Sunday 19 August 2018

संस्कृत संस्कारों की भाषा लेख

संस्कृत 'संस्कारों की भाषा'
लेख

ब्रह्मांड में सर्वत्र गति
गति से है ध्वनि
ध्वनि से शब्द परिलक्षित
शब्द से भाषा निर्मित
संस्कृत शुद्ध, परिष्कृत, श्रेष्ठ
देववाणी यह सर्वश्रेष्ठ ।

संस्कृत अर्थात स्वयं से निर्मित, संस्कारों से निर्मित भाषा संस्कृत । संस्कृत भाषा में भारत की सांस्कृतिक विरासत है और संस्कृत के प्रति प्रेम हमें देश के और विरासत के नजदीक लाता है और उपेक्षा हमें इससे अलग कर देती है । संस्कृत भाषा हजारों वर्षों पुरानी भारतीय सभ्यता का एक सजीव और मूर्त रूप है जो किसी न किसी रूप में सर्वत्र विद्यमान है । यह केरल से कश्मीर और कश्मीर से सौराष्ट्र तक सभी क्षेत्रों में लोगों के पवित्र और पावन जीवन के सभी कर्मकांडों में सम्मिलित रहती है । एक भाषा के रूप में संस्कृत अनेक भारोपीय भाषाओं की जननी मानी जाती है । भाषा केवल अक्षर और शब्द भंडार की व्यवस्था मात्र नहीं होती । भाषा अपने साथ बहुत सारे विचार लाती है संपूर्ण विश्व को देखने और समझने का नजरिया भी देती है संस्कृत भाषा का अपना ही एक वृहद संसार है । संस्कृत में भाव, योग, ध्वनि, रोग निवारण की क्षमता है । इस भाषा में 1700 धातुएँ,  70 प्रत्यय, 80 उपसर्ग हैं और इन सभी के योग से जो शब्द बनते हैं उनकी संख्या 27 लाख 20000 है और यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ें तो शब्दों की संख्या लगभग 765 करोड़ हो जाती है ।

संस्कृत है प्राचीन भाषा
वेदों की और वैज्ञानिक भाषा
देती है तरंगे सकारात्मक
बनते जिससे संस्कृत श्लोक उत्कृष्टतम

आज संपूर्ण विश्व में लगभग 6900 भाषाओं का प्रयोग होता है और इसकी जननी संस्कृत देवों की भाषा है । संस्कृत स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित  भाषा है और इस को संस्कारित करने वाले कोई साधारण भाषाविद् या व्यक्ति नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायनी और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं जिन्होंने बड़ी कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है और यही इस भाषा का रहस्य है । कहते हैं संस्कृत भाषा में औषधीय तत्व हैं जो प्रत्येक रोग के निवारण की क्षमता रखते हैं । यह औषधीय तत्व चार प्रकार के हैं प्रथम अनुस्वार और विसर्ग अद्वितीय शब्द रूप तृतिय द्विवचन और चतुर्थ संधि कहते हैं । विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है अर्थात जितनी बार विसर्ग का उच्चारण होता है उतनी बार कपालभाति प्राणायाम अनायास ही हो जाता है अर्थात जो लाभ कपालभाति प्राणायाम से होता है वह विसर्ग के उच्चारण से संभव है उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही जैसी क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भंवरों की तरह गुंजन करना होता है और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है अतः जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होता है उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: ही हो जाता है । संस्कृत की दूसरी विशेषता शब्द रूप है विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है जबकि संस्कृत में एक शब्द के 25 रूप होते हैं जिस प्रकार 25 तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार संस्कृत के 25 रूपों का प्रयोग करने से आत्मा से साक्षात्कार संभव है यह तत्व इस प्रकार हैं आत्मा को पुरूष कहा गया है अंतःकरण चार हैं मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार । ज्ञानेंद्रियाँ पाँच हैं नासिका, जीभ, नेत्र, त्वचा, कर्ण । कर्मेंद्रियाँ पाँच हैं पद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक् । तन्मात्रायें भी पाँच हैं गंध, रस, रूप और शब्द उसी प्रकार महाभूत भी पाँच हैं जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश यह पंचतत्व महाभूत कहलाते हैं । संस्कृत भाषा की तृतिय विशेषता है द्विवचन सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत भाषा एक ऐसी भाषा है जिसमें द्विवचन भी होता है और तीनों वचनों में शब्दों का उच्चारण करने के योग के क्रमशः मूलबंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध लगते हैं जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियाएँ हैं । संस्कृत भाषा की चौथी महत्वपूर्ण विशेषता संधि है जिसमें एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के गुण निहित हैं । कहते हैं संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है जिसके अध्ययन से छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है ।

