Friday, 10 November 2017

महिला सशक्तिकरण और पुरुष

स्त्री की भूमिका सदियों से सुंदरता, कोमलता, करूणा, प्रेम, अन्नपूर्णा की रही है दूसरी और पुरुष कठोर, शक्ति का प्रतीक, जीवन की हर मुश्किलों को झेलने वाला कहा गया है । कहते हैं --जिस परिवार में पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है उस परिवार के लोग अपने आप को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं अर्थात पुरुष संरक्षक और पालक की भूमिका निभाते हैं ।वैदिक काल से हमारा समाज व्यवस्थित चला आ रहा है जिसमें पुरूष कमाने वाला और घर की नारी घर को संभालने वाले की भूमिका निभाती है । गृहस्थी दोनों चलाते हैं । एक घर में रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है दूसरा जीविकोपार्जन के लिए घर से बाहर जाता है । उस समय पुरूष की किसी बीमरी या शारीरिक विकलांगता के कारण ही महिला को मजबूरी में घर से बाहर जाना पड़ता था ।

सदियों से चली आ रही इस सुचारु व्यवस्था को खुद पुरुषों ने ही भंग किया है । स्वयं पुरुषों का अपने दायित्वों से विमुख हो जाना ही स्त्रियों को घर की चारदीवारी से बाहर लाया है । आखिर क्या हुआ जो एक नारी घर के सुरक्षित माहौल को छोड़ कर घर की चारदीवारी से बाहर निकल आत्मनिर्भर बनने को मजबूर हुई ? इसका श्रेय पुरुषों पर ही जाता है । वैदिक काल में विवाह के वक्त पुरुष और नारी कुछ प्रतिज्ञायों में बंधते थे जब तक मनुष्य ने प्रतिज्ञाओं के अंदर रह कर जीवन निर्वाह किया तब तक कोई दुविधा नहीं हुई ।
जैसे-जैसे समय बीतता गया वैदिक काल का पतन हुआ समाज धर्म से विमुख होता गया और इसकी सजा नारी को भोगनी पड़ी । वैदिक काल में हमारे समाज में नारी को बहुत सम्मान प्राप्त होता था । नारी को गृह लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, त्याग और करुणा की देवी के नाम से पुकारा जाता था मगर पुरुष की सत्तात्मक छवि ने नारी की इज्जत को तार-तार कर दिया । पुरूष  मर्द होने का रौब जमाता । नारी पर घरेलू अत्याचार का अध्याय शुरु हो गया । स्त्री घर की चारदीवारी में रहती थी इसलिए आर्थिक रूप से सक्षम न होने के कारण पुरुषों के अत्याचारों का शिकार होती थी । 'भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति सिर्फ देवता है' । पुरूष के अत्याचारी और गलत होने पर भी नारी यही राग अलापती थी । मानसिक, शारीरिक अत्याचारों ने ही नारी को चार दिवारी लांघने को मजबूर कर दिया और यहाँ से शुरू हुआ महिला सशक्तिकरण की आवाज का आगाज़ इसका परिणाम यह हुआ नारी गृहणी वाली छवि को त्याग कामकाजी महिला बन गई । उसने अब दूसरी महिलाओं को जागरूक करना शुरू कर दिया और एक नारी दूसरी नारी की प्रेरक बन कर सामने आई ।

फलस्वरूप अब प्रत्येक महिला आर्थिक आजा़दी चाहने लगी और पुरुषवादी मानसिकता वाले समाज से मुक्ति चाहने लगी । समाज में गृहस्थ जीवन की गांठे खुलने लगी । महिला अब आजादी चाहने लगी । महिलाएँ हर व्यवसाय से जुड़ने लगीँ । महिलाओं ने धीरे-धीरे पुरुषों के रोजगार के अवसरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया । महिलाएँ पुरुषों से अच्छी कर्मचारी साबित होने लगीं । आज नारी हर क्षेत्र में आगे हैं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है या यूं भी कह सकते हैं कि उससे आगे निकल गई है । आज की नारी सक्षम और सशक्त है । आज के संदर्भ में उसको लाचार कहना अतिशयोक्ति होगा । आज मंज़र ऐसा है कि पुरुष महिलाओं से प्रताड़ित हैं उनको रोजगार के अवसर कम मिलते हैं क्योंकि कार्यस्थल पर भी स्त्री को पुरुषों से ज्यादा सक्षम और मेहनती माना जाता है । यहाँ एक प्रश्न यह उठता है कि क्या महिलाएँ को सशक्तिकरण की आवश्यकता है । वह स्वयं में इतनी शक्तिशाली है उसे  सशक्तिकरण की क्या आवश्यकता । नारी आज हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे है ।

आज भी यह आलम है
शीश झुकता है पुरूषों का
नारी के आगे
घर में रखा था बांधकर जिसको उसने
आज बंधी बना है उसी के आगे ।।

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