Thursday, 18 May 2017

**मेरी कलम से सुनो ! प्रजातंत्र का हाल***


**कलम की ताकत को मैं आज ,
समक्ष तुम्हारे लाया हूँ |
कितना अब तक बदल गए हैं ,
तस्वीर दिखाने आया हूँ |

**कितना बदले हम वर्षों में,
सब हाल बताने आया हूँ |
भारत माता के ज़ख्मों का,
हाल सुनाने आया हूँ |

**प्रजातंत्र के वर्तमान का,
चित्र दिखाने आया हूँ |
भारत माता के जख्मों का,
हाल सुनाने आया हूँ |

**गम के बादल कहाँ छटे हैं ,
जहाँ खड़े थे वहाँ खड़े हैं ।
जाति धर्म की तलवारें हैं ,
लड़े कभी हम कभी बँटे हैं ।

**बाग बंट गया जलियाँवाला ,
किसकी ये गद्दारी है ।
खादी अपना चेहरा देखे ,
क्यूँ ऐसी मक्कारी है ।

**किसने सबके घर फूंके हैं ,
सबको आज बताऊँगा ।
कराह रही है मेरी माता ,
सबको पीर सुनाऊँगा ।

**खण्ड-खण्ड है मेरा भारत ,
तुम्हें दिखाने आया हूँ ।
लोकतंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ ।

**कैसे भूलें नगर मुजफ्फर ,
जहाँ गली और गाँव जले ।
श्वेत कबूतर नेहरू जी के ,
पीपल वाली छाँव जले ।

**कैसे मानें वो दंगा था ,
महज चुनावी हथकंडा था ।
नहरों का पानी रक्तिम था ,
बूढ़ी माँ का लाल जला था |

**हूँ थूकता सिंहासन की ,
मैं ऐसी पगडंडी को ।
संसद ऐसे चला रहे है ,
मानो सब्ज़ी मंडी हो ।

**देश चलाने वालों का ,
किरदार दिखाने आया हूँ |
प्रजातंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ |

**रोज़ भगतसिंह फाँसी चढ़ता ,
रोज़ कहीं पर गाँधी मरता ।
रोज़ द्रोपदी चीर हरण है ,
रोज़ किसी का आँचल फटता ।

**बस पश्चिम की दौड़ लगी है ,
नंगे पन की होड़ लगी है ।
विवेकनंदी धरती धूमिल है ,
काम वासना बढ़ी-चढ़ी है ।

**रोज़ निरभ्या चीख रही है ,
अंधी काली रातों में ।
खूनी कोठी भरी पड़ी है ,
मासूमों की लाशों में ।

**मंगल तक जाने वालों को ,
ज़मी दिखाने आया हूँ ।
प्रजातंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ |

**कहीं अमीरी का परचम है ,
वही गरीबी का बचपन है ।
खाई दिनों दिन बढ़ती है ,
जितना कह दें उतना कम है ।

**कोई नशे में मटक रहा है ,
कोई भूख से तड़प रहा है ।
देखो कैसी वात बही है ,
भारत की बदलाव घड़ी है ।

**डिजिटल इंडिया चमक रहा है ,
तुम्हें दिखाने आया हूँ ।
प्रजातंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ ।

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