तुम लड़की हो समझो ज़रा
शर्म हया गहना है तुम्हारा
लाज का पर्दा नज़रों में रखना ज़रा
पापा के सामने आदब से जाना
सलवार सूट के ऊपर दुपट्टे को सजाना भाई से बात करते हुए तमीज दर्शाना जवाब सवाल न करना
घर का बड़ा है वह हमारा
तुम लड़की हो समझो ज़रा ।।
बाहर निकलो तो नजर नीचे झुकाना किसी के सामने सिर कभी मत उठाना पढ़ने का बोझ तुम्हें नहीं है उठाना
हमें तुमसे नौकरी थोड़ी है करवाना
नौकरी करना सिर्फ मर्दों का काम है लड़की को तो सिर्फ घर की चारदीवारी में ही काम है
तुम लड़की हो समझो ज़रा ।।
बहुत सुनती आई हूँ इस तरह की बातें बचपन से लेकर जवानी तक कटी यही सुन सुन कर रातें
तुम लड़की हो समझो ज़रा ।।
तुम लड़की हो समझो ज़रा ।।
अब और नहीं सुन, सह सकती कटु वाणी मैं लड़की हूँ यही समझाना है अब तुम को ज़रा ।।
नीरू कहती जो कहे ऐसी बातें तुमको सुनाओ लक्ष्मीबाई की बातें उनको ज़रा
सोच को ऐसे लोगों की बदलना होगा लड़की नहीं है कोई गहना घर का
उड़ान भरने का उसको भी दो संपूर्ण मौका ।।
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