Thursday, 4 January 2018

किताब के हर्फ़

किताब के हर्फ़

किताब के पन्ने खुल जाते हैं
शब्द तितली बन उड़ जाते हैं
जब भी पढ़ती हूँ मैं तुमको
अश्क मोती बन गिर जाते हैं

याद में तेरी मगन हूँ इतनी
आसमान में लाली जितनी
सूरज नभतल पर आ जाते
रश्मियाँ मचले तितली जितनी

यादों के हर हर्फ़ कुहास में
धुंधले से हो जाते हैं ।
तितलियों की भांति कागज़ से
फिसले-फिसले जाते हैं ।
बादल भी देखो कैसे
मंद-मंद मुस्काते हैं ।
हाथ से जब यादों के पन्ने
सिमटे-सिमटे जाते हैं ।

No comments:

Post a Comment