Saturday 22 September 2018

साहित्य कला संस्कृति में भारतीय अवधारणा

लेख

साहित्य कला संस्कृति में भारतीय अवधारणा

भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है जहाँ पर प्रत्येक जाति और धर्म भाषा से संबंध रखने वाले लोग रहते हैं । साहित्य देश का इतिहास बताता है , कला पक्ष विचार बनाता है , संस्कृति जीवन शैली दर्शाती है इन तीनों का समावेशी किसी भी देश का भूत, वर्तमान और भविष्य बतलाता है; क्योंकि तीनों एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूसरा पक्ष अधूरा-सा प्रतीत होता है । जब देश के साहित्य की बात करते हैं तो साहित्य वह नहीं है जो एक-दो दिन में लिखा जाता है । साहित्य का इतिहास सदियों पुराना है ।
आदि काल से लेकर आज के परिवेश तक विचारों में बहुत बदलाव आया है । भारतीय कला संस्कृति प्रधान होने से धर्म प्रधान हो गई है कहते हैं कि वास्तव में धर्म ही भारतीय कला का प्राण है । भारतीय कला अाध्यात्मिक भावनाओं से सदा अनुप्राणित रहती है । भारतीय कला को सामान्य जीवन की सच्ची दिग्दर्शिका कहा जाता है । भारतीय कला जहाँ एक और वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है वहीं दूसरी और भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्व बनाकर रखती है।

भारतीय कला को जानने के लिए वेद , शास्त्र , पुराण और पुरातत्व के प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पड़ता है । भारतीय कला शाश्वत सत्य का प्रतीक है; क्योंकि 'सत्य शिवम सुंदरम' की भावना से युक्त होने के कारण उसमें नित्य नवीनता दिखती है भारतीय कला में सौंदर्य के साथ-साथ आंतरिक सौंदर्य के भाव की प्रधानता है । जीवन ऊर्जा का महासागर है जहाँ अंतः चेतना जागृत होती है जो ऊर्जा जीवन को कला के रूप में भारती है । कहा भी गया है…
साहित्य संगीत कला विहीन: साक्षात् पशु: पुच्छ विषाणहीन:
भारत की कला बहुत गहराइयों में ले जाती है । यह भारतीय कला की विशेषता है । हमारी संस्कृति में अध्यात्म है और कल्चर अध्यात्म से कोसों दूर है । संस्कृति आंतरिक है । हमारी संस्कृति का मूल आधार… आत्मा क्या है ? इससे है । हमारे लिए सत्य के प्रति निष्ठा जिसमें है वह संस्कृति है ; जिसमें सत्य, निष्ठा, सुचिता , क्षमा , धैर्य आदि गुण हैं । वास्तव में हमारी कला सभ्यता के साथ-साथ चलती है जिसमें संस्कृति विद्यमान होती है । संस्कृति हजारों वर्षों में आती है और हजारों वर्षों तक टिकती है जन्म जन्मांतर तक चलती है । जन्म से लेकर मृत्यु तक जिसका साथ नहीं छूटता है संस्कृति है । भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं इसलिए भारतीय संस्कृति को किसी एक भाषा में चिह्नित नहीं किया जा सकता । भारतीय साहित्य की एकता भाषा गत नहीं अपितु विचारों और भावनाओं की एकता है । अनेक साहित्यकारों ने विभिन्न भाषाओं में लिखा और अपने विचार अभिव्यक्त किए हैं उदाहरण प्रेमचंद ने उर्दू और हिंदी दोनों भाषा मैं साहित्य सृजन किया है । भारतीय साहित्य परंपरा की एकता और विविधता का इतिहास है ।भारतीय साहित्य में राष्ट्र का स्वर गूँजायमान होता है । शोक, हर्ष , क्रोध , घृणा , प्रेम , वात्सल्य जैसे अनेक भाव मानव हृदय में समान रूप से पाए जाते हैं परिणाम स्वरूप साहित्य का मूलभूत ढांचा सभी भाषाओं में एक-सा ही दिखाई देता है ।

साहित्य, कला, संस्कृति तीन स्तंभ भारत की शान ।
इन्हीं से विद्यमान है अखंड भारत की अखंड पहचान ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

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