Friday 7 September 2018

व्यथा (कहानी)

कहानी

शीर्षक

** व्यथा **

यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है किसी भी व्यक्ति विशेष या संस्थान की भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए कहानी में पात्रों के नाम व स्थान बदल दिए गए हैं ।
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उषाकाल… सभी अपने-अपने कार्य स्थलों पर जाने के लिए तैयार, देरी के कारण बस छूटने की परेशानी, चाय बनने के पश्चात भी पी न पाने की लाचारी सिर्फ़ इसलिए कि विद्यालय पहुँचने में देर न हो जाए … रोज की तरह शुभ दिन की चाह लिए शीला भी निकल पड़ी अपने विद्यालय की ओर । शीला विज्ञान विषय की अध्यापिका है सभी विद्यार्थी शीला को बहुत प्यार करते हैं सभी को उनका समझाया बहुत पसंद आता है बच्चों के कहे अनुसार…उन्हें विज्ञान विषय में कोई भी परेशानी नहीं आती क्योंकि बच्चों की माने तो उनकी प्रिय अध्यापिका अपने विषय में प्रवीण हैं । शीला अपना कार्य बहुत ही मेहनत, लगन और स्वार्थ रहित होकर करती है वह सभी बच्चों को अपने स्वयं के बच्चों की तरह प्यार करती है और उनकी परेशानियों को और विषय संबंधित समस्याओं को बड़ी आसानी से सुलझा देती है सभी बच्चे शीला से बहुत प्यार करते हैं शीला बच्चों की प्रिय अध्यापिका है ।

छोटे से शहर रामनगर मध्य प्रदेश का विद्यालय जिसमें प्रातः की शुरुआत शुभ हो भी जाए परंतु पूरा दिन कैसे बीतेगा अच्छी खबरें मिलेगी या बुरी खबरें मिलेगी किसी को नहीं पता । रोज़ कोई न कोई समस्या विद्यालय के समक्ष प्रस्तुत हो ही जाती है चाहे वह अध्यापक से संबंधित हो या फिर विद्यार्थियों से संबंधित हो । अध्यापक यह सोचकर कि आज कोई भी समस्या का सामना न करना पड़े, कोई भी कांड न हो…ऐसा सोचकर विद्यालय में प्रवेश करते हैं । किसी बच्चे को क्या कहना है, कैसे व्यवहार करना है, किस तरह से बात करनी है, किसी विद्यार्थी को कोई बात बुरी न लग जाए; बस यही सोचकर कक्षा में प्रवेश करती हैं ??  विद्यालय में शिक्षक भयभीत हैं , विद्यालय प्रशासन से नहीं बल्कि बच्चों और उनके अभिभावकों के व्यवहार से …देखा जाए तो शायद आज सभी स्कूलों की यही समस्या है । विद्यालय में शिक्षण कार्य करना आसान नहीं रह गया है अपना सम्मान दांव पर लगा होता है । गलती न होने के बावजूद आप मुज़रिम बनकर कटघरे में खड़े होते हैं । विद्यालय में हर श्रेणी के चार या पाँच विभाग पर अंतिम विभाग उद्दंड बच्चों का है जो पढ़ाई में अच्छे नहीं हैं या पढ़ाई ही नहीं करना चाहते जिनका परीक्षा परिणाम 10% से 20% है । इन विभागों में ऐसे भी कुछ छात्र और छात्राएँ हैं जो अपनी पिछली कक्षा में अनुत्तीर्ण थे या फिर सभी विषयों में एक, दो या तीन अंक लेकर आए थे फिर भी छठी से सांतवी में प्रवेश पा गए । सातवीं कक्षा की छात्रा रश्मि कक्षा में अपशब्दों का इस्तेमाल करती है अपनी अध्यापिकाओं का कहना नहीं मानती । अभिभावक से कई बार बात हुई है मगर रश्मि के माता-पिता यह स्वीकार ही नहीं करते कि उनकी बेटी के व्यवहार में कमी है हाल तो यह है कि कक्षा में समस्त विद्यार्थीगण की कुछ न कुछ व्यवहारगत समस्याएँ हैं फिर भी सभी एक साथ बैठे हैं कोई सुधारे भी तो कैसे और किसे क्योंकि सभी एक से एक अव्वल दर्जे के हैं । झूठ तो सभी की जु़बान पर प्रथम ग्रंथी पर विराजमान रहता है । ऐसे में कक्षा अध्यापिका और विषय अध्यापिकाएँ करें तो क्या करें । उन सभी उद्दंड विद्यार्थियों को संभालना मुश्किल हो जाता है कक्षा अध्यापिका शीला भी बड़े धैर्य और संयम से इन बच्चों को संभालने का कार्य करती है । सभी शिक्षक इन विद्यार्थियों के व्यवहार से परेशान है यह बच्चे न तो स्वयं पढ़ना चाहते हैं और न ही दूसरों को पढ़ने देना चाहते हैं । पूरा दिन कक्षा को जंगल बनाकर रखते हैं जैसे जंगल में जानवरों को मनमानी करने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है उसी प्रकार से कक्षा में सभी विद्यार्थी अभद्र असहनीय व्यवहार करते हैं । कोई बच्चा किसी को मारता है, कोई किसी को पीटता है, कोई किसी को अपशब्द कहता है, कोई प्रेम खेल खेलता है और कोई किसी छात्रा के साथ गलत व्यवहार करता है यह आम बात हो गई है मगर शीला कुछ नहीं कर पाती । बच्चों से माफीनामा लिखवा लेती है और अभिभावकों को सूचित कर देती है परंतु अभिभावकों की तरफ से भी बच्चों के सुधार हेतु कोई भी कार्यवाही नहीं की गई बल्कि इस दिशा में विद्यालय प्रशासन ने ही कदम उठाया और इन सभी बच्चों की काउंसलिंग करवाई काउंसलिंग होने के पश्चात भी इन बच्चों के व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया । रश्मि भी कक्षा की छात्राओं के साथ सही शब्दों का प्रयोग नहीं करती या यूं कहें कि अपशब्दों का प्रयोग करती है ।

