Friday, 3 November 2017

हिंदी भाषा और विभिन्न बोलियां

विषय - हिंदी भाषा और विभिन्न बोलियाँ
विद्या - गद्य

भाषा एक सामाजिक प्रकार्य है जिसका उत्थान-पतन समाज के भीतर ही होता है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से बोली का भी उतना ही महत्व है जितना की भाषा का । किसी क्षेत्र विशेष की बोली जब राजनीतिक, साहित्यिक, ज्ञान-विज्ञान तथा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अपना महत्व स्थापित कर लेती है तब वह भाषा का स्थान प्राप्त कर लेती है । बोली एक प्रकार की भाषा है जो सीमित क्षेत्र एवं बोलचाल के रूप में व्यवहृत होती है ।

हिंदी भाषा अपनी विविधता में एकता के साथ प्रस्तुत होती है । १००० ई. के आसपास से आरंभ इस भाषा के अंतर्गत अनेक बोलियाँ आती हैं लेकिन फिर भी हिंदी क्षेत्र के लोग , बोलियों के क्षेत्र के लोग अपनी मातृभाषा के रूप में हिंदी का ही अधिगम करते हैं । हिंदी भाषा की विविधता के आधार पर पाँच उपभाषाओं तथा 18 बोलियों में बांटा गया है ।
१. पश्चिमी हिंदी -खड़ी बोली, ब्रजभाषा बुंदेली, हरियाणवी, कन्नौजी ।
२. राजस्थानी हिंदी- मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी ।
३. पूर्वी हिंदी -अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी ४. बिहारी हिंदी -मैथिली, मगही, भोजपुरी ५.पहाड़ी हिंदी -गढ़वाली, कुमायुंनी, नेपाली ।

हिंदी भाषा भारत के सर्वाधिक जनसमूह की भाषा है इस भाषा का प्रयोग  द्वितीय सम्प्रेषण भाषा के रूप में भी होता है, जो अधिकतर अहिंदी भाषी नगरों में पारंपरिक संघर्षों के पश्चात उपस्थित होता है जैसे बंबईया हिंदी जिसे मराठी हिंदी भी कहा जा सकता है । दिल्ली की हिंदी में हरियाणा, पंजाब, मेरठ आदि क्षेत्र की भाषाओं का सम्मिश्रण हो चुका है अतः यहां की भाषा में शैली भेद बलाघात अभी पर्याप्त परिवर्तन हिंदी में दृष्टिगोचर होता है । इस प्रकार हैदराबाद की हिंदी भी संपर्क भाषा के रूप में तेलुगू हिंदी अथवा हैदराबादी हिंदी के रूप में ढल चुकी है  तथा औद्योगिक नगरों की उपस्थिति भाषाओं का आपसी संघर्ष सामाजिक आवश्यकताएँ आदि कारणों ने भी भाषा के लिए समाज में एक विशिष्ट प्रकार का प्रयुक्तिजन्य उपादान उपस्थित किया है ।

कुछ विद्वानों ने बोली और विभाषा अथवा उपभाषा में कोई भेद नहीं किया परंतु ध्यान से देखा जाए तो इनमे अंतर लक्षित होता है किसी सीमित क्षेत्र में उस उपभाषा को बोली कहकर पुकारा जा सकता है जो वहाँ के निवासियों के स्वभावत: घरेलू बोलचाल की भाषा होती है जिस का प्रचलन मात्र मौखिक रूप होता है । लेखन और साहित्यिक प्रयोग से उसका कोई संबंध नहीं होता है । जैसे खड़ी बोली का एक रूप साहित्यिक भी है और दूसरा विस्तृत ग्रामीण अंचलों में बोलने में प्रयोग किया जाता है । यह बात अवधी, ब्रजभाषा एवं भोजपुरी में भी देखी जा सकती है अतः शिक्षित होने पर भी परिनिष्ठित एवं साहित्यिक भाषाओं का ज्ञान होने पर भी अनेक लोग अपने परिवार एवं समुदाय के लोगों के साथ क्रमशः अपनी बोली में वार्तालाप किया करते हैं अतः यही बोली एवं भी भाषा में अंतर होता है

एक भाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ हो सकती हैं लेकिन किसी बोली के अंतर्गत एक से अधिक भाषा नहीं हो सकती भाषा का भौगोलिक क्षेत्र व्यापक होता है जब की बोली का सीमित । बोली किसी भाषा की प्रारंभिक बोलचाल की अवस्था का द्योतक होती है अर्थात बोली ही कालक्रम में विकसित होते हुए भाषा बनती है । खड़ी बोली आज की मानक हिंदी की आरंभिक अवस्था का द्योतक है ब्रज अवधी आदि अपने साथ की अनेक बोलियों में से खड़ी बोली और धार्मिक परिस्थितियों के कारण मानकीकृत होते हुए अन्य बोलियों की अपेक्षा एक व्यापक समाज के विचार विनिमय का माध्यम बनी और हिंदी भाषा कहलाने लगे ।

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