Wednesday, 8 November 2017

क्षणिकाएं

जीवन है एक खेल
कभी विरह कभी मेल
जिसने इसको जाना है
सुख की उस पर छाया है ।

मेहंदी रचाई है
महावर लगाई है
पिया की याद में ही
रैना बिताई है

दीदार उस माँ का करवा दे मेरे ईश्वर
जो मेरे पास नहीं
माँ के सिवा इस जग में मेरा कोई साथ नहीं
बुलाया है जिस दिन से तूने उसे अपने पास
उस दिन से अब तक दीदार की आस है एक बार

जीवन में इंतजार न आए किसी के पास, मेल मिलाप और प्यार से
चलता रहे संसार
जिसके पास यह आया है
उसने विरह ही पाया है
मिलने की आस में
जीवन अपना बिताया है ।

सार्वभौमिक सत्य को नहीं झूठला सकते हैं हम
सृष्टि की रचना से लेकर आधुनिक युग तक
पाते अच्छे संस्कार और आदतें परिवार रूपी बगिया में हर पल
ईश्वर के रूप में माँ ही है वह पहली शिक्षा जीवन पर्यंत, प्रतिपल, हरपल, हरक्षण

नारी तू शक्ति है सत है
सृष्टि की रचना कर है
मातृभूमि को पावन करती
नारी तू पालक दुखहारक है ।

जो तुझको न समझे नारी
बुद्धिहीन वह मानव है
बिगड़े काम तुझी से बनते
सुर देव भी जानत हैं ।

बचपन की यादें मीठी सुहानी
मिट्टी की गुड़िया परियों की कहानी
रातों को बिस्तर पर हम सबको
सुनाती थी प्यारी दादी-नानी हमारी ।

बहन, बेटी, माँ, नानी, दादी बनने तक
सभी रूपों में सिर्फ माँ ही समाई है ।
यही सार्वभौमिक सत्य
पृथ्वी पर सभी रूपों में सिर्फ माँ ही आई है ।

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