एक दिन तो उसने अपनी कक्षा की एक अन्य सहपाठी को यहाँ तक कह दिया कि वह उसे …खत्म कर देगी । एक छात्रा ऐसी बात अपनी किसी दूसरी अन्य छात्रा सहपाठी से कहे तो यह बहुत ही बड़ी बात है ऐसे में भी अध्यापक के हाथ बंधे रहते हैं क्योंकि आज एक अध्यापक को यह भी अधिकार नहीं है कि वह बच्चों को यह भी कह दे कि तुमने ऐसा क्यों किया या इस तरह के अपशब्दों का इस्तेमाल अपने सहपाठी के साथ क्यों किया । माता-पिता को इस विषय से अवगत कराया गया और उनको इस चीज की जानकारी दे दी गई परंतु अभिभावकों की तरफ से भी कोई उचित कार्यवाही या बच्चे को समझाने हेतु कदम नहीं उठाया गया । बच्चे का व्यवहार अभी भी ज्यों का त्यों ही है । रश्मि झूठ अभी भी बोलती है और अन्य सहपाठियों के साथ अपशब्दों का इस्तेमाल करती है । बच्चों को विद्यालय में अगर यही कह दिया जाए कि उनके माता-पिता को बुलाकर बातचीत करेंगे तो ऐसे में बच्चे कुछ न कुछ गलत जानकारी अपने माता पिता को प्रेषित कर देते हैं बस बच्चे अपनी पटकथा सोचनी और रचनी शुरू कर देते हैं जो रश्मि ने किया माता-पिता के समक्ष अपने हर गलत कार्य से मुकर गई और कक्षा की एक अन्य छात्रा वंदना पर ही इल्ज़ाम लगा दिया कि गलती वंदना की है । यह मामला यहीं नहीं रुका …।

रोजमर्रा की तरह आज भी विद्यालय का दिन शुरू हुआ सभी विषयों की अध्यापिकाएँ कक्षा में अपने-अपने कालांश में आईं और अपना-अपना विषय पढ़ाया । रश्मि का कार्य अधिकतर अधूरा रहता था और उसे गृह कार्य करने की भी आदत नहीं थी गणित का कार्य कभी भी पूरा नहीं करती थी । गणित अध्यापिका के अतिरिक्त समय देने के पश्चात भी रश्मि ने अपना कार्य पूर्ण नहीं किया गणित अध्यापिका ने रश्मि को कमर पर थप्पड़ मार दिया …रश्मि ने कक्षा में तो कुछ  प्रतिक्रिया नहीं दर्शाई परंतु घर जाकर अपनी मम्मी को अध्यापिका की शिकायत की उसके मारने की बात से भी अवगत कराया रश्मि का व्यवहार सही नहीं है वह झूठ बोलती है और उसे पता है कि मम्मी को वह किसी भी तरह से अपने काबू में ले सकती है मम्मी को वह कुछ भी कहे मम्मी उसकी बात को सही मानेगी । इसी का फायदा रश्मि ने उठाया और कमर में दर्द की बात कही रश्मि की मम्मी ने शिक्षक अभिभावक बैठक में कक्षा अध्यापिका से कहा कि गणित की अध्यापिका ने रश्मि को कमर पर मारा है उसकी कमर में दर्द रहता है आप गणित अध्यापिका से बातचीत करिएगा और उन्हें कहिएगा कि बच्चे पर हाथ न उठाएँ । बैठक समाप्त होने के पश्चात कक्षा अध्यापिका शीला ने गणित अध्यापिका से बातचीत की गणित अध्यापिका का कहना था कि रश्मि कार्य पूर्ण नहीं करती उसके लिए उन्होंने मारा नहीं मगर कार्य पूर्ण करने के लिए रश्मि को डांटा ज़रूर था । उस दिन इस विषय को आम समझकर प्रधानाचार्य के समक्ष नहीं रखा गया । मगर कहते हैं न कि मुसीबत कहकर नहीं आती । रश्मि के माता-पिता को रिश्तेदारों ने भड़काया कि आप ऐसा करने पर शिक्षक की शिकायत कर सकते हैं या उसके खिलाफ़ पुलिस कार्यवाही कर सकते हैं या विद्यालय से मुआवजा मांग सकते हैं या फिर विद्यालय से इलाज का खर्चा मांग सकते हैं । इसी का फायदा माता-पिता ने उठाया हो सकता है कि रश्मि को कमर में दर्द किसी और परेशानी के कारण हुआ हो मगर अभिभावकों ने इस बात को अध्यापिका की बात से जोड़कर विद्यालय प्रशासन को ब्लैकमेल करने की कोशिश की, कि रश्मि का पूरा इलाज अब विद्यालय करवाएगा । इस समय विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ने बहुत ही धैर्य से काम लिया और रश्मि को डॉक्टरी जांच के लिए भेज दिया जिसमें डॉक्टरों ने रश्मि को बिल्कुल सही और स्वस्थ करार दिया कि रश्मि को इस तरह की कोई परेशानी नहीं है मगर यहाँ पर प्रधानाचार्य जी ने गणित अध्यापिका के साथ कुछ सख्ती दर्शाई और शायद यह विद्यालय प्रशासन के लिए सही भी था जिससे कि वह भविष्य में आने वाली विपदाओं से बच पाए क्योंकि गणित अध्यापिका के सख्त व्यवहार के विषय में अन्य अभिभावकों ने भी विद्यालय प्रशासन को सूचित किया था और शिकायत भी की थी ।

