लेख
आरक्षण सामाजिक विषमता को प्राप्त करने के लिए दिया गया है न कि उसे हथियार बनाकर सामाजिक भेदभाव खड़ा करने तथा राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने के लिए।
नारी हूँ कमजोर नहीं ।
आरक्षण की जरूरत नहीं ।
आदर-सत्कार देकर
करो मेरा सम्मान ।
यही है नारी संरक्षण की पहचान ।
आरक्षण तो एक बीमारी है ।
बीमारी नहीं लगानी है ।
अपना स्थान स्वयं बनाने की
ताकत है मेरे पास ।
आरक्षण की जरूरत है
कमजोर वर्ग को आज ।
मुझे आरक्षण नहीं सम्मान चाहिए ।
नारी हूँ मजबूर नहीं
मुझे सिर्फ मान चाहिए ।।
सदियों से चली आ रही इस दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की शिकार महिलाओं के कल्याण के लिए उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की बात एवं उपचार हो रहे हैं । अत्याचारों पर रोक हेतु महिला आरक्षण की बात हमेशा से कही जाती है लेकिन हमने सोचा है कि क्या उन्हें सही में आरक्षण मिलना चाहिए और क्या आरक्षण मिलने भर से उनकी स्थिति सुधर जाएगी । उनके प्रति हो रहे अत्याचारों में कभी कमी आएगी ।
जब तक यह निर्दयी समाज हबस बनाएगा स्त्री की अस्मिता को । आरक्षण जैसा हथियार भी रोक न पायेगा इस जिल्लत को । क्या करोगे ? आरक्षण देकर या दिलवाकर जब महफूज़ ही न कर पाओगे उसको इस धरती पर ।
सत्य ही है जब तक पुरुष अपनी नपुंसक मानसिकता में बदलाव नहीं लाएगा आरक्षण नाम का हथियार बेकार है । यह मनुष्य क्यों नहीं समझता एक स्त्री आरक्षण की मोहताज़ नहीं है । अपने रास्ते स्वयं बनाने की उसमें क्षमता है उसे संरक्षण और सम्मान चाहिए वह अपाहिज नहीं है जिसे आरक्षण नाम का सहारा चाहिए उसे उस पर हो रहे अत्याचारों से निजात चाहिए चाहे वह अत्याचार कहीं भी हो रही हो घर दफ्तर कार्यालयों में चाहे वह घर की महिलाओं पर या समाज में रह रही ऐसी महिलाओं पर जिन्हें मजबूरी में गंदगी में जाना पड़ा । मैं पूछती हूँ क्या आरक्षण सिर्फ दलितों की, अनुसूचित जातियों जनजातियों की धरोहर हो गई है । आरक्षण का बहुत से वर्ग लाभ उठाते नजर आते हैं सक्षम न होते हुए भी उच्च पदों पर आसीन हो जाते हैं और पढे़-लिखे धूल चाटते हैं ।
हमें आरक्षण नहीं चाहिए अगर हो सके तो आरक्षण गरीबों को दीजिए जिनके पास एक वक्त की रोटी नहीं है जिससे कि वह अपने बच्चों और अपना पेट भर सके । आरक्षण शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को चाहिए जो समाज में सिर उठाकर जी सकें । आरक्षण उन बच्चों को चाहिए जो पैसे की कमी के कारण पढ़ नहीं पाते । आरक्षण उनको चाहिए जो बच्चे बाल मजदूरी का शिकार होते हैं । जरा सोचिए ! और विचार कीजिए हमें आरक्षण की चादर से न ढको हमें सम्मान की चादर से ढको । सबको को उनकी गुणवत्ता के आधार पर नौकरी में स्थान प्राप्त होना चाहिए । आज कोई भी राजनीति जैसे खेल को खेल सकता है । मेरे लिए यह खेल ही है अगर आप देखेंगे तो वह लोग जो पढ़े लिखे नहीं हैं राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्ष बन जाते हैं । पुरुष ही नहीं महिलाएं भी अनपढ़ पांचवी छठी पास राजनीति में आ जाती है । क्या इस पर रोक नहीं लगनी चाहिए ? कैसे एक पुरुष या महिला अनपढ़ होकर चुनाव लड़ सकता है । ऐसे लोगों के हाथ में क्या देश की सत्ता आनी चाहिए । मैं यहाँ सिर्फ यही कहना चाहती हूँ कि स्त्री या पुरुष दोनों को केवल गुणवत्ता के आधार पर ही किसी पद को प्राप्त करने की अनुमति होनी चाहिए । बिना श्रेष्ठता मापे चयन नहीं होना चाहिए ।
