Tuesday 23 April 2019

भारत में हिंदी की स्थिति

आलेख
भारत में हिंदी की स्थिति

हिंदी हमारी शान, हिंदी हमारी जान,
हिंदी से है संसार, हिंदी से हिंदुस्तान,
हिंदी है मन में, हिंदी है तन में,
हिंदी से ही सार्थक…
होती हमारी पहचान ।।

हम सभी ने पर्यावरण प्रदूषण का नाम सुना है और हम देख भी सकते हैं कि पर्यावरण किस प्रकार से दिन-ब-दिन प्रदूषित होता जा रहा है । प्रदूषण चाहे कोई भी हो पर्यावरण या भाषिक हर स्थिति में असर देश पर या देश में रहने वाले समस्त देशवासियों पर पड़ता है । आज हमारे देश में हिंदी भाषा प्रदूषित होती जा रही है और इसका असर देश की प्रगति, विकास और देश के सम्मान पर पड़ रहा है । हिंदी हमारी मातृभाषा है और जहाँ माता का सम्मान नहीं होता वहाँ सुख समृद्धि नहीं रहती है । यह सच है कि जो देश अपनी मातृभाषा का सम्मान नहीं करता उस देश का पतन निश्चित है । यह पतन सांस्कृतिक, नैतिक और साहित्यिक किसी भी रूप में हो सकता है । हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा की काली छाया  का प्रकोप फैल रहा है जिससे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि उसके नाम में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है अर्थात आजकल हिंदी को हिंग्लिश बना दिया गया है । हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी भावी पीढ़ी मातृभाषा का रसवाद नहीं कर पाएगी । हिंदी पर अंग्रेजी की कुहास चादर चढ़ गई है जो भारत देश के अस्तित्व पर एक गहरा प्रहार है ।

