Monday, 8 January 2018

हाइकु- 4

ओंस के कण
मोती बन बिखरे
पत्र ऊपर

बहू को देना
बेटी के जैसा मान
है वो भी बेटी

बेटी है मान
है बहू स्वाभिमान
सदा बहार

बेटों से वंश
बेटी दिलाती मान
दोनों समान

श्रम तू कर
पिपीलिका की भाँति
सफल बन

गमनागमन
भीड़ में बुरा हाल
सड़क जाम

समाप्त तम
आदित्य आगमन
सुप्रभात!!

जीवन जले
मोमबत्ती की भाँति
चलता रहे

नई सुबह
नई उम्मीद बाँधे
उमंग बहे

नव प्रभात
पंछी पंख पसारे
उन्मुक्त नभ

है उलझन
ख़ामोश तबीयत
तड़प बड़े

एक चुप्पी से
मनमुटाव मिटें
मनाओ जश्न

नवीन वर्ष
नव काव्य सृजन
साहित्य संग

नया बरस
नव तरु रोपण
सजे प्रकृति

नव प्रयास
समाप्त अत्याचार
बढ़े सद्भाव

नव विचार
प्राकृतिक दोहन
बंद हों अब

नव चेतना
उर में उदगार
शांति सद्भाव

माघ की ठंड
नए साल का जश्न
मनाएँ सब

चुप रहती
नारकीय जीवन
नारी सहती

चिंगारी जैसे
सुलगती औरत
रहती शांत

सीमा से बंधी
जैसे होती है नदी
नारी की छवि

नारी है धन
झरती बरसती
सदैव प्यासी

घर न दर
सदैव है बेघर
नारी है खग

बुलंद स्वर
नारी फिर भी चुप
शब्दों की भांति

शक्ति की खान
दिखती कमज़ोर
नारी है मोन

नव आशाएँ
नव निर्मित सोच
मंज़िल पाएँ

नई रश्मियाँ
मिलेगा सुपथ ही
धैर्य तू रख

नया है जोश
नई सबकी सोच
कर निर्माण

नये सपने
नयी डगर संग
सुरीली धुनें

नया स्वरूप
प्रभात की मुस्कान
तिमिर मिटा

है नारी शक्ति
नव सृजन मूल
विश्वास जगा

बढ़े सम्मान
नारी देश की शान
इसे न बांध

उन्मुक्त नभ
नहीं बंधन अब
नारी सशक्त

घर की शान
फले फूले संसार
बेटी है मान

खूब पढ़ाओ
आत्मजा है प्यारी
मिलेगा मान

नारी उत्थान
नयी सोच के साथ
देश विकास

कुंठित सोच
त्यागो सब मानुष
करो उत्थान

भ्रष्टाचार को
करो समाप्त अब
जागो इंसान

भार्या पीड़ित
गरीबी का प्रवास
लक्ष्मी नाराज़

माटी से बना
शरीर है हमारा
फिर भी प्यारा

हर डगर
साथ निभाता है जो
हमसफ़र

रेत ही रेत
रेगिस्तानी जहाज़
प्यासी है साँस

वर्षा न जल
मरुस्थल की ज़मी
निर्जल घट

शीत क्रोधित
कुहास संग नभ
रवि है रुष्ठ

धुंधली यादें
सिमटी हुई साँसें
हर्फ़ ओझल

बंद ज्ज़बात
पन्नो में सिमटे से
पृष्ठ हैं पीत

रिश्ते सुखद
सहजता से निभें
मन प्रसन्न

हसीं ख़्वाब
अरमानों के पाश
तन्हाई साथ

आँधी-तूफान
सुनसान मंज़िल
साया अंजान  

जीवन युद्घ
कान्हा नहीं सारथी
साथी विरुद्घ    

भौर की बेला
जगदीश्वर वास
करो प्रणाम

नवीन प्रात:
नव रश्मियाँ आएँ
सूर्याय नम:

धरा गगन
है स्वर्णिम जगत
योग मगन

उषा किरण
नव चेतना संग
करो धरण

नीर दर्पण
रवि देख मुस्काए
अपना अक्स

शांत है जल
शांत वातावरण
ईश भजन

चेत चेतन
नवीन आशा संग
कर सृजन

चेतन मन
स्वर्णिम है जगत
करो सुकर्म

शुद्घ विचार
शुभ प्रभात संग
करो संचार

प्रभात बेला
धरा करे श्रृंगार
मन न मेला

बंधी पतंग
मांझा-डोरी के संग
लिए उमंग

शून्य तल में
नृतन है करती
मेरी पतंग

कटी पतंग
दूजे को मिल जाए
जागे तरंग

बयार संग
बहती चली जाए
रंगीन छंग

कटी पतंग
धरती पर आए
डोर के संग

छंग निराली
जैसे जीवन साथी
प्राण से प्यारी

उड़ी पतंग
अंबर में नृतन
नहीं असंग

प्राण पतंग
कई नाच नचाए
दिखाए रंग

स्वप्न हमारे
हैं पतंग की भाँति
दूर ले जाएँ

नर असंग
पाश में है जीवन
सच है संग

रंग-बिरंगी
उड़ती चली जाए
बच्चों को भाए

अनंत नभ
अनगिनत पतंग
संक्रांति पर्व

द्वेष जलाओ
लोहड़ी अनल में
छंग उड़ाओ

चर्खी के रंग
है मकर संक्रांति
पतंग संग

मन है डोर
अभिलाषा की चर्खी
प्राण पतंग

तिल गजक
'एकता' की पतंग
एक गगन

शीत लहर
ठिठुरता है देश
दीन लाचार

कंपन शांत
अँगीठी की अनल
अम्बा का स्पर्श

सिमते हुए
अपने अंगों के साथ
जीव-जन्तु हैं

ठिठुरा तन
रजाई में बालक
खेलना बंद

बड़ी कठिन
जीवन की डगर
नहीं रंगीन

आस का मोती
जलधि है गहरा
किस्मत रोती

खुला गगन
नभचर स्वतंत्र
मन मगन

हमारी शान
देश का संविधान
करना मान

तिरंगा न्यारा
राष्ट्रगान हमारा
हिंद का गौरव

राष्ट्र सम्पत्ति
राष्ट्रीय धरोहर
न करो नष्ट

राष्ट्रीय पर्व
गणतंत्र दिवस
मनाओ सब

माँ की पीड़ा
औलाद नहीं जाने
काम निकाले

बूढ़े माँ-बाप
संतान को न भाएँ
बोझ संताप

पंख पसारे
सपनों के विहग
मिटे निराशा         

बूढ़े माँ-बाप
बच्चे कहते ठूँठ
पीड़ा आक्रांत

ममतामयी
निर्झरिणी निर्मल
मेरी माँ प्यारी

शैल से आई
निर्मल कहलाई
बहती गंगा

शिखर खड़ा
धरा पर झुकाए
मुकुर बड़ा

वसुधा सारी
जड़ी-बूटी से भरी
प्रकृति न्यारी

सारे अचल
हैं सीमा के प्रहरी
देश कुशल

जल का स्रोत
कल-कल बहता
बुझाए तिषा

तन पिपासा
नहीं बुझने पाए
बिना मिलन

सागर जल
क्षारयुक्त कहाए
काम न आए

बालक मन
निर्मल कहलाता
सच बताता

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