** संदेश पत्र **
शोषण तेरा तब तक होगा
जब तक सहती जाएगी ।
पुरुष प्रधान समाज की बेड़ी
जब तक पहने जाएगी ।
शक्ति तेरे भीतर इतनी
नर की जननी कहलाती ।
इस सृष्टि को तू है रचती
फिर भी कमजोर कहलाई जाती ।
इस ज़ालिम जग में शोषण के
हर-पल विष का सेवन करती ।
कभी पति से मार है खाती ।
कभी सास के ताने सहती ।
कभी समाज के ठेकेदारों की
रातों को रंगीन बनाती ।
कभी तन अपना लुटवाती ।
कभी गृहस्थ का भार उठाती ।
सारे ही रूपों में क्या तू …
शोषण अपना नहीं करवाती ।
सोच, समझ, अब समय बदल दे
पढ़ ले, लिख ले ज़रा संभल ले
शिक्षा का धन पाकर कर ले,
अपने स्वयं को पूर्ण मजबूत ।
आवाज़ उठा कमजोर नहीं तू
सत, शक्ति, बल है तुझमें ।
संस्कृतियों की संवाहक है
संस्कारों का भंडार है तुझमें ।
नदी के जैसी पावन है ।
आकाश के जैसी अनंत,असीम ।
प्रकृति जैसी छटा निराली ।
सृष्टि की है तू जननी ।
एक ही शब्द… तेरे है लिए
शक्ति है तू
शक्ति है तू
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