Thursday 28 September 2017

****मेरा परिचय****

परिचय 
नाम -नीरू मोहन 
पिता का नाम - विजय सनोरिया
माता का नाम - स्वर्गीय पदमा देवी
पति का नाम -मि०जितेंद्र मोहन 
स्थायी पता - डब्लू ए -134 गली नंबर -11 गणेश नगर शकर पुर
दिल्ली - 110092
जन्म तिथि -1 अगस्त 1973 
मोबाइल नं - 9810956507
*शिक्षा -एम ए हिंदी और राजनीति विज्ञान  
बीएड - हिंदी ,सामाजिक विज्ञान 
एम फिल - हिंदी साहित्य 
शोध कार्य - आदिकाल और रीतिकाल
पी एच डी- कार्यरत
*कार्यक्षेत्र -  शिक्षिका ,साहित्य लेखन  विद्या - लेख, लघु कथा ,संस्मरण, छंदयुक्त और छंदमुक्त कविताएँ, दोहे, हाइकु, चौका, ताँका, उद्धरण /अवतरण,  सुविचार, कुंडलियाँ, नाटक, नुक्कड़ नाटक, भाषण, कहानी इत्यादि |
*प्रकाशन - रचनाएँ साहित्यपीडिया मंच पर, काव्य संगम पुस्तक, नव पल्लव, नये पल्लव, सांझा काव्य संग्रह, विभिन्न पत्रिकाओं, दीप देहरी कहानी संग्रह, अविरल धारा सांझा काव्य संग्रह, अमर उजाला, संदल सुगंध काव्य संग्रह, अंतरा, हिंदी लेखक डॉट कॉम, लिट्रेचर प्वाइंट, गूगल, वेब और ब्लॉक पर प्रकाशित 
*सम्मान -साहित्य पीडिया मंच पर २५०० साहित्यकारों में शीर्ष तीस साहित्यकारों मे नाम, उदिप्त प्रकाशन और आगमन द्वारा रचनाकार सम्मान, साहित्य संगम संस्थान द्वारा दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

रूचि- पठन, लेखन
*नये पल्लव साहित्यिक परिवार और पत्रिका की संपादकीय टीम में दिल्ली प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत

*** आगमन समूह की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य

ईमेल पता - 
neerumohan6@gmail.com 
ब्लॉग पता - http//myneerumohan.blogspot.com
neerumohan sahityapedia.com
व्यवस्थापक - अस्तित्व समूह

Monday 25 September 2017

चौपाई छंद **सबसे बड़ी भक्ति कौन-सी**

विषय भक्ति
गीत
रचनाकार नीरू मोहन
पूजू न मंदिर-मस्जिद को
न माटी के भगवान को भक्ति मेरी सफल तभी जब पूजू माँ के धाम को

धाम मेरा ,मेरा घर है देवतुल्य माँ-बाप हैं सेवा कर मैं उनकी पाऊँ
फल जो फूल समान है

प्रथम गुरु माँ-बाप हैं मेरे
दूजे शिक्षक, अध्यापक भक्ति कर इनकी हो जाऊँ
संस्कारों की खान में

देशभक्त में बना रहूँ देशभक्ति करता रहूँ
देशहित में काम करूँ तम में भी प्रभात करूँ

भ्रष्टाचार मिटाकर में
नये जीवन का संचार करूँ
देश प्रेम के बीज बोऊँ
खलियान में अपना देश करूँ

तभी सफल है मेरी भक्ति
देश का अगर विकास है
चारों ओर है खुशियाली
हर जन के मन में प्यार है ।।।।

Thursday 21 September 2017

**नवरात्रि शुभ फल लाए**

विषय- नवरात्रि /नौ देवियाँ
रचनाकार -नीरू मोहन
विद्या - तांका पूर्ण करती रेंगा काव्य शैली

