Monday 25 June 2018

समीक्षा

वागीश्वरी का सृजन है बेहद ख़ास
                                                   -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
कविता का सृजन हर दौर में बेहद ख़ास और महत्वपूर्ण रहा है, कविता ने डाकू तक को कवि बना दिया है, क्योंकि रचनाकार जब समय, देशकाल और समाज की बात करता है तो वह खुद को एक श्रेष्ठ इंसान के रूप में परिवर्तित कर चुका होता है, पहले खुद को बेहतर बनाता है फिर सबको बेहतर बनने के लिए प्रेरित करता है। वह समय के साथ आंखें मिलाते हुए उसका वर्णन करता है और समाज को विसंगतियों से दूर रहने की सीख देता है, बताता है कि कौन सी चीज़ अच्छी या बुरी है। ऐसे में कवि का सृजन बेहद ख़ास हो जाता है। आमतौर पर लगभग हर इंसान अपनी निजी ज़िदगी और परिवार की चिंता करतेे हुए उसकी भलाई की सोचता है और तमाम तरह के कदम उठाता है, मगर रचनाकार अपनी लेखनी में समाज और देश की चिंता करता है, उसकी भलाई की बात करता है, लोगों को सचेत करता है। ऐसे में सहज ही कहा जा सकता है कि रचना का सृजन करने वाला व्यक्ति आम इंसान से बिल्कुल अलग और ख़ास होता है। ऐसे परिदृश्य में जब किसी रचनाकार की पुस्तक छपकर सामने आती है तो न सिर्फ़ उसके लिए बल्कि पूरे समाज और मानवता के लिए बेहद ख़ास होती है, क्योंकि रचनाकार अपनी दृष्टि से समाज की अच्छाइयों और बुराइयों का वर्णन करता है, किस रचनाकार ने किस चीज़ को अपनी दृष्टि से अच्छा या बुरा कहा है, यह जानना सबके लिए बेहद ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि हर इंसान इसी समाज और मानवता का हिस्सा है।
इन परिदृश्यों में नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’ की कविता को देखने की ज़रूरत है, इन्होंने अपनी दृष्टि और भावना से काव्य का सृजन ईमानदारी के साथ किया है। एक वेल-एजुकेटेड कवयित्री वागीश्वरी ने अपने सृजन से लोगों के लिए मिसाल पेश की है। ये अपनी कविताओं में एक औरत को खुद को औरत होनी की वजह से कमज़ोर या विवश नहीं मानती, बल्कि समाज को बताती हैं कि वह कितनी सशक्त है । एक कविता नज़ीर के तौर पर देखिए-
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती।
चेहरे को अपने रंग लेती,
झूठा जीवन मैं हूँ जीती।
कभी खुशी के भाव दिखाती,
कभी गम के अश्क बहाती।
जीवन की सच्चाई को सबके,
रू-ब-रू मैं हूँ करवाती।
स्वअस्तित्व को त्याग के अपने,
सबके अस्तित्व को हूँ दर्शाती।
‘वागीश्वरी’ की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इन्हें जहाँ भी, जो भी विडंबना समाज में दिखी है, उसके खि़लाफ़ आवाज़ उठाने में बिल्कुल भी कोताही नहीं की है। यही वजह है कि इनकी कविताएँ समय के साथ आँख मिला रही हैं और लोगों को बता रही हैं कि समाज की स्थिति क्या है और क्या होनी चाहिए। एक कविता में कहती हैं-
मेरी नज़र में तू मर्द नहीं नामर्द बना है
क्योंकि रात के साए में तूने मुझे बे-आबरू किया है ।
शायद परिवार से तुझे सीख न मिल पाई,
कि नारी लक्ष्मी है सृष्टी उसने रचाई ।
मुझे बदनाम करके माँ का नाम न तूने रोशन किया है,
बल्कि उसके दूध को तूने सरेआम बदनाम किया है ।

इसी तरह की रचनाएँ इस पुस्तक में जगह-जगह दिखाई देंगी, ज़रूरत इस बात की है कि इनके सृजन को गंभीरता से लिया जाए और इनसे उम्मीद की जाए कि आने वाले दिनों में और बेहतर रचनाएँ हमें पढ़ने का सुअवसर मिलेगा। इस पुस्तक के लिए नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’ को ढेर सारी बधाइयाँ ।
      - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
      अध्यक्ष- गुफ्तगू
     123ए-1, हरवारा, धूमनगंज
      इलाहाबाद
  मोबाइल नंबर: 8840096695

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