आजकल बच्चों को कुछ भी कहने पर विद्यालय और शिक्षक के खिलाफ अभिभावक कार्यवाही कर सकते हैं चाहे गलती स्वयं उन्हीं के बच्चे की ही क्यों न हो । अध्यापकों की विद्यार्थियों के प्रति भावनात्मक सम्वेदनाओं को समझने की कोई कोशिश नहीं करता किसी को परवाह नहीं है कि अध्यापक अपने विद्यार्थियों के लिए अपने स्वयं के बच्चों  से बढ़कर सोचता है और उनके जीवन निर्माण में , उनके भविष्य निर्माण में वह हर तरह से योगदान देने के लिए हमेशा अग्रसर रहता है । विद्यालय भी नहीं चाहता कि वह किसी भी तरह की परेशानी में पड़े जिसका फायदा उठाते हैं ऐसे माता-पिता जो अपने बच्चों को सुधारना नहीं चाहते बल्कि अपने बच्चों के भविष्य निर्माण में और चरित्र निर्माण में बाधक बने रहते हैं तभी तो आज की पीढ़ी किसी का आदर सत्कार नहीं करती और शायद अपने अनुभव के आधार पर मैं भी यही कहूँगी कि आज सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति में शिक्षक है भविष्य निर्माण करने वाले आज स्वयं के वर्तमान और भविष्य को ही नहीं जानते उन्हें भी नहीं पता कि वर्तमान में उनके साथ क्या हो जाए और  भविष्य में क्या होने वाला है । उनके साथ किस समय क्या हो जाए नहीं पता …जिस प्रकार रश्मि के माता-पिता के समक्ष शीला को विद्यालय प्रशासन ने अपमानित किया… उच्च स्वर में वार्तालाप करके सिर्फ़ इसलिए कि उसने इस सब की सूचना विद्यालय प्रशासन को नहीं दी थी हालांकि विद्यालय प्रशासन गणित अध्यापिका के व्यवहार संबंधित विषय से अवगत थे क्योंकि गणित अध्यापिका के व्यवहार की जानकारी अभिभावकों ने इससे पहले भी दी थी । परिणाम… गणित अध्यापिका को विद्यालय से निष्कासित कर दिया जाता है और कक्षा अध्यापिका से क्षमा याचिका पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं ।

जब तक विद्यालय प्रशासन अभिभावकों के समक्ष अपने शिक्षकों का सम्मान नहीं करेगा तब तक न तो उन्हें बच्चों से और न ही उनके अभिभावकों से सम्मान प्राप्त हो पाएगा । शिक्षक केवल सम्मान की रोटी खाते हैं न कि अपमान की । जब तक  सम्मान मिलेगा वह स्वयं कार्य करना पसंद करेंगे और सम्मान नहीं मिलेगा तो वह शायद अपने पद को स्वयं भी छोड़ सकते हैं। स्वाभिमान सब को प्रिय होता है । इस घटना के पश्चात शीला भी विद्यालय में काम करना नहीं चाहती थी मगर उसने  विद्यालय से त्यागपत्र नहीं दिया क्योंकि अगर इन परेशानियों से एक शिक्षक जो भावी पीढ़ी का भविष्य निर्माता है हार मान लेगा तो शायद ज्ञान की ज्योंति ज़्यादा समय तक कायम नहीं रह पाएगी । ज्ञान गंगा के सदैव प्रवाह के लिए शिक्षकों को सदैव सकारात्मक रहना होगा नहीं तो विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में डूब जाएगा ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

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