Saturday, 24 February 2018

गायित्री संस्थान

आज 18/2/2018 काे दिल्ली के सुप्रसिद्ध हिंदी भवन में कुछ साहित्यकारों , कवियाें / गजलकार / संगीतकार / चित्रकार आदि काे सम्मान प्रदान किये गये : एक पुस्तक , “अनुभूतियाें के स्वर “ डॉ हेमलता बबली वशिष्ठ द्वारा संपादित का विमाेचन तथा कवि सम्मेलन आयाेजित किया गया ।

ये आयाेजन बबली जी की साहित्यक संस्था द्वारा पिछले कई वर्षाें से आयाेजित किया जा रहा है :

इस आयाेजन के मुख्य अतिथि थे श्री नानक चंद , पूर्व सचिव दिल्ली हिंदी एकादमी एंव अध्यक्षता की प्रख्यात साहित्यकारा संताेष खन्ना जी ने :

वशिष्ठ साहित्यकार एंव गीतकार धनंजय सिंह , गीतकार अशाेक मधुप , बलराम अग्रवाल , सुभाष नीरव , पंजाबी के कहानीकार नक्षत्र सिंह , डॉ विनाेद शलभ तथा अन्य जानी मानी हस्तियाँ कार्यक्रम में उपस्थित रहें

यह आयाेजन अन्तरराष्ट्रीय स्तर का हाे गया : इसमें नार्वे से हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि एंव साहित्यकार एंव नेपाल के साहित्यकारों ने भी कविता पाठ किया :

आपके दाेस्त काे भी “ गायत्री साहित्य संस्थान “ ने अपना सर्वाेच सम्मान “गायत्री साहित्य शिराेमणि “ प्रदान किया :

मैं इसे अपनी साहित्यक संस्था नवल प्रयास एंव हिमाचल के साहित्काराें एंव कवियाें का सम्मान मानता हूँ ।

इस अवसर पर आयाेजित कवि सम्मेलन में मैंनें अपनी आज ही लिखी नई ग़ज़ल का पढन भी किया

मैं बबली जी एंव उनकी संस्था का आभारी हूँ

आयाेजन सांये 4 बजे से रात 9 बजे तक चला । आयाेजकाें ने सांये चाय का व रात काे भाेजन की भी व्यवस्था की थी जिसके लिए उन्हें साधुवाद :

कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ मित्राें के लिए भी प्रस्तुत हैं , मेरी हाैंसला अफ़्जाई के लिए :

Friday, 23 February 2018

,पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज और हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में "मातृभाषा दिवस" के अवसर पर सामूहिक परिचर्चा

'वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग','केंद्रीय हिंदी निदेशालय', (मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार) ,पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज और हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में  "मातृभाषा दिवस" के अवसर पर सामूहिक परिचर्चा : राष्ट्रीय संस्कृति और मातृभाषा ( 21 फरवरी2018) स्थान : सेमिनार हाल, पी जी डी ए वी कॉलेजनेहरू नगर, दिल्ली में किया गया । इस भव्य आयोजन में इस अवसर पर इन विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार रखे :

1. प्रो. अवनीश कुमार, अध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार
2. डा. रवीन्द्र कुमार गुप्ता, प्राचार्य, पीजीडीएवी सांध्य महाविद्यालय
3.श्री उमेश चतुर्वेदी, सलाहकार, प्रसार भारती,
4. प्रोफेसर लालचंद, निदेशक, एनसीईआरटी, दिल्ली
5.श्री जय प्रकाश फ़ाकिर, निदेशक, राष्ट्रीय तकनीकी संगठन, भारत सरकार।
6. श्री सुधाकर पाठक,अध्यक्ष, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी
7.डा. हरीश अरोड़ा,पीजीडीएवी सांध्य महाविद्यालय
8. डा. धनेश द्विवेदी, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय
9. प्रो. एस.पी. अग्रवालप्राचार्य, रामानुजन कॉलेज
10. प्रो. विद्या सिन्हा, प्रोफेसर, किरोड़ीमल कॉलेज
11.डा. जे.एल.रेड्डी, तेलुगु-हिंदी भाषा सेवी
12. डा. अजय कुमार मिश्र, संस्कृत-हिंदी भाषा सेवी