हमारे पुरुष प्रधान समाज में हजारों वर्षों से बिना किसी महिला आरक्षण के ऐसी महिलाएँ भी हैं जिन्हें पाकर इतिहास गौरवान्वित है ।कस्तूरबा गांधी, विजया लक्ष्मी, सावित्रीबाई फुले कुछ ऐसे नाम है जिन्हें कभी भी किसी आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ी यह उस समय की महिलाएँ हैं जब महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत अत्यंत ही कम था । लंबे-लंबे घूंघटों के बीच समाज ने उन्हें पर्दों से ढक रखा था । इस दृष्टिकोण से जब आज की पढ़ी-लिखी नारी आरक्षण की वकालत करती है तो बहुत आश्चर्य होता है । यह भी देखा गया है कि पंचायतों में, राजनीति में महिलाएँ वह महिलाएँ राज करती हैं जिनके परिवार राजनीति में सक्रिय है । शहर और गाँवों दोनों जगह भाई भतीजावाद बनाया हुआ है । श्रेष्ठ और सक्षम को उचित अवसर प्राप्त नहीं हो पाते ।
महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना है कि इससे लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव घटेंगे । महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा । राजनीति में अपराधीकरण कम होगा । महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास होगा । सामाजिक कुरीतियों जैसे:- दहेज, यौन उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या में सुधार होगा । मगर यह तभी संभव है जब नारी शिक्षित हो । राजनीति में आज ऐसी महिलाएँ भी बहुत हैं जो अशिक्षित होते हुए भी उच्च पद पर कार्य कर रही हैं । संविधान में नारियों की स्थिति सुधारने के लिए बहुत से कानून भी बनाए गए हैं मगर नारी की स्थिति कानून बनाने से नहीं सुधरेगी कानून एक दस्तावेज के रुप में काम करते हैं उनपर अमल कोई नहीं करता । देखा जाए तो जो बातें ऊपर कही गई है सभी के लिए कानून भी निर्धारित हैं मगर फिर भी यह कुरीतियाँ सदियों से चली आ रही हैं । अभी भी कन्या रूपी धन को माँ की कोख में ही खत्म कर दिया जाता है । आज भी एक बेटी को बाप की संपत्ति में अधिकार नहीं दिया जाता अगर वह इसकी माँग भी करती है तो घर वाले उसे लोभी लालची कहते हैं । महिलाओं को आरक्षण नहीं संरक्षण चाहिए । महिलाएँ कमजोर नहीं हैं । एक नारी अकेले बिना किसी सहायता के पूरा घर परिवार संभालती है । पूरा घर उस पर निर्भर रहता है । सशक्त प्राणी को अर्थात नारी को आरक्षण नहीं चाहिए मर्यादित नर चाहिए जिसकी नजर में नारी के लिए सम्मान झलकता हो । उसे आरक्षण की भीख नहीं चाहिए ।वह काबिल है । उसे रोटी बनाने वाली ही मत रहने दो उसे रोटी कमाने वाली बनाने का प्रयास करो इसके लिए उसे शिक्षा का प्रसाद चाहिए आरक्षण नाम की भीख नहीं चाहिए । देश के विकास के लिए किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश सिर्फ और सिर्फ योग्यता के आधार पर होना चाहिए । मनुष्य अपने गुणों से बड़ा बनता है न कि दूसरों कि कृपा और दया से । वैशाखी देकर संतुष्ट किया जा सकता है परंतु इससे समाज और देश का विकास नहीं होगा सिर्फ उसका पतन होगा । आरक्षण जैसी बैसाख़ी महिलाओं का भला नहीं कर सकती वैसे भी आरक्षण लोकतंत्र विरोधी है क्योंकि यह सभी को समान अवसर प्राप्त करने से वंचित रखता है ।
आज देश को महिला आरक्षण से ज्यादा जरूरत है कि वह महिलाओं की सोच, कार्यक्षमता, कार्यशैली को समझें और उस पर अपना विश्वास बनाए उनको शिक्षित करवाएँ । महिलाएँ सुरक्षित होंगी तो वह किसी के भी हाथ की कठपुतली बनना कदापि बर्दाश्त नहीं करेंगे । आरक्षण का मुद्दा सभी पार्टियों के लिए सिर्फ वोट बैंक है महिलाओं को आरक्षण नहीं शिक्षा और संरक्षण चाहिए । निर्भया दामिनी जैसा और किसी महिला के साथ व्यवहार न हो ऐसा संकल्प चाहिए ।
नारी को मत कमजोर समझ
आरक्षण का उसमें लोभ न भर
नारी है यह सब समझती है
इतनी शक्ति है इसमें
इसके आगे समस्त दुनिया
नतमस्तक खड़ी है ।।
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