|इसका परिणाम यह हो रहा है कि भारतीय संस्कृति तथा उसका पवित्र एवं नैतिक स्वरूप धुंधला होता जा रहा है| नौसीखिए नेता सभी प्रकार की मान-मर्यादाएँ भूलकर भ्रष्टाचार रूपी घुन से भारत की जड़ों को खोखला कर रहे हैं| हर घोटाले गोरखधंधे की पगडंडी अंततः राजनेताओं तक जाती दिखाई देती है|क्योंकि- इंसान कम बचे हैं नियत सबकी हो गई है स्पष्ट| शिकायत किससे करें जब पूरा तंत्र ही हो गया है भ्रष्ट|मेरी इस बात का समर्थन आप सभी लोग करेंगे कि आज हर व्यक्ति नैतिक और अनैतिक तरीकों से धन कमाने में लगा हुआ है| जिसके कारण भ्रष्टाचार रूपी कीड़ा पनपता जा रहा है और भारत के विकास में बाधक बनता जा रहा है|आज मनुष्य की इच्छाएँ सुरसा के मुख की भांति बढ़ती जा रही हैं जिनकी पूर्ति हेतु कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार करने से नहीं कतराता उसे न किसी का भय है और न ही किसी की चिंता| धन कमाने के लिए वह हर प्रकार की सिर्फ भ्रष्ट नीतियाँ ही अपना रहा है|आज की स्थिति यह है कि उच्च अधिकारी से लेकर निम्न स्तर तक सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और जब तक भ्रष्टाचार से मिलने वाली आय का भारतवासी स्वयं स्वागत करते रहेंगे तब तक भ्रष्टाचार भारत के विकास में इसी तरह बाधा बनकर अपनी टांगे पसारता रहेगा|आज सभी भारतीय नागरिकों को इसे दूर करने हेतु कृतसंकल्प होने की आवश्यकता है| भ्रष्टाचार के दोषी व्यक्तियों का पूर्णरूपेण सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए ताकि ऐसे लोगों के मनोबल को खंडित किया जा सके जिससे वह इसकी पुनरावृत्ति न कर सके| भ्रष्टाचार के विरोध में राष्ट्रीय जन-जागृति को अपनी आवाज भ्रष्टाचार के विरूध बुलंद करनी होगी| यदि हमें देश को प्रगति पथ पर ले जाना है तो हमें अपने लोभ पर विराम चिह्न लगाना होगा|भारत की सभ्यता और संस्कृति को यदि चिरकाल तक जीवित रखना है तो हमें अपने व्यक्तित्व में सुधार लाना होगा तभी हम देश के अस्तित्व पर छाए धुंधलेपन को मिटा पाएँगे और संपूर्ण विश्व में सोने की चिड़िया कहलाने वाले अपने देश भारत को प्रगति के पथ पर ले जाकर उसका मान सम्मान और भी अधिक बढ़ा कर उसे उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा पाएँगे|

अपने सपने होंगे पूरे ,
दुश्मन के साकार नहीं ,
अमन चैन के दिन होंगे ,
अब होगा भ्रष्टाचार नहीं |
अब होगा भ्रष्टाचार नहीं ||

Tuesday 11 July 2017

**मील का पत्थर**

विधा- कविता

*पहुँचाकर मंजिल पर राही को
अभी भी वहीं खड़ा हूँ |

*धूल से ढककर, सूरज से तपकर
अभी भी अडिग खड़ा हूँ |

*रुका न कोई पलभर भी
न पूछा मेरा अता-पता |

*देखकर मुझको दूर से यूँ ही
अपनी मंजिल की ओर ही बढ़ा |

*न ली कोई मेरी खैर-खबर
न दो पल भी वहाँ रुका |

*न किया मेरा शुक्रिया उसने
स्वार्थी मानुष धूल उड़ाए चलता ही गया |

*क्या दूँ अपना परिचय में तुम्हें
मैं हूँ वही पाषाण, वही पाषाण हूँ मैं |

*जो मील का पत्थर बन
दिशा निर्देशक-सा अभी भी वहीं हूँ खड़ा ||

Saturday 1 July 2017

***बारिश की बूंदे***

विधा- कविता

*काले घने फूस से बादल,
घिर-घिर कर जब आएँ|
मन हर्षित हो जाए,
जब घनघोर घटाए छाएँ|

*बारिश की बूंदे संग लेकर,
काली बदली मन हर्षाए|
देखो-देखो काले बादल,
नभ-तल पर मोह बिखराएँ|