कॉर्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षकों, छात्रों के साथ ही केंद्रीय हिंदी निदेशालय और तकनीकी शब्दावली आयोग से भी बड़ी संख्या में अधिकारी सम्मलित हुए।
अकादमी की ओर से डॉ रमेश तिवारी, श्री भूपेंद्र सेठी, श्री विजय शर्मा, सुश्री सरोज शर्मा, सुश्री विदुषी शर्मा, श्री हामिद खान, श्री विजय कुमार राय, सुश्री नीरू मोहन की विशेष उपस्थिति रही और सभी ने इस सफल आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । कॉर्यक्रम के सफल आयोजन और संचालन के लिए सुश्री निरुपम माथुर, डॉ रमेश तिवारी और डॉ हरीश अरोड़ा का विशेष सहयोग और मार्गदर्शन रहा ।
सभी सदस्यों और संबंधित विद्वानों को इस गरिमामयी आयोजन की बधाई और आभार ।


'वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग','केंद्रीय हिंदी निदेशालय', (मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार) ,पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज और हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में  "मातृभाषा दिवस" के अवसर पर सामूहिक परिचर्चा : राष्ट्रीय संस्कृति और मातृभाषा ( 21 फरवरी2018) स्थान : सेमिनार हाल, पी जी डी ए वी कॉलेजनेहरू नगर, दिल्ली में किया गया । इस भव्य आयोजन में इस अवसर पर इन विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार रखे : 


1. प्रो. अवनीश कुमार, अध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार

2. डा. रवीन्द्र कुमार गुप्ता, प्राचार्य, पीजीडीएवी सांध्य महाविद्यालय 

3.श्री उमेश चतुर्वेदी, सलाहकार, प्रसार भारती, 

4. प्रोफेसर लालचंद, निदेशक, एनसीईआरटी, दिल्ली

5.श्री जय प्रकाश फ़ाकिर, निदेशक, राष्ट्रीय तकनीकी संगठन, भारत सरकार।

6. श्री सुधाकर पाठक,अध्यक्ष, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी

7.डा. हरीश अरोड़ा,पीजीडीएवी सांध्य महाविद्यालय

8. डा. धनेश द्विवेदी, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय 

9. प्रो. एस.पी. अग्रवालप्राचार्य, रामानुजन कॉलेज 

10. प्रो. विद्या सिन्हा, प्रोफेसर, किरोड़ीमल कॉलेज

11.डा. जे.एल.रेड्डी, तेलुगु-हिंदी भाषा सेवी

12. डा. अजय कुमार मिश्र, संस्कृत-हिंदी भाषा सेवी


कॉर्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षकों, छात्रों के साथ ही केंद्रीय हिंदी निदेशालय और तकनीकी शब्दावली आयोग से भी बड़ी संख्या में अधिकारी सम्मलित हुए।

अकादमी की ओर से डॉ रमेश तिवारी, श्री भूपेंद्र सेठी, श्री विजय शर्मा, सुश्री सरोज शर्मा, सुश्री विदुषी शर्मा, श्री हामिद खान, श्री विजय कुमार राय, सुश्री नीरू मोहन की विशेष उपस्थिति रही और सभी ने इस सफल आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । कॉर्यक्रम के सफल आयोजन और संचालन के लिए सुश्री निरुपम माथुर, डॉ रमेश तिवारी और डॉ हरीश अरोड़ा का विशेष सहयोग और मार्गदर्शन रहा ।