संस्कृत एक भाषा मात्र ही नहीं है यह विचार है, संस्कार है, शांति का अवसाद है और पूरे विश्व को एक साथ जोड़ने की अद्भुत कला है । इस भाषा में वासुदेव कुटुंबकम की भावना है । संस्कृत में भावनाओं का अद्भुत सागर है । यह संपूर्ण विश्व को, परिवार को आचारों और सद् विचारों से बाँधती है । इसका ज्ञान मनुष्य में हीन प्रवृत्ति का नाश करता है, गलत विचारों को नष्ट करता है इसलिए संस्कृत को यज्ञ और अनुष्ठानों की भाषा भी कहा गया है । अगर संपूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा को अपनाया जाए तो काफी हद तक दुर्व्यसनों से बचा जा सकता है । लड़ाई-झगड़े और बलात्कार जैसी वारदातों पर रोक लगाई जा सकती है क्योंकि संस्कृत भाषा का प्रयोग विचारों को शुद्ध करता है मनुष्य में शालीनता लाता है तभी तो इसे संस्कारी भाषा का दर्जा प्राप्त है ।

संस्कार में आचार है ।
संस्कृत में सद् विचार हैं ।
संस्कृत में संस्कार हैं ।
संस्कृत भाषा ज्ञान भंडार है ।
संस्कृत संस्कारों की खान है ।
दुर्व्यसनों, व्याभिचारों और बलात्कारों से निजात पाने का सबसे सरलतम प्रकार है। अपनाओ देववाणी संस्कृत को आज से बचाओ धरा को बढ़ रहे पाप से ।।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Saturday 18 August 2018

सोशल मीडिया वरदान या अभिशाप लेख

सोशल मीडिया वरदान या अभिशाप
लेख

सोशल सब कुछ हो रहा
नहीं गुप्त कुछ आज
बात अपनी सब कह रहे
हो करके बेबाक

आज के दौर में सोशल मीडिया जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है ।
यह एक विशाल नेटवर्क है जो कि समूचे विश्व को आपस में जोड़े हुए हैं । यह द्रुतगति से सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है और अपनी सकारात्मक भूमिका बनाए रखने की पूरी कोशिश करता है । सोशल मीडिया के जरिए कई ऐसे विकासात्मक कार्य भी हुए हैं जिनसे लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम संभव हुआ है । इस पंक्ति में हम इंडिया अगेंस्ट करप्शन को देख सकते हैं जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ महाभियान था जिसे सड़कों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर लड़ा गया दूसरी और देखे तो सोशल मीडिया के माध्यम से ही निर्भया को न्याय दिलाने के लिए विशाल जनसंख्या में युवा सड़कों पर आएँ जिससे सरकार पर दबाव पड़ा और सरकार एक प्रभावशाली कानून बनाने में मजबूर हो गई और वहीं 2014 के चुनावों में भी सोशल मीडिया ने आम जनता को जागरूक करने में मुख्य भूमिका निभाई ।

सोशल मीडिया नहीं कहीं से भ्रमित करने का माध्यम,
बुद्धि, विवेक और सही प्रयोग ही
बनाता है सुखवर्धक ।

लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है जहाँ व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने उत्पाद को जन-जन में लोकप्रिय बना सकता है । फिल्मों के ट्रेलर, टेलीविज़न के कार्यक्रमों का प्रसारण इत्यादि सभी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है । दृश्य तथा श्रवण वार्तालाप भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हो पाई हैं जिनमें फेसबुक, व्हट्स एप, इंस्टाग्राम, ट्वीटर प्रमुख है । यह जहाँ सकारात्मक भूमिका अदा करता है वहीं कुछ लोग इसका नकारात्मक प्रयोग करते हैं । सोशल मीडिया के माध्यम से अनेक प्रकार की भ्रामक और अनुपयोगी जानकारी सांझा की जाती है जिससे जनमानस के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है …कई बार तो बात इतनी बढ़ जाती है कि सरकार सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल करने पर सख़्त हो जाती है और हमने देखा भी है कि सरकार को जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना पड़ा है, मध्य प्रदेश में हुए किसान आंदोलन में भी सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि कोई असामाजिक तत्व किसान आंदोलन की आड़ में किसी बड़ी घटना को अंजाम न दे पाए । बीते कुछ सालों में भारत में सोशल नेटवर्किंग साइटों के इस्तेमाल में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई है राजनीतिक दल नेता भी पीछे नहीं हैं , वे भी अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए फेसबुक और ट्वीटर जैसी वेबसाइटों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं । देश में समस्या पैदा करने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम का दुरुपयोग हो रहा है । आज सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर रोक की नितांत आवश्यकता है ताकि देश के दुश्मन सोशल साइटों के माध्यम से कोई दंगा व तनाव बढ़ाने में कामयाब न हो सकें ।

सोशल साइट में है सूचनाओं का भंडार । सोशल साइट आपके लिए खोलती सूचनाओं का द्वार ।
आधुनिक तकनीकी का उचित प्रयोग सुगम बनाती रहा ।
सोशल साइट ने उपलब्ध करवाया आपको नया मुकाम ।
न करो इसका अनुचित प्रयोग
पाओ इससे पूरा ज्ञान ।
बच्चों को भी सिखाना है इसका उचित इस्तेमाल ।
तभी बनेगा यह आपके लिए एक अनमोल वरदान ।

सोशल मीडिया दुनिया को समझने और एक दूसरे के साथ बातचीत करने के तरीके को बदलता है मगर आजकल के बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि बच्चे अपना अधिकतर समय मोबाइल फोन पर खर्च करते हैं और माता-पिता भी अपने छोटे बच्चों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बड़ी गौरवान्वित प्रतिक्रिया प्रस्तुत करते हैं उन्हें यह क्यों नहीं समझ आता कि छोटे बच्चों के लिए कम उम्र में इसका इस्तेमाल कितना घातक सिद्ध हो सकता है । आज छोट-छोटेे बच्चे स्मार्ट फोन और टैबलेट जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ खेलते हैं सोशल मीडिया आज किशोरों के जीवन का एक सक्रिय हिस्सा है हालांकि माता-पिता को यह जानकारी अवश्य रखनी होगी कि इन सब का उनके बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है । बीते समय सोशल मीडिया पर 'ब्लू व्हेल' नाम के गेम ने कितने ही मासूम बच्चों की जान ले ली और आज भी 'मोमो' जैसा इसी प्रकार का गेम बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है हमें सावधान रहने की जरूरत है । अपने बच्चों पर निगरानी रखने की जरूरत है कि वह इन चीजों का सही इस्तेमाल कर रहे हैं या गलत, उन्हें हर कदम पर मार्गदर्शन की जरूरत है सोशल मीडिया कोई गलत तकनीकी नहीं है; अगर इसका उचित और सही प्रयोग किया जाए तो यह जीवन में बदलाव ला सकती है, हमारी सोच को बदल सकती है, हमें प्रगति के पथ पर ले जा सकती है, हमारा ज्ञान बढ़ा सकती है । ज़रूरत है सावधानी और उचित प्रयोग की ।
हाल ही में हुए एक अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि जो बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग बहुत ज्यादा करते हैं उनके मन में जीवन के प्रति असंतुष्टि का भाव ज्यादा रहता है साथ-ही-साथ जो बच्चे सोशल मीडिया पर जितना समय बिताते हैं उसी अनुपात में अपने घर परिवार, स्कूल और जीवन के प्रति असंतुष्ट हैं । जो बच्चे सोशल मीडिया पर कम समय बिताते हैं वे जीवन के दूसरे पहलुओं पर सबसे ज्यादा संतुष्ट नजर आए । सोशल मीडिया पर कम समय व्यतीत करने वालों को अपना स्कूल और माता-पिता ज्यादा पसंद हैं । एक और दिलचस्प बात कि सोशल मीडिया का उपयोग करने का असर लड़कों की तुलना में लड़कियों पर जाता है कारण है कि लड़कियाँ ज्यादा भावुक होती हैं और इसी कारण से साईबर बुलिंग और अन्य कुंठाओं की शिकार हो जाती हैं । भारत में नेट कनेक्टीविटी और स्मार्ट फोन की चाह ही बच्चों में हिलता की ग्रंथी पैदा कर देती है जो बच्चे संसाधन हीन होते हैं या जिनके पास इतना पैसा नहीं होता कि वह यह सारी सुविधाओं को पा सके उनके मन में एक अलग तरह की ग्रंथी का विकास हो जाती है वह यह कि उन्हें लगता है कि वह जीवन के कई आधारभूत संसाधनों से वंचित हैं और दूसरों से निम्न है । हमें बच्चों की इस बदलती सोच को बदलना है और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करना है उन्हें समझाना है "प्रयोग करना गलत नहीं है; मगर अति प्रयोग नुकसानदायक है "। तकनीकी का सही प्रयोग हमें दिशा प्रदान कर सकता है वरन दिशाहीन बनाकर अंधे कुएँ में धकेलने की भी पूर्ण क्षमता रखता है ।