*मेरे मन का जगमग दीपक,
देख इन्हें भरमाए|
आए-आए नभ-तल पर,
बारिश के बादल आए|

*रिमझिम-रिमझिम बरस गए,
हरियाली धरती पर छाए|
मन मयूर-सा हुआ है मेरा,
नभ पर बादल… जब घिर-घिर आए|

*वर्षा ने है किया उन्माद,
खेतों में हरियाली छाएँ|
बागों में मयूर भी देखो,
खुशी में अपने पंख फैलाएँ|

*फर-फर,फर-फर करें नृतन,
बगिया भी महकी-सी जाए|
तितली,भौरे संग देखो अब,
मन मयूर-सा हुआ है जाए|

*वर्षा की बूंदों ने जब-जब
धरती पर जल बरसाया|
नदियों ने जल के भरने पर,
राग मोहनम है गाया|

*कागज की नैया के संग,
बच्चों ने खेल दिखाया|
पानी भरे हुए गड्ढों में,
अपनी नैया को तैराया|

*बच्चे,बूढ़े हुए मगन सब,
प्रकृति भी मंद-मंद मुस्काए|
गड्ढों के पानी में बच्चे,
छक-पक,छक-पक उधम मचाएँ|

*देखो वर्षा ने यह कैसा,
अपना रंग दिखाया|
नीले नभ पर देखो,
सतरंगीला धनुष बनाया|

*अरुण ने डाली रश्मियाँ,
नभ-तल पर स्वर्णिम छाया|
इंद्र देव की कृपा हुई,
इंद्रधनुष उभरकर नभ पर आया|

*देख प्रकृति की छटा,
मन हर्षित झूमें गाए|
काले घने फूस से बादल,
घिर-घिर कर जब आएँ|

*मन हर्षित हो जाए,
जब घनघोर घटाएँ छाएँ|
काले घने फूस से बादल,
बारिश जब-जब लाएँ|

*काले घने फूस-से बादल,
बारिश जब जब लाएँ|

चंद्रज्योत्ना-सी आभा लिए **एकता**

विधा- कविता

*खिलती हुई कली के जैसी
उगती हुई सुबह के जैसी
चंद्रज्योत्सना जैसी शीतल
ऐसी है उसकी मुस्कान
जहाँ भी जाए या न भी जाए
खुशबू और प्रकाश फैलाए
ऐसा है उसका एहसास

*बोली में रस,मुख पर आभा
मन निर्मल,स्वरूप है सादा
हर बात से मन पर छाप छपाए
सबको कर देती है मुग्ध
जब बात अपनी वो कह जाए

*सहयोगी व्यक्तित्व है उसका
चिड़िया के जैसे है चहके
एक के दिल को नहीं यह बाला
सबके दिल को मोह से जीते

*नाम भी उसका ऐसा है
उसके व्यक्तित्व के जैसा है
एकता में विश्वास है रखती
अपने नाम को परिपूर्ण है करती

*मैंने तो कर दिया है विवरण
अब तुम ही उसको जानो
साथ तुम्हारे रोज है रहती
उसका तुम सब कहना मानो

***समझ सको तो समझ लो अब तुम
कौन है वह क्या नाम है उसका
बिना बताए जानो अब तुम
पहचान सको पहचानो अब तुम

***चंद्ज्योत्सना-सी आभा उसकी
फूलों-सी मुस्कान है उसकी
एकता के साथ ही साथ
शांति भी वह कायम रखती
इसी पंक्ति में छिपा है
उसका अपना का नाम |||