अनुभूतियों के स्वर' का भव्य लोकार्पण

पुस्तक लोकार्पण, सम्मान
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समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का
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सफल आयोजन
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प्रिय मित्रो, नमस्कार! गायत्री साहित्य संस्थान, दिल्ली द्वारा आज रविवार 18 फरवरी, 2018 को हिन्दी भवन, आई. टी. ओ., दिल्ली के सभागार में अपरान्ह 4.30 बजे से संस्था की संस्थापिका एवं कार्यक्रम संयोजिका डॉ. हेमलता 'बबली' वशिष्ठ द्वारा अपने माता-पिता स्व० गायत्री देवी एवं स्व० बाँके लाल शर्मा जी की पुण्य-स्मृति में आयोजित वार्षिक समारोह के अन्तर्गत 'पुस्तक लोकार्पण, सम्मान समारोह एवं काव्यगोष्ठी'  का आयोजन किया गया, जिसमें उनके कुशल सम्पादन में सद्यः प्रकाशित समवेत काव्य संकलन 'अनुभूतियों के स्वर' का भव्य लोकार्पण हुआ तथा अनेक साहित्यकारों सहित विभिन्न क्षेत्रों से चयनित प्रतिभावान विभूतियों को सम्मानित किया गया, जिनमें नार्वे से पधारे हिन्दी के साहित्यकार श्री शरद आलोक तथा नेपाल से पधारे हिन्दी-नेपाली कवि-लेखक श्री ऋषभ देव घिमिरे, श्रीमती सुभद्रा भट्टराई एवं श्री ज्ञानेन्द्र ढुडगना का सम्मान और नीरू मोहन 'वागीश्वरी' के हाइकु विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा। समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती सन्तोष खन्ना ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में हिन्दी अकादमी के पूर्व सचिव श्री नानक चन्द ने गरिमा बढ़ाई। विशिष्ट अतिथि के रूप में सर्वश्री-डॉ० धनन्जय सिंह, शरद आलोक, डॉ० आनन्द सुमन सिंह एवं डॉ० अशोक मधुप ने गरिमा बढ़ाई।
इस अवसर पर डॉ० हेमलता 'बबली' वशिष्ठ, मन्जू वशिष्ठ, अपर्णा एवं उनकी सहयोगी टीम द्वारा आपके लोकप्रिय गीतकार-अभिनेता डॉ० अशोक मधुप को उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में शाल, उपहार, माल्यार्पण, पुष्प गुच्छ आदि से सम्मानित किया गया। मैं डॉ० हेमलता 'बबली' वशिष्ठ, मन्जू वशिष्ठ, अपर्णा व गायत्री साहित्य संस्थान परिवार का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
इस अवसर पर आयोजित 'पुस्तक लोकार्पण, सम्मान समारोह एवं काव्यगोष्ठी' की कुछ झलकियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं।
------ डॉ० अशोक मधुप
(गीतकार, ग़ज़लकार, अभिनेता एवं निर्देशक),
प्रधान सम्पादक, साहित्य ऋचा।
राष्ट्रीय अध्यक्ष, कायाकल्प साहित्य-कला फ़ाउंडेशन, नोएडा।