* माँ का वास हो
संकटों का नाश हो
संपूर्ण धरा
सुख शांति संचार
नवरात्रि त्योहार
* नव दुर्गा के
पवित्र नौ स्वरुप
स्त्री जीवन है
इनसे परिपूर्ण
मनोकामना पूर्ण
*जन्मी कन्या है
शैलपुत्री स्वरूप
पूजती धरा
कौमार्य अवस्था है
ब्रह्मचारिणी रूप
*विवाह पूर्ण
चंद्रमा के समान
निर्मल सुता
चंद्रधरा समान
दो आदर सत्कार
* जन्म देती है
जीव भू पर
गर्भधारणी
कष्मांडा स्वरूप
धरती खुशहाल
* मैया प्यारी है
ममता की खान
पालनहार है
संतान जन्म बाद
स्कंदमाता स्वरूप
* स्त्री जो करती
संयम व साधन
धारण स्वयं
कात्यायिनी स्वरूप
सम्मान दो संपूर्ण
* अपना संकल्प
धारण करती है
पति रक्षिणी
सुहाग बचाकर
कालरात्रि स्वरूप
* कुटुंब भांति
संसार उपकार
करती जाए
महागौरी स्वरूप
धरा पर आ जाए
* नवाँ स्वरूप
सिद्धिदात्री अंबे माँ
जीवन साधे
कामना पहले ही 
सब कुछ दे जाए
* नवरात्रि में
सद्कर्म करे जो
माँ नजदीक
तन-मन-धन दे
नवरात्रि सफल ।।।।