हमें हिंदी भाषा को विश्व में सिरमौर बनाना है तो आने वाली पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति आदर सम्मान की भावना पैदा करनी होगी । मैं स्वयं कुछ समय से यह अनुभव कर रही हूँ कि हर रोज हिंदी का विकृत रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है ; कभी समाचार पत्रों के माध्यम से, कभी पत्रिकाओं के माध्यम से और कभी चलचित्रों के माध्यम से हिंदी को इंग्लिश के साथ मिलाकर हिंग्लिश बनाकर हमारे समक्ष पेश कर देते हैं । मानो हिंदी भाषा भाषा नहीं एक मजाक हो । भाषा में बढ़ते प्रदूषण का कारण मीडिया से ज्यादा हम स्वयं हैं, समाज हैं, विद्यालय हैं और शिक्षक स्वयं हैं जो अपनी मातृभाषा को विखंडित होने से नहीं बचा पा रहे हैं । अभी भी हम औपनिवेशिक संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित हैं अगर हम अपने आस-पास नजर घुमाएँ तो पाते हैं कि माता- पिता स्वयं अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर उन्हें हीनता का बोध कराते हैं । ऐसी मानसिकता और सोच के लिए समाज, राष्ट्र, माता-पिता और विद्यालय सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि और बढ़ावा देते हैं । आज की शिक्षा व्यवस्था हिंदी भाषा के ह्वास का कारण है जहाँ हिंदी मात्र एक विषय बन कर रह गया है और अंग्रेजी ने भाषा का रूप ले लिया है । इसको प्रदूषण नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? इसे 'भाषा प्रदूषण' संज्ञा देना कोई अचरज नहीं होगा । मैं मानती हूँ कि अंग्रेजी कुछ गिने-चुने रोजगारों के लिए आवश्यक हो सकती है मगर संपूर्ण समाज के लिए नहीं क्योंकि समाज की 90 फी़सदी जनता हिंदी में ही अपने विचारों का आदान प्रदान करती है ।
आज हमारे आस-पास ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि हम लोभ, लालचवश स्वेच्छा से अंग्रेजी को ग्रहण करते हैं । हमारी मानसिकता के अनुसार लाखों रुपयों का वेतन अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने से प्राप्त होता है । हम मानने लगे हैं कि सफलता अंग्रेजी जानने बोलने से प्राप्त होती है । आज हम गुलाम किसी देश के नहीं आज हम गुलाम स्वयं अपनी सोच के हैं …हम गुलाम स्वेच्छा से अंग्रेजी भाषा के हैं । आज ड्राईवर और चपरासी की नौकरी के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है । माँ अपने बच्चों को चाँद की जगह 'मून' और बंदर की जगह 'मंकी' पढ़ाती है बच्चा अगर इन शब्दों को हिंदी में बोले तो माँ की प्रतिक्रिया होती है कि यह चाँद नहीं 'मून' है अर्थात् बच्चों को धरातल से ही हिंदी के ज्ञान से विमुख किया जाता है । आज शादी ब्याह, जन्मोत्सव इत्यादि की पत्रिका और निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापे जाते हैं चाहे घर में किसी को अंग्रेजी आती हो या न आती हो मगर विवाह पत्रिका, निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही होने चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषा आज शान का प्रतीक मानी जाती है जिसके कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है और इसका श्रेय हमारे देशवासियों को जाता है जो अपनी मातृभाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं । साल में एक बार 14 सितंबर को पूरे देश में यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । एक ही दिन हमें हिंदी की औपचारिकता क्यों करनी पड़ती है ? क्या हमारी मातृभाषा के सम्मान के लिए एक ही दिन है ? क्या हम हर दिन हिंदी दिवस के रूप में नहीं मना सकते ? क्या हम हर दिन अपनी मातृभाषा को सम्मान नहीं दे सकते हैं ? यह सभी प्रश्न हमें चिंता में डालते हैं । एक समय था जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे मगर आज हम अंग्रेज़ी के गुलाम होते जा रहे हैं । किसने कहा एक माँ अपने बच्चे को हिंदी नहीं अंग्रेज़ी में सब कुछ सिखाए ? किसने कहा एक कर्मचारी को अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है ? किसने कहा कि निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही हो ? क्या सरकार ने …देश की शासन व्यवस्था … नहीं किसी ने नहीं …यह सब हमारे लोभ, लालच और अंग्रेज़ी भाषा की हवा ने कहा जो ऊँची तरक्की, ऊँचा वेतन और चका-चौंध की छवि को दर्शाता है । भारतीय हिंदी भाषी होना क्या हीनता की निशानी है ? अब आप ही बताइए… क्या यह स्वेच्छा से गुलामी स्वीकार करना है या नहीं …?

हम स्वयं हिंदी के प्रदूषण के जिम्मेदार हैं । जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे तब भी अंग्रेज़ी का ऐसा और इतना बोल बाला नहीं था । अंग्रेज़ी थी मगर अंग्रेज़ी की गुलामी नहीं थी और न ही भारतीय भाषाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार की भावना थी । हमारे देश के नेता अंग्रेज़ी जानते थे बोलते थे और बहुत विद्वान थे मगर सभ्यता और संस्कृति के सम्मान का ध्यान रखते थे । किंतु आज का नेता वोट तो हिंदी में माँगता है, नारे हिंदी में लगाता है, पर्चें हिंदी में बाँटता है किंतु लोकसभा और विधानसभा में शपथ ग्रहण अंग्रेज़ी में करता है । यह कहाँ तक सही है ? क्या उसे हिंदी में शपथ ग्रहण करने में शर्म आती है या अंग्रेज़ियत के भूत ने पूरे देशऔर उसके शासन को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है । हिंदी भाषा के अस्तित्व पर यह गहरा आघात है ।

न जाने जो हिंदी; वह हिंदवासी नहीं,
अंग्रेज़ी का ज्ञान पाकर कोई देशवासी नहीं,
हिंदी में ज्ञान पाओ, हिंदी में गुनगुनाओ,
हिंदी में ही नेताओं को शपथ ग्रहण करवाओ ।।