Tuesday, 13 February 2018

रानी बिटिया

** रानी बिटिया **

मेरी नानी की बेटी
कहती है मैं नानी दिखती ।

मेरे दादी के बेटे
कहते मुझको दादी दिखती ।

पापा मेरे कहते हैं
मैं दादी-सी समझदार हूँ ।

मम्मी मेरी कहती हैँ
मैं नानी-सी ज्ञानवान हूँ ।

इक दिन नानी और दादी
साथ में दोनों घर आईं ।

आलू, पूरी, हलवा सब्ज़ी
साथ में मेवा मिश्री लाईं ।

मैंने उनसे पूछ लिया
मैं किसके जैसी दिखती हूँ ।

बोली दादी-नानी मुझसे
मैं मम्मी जैसी दिखती हूँ ।

रानी बिटिया तू है हमारी
जान से प्यारी सबकी दुलारी ।

शिक्षा का उद्देश्य

** शिक्षा का उद्देश्य **

शिक्षा का मूल उद्देश्य होता
बालक का सर्वांगीण विकास ।

जिसको पाकर छात्र बनाएँ
जग मैं अपना ऊँचा स्थान ।

शून्य गगन को छू कर आएँ
क्षितिज की सीमा तक यह जाएँ ।

पढ़ लिखकर अपना यह नाम
स्वर्ण अक्षरों में लिखवाएँ ।

राकेश शर्मा, कल्पना चावला
प्रेरणा स्रोत इनके बन जाएँ ।

करके ऊँचे काम यह बच्चे
देश का नाम रोशन कर जाएँ ।

रवि किरण

** रवि किरण **

रवि किरण अंबर में छूटी
नभपर स्वर्णिम लालिमा छाई है ।

नई उमंग, सवेरा लेकर
नवप्रभात खिलाई आई है ।

पक्षी भी नभ पर देखो
विचरण करने आए हैं ।

भोर की प्रथम किरण के संग
नया सवेरा लाए हैं ।

प्रकृति मंद-मंद मुस्काती
संदेश प्यार का दे जाती ।

उषा की नई किरण के संग
प्यार तराना यह गाती।

हमारी शिक्षिका

** हमारी शिक्षिका **

हीरे-सा हमें तरशती,
सूरज-सा हमें चमकाती है ।

मातृत्व-सा स्नेह बरसाती,
अनुशासन का पाठ पढ़ाती है ।

अच्छे संस्कार और ज्ञान से,
भविष्य हमारा उज्जवल बनाती है ।

ज्ञान की ज्योति भर कर मन में
ज्ञान का दीप जलाती है ।

मुश्किलों को पार कर
सद्पथ पर चलना सिखाती है ।

ज्ञान से परिपूर्ण हमारी शिक्षिका
हमें जग में जीना सिखाती है ।

संदेश पत्र

** संदेश पत्र **

शोषण तेरा तब तक होगा
जब तक सहती जाएगी ।
पुरुष प्रधान समाज की बेड़ी
जब तक पहने जाएगी ।
शक्ति तेरे भीतर इतनी
नर की जननी कहलाती ।
इस सृष्टि को तू है रचती
फिर भी कमजोर कहलाई जाती ।
इस ज़ालिम जग में शोषण के
हर-पल विष का सेवन करती ।
कभी पति से  मार है खाती ।
कभी सास के ताने सहती ।
कभी समाज के ठेकेदारों की
रातों को रंगीन बनाती ।
कभी तन अपना लुटवाती ।
कभी गृहस्थ का भार उठाती ।
सारे ही रूपों में क्या तू …
शोषण अपना नहीं करवाती ।
सोच, समझ, अब समय बदल दे
पढ़ ले, लिख ले ज़रा संभल ले
शिक्षा का धन पाकर कर ले,
अपने स्वयं को पूर्ण मजबूत ।
आवाज़ उठा कमजोर नहीं तू
सत, शक्ति, बल है तुझमें ।
संस्कृतियों की संवाहक है
संस्कारों का भंडार है तुझमें ।
नदी के जैसी पावन है ।
आकाश के जैसी अनंत,असीम ।
प्रकृति जैसी छटा निराली ।
सृष्टि की है तू जननी ।
एक ही शब्द… तेरे है लिए
शक्ति है तू
शक्ति है तू

दर्पण

** दर्पण **

तीसरी दुनिया के देश …उनकी महिलाएँ
प्रकृति पर हैं पूर्णतया निर्भर ।
लेती प्रकृति से जीवन आधार
रोज़ बनती शोषण का शिकार ।
प्रकृति विनाश कहलाता उनका विनाश शोषण के आगे नहीं खुलती उनकी ज़वान ।
संथाल समाज में प्रकृति के साथ
लिंग-वर्ग होता रिश्ते का आधार ।

भोजन जुटाती हैं लड़कियाँ सारी…
फल-फूल जंगल से लाने की होती उन्हीं की जिम्मेदारी ।
हर चीज़ के लिए संथाली हैं जंगल पर निर्भर ।
यही प्रकृति हिंसा दर्शाती स्त्री जाति पर होने वाली हिंसा का दर्पण ।

पुरुष जाति आराम से रहती ।
महिला कष्ट संपूर्ण जीवन सहती ।
जलावन, जड़ी-बूटी, चारा,
पत्ता, खाद या खाद्य हो सारा ।
महिला यह सभी साधन है जुटाती
पुरुष जाति सिर्फ़ हुकूमत चलाती ।

ऐसे ही होता है शोषण
चाहे प्रकृति हो या हो घर जिससे रोशन । पानी लाना है या जानवर चराना है आदिवासी महिलाओं को ही यह कार्य भार उठाना है ।
फसल बोने का या कटाई का कार्य
समस्त कार्य महिलाओं से ही करवाना है ।
शोषण का यही फसाना सदियों पुराना है । आदिवासी महिलाओं को समस्त जीवन गृहस्थ आश्रम में ही बिताना है ।
आदिवासी समाज में महिलाओं का जीवन अस्त-व्यस्त है ।
यही सजीव चित्रण सबके समक्ष लाना है ।