सोशल साइट का सही प्रयोग
होगा जब चारों ओर
तभी सुनिश्चित होगी
समाज में जागरूकता चहुँ ओर
इसलिए करो सार्थक प्रयास
पाओ इससे सार्थक और समृद्ध ज्ञान ।।

नीरू मोहन 'वागेश्वरी'

Thursday 16 August 2018

श्री अटल जी को अश्रुपूरति श्रद्धांजलि

एक ध्रुवतारा अमर… प्रकाश था अलौकिक,

छिप गया है बदलों की ओट में ।

अटल था वाणी से, कर्तव्यों से न डिगा था ,

कर्मयोगी था वह …कलम का पुजारी ।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कलम के पुजारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल जी को संपूर्ण विश्व की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि !
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Wednesday 15 August 2018

नीरू मोहन 'वागीश्वरी' की तीन पुस्तकें

आपको जानकर हर्ष होगा कि ‘माण्डवी प्रकाशन’ द्वारा इस माह देश की सुप्रसिद्ध कवयित्री नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’ जी के एक साथ दो संकलन  नारी के मनोभावों का सजीव चित्रण( पद्मांजलि ) और प्रेरक बाल रचनाएं ( नव प्रवर्तन ) प्रकाशित होने जा रहे हैं। प्रस्तुत हैं इन दोनों ही संग्रहणीय पुस्तकों के आवरण पृष्ठ। आशा ही नहीं विश्वास है प्रकाशनोपरांत उपरोक्त दोनों ही संग्रह पाठकों को बेहद पसंद आयेंगे।

- मनु भारद्वाज ‘मनु’
संपादक - माण्डवी प्रकाशन

नीरू मोहन 'वागीश्वरी' की पुस्तक 'बूँद-बूँद सागर'(हाइकु मञ्जूषा) का लोकार्पण नेपाल अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन में कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ विजय पंडित जी द्वारा 13-08-2018 सोमवार को संपन्न हुआ ।

Tuesday 14 August 2018

***स्वतंत्र भारत… मेरा भारत*** लेख

वीरों को शत्-शत् नमन करते हुए समस्त देशवासियों को 72वें स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

***स्वतंत्र भारत… मेरा भारत***
लेख

स्वतंत्र है भारत देश हमारा
इस मिट्टी के हम वासी हैं ।
भारत देश की शान की खातिर
हर राही के हम साथी हैं ।
सीमा की रक्षा पर जो वीर
तैनात हैं भारतवासी हैं ।
उनकी हर कतरे-कतरे पर
हम हिंदवासी आभारी है ।