यह एक भ्रम बुरी तरह से हमारे हिंद में फैलाया गया है और चल रहा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने लिखने वाले युवक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस का नतीजा यह हुआ है कि गरीब और आम आदमी अंग्रेजी भाषा की चक्की में पिसने को तैयार खड़ा हो गया है और वह स्वयं अपने बच्चों को बड़े से बड़े अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहता है जिससे उसकी संतान को सफलता प्राप्त हो सके । परंतु यह वास्तविकता नहीं है हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं और उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं । हिंदी भाषा का सर्वस्व कायम रखना है तो हमें स्वयं की सोच में बदलाव लाना होगा अंग्रेजी जानना, पढ़ना और बोलना बुरा नहीं है परंतु अपनी भाषा को पीछे रख कर नहीं ……आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता नजर आता है । आज लोग अपने बच्चों को प्राइवेट या कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं । आज का युवा उच्च शिक्षा तो ग्रहण कर लेता है परंतु दो लाईन शुद्ध हिंदी न लिख पाता है और न ही बोल पाता है । आज का विद्यार्थी हिंदी नहीं पढ़ना चाहता । बारहवीं के विद्यार्थियों को आज मात्राओं का ज्ञान नहीं है । बारहवीं में आकर भी ि , ी ु , ू े , ै की मात्राओं के प्रयोग में सक्षम नहीं है । इसका जिम्मेदार कौन है …?
हम, आप या विद्यार्थी स्वयं हम से तात्पर्य शिक्षक, आप से तात्पर्य…अभिभावक से है । आज हमें युवाओं के मन में नई चेतना जगानी होगी । अंग्रेजी के संक्रमण को रोकना होगा । प्रदूषित होती हिंदी को बचाना होगा । यह कार्य हम तभी कर सकते हैं जब हम जागरुक हो , हिंदी का महत्व समझें और अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की भावना रखें । आज अनेक संस्थाएँ हिंदी विकास और विस्तार के लिए कार्य कर रही हैं जिनका एकमात्र ध्येय हिंदी को उच्च स्तर तक पहुँचाना और उसके ह्वास को रोकना है । आज हिंदी भाषा अकादमी और वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवम् सांस्कृतिक संस्थान जैसे अनेक संस्थान है जो राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार और विस्तार का कार्य करने में लगनशील है तथा हिंदी को भारत में ही नहीं विश्व स्तर पर सिरमोर बनाने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं । भारत के नागरिक होने के नाते हमें भी हिंदी उत्थान में अपना पूर्ण योगदान देने हेतु संकल्पबध होना होगा और हिंदी भाषा के उत्थान के लिए सदैव प्रयासरत् रहना होगा तभी हम हिंदी पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को रोक पाएँगे और हिंदी पर पड़ रही काली छाया 'हिंग्लिश' को समाप्त कर पाने में सक्षम होगें ।
हिंदी है जन-जन की भाषा ।
हिंदी मेरे हिंद की भाषा ।
हिंदी का सम्मान करो ।
हिंदी पर अभिमान करो।

निष्कर्ष

भाषा चाहे कोई भी हो वह मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है क्योंकि मानव सभ्यता को विकसित और गतिमान बनाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है और वह संप्रेक्षण भाषा से ही संभव है मुख से उच्चारित होने वाली ध्वनि की एक अनुपम व्यवस्था भाषा कहलाती है भाषा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है हिंदी , संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है । आज हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्यों आज हिंदी को बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं ? क्या भाषा भी किसी के संरक्षण की मोहताज है ? हम भारतवासी होकर हमारा क्या यह कर्तव्य नहीं कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें और उसे विश्व पटल पर लाएं ।
 
अपनी भाषा में एक एहसास है ।
हिंदी देश का स्वाभिमान है ।

हिंदी से भविष्य और वर्तमान है ।
हिंदी भावों का महाजाल है ।

भावों का समंदर रहता है इसमें ।
एहसास से गुथा एक धागा है जिसमें ।

जोड़ देता है मन से मन को पल में कहीं भी । 
टूटते दिलों को जोड़ देता है दूर से ही ।

