** बिटिया की विदाई **
बिटिया की मेहंदी के दिन,
माँ की आँख भर आई है ।
सोच रही बैठी छिपकर,
दो दिन बाद विदाई है ।
आँख है नम और भारी मन,
पौंछ रही अँखियों का जल ।
बचपन से नाज़ों से पाला,
घड़ी विदाई आई है ।
छोड़ के बाबुल गलियाँ बिटिया,
सूना घर कर जाएगी ।
आँगन सूना-सूना होगा,
छम-छम आवाज़ ना आएगी ।
हँसी ठिठोली उसकी अब मैं,
रोज़ नहीं सुन पाऊँगी ।
रात को याद आएगी उसकी,
जब खाना मैं खाऊँगी ।
शाम की चाय…बिना उसके कैसे,
तन्हा मैं पी पाऊँगी ।
सिर में दर्द होगा जब मेरा,
नहीं समक्ष उसे पाऊँगी ।
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