Wednesday 20 September 2017

धार छंद

विषय~खोज
~~~~~~~

धार छंद

शिल्प
[मगण लघु]
(222   1)
4 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत

कान्हा संग,
राधा रंग।
देखे नैन,
खोये चैन

मेरे मीत,
तेरे प्रीत।
गाये गीत,
मेरी जीत।

खोजे नैन,
मैं बेचैन।
तेरी प्यास
जागे आस

लेते नाम,
होते काम ।
तू है खास,
मेरे पास।

चारों धाम,
राधेश्याम।
मेरो साथ,
तेरो हाथ।।

खोजता आज स्वअस्तित्व अपना

विषय- खोज/तलाश
रेंगा काव्य शैली
5+7+5+7+7+5+7+5+7+7-----
* माँ दरबार
मनोकामना पूर्ण
तलाश मेरी
संपूर्ण फलीभूत
इच्छाएँ हैं संतुष्ट

* खोजता आज
स्वअस्तित्व अपना
रात्रि का तम
प्रकाश है फैलाए
चंद्रज्योत्सना लिए

* विभा छा जाए
प्रकाश की तलाश
उर रोशन
आदित्य उषा लाए
प्रभात बेला लिए

कवयित्री- नीरू मोहन
दिनांक-20-9-17
समय- 5:42

Tuesday 19 September 2017

आज भी तुझको याद करता हूँ

****गज़ल****

आज भी तुझको याद करता हूँ
हर घड़ी इंतजार करता हूँ

देखने को भी आज तुझको में
हर घड़ी बेकरार रहता हूँ

क्या बीती मुझपे तेरे जाने के बाद
तूने मुड़कर भी न ली ख़ैर मेरी

आज भी तुझको याद करता हूँ
हर घर इंतजार करता हूँ

करके दस्तक कोई देगा पैगाम
नजरें ढूंढे तुझे झरोखों से आज

तेरी खुशबू है फैली महफिल में
रस्ते-रास्ते पे निगाह ठहरी है

आज भी तुझको याद करता हूँ
हर घड़ी इंतजार करता हूँ

किया है रुसवा तूने आज मुझे महफिल में
आने का वादा किया न आके तोड़ा उसे

किस से शिकवे करूँ शिकायत मैं
तूने नीलाम सरेआम आज मुझको किया

आज भी तुझको याद करता हूँ
हर घड़ी इंतजार करता हूँ ।


मेरा लाल प्रद्युम्न

विद्या - हाइकु

Sunday 17 September 2017

मजबूर हैं आज देश के शिक्षक

*कुछ लापरवाहों की लापरवाही का
करता है पूरा समाज भुगतान ।
स्कूलों से विश्वास उठ जाता है ।
अध्यापकों को भी बिन बात के
सताया जाता है ।
गुरू का स्थान निम्न हो जाता है ।
विद्यार्थी मनमानी पर उतर आते हैं ।
गुरुओं का सम्मान वो न कर पाते हैं ।

*उड़ाते हैं मजाक आज के शिष्य गुरूओं का
कैसे पाएँगे ज्ञान न गर करेंगे सम्मान गुरुओं का
एक समय था भगवान से ऊपर का दर्जा गुरूओं का
अंग शरीर का न्यौछावर शिष्य करते थे गुरु दक्षिणा का

*आज के विद्यार्थी न तो मान रखते हैं विद्यालय का न ही गुरुओं का
महज़ रोज की दिनचर्या का एक भाग बना है शिक्षा का

*बच्चों की छीक से भी अध्यापक को डर लगता है
छात्रों का सिर दर्द भी एक बहुत बड़ी समस्या का जिक्र करता है

*आज के विद्यार्थी झूठ का सहारा लेते हैं माता-पिता को स्वयं अच्छा दिखाकर अध्यापक को गुनहगार कहते हैं

*अध्यापक बेबस और लाचार अब लगता है
बच्चों के आगे उसका ज्ञान क्षीण लगता है

*ज्ञान का दीपक जलाता है और स्वयं जलता है
कभी स्कूल प्रबंध का तो कभी अभिभावकों का शिकार बनता है

*अपने शिष्यों को सही राह दिखाने की जद्दोजहद में केवल सिर्फ अध्यापक ही सूली पर क्यों चढ़ता है

*सुना तो खूब था कि दीपक स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी पहुँचाता है
फिर क्यों दीपक की अंधेरों में गुम हुआ जाता है

*आजकल के विद्यार्थी तो कम शिक्षक प्रताड़ित ज्यादा होते हैं
मानसिक रूप से वह रोज़ बच्चों का शिकार होते हैं

*समय वह आया है कि बच्चों की गलती को देखकर भी चुप्पी साँध लेते हैं
क्योंकि आजकल के विद्यार्थी अपने शिक्षक को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं

*नहीं होते हैं एकलव्य जैसे शिष्य आज इस दुनिया में
जो बिन गुरु के भी ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और गुरूदक्षिणा में अपने शरीर का अंग भी गुरू को भेट में दे देते हैं ।।

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छुपा रखा था ।

गज़ल