15अगस्त पूर्ण स्वाधीनता का दिन, देश की आन,बान और शान का प्रतीक, वर्षों की गुलामी के पश्चात प्राप्त स्वतंत्रता का दिन, खुली हवा में सांस लेने का दिल, गर्व और गुमान का दिन । कौन भूल सकता है यह दिन और वह वर्ष जिस दिन हमारे वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे कर देश को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद करवाया था । वर्षो की गुलामी और कष्टो को सहन करने के पश्चात हमारे वीरों के लहू की एक-एक बूंद की आहुति के बाद हमें यह दिन देखने को नसीब हुआ । आज उन्हीं समस्त वीरों और वीरांगनाओं को शत-शत नमन । वह सभी वीर वंदनीय है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता की खातिर अपना सर्वस्व लुटाया, कष्ट सहे, जेल की यातनाएँ सही और उन वीरांगनाओं को नमन जिन के बलिदानों की खातिर हम आज स्वतंत्र भारत की खुली हवा में जी रहे हैं ।

मंगल पांडे, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे अनेक अनगिनत बलिदानियों के बलिदान की ख़ातिर आज हम आज़ाद है । जिन्होंने अपने खून का एक-एक कतरा देश पर न्यौछावर कर दिया साथ ही साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में महिलाओं ने भी पूर्ण योगदान दिया जिनमें रानी लक्ष्मीबाई, कित्तौड़ की रानी चेनम्मा, हाडा रानी, रानी पद्मिनी, सरोजिनी नायडू आदि महिलाओं ने भी अपने जीवन को देश पर न्यौछावर कर दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में अपना पूर्ण योगदान दिया । वैसे तो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी ने स्वतंत्र भारत की नींव रख दी थी और इस संघर्ष से लोहा लेकर 15 अगस्त सन् 1947 के शुभ दिन हमें आजादी प्राप्त हुई और हम ब्रिटिश शासन से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गए ।

आजादी तो हमें मिल गई मगर आज भी हमारे समक्ष एक प्रश्न मुँह खोले खड़ा है कि क्या हम आज़ाद हैं , क्या किसी देश से स्वतंत्र होना ही आजादी है । आज के संदर्भ में क्या आज़ादी का कोई ओर भी अर्थ है , तो मैं यही कहूँगी कि आजादी का अर्थ अनुशासनहीनता बिल्कुल नहीं बल्कि अनुशासनप्रिय बने रहकर कर्तव्य मार्ग पर चलना स्वतंत्रता है, किसी दूसरे को कष्ट देकर नहीं दूसरे का कष्ट हर कर उसे साथ लेकर चलना आजादी का अर्थ समझाता है । अपने विचारों से स्वतंत्र…अच्छी सोच को लेकर आगे बढ़ना, सहयोग की भावना को कायम रखना, अपने अच्छे विचारों को व्यक्त कर दूसरों को राह दिखाना आजादी कहलाता है । जी हाँ, अपने स्वार्थों को त्याग कर दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करना यही सच्ची आज़ादी है जो दूसरों की भलाई के लिए काम आए ।

मैं उन वीरों को नमन करती हूँ जिनके बलिदान की ख़ातिर आज स्वतंत्र भारत की खुली वायु में सांस ले रहे हैं साथ ही साथ उन वीरों को भी नमन करती स्वतंत्र भारत की सीमाओं पर तैनात भारत को और भारत के प्रत्येक जन को हर क्षण सुरक्षित महसूस करवा रहे हैं । उन वीरों को भी नमन करती हूँ जो देश की रक्षा की ख़ातिर सीमाओं पर अपनी जान गंवा देते हैं सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि हम सब भारतवासी सुरक्षित रहें और हम पर कोई आंच ना आए और फिर कोई भी पड़ोसी ताकत हमारे देश की तरफ आँख भी न उठा सके नमन है देश के उन सेवकों को जो अपने जीवन का हर क्षण, हर लम्हा देश के विकास की खातिर न्यौछावर कर रहे हैं । देश की खुशहाली, विकास और तरक्की की ख़ातिर अपने जीवन के अस्तित्व तक को बलिदान कर रहे हैं क्योंकि मेरी नजर में केवल खून का कतरा बहा कर ही हम वीर बलिदानी नहीं कहलाते बल्कि आज के संदर्भ में जब हम स्वतंत्र हैं …अपने जीवन का एक-एक क्षण भी अगर दूसरों की भलाई और देश की ख़ातिर खर्च किया जाए वह भी किसी बलिदान से कम नहीं । किसान खेतों में हल चलाकर तपती धूप में हमारे लिए अन्न पैदा करता है । खुद भूखा रहकर हमारा पेट भरता है वह वंदनीय हैं । बीबी प्रकाश कौर जैसी उन सभी महिलाओं को नमन करती हूँ जो देश की अनाथ बेटियों को जिनको जन्म देते ही कूड़े में फेंक दिया जाता है सहारा, माँ की ममता, पिता का प्यार दे रही हैं । उनके जीवन को श्रेष्ठ बनाने में अपना सर्वस्व लगा रही हैं और निस्वार्थ भाव से कहीं ना कहीं देश के हित में कार्य कर रही हैं । आज आजादी की इस पावन बेला पर हम सभी प्रण लेते है कि हम अपने संकीर्ण विचारों को त्याग कर अनुशासन में रहकर कार्य करेंगे जिससे फिर कोई गोरा हमारे देश की तरफ अपनी काली नज़र न डालें ।

