विद्या- शंख
मैं
सुचि
निर्भया
दामिनी भी
सहती दर्द
नपुंसक नर
भेद देता नारीत्व
पवित्र तन-मन को
नापाक बना देता है
सोचती क्यों बनाया
ईश्वर ने मुझे
यूँ ठोकरों में
जीवन को
मेरे ही
किया
है ।
हे
ईश
नारी हूँ
संसार की
पशुता अब
सहने न वाली
जलकर अब यूँ
मरने नहीं वाली हूँ
संभल जा मूर्ख नर
विनाश है निश्चित
मत कर भूल
नारी है देवी
पूज इसे
देवी है
ये
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