Tuesday 30 May 2017

**आखिर बहू भी तो बेटी है** लघु कथा

* हमेशा से देखा गया है कि बहू और बेटी दोनों में भेदभाव यह सृष्टि का नियम-सा हो गया है | सास कभी भी अपनी बहू को बेटी नहीं मानती और न मानना चाहती | वह क्यों नहीं समझती कि उनकी बेटी भी किसी के घर की बहू है  | अहंकार में भरी हर सास क्यों परायी बेटी में अपनी बेटी की छवि नहीं देखती ।

* घर में बहुत खुशी का माहौल छा गया जब देवकी को पता चला कि उसकी बहू के पाँव भारी है  | घर में बहू से एक बेटी तो पहले ही थी अब देवकी को बहू से बेटे की चाह थी | देवकी ने पहले पहल तो बहू का बड़ा लाड-चाव किया परंतु तीन महीने बीतते ही जब बहू को परेशानी शुरू हुई जिसके कारण देवकी को सबकी रोटियाँ पकानी पड़ी, क्योंकि बहू को रोटी पकाने से बदबू आती थी , अहंकार से भरी देवकी ने बहू को परेशान करना शुरू कर दिया ।

* देवकी मन मारकर रोटियाँ बनाती और पूरी रसोईघर को बिखेर कर आ जाती और फिर बहू से रसोई साफ करने को कहती | बहू बेचारी बहू ठहरी , सास की आज्ञा को कैसे ठुकरा सकती थी । बहू रसोई साफ करती पर रसोई में रोटी की बदबू के कारण कुछ खा भी नहीं पाती थी | एक-दो दिन तो ठीक चला पर रोटी  बनाने से बचने के लिए देवकी ने बहू पर ही इल्जाम लगा दिया कि काम से बचने के लिए बहू बहाना बनाती है | देवकी ने बेटे से कहा मेरे बस की नहीं है तुम्हारी रोटियाँ बनानी मैं तो अपनी दो रोटी बनाऊँगी और खाऊँगी और जिसे भूख लगे वो अपनी रोटी बनाए और खाए ।

* थोड़े दिन बाद पता चलता है कि उसकी बेटी भी पेट से है । बेटी माँ के पास आती है और कहती है मम्मी मुझसे रोटी नहीं बनाई जाती मुझे रोटी में से बदबू आती । बेटी की बात सुनकर माँ बोलती है बेटी अगर बदबू आती है तो रोटी मत बनाया कर  अपनी सास से कह दिया कर वह बना देगी | इस हालत में तू ज्यादा से ज्यादा आराम किया कर और अगर तेरी सास ज्यादा जबरदस्ती करें तो कह देना मुझसे नहीं होगा ये सब | हम हैं तेरे साथ कुछ ज्यादा परेशानी हो तो यहाँ आ जाना | तुझे मैंने नाज़ो से पाला है और लाडो से झूले झुलाए हैं मुझमें अभी इतना दम है कि तुझे रोटी बनाकर खिला सकूँ और तू चिंता मत कर घर में तेरी भाभी भी तो है तुझे यहाँ कोई परेशानी नहीं होने दूँगी ।

एक माँ अगर अपनी बेटी के लिए अच्छा सोच सकती है तो उस बेटी के लिए क्यों नहीं सोचती जो अपना घर, माँ-बाप और पूरा परिवार छोड़कर आई है | एक माँ कैसे इतनी निर्दयी हो सकती है बहू के लिए कुछ और बेटी के लिए कुछ और | मेरा मनना है कि अगर हर घर में सास अपनी बहू को बेटी बनाकर रखे और जो आदर -मान बहू से चाहती हैं वह बहू को भी समान रूप से दे तो किसी माँ की बेटी सतायी या जलायी न जाए |

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