लोभी भूखा नंगा कहलाए
लोभी के मन कुछ न भाए
लोभ लालच और भेड़ चाल
गर्त में मनुष्य को ले जाए
नेताओं का मचा है शोर
कँचे-कूँचे लेते वोट
लोभ लालच का देते झांसा
देते दीनों को झूठा वादा
रोटी नहीं है इनके घर में
पेट की खातिर क्या-क्या न करते
नेताओं के लालच में आते
भला-बुरा यह जान न पाते
चाँदनी चुनावों में है दिखाते
भूखों के घर चूल्हे जल जाते
खेल खत्म हो जाता जब यह
वादे सभी भूल ये जाते
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