Tuesday 4 September 2018

शिक्षक एक बहती नदी (लेख)

विश्व के समस्त शिक्षकों को शिक्षक दिवस की अनंत बधाई …
आज आपके समक्ष मेरा यह लेख कुछ प्रश्न लिए हुए है ।

**एक बहती नदी है शिक्षक**

ज्ञान देने वाला…शिक्षक
शिखर तक पहुँचाने वाला… शिक्षक
भविष्य निर्माता…शिक्षक
शिष्यों के लिए एक दर्पण…शिक्षक
ज्ञान सागर…शिक्षक
समस्त गुण जिसमें समाहित…कुशल शिक्षक

क्या शेष हैं आज ऐसे शिक्षक

शिक्षक दिवस शिक्षकों के लिए अत्यंत गर्व करने और गौरवान्वित होने का दिन है । शिष्यों के लिए उनके गुरू पूजनीय होते हैं और जिन शिक्षकों / गुरूओं से उन्हें सही ज्ञान , मार्गदर्शन , और स्नेह प्राप्त होता है वह गुरू प्रत्येक विद्यार्थी के लिए पूजनीय होता है । आज के दौर में सम्मान प्राप्त करना एक खेल और सम्मान देने वालों के लिए सम्मान देना एक व्यवसाय हो गया है इस बात से सभी भलीभांति परिचित हैं । फेसबुक के माध्यम से बहुत सी ऐसी ही जानकारी जो हम नहीं जानते सहजता से प्राप्त हो जाती है अब चाहे वह जानकारी किसी व्यक्ति, वस्तु या फिर किसी भी स्थान से संबंध रखती हो । फेसबुक के ही माध्यम से कुछ ऐसे शिक्षक रू-ब-रू हुए जिनका लेखन कौशल प्रवीण नहीं फिर भी वह संस्थाओं द्वारा शिक्षक सम्मान के लिए चयनित हैं; उनके स्वयं के लेखन में जो वह फेसबुक पर पोस्ट करते हैं अनंत त्रुटियाँ होती हैं । यहाँ मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं बल्कि मेरा आशय गुणवत्ता से है । कुछ सवाल जो बार-बार मेरे मस्तिष्क और मन से बाहर आने के लिए मचल रहे हैं … सम्मानों को लेकर हैं खासकर शिक्षक सम्मान को लेकर ।
* क्या शिक्षक सम्मान हेतु चयनित वह व्यक्ति होना चाहिए जो जनमानस में लोकप्रिय है ?
* क्या वह शिक्षक जिसने अन्य क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा सम्मान प्राप्त किए हैं ?
* क्या वह शिक्षक जो अपने विद्यार्थियों का प्रिय है और अपने कार्यों के प्रति वचनबद्ध ?
*क्या वह शिक्षक जो अपने विषय का ज्ञाता है और सही ज्ञान देता है जिससे भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन हो और वह अपने जीवन में हमेशा सफल बनें
या वह शिक्षक जो चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा सम्मान बटोरे जाएँ ? जितने सम्मान, उतनी ख्याति और जितनी ख्याति उतना आतिथ्य यही हो रहा है । सक्षम व्यक्ति या तो सामने नहीं आते क्योंकि वह प्रसिद्ध नहीं और आते भी हैं तो उनके पास सम्मानों को प्राप्त करने के लिए उतनी धनराशि नहीं जिससे वह सम्मान पा सकें परिणाम स्वरूप ऐसी स्थिति में अनुपयोगी थाली में छप्पन भोग वाली कहावत सार्थक होती है ।

कहते हैं,जो राष्ट्र अपने देश के शिक्षकों का सम्मान करता है|
उसका भविष्य सदैव उज्ज्वल रहता है|
ज्ञान हमें शक्ति देता है|
प्रेम हमें परिपूर्णता देता है|
पुस्तकें वह साधन है,
जिसके माध्यम से हम,
विभिन्न संस्कृतियों के बीच,
पुल का निर्माण कर सकते हैं|
एक शिक्षक के लिए सफलता का सबसे बड़ा संकेत…. यह कह पाना है कि "बच्चे अब ऐसे काम कर रहे हैं जैसे कि मेरा कोई अस्तित्व ही न रहा हो|"

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

No comments:

Post a Comment