Saturday 20 May 2017

कविताएँ

****मेरे घर आई एक नन्ही परी****

*चाँद से, फूलों के रथ पर सवार
घर रोशन किया है
नन्हीं परी ने
ईश्वर तुझे कोटि-कोटि प्रणाम

*लक्ष्मी स्वयं चलकर
हमारे घर आई है
बरसों से जो थी
मन में आस
पूर्ण हुई आज
चाँद सी बिटिया पाई है ||

*अनमोल धन पाकर
धन्य हुआ जीवन हमारा
कन्या रूपी प्रसाद
कई सालों बाद झोली में है पाया ||

*चहक उठी आज हमारी
अँगनाई है
फूलों जैसी महक लिए
बिटिया हमारी आई है ||

*दादा-दादी की खुशी का
नहीं ठिकाना है
जब छोटी-सी बिटिया को
गोद में स्नेह से उठाया है ||

*मुख पर एक ऐसा प्रकाश
बिखर आया है
जिसने घर के कोने-कोने में
उजाला फैलाया है ||

*बार-बार कोटि-कोटि प्रणाम
हे ईश्वर तुझे
तेरी अनुकंपा से कन्या रूपी
यह प्रसाद हमने पाया है
यह प्रसाद हमने पाया है |||||
*****+++*****

*एक प्रश्न आपके लिए* 1 मई, साल के एक दिन या हर दिन

1 मई हम मजदूर दिवस के रूप में मनाते हैं|
क्यों हम एक ही दिन मजदूरों के सम्मान को दिलाते हैं ?

क्या वह सब एक ही दिन के हकदार है ?
या फिर साल के हर दिन उनका सम्मान है |

क्यों हम उनके हर एहसान को भूल जाते हैं ?
जो रोटी हम खाते हैं वह उन्हीं से तो पाते हैं ?

जो भरते हैं हमारा पेट क्यों वह भूखे पेट ही मर जाते हैं ?
ठोकरे दर-दर की खाकर केवल मजदूर ही कहलाते हैं |

क्या हममें से किसी ने इस बारे में सोचा है ?
क्यों नहीं हमने उनके दुख और दर्द को समझा सोचा है ?

जो बनाते हैं ऊँची-ऊँची इमारतें हमारे ऐशोआराम के लिए हर दिन |
क्यों एक दिन उन्हीं इमारतों की गहराई में दफन हो जाते हैं ?

घरों से दूर रहकर परिवार अपना परदेश में बनाते हैं |
और फिर वहाँ सिर्फ दिहाड़ीदार ही कहलाते हैं |
***—–*****—–***

***भारत देश के वासी हो तुम**इस मिट्टी पर अभिमान करो**

*भारत माँ के लाल हो तुम
इस माता का सम्मान करो
तीन रंग का मान करो
अपमान ना इसका आज करो

*जिस जन्म भूमि पर जन्म लिया
जड़ उसकी न बर्बाद करो
खिली हुई इस बगिया को
करनी अपनी से तुम न शमशान करो

*शिक्षा का मंदिर,जो है कहलाता
वहाँ जाकर सिर्फ पढ़ाई करो
व्यर्थ की बातों को तुम छोड़ो
देश का सिर्फ विकास करो

*अपने ही देश में रहकर के
आतंकवाद का न प्रचार करो
गैरों के लिए मत लड़ो आपस में
भाईचारे को तुम कायम रखो

*किसी और जालिम की खातिर
शहादत शहीदों की न नापाक करो
देश के युवाओं तुम शिक्षित हो
अज्ञानों जैसा न बर्ताव करो

*जेएनयू को क्यों बदल दिया
राजनीति के वृहद अखाड़े में
शिक्षा के इस मंदिर में क्यों
मतभेद हुए आपस वालों में

*क्यों दो पक्षों को दिखलाकर
सच्चाई को झुठलाते हो
सहमत होकर विपक्ष विचारों से
क्यों गद्दारों में नाम लिखवाते हो

*शिक्षा के मंदिर में जाकर
अच्छे संस्कारों का ज्ञान भरो
जिससे तुम हर क्षण,हर पल
इस भारत देश का नाम करो

*रहकर अपने ही देश में क्यों
तुम अजनबियों सा बर्ताव करो
भारत माँ के लाल हो तुम
सिर्फ वीरों जैसी बात करो

*गाँधी,सुभाष,टैगोर,तिलक का
रक्त है तुम में बह रहा
क्यों फिर तुम अफज़ल के गुण गाते
अपनों का खून बहाते हो

*जिस देश में तुमने जनम लिया
क्यों उसको दुश्मन बतलाते हो
भाषा की है ये कैसी आजादी
जो तुम मातृभूमि का अपमान करो

*अभिव्यक्ति का यह रूप है कैसा
जो देश की इज्ज़त यूँ नीलाम करो
अफज़ल को शहीद है कहकर के
देश के वीरों का तुम न अपमान करो