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।
कतरे-कतरे पे स्याही का असर लगता था ।

यूँ तो देखी थी जमाने की रुसवाई हमने ।

खाली हाथों पे अंगार कोई जब रखता था ।

छलनी हो जाता था जिगर ,आँखों से अश्क बहता था ।
कोई जब वार लफ्जों से किया करता था ।

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।
कतरे-कतरे पे स्याही का असर लगता था ।

इस जमाने ने कभी कद्र न जानी मेरी ।
कूचे-कूचे पे सरे आम हर रोज लुटा करता था ।

हाथ पकड़ा नहीं ,संभाला भी किसी ने ही नहीं ।
अपने ही आप गिरा और उठा करता था ।

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।
कतरे-कतरे पर स्याही का असर लगता था ।


यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी

गज़ल

यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी
जाने किस मोड़ पे मिल जाए पुराना साथी ।

गम जो जिंदगी का  नासूर मुझे लगता है  सोचते ही उसे हर जख्म उभरने लगता है।

सपने जो संजोए थे दिलबर के लिए यादों में   
आज वही मुझसे हर मोड़ पर ख़फा लगता है ।

यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी 
जाने किस मोड़ पे मिल जाए पुराना साथी ।

कसमें खाईं थी किसी रोज़ मोहब्बत में मेरी 
आज हमदर्द वही बेवफा-सा लगता है ।

जिंदगी का फसाना कोई बेबस-सा क्यों लगता है
दूर ही दूर से कोई अनजान अपना-सा लगता है ।

यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी
जाने किस मोड़ पे मिल जाए पुराना साथी ।

***** अनुभव *****

* कहते हैं एक चिंगारी या तो आग लगाती है या प्रकाश फैलाती है । रोशनी देने वाली चिंगारी का इस्तेमाल अगर ध्यान से किया जाए तो वह जीवन में प्रकाश भर देती है नहीं तो उसी जीवन को खाक कर देती है । यह मेरे शब्द नहीं है मेरी कलम की आवाज है जो श्वेत पत्र पर अपने आप ही लेखनी बनकर उतर जाती है मुझे तो सिर्फ कलम के चलने की ध्वनि ही सुनाई देती है शब्द अपने आप मेरी कलम स्वयं बना लेती है ।

* मैं 1997 से शिक्षण कार्य में संलग्न हूँ । बाल भवन स्कूल में शिक्षण का अवसर मुझे सन् 2008 में प्राप्त हुआ । मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसा मंच और कार्यस्थल मिला जहाँ मेरे हर कार्य को हर कदम पर सराहा गया । विद्यालय की मुख्य अध्यापिका माननीया कविता महरोत्रा जी के सान्निध्य और सहयोग से मेरे शिक्षण कार्य में निखार आया ।उन्होंने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया। विद्यालय में पहले ही दिन कक्षा-कक्ष में उन्होंने मेरे कार्य की सराहना की । उनका सहयोग मुझे हर कदम पर एक नई दिशा देता गया ।

* कहते हैं शिक्षक एक नदी की भांति होता है स्वच्छ ,शीतल ,निर्मल और श्वेत । जब तक नदी का पानी बहता है वह अपने समस्त गुणों को प्रवाहित करता है और जब वह रुक जाता है तो वह गंदे नाले के समान हो जाता है । उसी प्रकार शिक्षक जब तक सीखता है वह सिखाता है और ज्ञान ज्योति जलाता है । मैं बहती नदी की भांति आज तक शिक्षा से जुड़ी हुई हूँ । जिसमें मेरे विद्यालय का बहुत बड़ा योगदान है । विद्यालय ने हर कदम पर मुझे प्रेरित किया और अपना सहयोग दिया ।

* विद्यालय के प्रधानाचार्य जी हमेशा से ही मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं । साधारण व्यक्तित्व के धनी और मेरे प्रेरणास्रोत श्री बी बी गुप्ता जी के मुख की आभा और व्यक्तित्व हमेशा से मेरे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रदार्पण करता है ।अभी कुछ ही दिन पूर्व जब मैंने उन्हें अपनी उपलब्धियों के बारे में बताया उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर जब मुझे आशीर्वाद दिया मानो मेरे अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ हो उनके मुख से निकला यह शब्द 'बहुत अच्छा कार्य' हर बार मुझे एक नई शक्ति देता है । जिस विद्यालय में 2008 में मैंने प्राईमरी शिक्षिका के रूप में प्रवेश किया था आज उसी विद्यालय में हिंदी विभाग में टी.जी.टी के पद पर शिक्षण कार्य कर रही हूँ । इसके लिए में विद्यालय के उप प्रधानाचार्य श्री विविध गुप्ता जी जो आज की युवा पीढ़ी के लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत है धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने मुझमें विश्वास दिखाया और मुझे यह सुअवसर प्रदान  किया। 