देश हमारा सबसे प्यारा सबसे न्यारा है ।
वीरों का यह देश, यह चमन हमारा है ।
भारत की आन, बान, शान तिरंगा
'वंदे मातरम्' राष्ट्रगीत हमारा है ।
माँ भारती की चूनर सतरंगी
यह वतन हिंदोस्तान हमारा है ।

जय हिंद, जय भारत

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Saturday 11 August 2018

मेरा भारत 2020

मेरा भारत 2020 (लेख)


परतंत्र भारत में नहीं जन्मे

न देखी है परतंत्रता 

भारतीय होकर भी दोस्तों 

पाश के बंधनों में जकड़ी है 

हमारी स्वयं की विचारशीलता

जी हाँ मित्रों आज स्थिति यह है कि हम स्वतंत्र होते हुए भी परतंत्र हैं । परतंत्र हैं  अपने ही विचारों के अपनी ही सोच के । मैं आपसे यह कहना चाहूँगी कि अगर हमें भविष्य निर्माण करना है तो वर्तमान को पहले समझना होगा तभी हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकते हैं यह तो आप सभी जानते हैं कि आज देश को स्वतंत्र हुए 72 साल बीत चुके हैं मगर अगर देखा जाए तो शायद… शायद नहीं यकीनन आज भी हम स्वतंत्र नहीं है आज हम अपने विचारों के अपनी सोच के अपने स्वभाव के वशीभूत हैं । आज भी हम अपने विचारों और सोच के पाश में बंधे हैं । मैं आप सभी को तीन चार दशक पीछे ले जाना चाहूँगी और देश की स्थिति से रू-ब-रू करवाना चाहूँगी उस समय देश की स्थिति कुछ इस प्रकार थी… कालाबाजारी, घूसखोरी, अराजनीति, अराजकता, आतंकवाद, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ । यह तो कुछ नहीं अगर सोचे और विचार करें तो स्थिति इससे भी खराब थी । समस्याएँ अधिक थी और समाधान सीमित । आज के संदर्भ में देखा जाए तो यह समस्याएँ अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं … दरिद्रता अपने चरम पर है, भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत हो चुकी है, शिक्षा में राजनीति ने घर कर लिया है, देश की बेटियों की स्थिति चिंताजनक है, पढ़ा-लिखा युवा वर्ग अभी भी बेरोजगार है, इन सभी का कारण भ्रष्ट राजनीति, राजनीति में भाई-भतीजावाद, अशिक्षित और अनपढ़ सदस्यों का राजनीति में प्रदार्पण ।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि विकास का स्तर ऊँचा उठा है मगर दूसरी ओर गरीबी का स्तर भी बड़ा है । देश में असमानता के स्तर में बढ़ोतरी हुई है… अमीर फल-फूल गए और गरीब डूब गए सबसे ज्यादा असर मध्यम वर्ग पर पड़ा । जहाँ नए-नए उद्योग-धंधों का तेजी से विकास हुआ है वहीं इसका ख़ामियाज़ा पर्यावरण को चुकाना पड़ा है । जी हाँ, आज हमारा पर्यावरण पूर्ण रूप से दूषित हो चुका है । अभी भी गर हम न चेते तो विनाश संभव है । पेय जल का आभाव, वायु प्रदूषण, कंक्रीट में परिवर्तित वन्य प्रदेश, ग्लेशियरों का पिघलना, नदियों का प्रदूषण आज चर्चा का विषय बन गया है । स्थिति यह है कि सभी एक दूसरे पर दोषारोपण करते नज़र आ रहे हैं मगर सुधार हेतु पहल न तो सरकार और न ही आम जन करता नज़र अ रहा है ।
ओजोन परत नष्ट हो रही
प्रकृति बन रही है अभिशाप
वक्त अभी है विचारिए
वरना…वरना बहुत पछताएँगे आप