*देश की खातिर जो हुए शहीद
शहादत को उनकी न नीलाम करो
हनुमान थापा जैसे शहीदों का
तुम सिर झुकाकर सम्मान करो

*आतंकवाद के आगे इनके
बलिदान को न नापाक करो
भारत भूमि पर जन्मे हो तुम
इस जन्मभूमि के लिए लड़ो

*दिया तुम्हें संविधान में जो
अभिव्यक्ति का अधिकार है
जुडे़ हैं उसके साथ कर्तव्य
मर्यादा का तुम ध्यान रखो

*व्यक्त करो अपने विचारों को
अधिकारों के तुम लिए लड़ो
कर्तव्यों का ख्याल है रखकर
मर्यादाओं के दायरे में तुम रहो

*जिनके लिए हथियार उठाते
उनका मजहब क्या बतलाओगे
अपनी माँ से जंग करके
यह तुम कैसी सत्ता पाओगे

*जिस देश की मिट्टी में
पले-बढ़े,कुकर्मों से तुम अपने
उसका अपमान न आज करो
जिस थाली में खाते हो तुम
उस थाली में न छेद करो

*ऐसा करके तुम कुछ भी
हासिल न कर पाओगे
अपने ही देश में रहकर तुम
सिर्फ काफिर ही कहलाओगे

*तुम ललकारो हम न आएँ
ऐसे बुरे हालात नहीं
भारत को तुम यूँ बर्बाद करो
तिल भर भी तुम्हारी औकात नहीं

इस देश पर बुरी नज़र रखने वालों
तुम भारत माँ के लाल नहीं
जिसके खातिर दंगे करते हो
उसकी कोई औकात नहीं

*कलम पकड़ने वालों को
हथियार उठाने न पड़ जाए
आतंकवाद का साथ दिया तो
अस्तित्व तुम्हारा न मिट जाए

*जिसने भी डाली बुरी नजर
इस भारत माँ की धरती पर
उठ खड़े हुए हजार भगत,
आजाद,शहीद इस धरती पर

*भारत माँ के लाल हैं हम
आवाज़ दबा देंगे उनकी
उठेगी जिनकी भी आवाज़
इस मातृभूमि के विपरीत यदि

*बुरी नजर डालेगा जो
धर्मों में खाई बढ़ाएगा
एकता खंडित करेगा जो
उपद्रव जो यहाँ मचाएगा

*हस्ती मिटा देंगे उनकी हम
भारत माँ के लाल हैं हम
भारत पर जान गँवा देंगे हम
इस मातृभूमि पर बलिहार है हम

*माना दिल से हम लेते काम
मगर नहीं है हम कमजोर
देश की आन,बान,शान की खातिर
सह सकते हैं सीने पर
हर वार और चोट

*याद रखनी है सिर्फ एक ही बात
इस देश में रहने वाले सब हम
भारत के भारतवासी हैं
कौम धर्म मजहब के नाम पर
भाईचारे को बाटेंगे न हम

*यह देश हमारा है,
यह देश तुम्हारा है
हम सब इसका सम्मान करें
जिस मिट्टी पर है जन्म लिया
उस पर हमेशा अभिमान करें