भावनाओं की भाषा  सौहार्द बनाती है ।
लिपि भाषा को  लिखना सिखाती है ।

भाषा से ही ज्ञान समृद्ध, विशाल मुमकिन है ।
भाषा नहीं तो शब्दों का महाजाल बुनना मुश्किल है ।

देश विदेश में भी इसका परचम लहराया है ।
सबने हिंदी को मन से अपनाया सौभाग्य हमारा है ।

अभिमान है हमें…हम हिंदुस्तानी हैं। 
गौरवान्वित हैं हम… कि हम हिंदी भाषी हैं ।

डॉ. नीरू मोहन 'वागीश्वरी'




Friday 12 April 2019


उड़ी   ……उड़ चली …सपनो में लगाके पंख
रुकी न …अब…बह चली पवन बन , नदी संग - संग
घटाएं जो घिरी थी सब …पलभर में हुईं ओझल
सूरज ने जो तानी है …सुनहरी प्रभा चादर

नए सपनों के रंग आशाओं के संग
हौसलों की उड़ाने , उजालों के संग
कुछ पाने की आशा मन में लिए
हाथों को खोले … अब
उड़ने को चली नभ तक … सपनों के लगा के पंख
उड़ी  ……उड़ चली क्षितिज को पाने अब
सूरज ने जो तानी है सुनहरी प्रभा चादर

अभिमान बनूंगी मैं _ सहारा बनूंगी मैं_बेटे से न पाया जो मान बनूंगी मैं ।
बेटी हूं मैं … न सोचने दूंगी ये , बेटे से भी ज्यादा नाम करूंगी मैं ।
बेटे की चाह न फिर जीवन में करोगे तुम, बेटी के जन्म  पे शोक करोगे न तुम ।
मांगोगे दुआ हर पल बेटी से भरे आंगन , सूरज ने जो तानी है सुनहरी प्रभा चादर ।
उड़ने को हूं बेचैन , न रोक मुझे बादल
पा लूंगी हर मंजिल , होंसले सब बुलंद है अब ।

ममता दया करुणा साहस सब कुछ मेरे अंदर
मां बहन बहू बेटी … जलधि नध और सागर
सम्पूर्ण धारा मुझसे … जन्नी … दूं नवजीवन
सृष्टि की संवाहक , लक्ष्मी दुर्गा अंदर
बेटी हूं मैं जग की शिक्षा की हूं मैं खान
जननी संस्कारों की शिक्षित करती परिवार

सबको ये बताने सच … अनजान बने हैं जो
न कमतर है बेटी … वंश जिससे बने बेहतर
उड़ी… उड़ चली
सपनों के लगा के पंख
सूरज ने को तानी है
सुनहरी चादर नभ तक








Thursday 11 April 2019

मैं भी चौकीदार …

मैं भी चौकीदार …
मैं भी भिखारी…
मैं भी चायवाला …
क्या है ये सब ?
एक नेता के कहने पर हम अपने आपको किसी भी संज्ञा से संबोधित कर लेते हैं क्यों ?
मैं पूछती हूं उन लोगों से जो अपने आपको कभी चौकीदार बना रहे हैं कभी चायवाला; अगर सच में वह इनमें से किसी से भी संबंधित होते तो क्या ये सब कह पाते ? शायद नहीं … यकीनन नहीं और अगर कोई उनको ये सब कह कर संबोधित भी करता तो सहन से बाहर होता तो क्यों किसी के कहने मात्र से सभी चौकीदार और चायवाले बन जाते है । नाम , शोहरत , वोट और रुतबा पाने के लिए । एक बार ये काम करके देखिए सच्चाई समक्ष होगी । जो जनता से इतने बड़े - बड़े वादे कर रहे हैं एक दिन भी चौकीदार और चायवाले नहीं बन सकते क्योंकि … उन की तरह आप मेहनत नहीं कर सकते , पसीना नहीं बहा सकते । कुर्सी पर बैठ कर कुछ भी बोला जा सकता है । इन स्थितियों को जी कर देखें असलियत से सामना हो जाएगा ।