मैं आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूँगी कि जब तक हम वर्तमान की स्थिति को नहीं सुधारेंगे या समझेंगे तब तक हम भविष्य की पृष्ठभूमि तैयार नहीं कर सकते । आज जिन समस्याओं का हम सामना कर रहे हैं अगर उनको मिटाया ना गया या उस पर काबू न पाया गया तो विनाश करीब पाएँगे और ऐसी स्थिति के साथ हम अपने सपनों के भारत का निर्माण नहीं कर सकते हैं फिर चाहे 2020 आ जाए या 2040 स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी । स्थिति को सुधारना है तो देश की युवा शक्ति को आगे आना होगा इसके लिए पहल देश के युवाओं को करनी होगी देश को विनाश से बचने के लिए उनको शत-प्रतिशत योगदान देना होगा । पर्यावरण सुधार हेतु कार्य करने होंगे, शिक्षा को उन्नत बनाना होगा, बाल श्रम उन्मूलन, बेटी शिक्षा का प्रसार, स्वच्छ राजनीति, भ्रष्टाचार उन्मूलन उपाय और गरीबी के स्तर में सुधार लाना होगा समस्याएं तो बहुत है मगर अगर इन समस्याओं से निजात पा सके तो हम 2020 में भारत को विश्व स्तर पर न भी ला पाए मगर भारत की आंतरिक समस्याओं से जरूर निजात पा सकते हैं । और 2020 तक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जो शायद हम सभी का सपना है … स्वच्छ, सुसंस्कृत, प्रदूषण रहित, शिक्षित भारत सुदृढ़ भारत ।

भारत मेरा 2020 में ऐसा हो
प्रदूषण रहित और पर्यावरण सुरक्षित हो सम्मान दे हर जन एक दूजे को
धर्म-जाति, भेदभाव और द्वेष से हटकर हो न लड़े कोई कश्मीर, मंदिर-मस्जिद पर राजनीति ऐसी…
अमन, चैन हिंदुस्तान में फैला हो
मेरे सपनों का भारत ऐसा हो
हाँ, मेरा भारत 2020 तक सुनहरा हो
घर की बेटी के मान-सम्मान जैसा हो
मेरा भारत, मेरा भारत
फिर से सोने की चिड़िया जैसा हो
मेरा भारत सुनहरा हो ।
मेरा भारत सुनहरा हो ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Wednesday 8 August 2018

आमंत्रण पत्र

माननीय प्रधानाचार्य जी
बाल भवन पब्लिक स्कूल
मयूर विहार फेस-2
दिल्ली-110091

हिंदुस्तानी भाषा अकादमी की ओर से आमंत्रण पत्र ।

महोदय जी
सादर प्रणाम
भाषा का प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है । हम लगातार देख रहे हैं कि विदेशी भाषाएँ तेजी से हमारे युवा वर्ग को अपने प्रभाव में ले रही हैं ऐसे में विद्यार्थियों की हिंदी भाषा के प्रति रुचि और सम्मान उत्पन्न हो और वह हिंदी भाषा के साथ जुड़े रहें इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के तत्वाधान में 'हिंदुस्तानी भाषा दूत' सम्मान और 'हिंदुस्तानी भाषा प्रहरी' सम्मान योजना के तहत प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं । नियमावली के साथ प्रपत्र संलग्न है जिसे भरकर अकादमी के कार्यालय में डाक द्वारा भेजना है । समस्त जानकारी नियमावली में नीहित है ।

हिंदुस्तानी भाषा अकादमी
सह प्रभारी
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Saturday 4 August 2018

बूँद-बूद सागर (हाइकु मंञ्जूषा)

नीरू मोहन वागीश्वरी का प्रथम हाइकु संग्रह जो उनके द्वारा रचित 800 हाइकु
काव्यों का संग्रह है ।आप दिए गए लिंक पर ऑर्डर कर सकते हैं ।


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