संस्कृत 'संस्कारों की भाषा'
लेख
ब्रह्मांड में सर्वत्र गति
गति से है ध्वनि
ध्वनि से शब्द परिलक्षित
शब्द से भाषा निर्मित
संस्कृत शुद्ध, परिष्कृत, श्रेष्ठ
देववाणी यह सर्वश्रेष्ठ ।
संस्कृत अर्थात स्वयं से निर्मित, संस्कारों से निर्मित भाषा संस्कृत । संस्कृत भाषा में भारत की सांस्कृतिक विरासत है और संस्कृत के प्रति प्रेम हमें देश के और विरासत के नजदीक लाता है और उपेक्षा हमें इससे अलग कर देती है । संस्कृत भाषा हजारों वर्षों पुरानी भारतीय सभ्यता का एक सजीव और मूर्त रूप है जो किसी न किसी रूप में सर्वत्र विद्यमान है । यह केरल से कश्मीर और कश्मीर से सौराष्ट्र तक सभी क्षेत्रों में लोगों के पवित्र और पावन जीवन के सभी कर्मकांडों में सम्मिलित रहती है । एक भाषा के रूप में संस्कृत अनेक भारोपीय भाषाओं की जननी मानी जाती है । भाषा केवल अक्षर और शब्द भंडार की व्यवस्था मात्र नहीं होती । भाषा अपने साथ बहुत सारे विचार लाती है संपूर्ण विश्व को देखने और समझने का नजरिया भी देती है संस्कृत भाषा का अपना ही एक वृहद संसार है । संस्कृत में भाव, योग, ध्वनि, रोग निवारण की क्षमता है । इस भाषा में 1700 धातुएँ, 70 प्रत्यय, 80 उपसर्ग हैं और इन सभी के योग से जो शब्द बनते हैं उनकी संख्या 27 लाख 20000 है और यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ें तो शब्दों की संख्या लगभग 765 करोड़ हो जाती है ।
संस्कृत है प्राचीन भाषा
वेदों की और वैज्ञानिक भाषा
देती है तरंगे सकारात्मक
बनते जिससे संस्कृत श्लोक उत्कृष्टतम
आज संपूर्ण विश्व में लगभग 6900 भाषाओं का प्रयोग होता है और इसकी जननी संस्कृत देवों की भाषा है । संस्कृत स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है और इस को संस्कारित करने वाले कोई साधारण भाषाविद् या व्यक्ति नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायनी और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं जिन्होंने बड़ी कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है और यही इस भाषा का रहस्य है । कहते हैं संस्कृत भाषा में औषधीय तत्व हैं जो प्रत्येक रोग के निवारण की क्षमता रखते हैं । यह औषधीय तत्व चार प्रकार के हैं प्रथम अनुस्वार और विसर्ग अद्वितीय शब्द रूप तृतिय द्विवचन और चतुर्थ संधि कहते हैं । विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है अर्थात जितनी बार विसर्ग का उच्चारण होता है उतनी बार कपालभाति प्राणायाम अनायास ही हो जाता है अर्थात जो लाभ कपालभाति प्राणायाम से होता है वह विसर्ग के उच्चारण से संभव है उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही जैसी क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भंवरों की तरह गुंजन करना होता है और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है अतः जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होता है उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: ही हो जाता है । संस्कृत की दूसरी विशेषता शब्द रूप है विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है जबकि संस्कृत में एक शब्द के 25 रूप होते हैं जिस प्रकार 25 तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार संस्कृत के 25 रूपों का प्रयोग करने से आत्मा से साक्षात्कार संभव है यह तत्व इस प्रकार हैं आत्मा को पुरूष कहा गया है अंतःकरण चार हैं मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार । ज्ञानेंद्रियाँ पाँच हैं नासिका, जीभ, नेत्र, त्वचा, कर्ण । कर्मेंद्रियाँ पाँच हैं पद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक् । तन्मात्रायें भी पाँच हैं गंध, रस, रूप और शब्द उसी प्रकार महाभूत भी पाँच हैं जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश यह पंचतत्व महाभूत कहलाते हैं । संस्कृत भाषा की तृतिय विशेषता है द्विवचन सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत भाषा एक ऐसी भाषा है जिसमें द्विवचन भी होता है और तीनों वचनों में शब्दों का उच्चारण करने के योग के क्रमशः मूलबंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध लगते हैं जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियाएँ हैं । संस्कृत भाषा की चौथी महत्वपूर्ण विशेषता संधि है जिसमें एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के गुण निहित हैं । कहते हैं संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है जिसके अध्ययन से छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है ।
संस्कृत एक भाषा मात्र ही नहीं है यह विचार है, संस्कार है, शांति का अवसाद है और पूरे विश्व को एक साथ जोड़ने की अद्भुत कला है । इस भाषा में वासुदेव कुटुंबकम की भावना है । संस्कृत में भावनाओं का अद्भुत सागर है । यह संपूर्ण विश्व को, परिवार को आचारों और सद् विचारों से बाँधती है । इसका ज्ञान मनुष्य में हीन प्रवृत्ति का नाश करता है, गलत विचारों को नष्ट करता है इसलिए संस्कृत को यज्ञ और अनुष्ठानों की भाषा भी कहा गया है । अगर संपूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा को अपनाया जाए तो काफी हद तक दुर्व्यसनों से बचा जा सकता है । लड़ाई-झगड़े और बलात्कार जैसी वारदातों पर रोक लगाई जा सकती है क्योंकि संस्कृत भाषा का प्रयोग विचारों को शुद्ध करता है मनुष्य में शालीनता लाता है तभी तो इसे संस्कारी भाषा का दर्जा प्राप्त है ।
संस्कार में आचार है ।
संस्कृत में सद् विचार हैं ।
संस्कृत में संस्कार हैं ।
संस्कृत भाषा ज्ञान भंडार है ।
संस्कृत संस्कारों की खान है ।
दुर्व्यसनों, व्याभिचारों और बलात्कारों से निजात पाने का सबसे सरलतम प्रकार है। अपनाओ देववाणी संस्कृत को आज से बचाओ धरा को बढ़ रहे पाप से ।।
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'
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