शिक्षा से दूर रखा इन्हें जाता है ।
रोज़मर्रा का समस्त कार्य कराया जाता है ।
घर से बाहर का भी हर काम करवाया जाता है ।
शोषण पुरुष द्वारा हर रोज़ किया जाता है ।

कोई सब्ज़ी बेचती है ।
कोई दुकानों पर काम करती नज़र आती है ।
कोई बच्चों को पीठ पर बांधे काम पर निकल जाती है ।
फिर भी आदर-सम्मान कहीं नहीं पाती है ।

ये शोषण ही तो है…

पुरुष के काम भी स्त्रियाँ ही संभालती हैं ।
घर चलाना और संभावना दोनों ही बखूबी निभाती हैं ।
दर्पण यही सच्चाई दिखाता है ।
देखकर चेहरा और जिजीविषा इनकी
एक प्रश्न उभर कर आता है ।

क्या…क्या संघर्ष हमेशा ऐसे ही ज़ारी रहेगा ।
पितृसत्तात्मकता की प्रथा नारी की स्थिति ऐसे ही गिराएगा ।

महिला होना…आदिवासी जाति और ग्रामीण जीवन की दशा और निम्न बनाती है ।
नारी के सशक्तिकरण की बात कही जाती है। शक्ति सही शक्ति की बात कही जाती है ।
आधुनिक समाज है, जागरूकता ज़रूरी है ।
आगे आओ… अपने हक के लिए स्वयं तुम्हें ही लड़ना है।
शिक्षा प्राप्त कर आने वाले समाज का पुनर्निर्माण करना है ।

Sunday, 11 February 2018

बार गर्ल

** बार: बार-बार देह व्यापार**

मायानगरी मुंबई की
बार गर्ल की यह कहानी है ।
कूल्हे मटकाती, देह दिखलाती
भड़कीली साड़ी के संग
अस्त-व्यस्त पल्लू है हटाती ।
लुटे हुए नोटों के ऊपर
नाच रोज़ दिखलाती है ।
पिंजरे में रहती यह बंद
असमत को लुटवाती है ।

यही कहानी रोज रात को
बार गर्ल लिख जाती है ।
कुछ पैसों की खातिर यह
ग्राहक के संग रात बिताती है ।
राधा, शीला, मीना, रानो,
लता नाम बतलाती है ।
नया मुखौटा नया नाम
रोज़ नया बताती है ।

रोज़ की यही ज़िंदगी इसकी
नासूर रोज़ दे जाती है ।
काम की खोज में पराए देश
रोज़ लुटी यह जाती है ।
मात-पिता को भ्रम यह रहता
नौकरी बेटी करती है ।
पर यह उनको कौन कहे कि
देह व्यापार वह करती है ।

लाचारी और दीन हीनता
उसको यह दिखलाती है ।
कह ना पाती सह जाती 
परिवार का पेट वो पालती है ।
भीख मांगती ग्राहकों से
अपनी पहचान छुपाती है ।
रोज़ गालियों के पत्थर
छाती पर अपनी खाती है ।

कुछ मंच पर गाना गाती
कुछ सुरधार बहाती हैं ।
भोजन और विषपान कराती
भाव भंगिमा दिखाती हैं ।
कुछ पैसों की ख़ातिर करती
कुछ मज़बूरी में करती हैं ।
दोनों सूरतों में यह नारी
सबके ख़ंजर सहती है ।

छोड़ के सारे रिश्ते नाते
संग सहेली रहती है ।
रोज़ रात को बार की शोभा
बार गर्ल से सजती है ।
नहीं मन से करती सब कुछ
मजबूरी करवाती है ।
नारी की समर्पण शक्ति
यही मिसाल  दर्शाती है ।

Saturday, 10 February 2018

याद इन्हें भी रखना है

** याद इन्हें भी रखना है **

सुन लो आज यह गाथा तुम
अपने देश की नारी की
वीरो जैसी बात थी इनमें
अंग्रेज़ो के ख़िलाफ लड़ी

वीर महिलाएँ भारत की
अंग्रेजों के विरूद्घ हुई
अदम्य साहस का दिया परिचय
आजादी की थी आस बंधी

कित्तूर की रानी चेनम्मा
साहसी महिला वीर रही
पहली महिला कहलाई वह
स्वतंत्रता के जो लिए लड़ी