*जिस मिट्टी पर है जन्म लिया
उस पर हमेशा अभिमान करें||||||
*****++++******

**मेरी कलम से सुनो ! लोकतंत्र का हाल***

**कलम की ताकत को मैं आज ,
समक्ष तुम्हारे लाया हूँ |
कितना अब तक बदल गए हैं ,
तस्वीर दिखाने आया हूँ |

**कितना बदले हम वर्षों में,
सब हाल बताने आया हूँ |
भारत माता के ज़ख्मों का,
हाल सुनाने आया हूँ |

**लोकतंत्र के वर्तमान का,
चित्र दिखाने आया हूँ |
भारत माता के जख्मों का,
हाल सुनाने आया हूँ |

**गम के बादल कहाँ छटे हैं ,
जहाँ खड़े थे वहाँ खड़े हैं ।
जाति धर्म की तलवारें हैं ,
लड़े कभी हम कभी बँटे हैं ।

**बाग बंट गया जलियाँवाला ,
किसकी ये गद्दारी है ।
खादी अपना चेहरा देखे ,
क्यूँ ऐसी मक्कारी है ।

**किसने सबके घर फूंके हैं ,
सबको आज बताऊँगा ।
कराह रही है मेरी माता ,
सबको पीर सुनाऊँगा ।

**खण्ड-खण्ड है मेरा भारत ,
तुम्हें दिखाने आया हूँ ।
लोकतंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ ।

**कैसे भूलें नगर मुजफ्फर ,
जहाँ गली और गाँव जले ।
श्वेत कबूतर नेहरू जी के ,
पीपल वाली छाँव जले ।

**कैसे मानें वो दंगा था ,
महज चुनावी हथकंडा था ।
नहरों का पानी रक्तिम था ,
बूढ़ी माँ का लाल जला था |

**हूँ थूकता सिंहासन की ,
मैं ऐसी पगडंडी को ।
संसद ऐसे चला रहे है ,
मानो सब्ज़ी मंडी हो ।

**देश चलाने वालों का ,
किरदार दिखाने आया हूँ |
लोकतंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ |

**रोज़ भगतसिंह फाँसी चढ़ता ,
रोज़ कहीं पर गाँधी मरता ।
रोज़ द्रोपदी चीर हरण है ,
रोज़ किसी का आँचल फटता ।

**बस पश्चिम की दौड़ लगी है ,
नंगे पन की होड़ लगी है ।
विवेकनंदी धरती धूमिल है ,
काम वासना बढ़ी-चढ़ी है ।

**रोज़ निरभ्या चीख रही है ,
अंधी काली रातों में ।
खूनी कोठी भरी पड़ी है ,
मासूमों की लाशों में ।

**मंगल तक जाने वालों को ,
ज़मी दिखाने आया हूँ ।
लोकतंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ |

**कहीं अमीरी का परचम है ,
वही गरीबी का बचपन है ।
खाई दिनों दिन बढ़ती है ,
जितना कह दें उतना कम है ।

**कोई नशे में मटक रहा है ,
कोई भूख से तड़प रहा है ।
देखो कैसी वात बही है ,
भारत की बदलाव घड़ी है ।

**डिजिटल इंडिया चमक रहा है ,
तुम्हें दिखाने आया हूँ ।
लोकतंत्र के वर्तमान का ,
चित्र दिखाने आया हूँ ।
*****+++++******

***सात फेरों के सातों वचन ***अटूट बंधन***

*नहीं पूर्ण जिसके बिना
मानव जीवन संपूर्ण
वैदिक संस्कृति के अनुसार
विवाह ही है परिपूर्ण

*जिसके अर्थ में छिपा है
विशेष उत्तरदायित्व का वाहन
महत्वपूर्ण जिसका निर्वाहन करना है पति-पत्नी दोनों को जीवन में जरूर

*विवाह है पति पत्नी के बीच
जन्म-जन्मांतरों का साथ
अग्नि के सात फेरों से मजबूत
हो जाता है दोनों का अटूट साथ

*सात फेरों के बाद ही
शादी की रसम पूरी होती है
यही साथ विवाह की स्थिरता की
मुख्य कड़ी होती है

*पहले वचन में कन्या
वर से वचन ले लेती है
मुझे अकेला तुम न कभी छोड़ोगे
तीर्थ यात्रा में भी
मुझे अपने संग में लोगे

*व्रत-उपवास ,यज्ञ,अनुष्ठान
अन्य धर्म कार्य जो भी करोगे आप
अपने वाम भाग में
अवश्य स्थान देंगे मुझे हमेशा आप

*दूसरे वचन में करती है
वह यह माँग हक से
अपने माता-पिता के साथ-साथ
मेरे माता-पिता को भी वही सम्मान दोगे मन वचन और कर्म से

*तीसरे वचन में यह वचन माँगती है
हर पल जीवन में तुम
मेरे साथ हमेशा रहोगे
जीवन की तीनों अवस्थाओं में
पालनहार मेरे तुम बने रहोगे

*चौथे वचन में परिवार की जिम्मेदारी की बात कही जाती है
विवाह बंधन में बँधते ही
परिवार की समस्त आवश्यक्ताओं की पूर्ति आपसे ही पूर्ण होती है

*पाँचवें वचन में लेती है
कन्या यह वचन वर से
किसी भी कार्य से पूर्व
लेनी होगी मेरी मंत्रणा तुम्हें अवश्य से

*छठे वचन में अपने
सम्मान की बात वह करती है
करोगे नहीं अपमानित मुझे
किसी के भी सम्मुख वचन लेती है

*दुर्व्यसनों में फँसकर
गृहस्थ जीवन नहीं करोगे नष्ट
कभी कटु वचन नहीं कहेगो
यह वचन भरवा लेती है

*अंतिम वचन में अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है
पराई स्त्री आकर्षण में पगभ्रष्ट न होगे यह वचन ले लेती है

*इन सातों वचनों के बाद
विवाह संपूर्ण हो जाता है
पति-पत्नी का साथ
पूर्ण अटूट हो जाता है

*जिसको तोड़ न पाती
जीवन की कोई आँधी है
दोनों साथ रहते जैसे
दीपक और बाती है

*जो इन वचनों की
महत्वता को समझ जाता है
एक दूसरे के साथ वह
जीवन मंगलमय बनाता है

*जो इन वचनों को
निरर्थक समझता है
उनका संपूर्ण जीवन
कलह के तिमिर में बिखरता है

*स्त्री और पुरुष
गाड़ी के दो पहिए हैं
जो जीवनपर्यंत गाड़ी का
बोझ वाहन करते हैं

*एक पहिया भी अगर
भ्रमित होता है
पूरी गाड़ी (परिवार)
पर असर होता है

*विवाह है एक ऐसी
अटूट और मजबूत डोर आज तक
जो बाँधे रखती है पूरे परिवार को
पीढ़ी दर पीढ़ी तक

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