* मेरे हर खट्टे-मीठे और कड़वे अनुभवों ने मुझे एक नई दिशा दी है । कहते हैं  'कड़वे अनुभव सबसे अधिक सीख देते हैं' और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है मैंने अपनी कड़वे अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है । आज मैं एक लेखिका और कवयित्री बाद में सबसे पहले मैं एक शिक्षिका हूँ जिसका धर्म और कार्य समाज को एक ऐसी युवा पीढ़ी प्रदान करना है तो देश की उन्नति और तरक्की की राह को मजबूत करें और देश से अत्याचार और भ्रष्टाचार का अंत कर दे । आज के विद्यार्थियों को भी यह समझना होगा कि शिक्षा का मंदिर ज्ञानार्जन के लिए होता है और उस मंदिर में शिक्षक देवता स्वरूप होता है जिस प्रकार मंदिर में प्रवेश करते ही स्वतः हम मंदिर के नियमों का पालन करते हैं वहाँ हमें कोई बताने वाला नहीं होता कि हमें हाथ जोड़ने हैं, शांत रहना है और मंदिर की गरिमा बनाए रखना है उसी प्रकार एक विद्यार्थी के लिए विद्यालय मंदिर समान है जहाँ प्रवेश करते ही अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के मन और मस्तिष्क पर स्वतः ही छा जानी चाहिए । एक शिक्षक होने के नाते मैं यही चाहूँगी कि जो ज्ञान की ज्योति हम लेकर चले हैं आगे आने वाली पीढ़ी भी इस ज्ञान की ज्योति का प्रकाश यूँ ही चारों सिम्त फैलाए रखें ।

**विद्यालय की गरिमा बनाकर ,
शिक्षक का सम्मान करो ,
अनुशासन का पालन करके ,
ज्ञानदीप की ज्योति भरो ,
सफलता चूमेगी कदम तुम्हारे ,
नभ ज्योति बरसाएगा ,
रात्रि के तम में भी तुमको ,
प्रकाश ही प्रकाश नजर आएगा ।।
***    ***    ***    ***    *** 

Saturday 16 September 2017

***मेरी आवाज़ सुनो***

जापानी काव्य शैली(तांका)
5+7+5+7+7+5+7+5+7+7----

***मेरी आवाज़ सुनो***

वहशी जन
करें कुकर्म सब
ममता घुटे
तिल-तिल मरे माँ
ममता की पुकार

रोज करती
न्यायालय से माँग
मिलेगा न्याय
माँ की आस अधूरी
होगी पूरी वो तब

फाँसी लटके
प्रद्युमन का भक्षक
इंसाफ होगा
ममता का कब तक
पीड़ा है अंत तक

Friday 15 September 2017

मुझे इंसाफ चाहिए (एक माँ की पुकार)

* लोरी सुनाकर सुलाया था जिसको,
प्रभात के आते ही जगाया था जिसको, अपने हाथों से स्कूल के लिए संवारा था जिसको,
स्नेह भरे सीने से लगाया था जिसको,

* नहीं आएगा लौटकर फिर दोबारा
इस आँगन में
क्या पता था किसी को,
सुबह का सूरज निकला था
रोज की भाँति सुनहरा-सा अंबर तल पर
नहीं लौटेगा मेरा प्रद्युमन क्या पता था किसी को,

* एक नन्हें फूल से क्या दुश्मनी होगी किसी की,
मसल देगा कोई वहशी एक ही पल में उसको,
क्या नहीं उसे हुआ होगा जरा भी दर्द पीणा क्षणभर,
जब चाकू का वार किया होगा कनपटी से गर्दन तक उसकी,

* चीखा भी होगा, चिल्लाया भी होगा,
बचाकर अपने आप को शिकंजे से उसके भागा भी होगा मेरा प्रद्युमन,
स्कूल प्रशासन में क्या कोई नहीं एेसा था जिसने सुनी हो दर्द पीड़ा भरी मेरे लाल की पुकार उस पल,

* बचा लिया होता अगर उसको
आज होता वह मेरे सीने के पास,
शिक्षा के मंदिर में गर महफूज़ नहीं हैं बच्चे तो किस पर विश्वास करके भेजें अभिभावक अपने जिगर के टुकड़े,

* गुहार है मेरी, फरियाद है मेरी
उनसे एक बार,
छुपा रहे हैं सच्चाई को जो चार दीवारी के उस पार,