अंग्रेज़ों का कर विरोध
रणचंडी का रुप धरी
अदम्य साहस का दिया परिचय
अंग्रेज़ों के समक्ष खड़ी रही

फौलादी संकल्प के साथ अड़ी
अंग्रेजो के खिलाफ़ युद्ध लड़ी
नारी शक्ति को कायम रखती
युद्घ क्षेत्र में डटी रही

मृत्यु से पहले रानी की
काशीवास की चाहत थी
मगर नहीं जा पाई काशी
आस अधूरी लिए मरी

संयोग कहो या चमत्कार
छह वर्ष बाद लक्ष्मीबाई जन्म हुआ
वीरांगना चेन्नम्मा के पद चिह्न पर
झाँसी रानी ने कदम रखा

रानी लक्ष्मी की गाथा
हर नारी का अभिमान है
इस वीरांगना की वीरता
भारत के लिए महान है

चार हज़ार लड़ाकों की
फौज़ जिसने तैयार करी
रानी अवन्तीबाई थी वो
स्वतंत्रता के लिए दिन-रात लड़ी

रामगढ़ की रानी अवन्ती ने
अंग्रेजों से प्रतिकार किया
विक्रमादित्य सिंह के निधन के बाद हुकूमत का जमकर विरोध किया

मातृभूमि की खा़तिर अपनी
विजय होने की कसम है खाई
अंग्रेज़ी ख़िलाफत के लिए
उतर के रण में अवन्ती आई

ब्रिटिश सेना से घिर जाने पर
साहस को अपने न खोने दिया
स्वयं को ख़त्म किया वहीं
आत्मसमर्पण किया नहीं

अवन्ती के बलिदान ने पूरे
देश को गौरवान्वित किया
स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया
नारीत्व का उदाहरण पेश किया

बेगम हज़रत महल ने भी
अंग्रेज़ों के खिलाफ रणक्षेत्र लिया
अपने नाबालिग पुत्र को
गद्दी पर है बैठा दिया

पुत्र बिरजिस कादर को
गद्दी बैठा स्वयं युद्ध किया
ज़मीदार, किसानों और सैनिकों के
नेतृत्व में युद्घक्षेत्र लिया

दिया हौंसला स्वयं फौज़ को
उसने आलमबाग लड़ाई में
हाथी पर सवार हुई
अंग्रेजो के खिलाफ रणक्षेत्र लिया

युद्ध क्षेत्र में उसने भी
अदम्य साहस दिखला दिया
हार प्राप्ति के भी बाद
साहस का अपने परिचय दिया 

रहीमी के हाथों में उसने
महिला सैनिक नेतृत्व दिया
देहातों में सुलगाई चिंगारी
क्रांति के लिए रण तैयार किया

रहीमी की अगुवाई में
महिला शक्ति बड़ी चली
फौजी वेश में ढली सभी
बंदूक चलाना सीख लिया

अंग्रेजों की जालिम नीति के
आगे कोई नहीं नार झुकी
रण में उतरी लड़ीं सभी
अंग्रेजों से बल लोह लिया

नारी शक्ति बनी प्रचंड
अंग्रेजो के छक्के छूटे
देख नारी का नारित्व
दाँतो तले उंगली दबे

आज़ादी की लड़ाई में
अब कोई नहीं पीछे छूटा
सरोजिनी नायडू एक कवयित्री
उसने भी योगदान दिया

देश को आज़ाद कराना
जीवन लक्ष्य अब बना लिया
महिलाओं को जागरुक कर
अंग्रेज़ी शासन के विरोध किया

रौलेट एक्ट का कर विरोध
महिलाओं को संगठित किया
भारत छोड़ो प्रदर्शन के दौरान
गिरफ्तार अंग्रेज़ों ने उनको किया

महीनों तक गांधी के साथ
जेल में ही प्रवास किया
यही हैं भारत देश की नारी
पर्दों में भी संग्राम किया

अपने देश की ख़ातिर लोगों
कस्तूरबा ने अंतिम सांस तक साथ दिया गाँधी की अर्धांगिनी ने भी
स्वाधीनता संग्राम में सर्वस्व दिया

