** मैं मछुआरिन हूँ **
समुद्र से ही जुड़ी हूँ…बचपन से आज तक
इसी से ही मेरा जीवन है
रोज पूजती हूँ इस सागर को
रखियो लाज मेरे सुहाग की
आता है रोज़ तेरे आँचल में
पेट पालता है परिवार का
चूल्हा जलता है तेरे से ही…मेरे आंगन का
रोज़ सूर्योदय से…शुरू हो जाती है
मेरे जीवन की लड़ाई ।
जब भेजती हूँ अपने सुहाग को तेरे पास
और देती हूँ दुहाई ।
जाल और नौका लिए रोज़ निकलता है मेरा सुहाग ।
रोज़ रह-रह कर मन मेरा होता है बेताब; जब सुनती हूँ लहरों का अनुराग ।
शांत मन… तब होता है गुल बहार ।
पाती हूँ जब घर की चौखट पर अपने सुहाग को पास ।
तू पालता है पेट हमारा
तू जलधि विशाल ।
तेरी उठती लहरें लाती हैं
मत्स्य का संसार ।
जिस दिन नहीं उठती हैं लहरें…
शांत तू रहता है ।
घर में चूल्हा हमारा नहीं जलता है ।
लहरों के शोर से हलचल मन में मची रहती है ।
आपने जीवन साथी को सामने देखकर ही बैचेनी शांत होती है ।
लहरों के शोर और शांति से गहरा नाता है।
मेरी जीवन नैया का तू ही एक सहारा है ।
सांझ और सवेरे रोज़ नमन तुझे करती हूँ ।
अपनी जीवन नैया को रोज़ ही तेरे हवाले करती हूँ ।
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