आएँ आगे स्वीकारें अपना यह कुकर्म एक बार,
इंसानियत है दिल में तो न्याय दिलवाएँ एक माँ के लाल को आज ।
????

Monday 11 September 2017

सरल सुगम हिंदी व्याकरण (जानने योग्य बातें)

करते है हिंदी लिखने में अकसर ये गलती
क्योंकि नहीं है ज्ञान लगाएँ कहाँ
ई और यी
ए और ये
एँ और यें
हिंदी नहीं है आसान समझ लो ज़रा
ग्रहण करो ज्ञान हिंदी व्याकरण का ज़रा

*हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं ।

*कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए ।
जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं,
*जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...।*
इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...। इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...। 'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है... मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...।
क्या तुमने किताब से किताब मिलायी...?
( 'मिलाई' ग़लत है...।)
आज छात्र ने प्रधानाचार्य से मिलने की इच्छा जतायी...।
( 'जताई' ग़लत है...।)
उसने नयी फ्रॉक लायी...। ('लाई' ग़लत है...।)

*अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...।*
बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाये...। ( 'बनाए' नहीं। )
लोगों ने भगवान के आगे दुखड़े गाये। ( 'गाए' नहीं। )
दीपावली के दिन लोगों ने घर सजाये...। ( 'सजाए' नहीं...। )

*अब प्रश्न उठता है कि 'ए' का प्रयोग कहाँ होगा..?*
'ए' वहाँ आएगा जहाँ अनुरोध की बात होगी...।
अब आप काम देखिए, मैं चलता हूँ...। ( 'देखिये' नहीं...। )
आप लोग अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में सोचिए...। ( 'सोचिये' नहीं...। )
ऐसा विचार मन में न लाइए...। ( 'लाइये' ग़लत है...। )

*अन्त में 'यें' और 'एँ' की बात...*
यहाँ भी अनुरोध का नियम ही लागू होगा... रिक्वेस्ट की जाएगी तो 'एँ' लगेगा , 'यें' नहीं...।
आप लोग कृपया यहाँ आएँ...। ( 'आयें' नहीं...। )
जी बताएँ , मैं आपके लिए क्या करूँ ? ( 'बतायें' नहीं...। )
मम्मी , आप डैडी को समझाएँ...। ( 'समझायें' नहीं...। )

*ध्यान देने योग्य बातें-
जहाँ आपने 'एँ' या 'ए' लगाया है , वहाँ 'या' लगाकर देखें...। क्या कोई शब्द बनता है ? यदि नहीं , तो आप ग़लत लिख रहे हैं...।
आजकल लोग 'शुभकामनायें' लिखते हैं... इसे 'शुभकामनाया' कर दीजिए...। 'शुभकामनाया' तो कुछ होता नहीं , इसलिए 'शुभकामनायें' भी नहीं होगा...।
'दुआयें' भी इसलिए ग़लत है और 'सदायें' भी... 'देखिये' , 'बोलिये' , 'सोचिये' इसीलिए ग़लत हैं क्योंकि 'देखिया' , 'बोलिया' , 'सोचिया' कुछ नहीं होते...।

संदल सुगंध लोकार्पण समारोह

रचनाकार नीरू मोहन आगमन सांस्कृतिक एवं साहित्यिक मंच की ओर से संदल सुगंध रचनाकार सम्मान से सम्मानित । माँ शारदे की अनुकम्पा से आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के तत्वावधान में दिनांक  10 सितंबर 2017 को मेरे साझा संग्रह 'संदल सुगंध'पुस्तक का लोकार्पण विद्वजनों के सान्निध्य में आगमन के मंच पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी में अमीर खुसरो सभागार में आयोजित किया गया और मुझे सम्मान से नवाजा गया शुक्रिया आगमन!आभार पवन जैन जी!मैं आज  बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ ।समस्त भारत के सभी क्षेत्रों से आए कवि व कवित्रियों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से वातावरण को भावविभोर कर दिया।मुख्य अतिथि श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी ने अपने सम्बोधन में बहुमूल्य सुझाव कवियों व कवित्रियों को कविता के विषय में दिए। 

सभी को हृदय तल से बधाई।