मैं ये सब इसलिए कह रही हूं कि मीडिया, समाचारपत्र, पत्रकारों को माध्यम बनाकर आपसे पूछा जा रहा है कि आप किसको वोट देंगे । आपका पसंदीदा नेता कौन है । अरे भाई ! ये हम तुम्हे क्यों बताएं । ये हमारा अपना मत है । अपना वोट है । हम किसको वोट दे या देंगे ये जगजाहिर क्यों करना है ? जब मत पेटी से मतों की गिनती हो जाएगी सबको पता चल ही जाएगा कि पसंदीदा व्यक्तित्व या नेता कौन है ।

Monday 1 April 2019

परिचय

परिचय
नाम - डॉ.नीरू मोहन 'वागीश्वरी'
जन्म तिथि -1 अगस्त 1973

शिक्षा 
1. स्नातक
2. एन.टी.टी
3. पी.टी.टी
4. डी.ई.सी.ई
5. एडवांस टेकनिकल कोर्स इन ड्रेस डिजाईनिंग(इंस्ट्रक्टर)
6. एम.ए हिंदी
7. एम.ए राजनीति विज्ञान 
8. बी.एड हिंदी, सामाजिक विज्ञान
9. एम. फिल हिंदी साहित्य
शोधकार्य - आदिकाल और रीतिकाल
10. पी.एच-डी 
शोधकार्य - अटल बिहारी वाजपेेयी : जीवन सृजन एवं मूल्यांकन

 कार्यक्षेत्र : भाषाविद्, शिक्षाविद्, प्रेरक वक्त, साहित्य लेखन, समाज सेवा, बाल विकास, नारी उत्थान और हिंदी भाषा उत्थान हेतु समर्पित-

अनुभव : 25 साल (शिक्षण, लेखन, प्रेरक वक्त)

विधाएं : लेख, आलेख, लघु-कथा, संस्मरण, छंदयुक्त और छंदमुक्त कविताएँ, दोहे, हाइकु, चोका, ताँका, रेंगा, सायली छंद, उद्धरण /अवतरण,  सुविचार, कुंडलियाँ, नाटक, नुक्कड़ नाटक, भाषण, कहानी, बाल-कविता एवं कहानियां, समीक्षा, निबंध, शोधकार्य, उपन्यास इत्यादि |

प्रकाशन : रचनाएँ साहित्यपीडिया मंच पर, काव्य संगम पुस्तक, नव पल्लव, नये पल्लव, अविचल प्रवाह, साहित्य संगम एप, साहित्य संगम नारी ग्रुप, सवेरा पत्रिका, अविरल पत्रिका, मुलायम सिंह यादव पुस्तक में लेख, सांझा काव्य संग्रह, विभिन्न पत्रिकाओं, अनेक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में, दीप देहरी कहानी संग्रह, अविरल धारा सांझा काव्य संग्रह, घरौंदा बाल साहित्य कहानी, लम्हों से लफ़्ज़ों तक सांझा काव्य संग्रह, अमर उजाला, संदल सुगंध काव्य संग्रह, काव्य कुंभ सांझा काव्य, काव्य रंगोली संग्रह, एजूकेशन मिर्र, अंतरा, हिंदी लेखक डॉट कॉम, यू कॉटेशन्स डॉट कॉम, हाइकु मञ्जुषा ब्लॉग, लिट्रेचर प्वाइंट, ज्ञान एप, गूगल, वेब और ब्लॉक पर प्रकाशित, साहित्य संचय प्रकाशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध आलेख प्रकाशित ।

सम्मान :

आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

साहित्य संगम संस्थान एवं नारी संस्थान द्वारा दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

साहित्य संगम द्वारा दैनिक समीक्षा का अवसर

साहित्य संगम संस्थान द्वारा भाव भूषण सम्मान

साहित्य संगम संस्थान द्वारा वीणापाणि, वागीश्वरी सम्मान

पाठकों और साहित्यिक मंचों द्वारा 'वागीश्वरी' संबोधन प्राप्त

आगमन साहित्यिक संस्थान द्वारा उत्कृष्ट रचना हेतु कई प्रशस्ति पत्र अंग वस्त्र और प्रतीक चिह्न प्राप्त

आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच द्वारा आगमन राष्ट्रीय उप-महासचिव के रूप में पद प्राप्त और सम्मानित ।

काव्य रंगोली मातृत्व गौरव सम्मान

Anti corruption foundation of India की ओर से राष्ट्र गौरव सम्मान 2018 से सम्मानित ( 3 जून 2018 )

आगमन गौरव सम्मान 2018 हेतु चयनित ( 8 सितंबर 2018 )

सुपर एचिवर्स अवॉर्ड 2018 (मिशन न्यूज़ 10 जून 2018 )

ड्रीम इंडिया अवार्ड 2018 ( ऑन टाईम वर्ड मीडिया 16 जून 2018 )

नारी शक्ति गौरव अवार्ड 2018 (जयपुर 21 जून 2018)

क्राउन ऑफ सब्सटेंस वीमन सेलिब्रीटीज़ 2018

विलक्षण समाज सारथी सम्मान २०१८ हेतु चयनित

मंथन संस्थान द्वारा नारी गौरव सम्मान २०१८ हेतु चयनित

भारत उत्थान न्यास कानपुर एवं महिला स्नातकोत्तर विश्वविद्यालय गाजीपुर द्वारा अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित

विभिन्न विद्यालयों, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं द्वारा निर्णायक एवं मुख्य अतिथि के रूप में  आमंत्रित

वूमेन पॉवर सोसाइटी द्वारा विशिष्ठ अतिथि के रूप में आमंत्रित १६-०२-२०१९ और सम्मानित

ह्यूमन फाउंडेशन एवम् भागीदारी जन समिति की ओर से नारी गौरव सम्मान / स्वर्ण पदक से सम्मानित

एकल प्रकाशन :

प्रकाशित एकल काव्य संग्रह जिनका विमोचन आदरणीय डॉ. रमाकांत शुक्ल जी के कर-कमलों से 6 जनवरी 2019 को सम्पन्न हुआ ।

1. पद्मांजलि ( नारी के मनोभावों का सजीव चित्रण, काव्य संग्रह )

2. नव प्रवर्तन ( बाल-काव्य संग्रह )

3. बूँद-बूँद सागर ( हाइकु मञ्जूषा , काव्य संग्रह ) जापानी काव्य शैली (इंडो नेपाल अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अगस्त २०१८ में हुआ पुस्तक का विमोचन )

4. क्षितिज… एक अंतहीन सफ़र (सत्य घटनाओं पर आधारित 25 कहानियों का संग्रह) ई-बुक अमेजॉन रूम किंडल पर उपलब्ध। 

अंग्रेज़ी रूपांतर

5. HORIZON… An endless journey ( ebook and paper back available on Amazon and Kindle)

6. व्याकरण ' रस ' (प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु 150 महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह) अमेजॉन एवं किंडल पर उपलब्ध

7. मीठी-मीठी किलकारियां ( बाल-काव्य संग्रह )

आने वाली पुस्तकें :

1. लेख संग्रह

2. उपन्यास

3. काव्य संग्रह (हिंदी एवं अंग्रेज़ी)

4. व्याकरण ' रचना के आधार पर वाक्य भेद ' प्रश्न-कुंभ

सदस्यता

दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष वूमेन पॉवर सोसाइटी रजि० 

संस्थापक/अध्यक्ष वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान

अजीवन सदस्या 'पुलिस की आवाज़ फाउंडेशन'

आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच की राष्ट्रीय उप महासचिव ।

हिंदुस्तानी भाषा अकादमी की सदस्या

हिंदुस्तानी भाषा शिक्षक प्रकोष्ठ की सह प्रभारी

सवेरा पत्रिका की अजीवन सदस्या

व्यवस्थापिका- अस्तित्व समूह (१७०० सदस्य)

ईमेल पता -
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ब्लॉग पता - http//myneerumohan.blogspot.com

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