हाँ , हूँ मैं एक किन्नर...
एक किन्नर ...
जैसे जन्म लिया है तुमने
मैं भी उसी तरह से दुनिया में आई हूँ
माँ की कोख में मैं भी नौ महीने बिता कर आई हूँ ।
मुझे भी बनाया उसी भगवान ने है ।
दिया जिसने तुम्हें भी जीवन है ।
उसी की मिट्टी से मुझे भी घड़ा गया है, जिसकी मिट्टी से तुम्हारा यह बुत बना है ।
फिर क्यों अपने ही आशियाने में आसरा नहीं पाती हूँ ।
सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं एक किन्नर हूँ ।
हाँ, हूँ मैं एक किन्नर...
एक किन्नर...
माँ ने छिपाया दुनिया से
न पढ़ाया न लिखाया मुझे इस दुनिया में । डरी सी रहती थी, सहमी सी रहती थी । मुझे न ले जाए कोई
इसी गम में घुली रहती थी ।
कोई आता था तो छिपा देती थी मुझको । माँ थी न वो मेरी ...
तभी तो सबके कटाक्ष सहती थी ।
पापा ने तो दिया नहीं प्यार मुझे पिता वाला ।
हर वक्त बस ठोकरों में ही ठुकराया ।
आसरा पाकर भी बेआसरा ही रहती थी ।
क्योंकि मैं एक किन्नर ...
हाँ, हूँ मैं किन्नर ...एक किन्नर
बहन थी जो मेरी छोटी प्यार पूरा उसको दिया गया ।
पढ़ाया-लिखाया और विवाह का भी सपना सजाया गया ।
क्या नहीं है मुझे अधिकार
किसी का प्रेम पाने का ।
क्या नहीं है मुझे अधिकार शादी का जोड़ा सजाने का ।
मेरा भी मन करता हो एक प्यार करने वाला मुझे भी ।
शादी करके जाऊँ किसी के घर आँगन में मैं भी ।
क्या दुनिया स्त्री और पुरुष जाति से ही जानी जाती हैं ।
क्यों ईश्वर की बनाई मेरे जैसी प्रतिमा खंडित समझी जाती है ।
बस इसलिए क्योंकि मैं किन्नर हूँ ...
हाँ, हूँ मैं किन्नर...एक किन्नर
नीरू कहती इस बात को आज
किन्नर है यह पाप नहीं हैं ।
ईश्वर के बनाए हुए पाक(पवित्र) इंसान हैं यह ।
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