कल्पना दत्त ने भी देखो
आज़ादी के लिए संघर्ष किया
भेष बदलकर अपना उसने
क्रांतिकारियों को गोला और बारूद दिया

भारत की यही नारी शक्ति
आजाद हिंद को प्राप्त किया
नहीं किसी से वह है कम
अदम्य साहस का परिचय दिया

बिटिया की विदाई

** बिटिया की विदाई **

बिटिया की मेहंदी के दिन,
माँ की आँख भर आई है ।

सोच रही बैठी छिपकर,
दो दिन बाद विदाई है ।

आँख  है नम और भारी मन,
पौंछ रही अँखियों का जल ।

बचपन से नाज़ों से पाला,
घड़ी विदाई आई है ।

छोड़ के बाबुल गलियाँ बिटिया,
सूना घर कर जाएगी ।

आँगन सूना-सूना होगा,
छम-छम आवाज़ ना आएगी ।

हँसी ठिठोली उसकी अब मैं,
रोज़ नहीं सुन पाऊँगी ।

रात को याद आएगी उसकी,
जब खाना मैं खाऊँगी ।

शाम की चाय…बिना उसके कैसे,
तन्हा मैं पी पाऊँगी ।

सिर में दर्द होगा जब मेरा,
नहीं समक्ष उसे पाऊँगी ।

मैं अभिनेत्री हूं

** मैं अभिनेत्री हूँ **

रंगमंच की शोभा कहलाती ।
नाटक फिल्मों में हूँ आती  ।
जीवन मेरा शूल की शैय्या,
चौबीस घंटे व्यस्त हूँ रहती ।
लोगों का मनोरंजन करती,
तानों को नतमस्तक रखती ।
कास्टिंग काउच की शिकार भी होती,
जीवन जीते फिर भी ऐसे…जैसे झाँसी रानी होती ।

मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।

चेहरे को अपने रंग लेती,
झूठा जीवन मैं हूँ जीती ।
कभी खुशी के भाव दिखाती,
कभी गम के अश्क़ बहाती ।
जीवन की सच्चाई को सबके,
रू-ब-रू मैं हूँ करवाती ।
स्वअस्तित्व को त्याग के अपने,
सबके अस्तित्व को हूँ दर्शाती ।

मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।

कभी कहीं पर माँ बन जाती,
कहीं कभी बन जाती सास ।
बेटी, बहू, बहन किरदार,
किन्नर, वैश्या नटनी, नार ।
सभी पात्रों को हूँ दर्शाती,
पद्मावती कभी बन जाती ।
सभी की सच्ची जीवन गाथा,
पर्दे पर हूँ लेकर आती ।

मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।

कभी पूजी भी जाती हूँ,
कभी दुत्कारी जाती हूँ ।
अच्छे बुरे किरदार से ही मैं,
दिलों पे सबके छाती हूँ ।
कभी नायिका बन जाती,
पात्र खलनायिका मैं कर जाती ।
मगर कभी अपनी सच्चाई,
लोगों को न दिखला पाती ।

मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।

दिखता जो है बिकता वो है,
जीवन मेरा झूठा सच है ।
मन में दर्द समेटे हूँ मैं,
घर मेरा वीरान बहुत है ।
सुंदर हूँ तब तक हूँ मैं बस,
बाद में खोटा सिक्का हूँ ।
बाहर शोर भीतर सन्नाटा,
न मेरी कोई तमन्ना है ।
जीवन मेरा कोरा पन्ना,
ये ही सच बस अपना है ।

मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मै स्वांग हूँ रचती।

पेंसिल मेरी बोलती है

** पेंसिल मेरी बोलती है  **

जब मैं कुछ भी लिखती हूँ,
मेरी पेंसिल बोलती है ।

सर-सर, सर-सर आवाज़ है करती,
झट से अक्षर लिख देती है ।

मेरी सोच पहचान है जाती ।
झट कागज पर उतर यह जाती ।

पाठ स्मरण जब करती हूँ,
पास पेंसिल रखती हूँ ।

मेरी सच्ची साथी है यह,
समझ सब यह जाती है ।

हर सत्र में मेरी पेंसिल,
प्रथम स्थान दिलवाती है ।

मेरी हिंदी पुस्तक

** मेरी हिंदी पुस्तक **

मेरी पुस्तक ज्ञान बढ़ाती ।
हिंदी भाषा मुझे सिखाती ।

आ…से अनार और आ…से आदर,
मुझे टीचर है रोज़ पढ़ाती ।

क…से कलम और ख…से खटमल ,
व्यंजन से अक्षर बनवाती ।

पढ़ने में आनंद आता है ।
लिखने से मन हर्षाता है ।

हिंदी पढ़ना अच्छा लगता ।
हिंदी में भावों की रचना ।

मेरी पुस्तक चित्रों वाली ।
रंगीन चित्र की छटा निराली ।

देश इसे मुख खिल जाता है ।
पढ़ने में आनंद आता है ।

लंच बॉक्स

** लंच बॉक्स **

आधी छुट्टी हो गई है,
घंटी भी अब बज गई है ।

मानक खोल ज़रा लंच बॉक्स,
निकाल ले अपना मक्खन टोस्ट ।

मुझको भी वह खाना मानक,
दिया मम्मी ने आज भी पालक ।

मुझे नहीं पालक भाता है,
टोस्ट खाने में स्वाद आता है ।

रोहन यह ले मेरा टोस्ट,
मुझे न भाता मक्खन टोस्ट ।

सब्ज़ी रोटी मुझको भाती,
ऊर्जा देती, रोग भगाती ।

सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा

** सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा **

खड़ी बीच चौराहे पर,
तीन रंग के साथ अड़ी ।

लाल, हरी और पीली बत्ती,
देती सबको सीख यही ।

सड़क सुरक्षा नियम अपनाकर,
सुरक्षित अपने प्राण करो ।

लाल बत्ती जब हो जाए,
सब वाहन तब रूक जाओ ।

हरी बत्ती के होते ही,
चलना अब तुम शुरू करो ।

पीली जब बत्ती हो जाए,
थोड़ा-सा विश्राम करो ।

हरे, लाल और पीले रंग का,
ध्यान हमेशा सदा रखो ।

जीवन है अनमोल तुम्हारा,
ध्यान सुरक्षा नियम रखो ।

सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा,
यही कथन तुम याद रखो ।

सड़क पर चलते हुए हमेशा,
लाल बत्ती का ध्यान रखो ।

मेरी मैडम

** मेरी मैडम **

मेरी मैडम कहती हैं,
रोज़ सुबह जल्दी उठ जाओ ।

स्कूल समय पर तुम जाओ,
अनुशासन पूरा दिखलाओ ।

पढ़ने की है उम्र तुम्हारी,
खेल में तुम न समय गँवाओ ।

जीवन पथ नहीं सरल है,
डगर पे इसकी शूल बहुत हैें ।

बाधाएँ जब रोकें सत् पथ,
आत्मविश्वास मन में लाओ ।

ज्ञान का दीप जलाकर मन में,
ज्ञान ज्योति से जग चमकाओ ।

हार नहीं मानोगे तब तक,
जब तक मंजिल नहीं मिले ।

पूर्ण सफल जब बन जाओ ,
मैडम का तब नाम बढ़ाओ ।

Friday, 9 February 2018

नन्हा बीज

विश्व शांति का नाद हूँ मैं
दिनकर की प्रभात हूँ मैं

निश्चल मन का साज़ हूँ मैं
अंतर्मन का तार हूँ मैं

नव उषा का प्रकाश हूँ मैं
पंछी कलरव गान हूँ मैं

निशा का तम भी हूँ मैं
तारों का झुरमुट हूँ मैं

चंद्रज्योत्सना चाँद हूँ मैं
खुला गगन आकाश हूँ मैं

सात रंग का इंद्र धनुष मैं
वर्षा का उंमाद हूँ मैं

कल-कल करता जल तरंग मैं
हिमखंड का हिमपात हूँ मैं

ठंडी-ठंडी वात हूँ मैं
गीत प्यार मलहार हूँ मैं

वीरो का सिरताज हूँ मैं
मंगल गीत और गान हूँ मैं

लोकतंत्र का राज़ हूँ मैं
क्रांति की आवाज़ हूँ मैं

सीमा रक्षक सपूत हूँ मैं
माँ का प्यारा सुत हूँ मैं

मातृभूमि को पावन करता
नन्हा-सा एक बीज (बाल) हूँ मैं ।।