Saturday, 2 May 2020

शिक्षा का माध्यम और हिंदी की स्थिति

शिक्षा का माध्यम और हिंदी की स्थिति

आज आधुनिकता की होड़ में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है । सभी निजी, गैर सरकारी यहां तक कि बहुत से सरकारी विद्यालयों में भी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से दी जाती है । आज हर अभिभावक के मन मस्तिष्क में केवल यही बात घर कर गई है कि अच्छी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों में ही मिलती है या दी जाती है; तो यकीनन हर अभिभावक उन्हीं स्कूलों में उसी भाषा में अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाना पसंद करेगा जिससे उसके बच्चे का भविष्य संवर सके या वह अच्छी नौकरी प्राप्त कर सके मगर इन सभी अभिलाषाओं के चलते वह अभिभावक यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के अपने कुछ फायदे हैं और कुछ नुकसान भी और यही बात अंग्रेजी भाषा के साथ ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं पर भी लागू होती है । ऐसी स्थिति में हमें देखना चाहिए जिसके नुकसान कम हैं और फायदे ज्यादा साथ ही हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति किस माध्यम से पूरी होगी भाषा शिक्षा का क्षेत्र अनुप्रायोगिक है इसमें विभिन्न विषयों के शिक्षण के लिए जिस भाषा का प्रयोग होता है शिक्षा का माध्यम कहलाती है  ।

शिक्षा का माध्यम कोई भी हो
हिंदी की स्थिति न गिरने पाए
प्रयास ऐसे करने होंगे हम सभी को 
हिंदी बोलने पर कोई न हिचकिचाए ।

वर्तमान युग में सभी अभिभावकों का एकमात्र ध्येय या मांग अंग्रेजी भाषा में बच्चों को शिक्षा दिलाना रह गया है ; क्योंकि आज अंग्रेजी को वर्चस्व और रोजगार की भाषा माना जाता है । शिक्षा का माध्यम अपनी मातृभाषा भी हो सकती है और अन्य भाषाएं भी । भाषा किसी न किसी उद्देश्य या प्रयोजन के संदर्भों में सीखी अथवा सिखाई जाती हैं ; लेकिन मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का मुख्य उद्देश्य अपने समाज और देश में संप्रेषण प्रक्रिया को सुदृढ़, व्यापक और सशक्त बनाना होता है ।वस्तुत : मातृभाषा एक सामाजिक यथार्थ है जो व्यक्ति को अपने भाषायी समाज के अनेक सामाजिक संदर्भों से जोड़ती है और उसकी सामाजिक अस्मिता का निर्धारण करती है ।

शिक्षा का जो माध्यम हमारी सोच हमारे समाज हमारे देश के आदर्श और जरूरतों के अनुरूप हो उसे ही अपनाना चाहिए इस आधार पर विदेशी भाषा के मुकाबले अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करना अधिक लाभदायक और उचित है शिक्षा का उद्देश्य है मानव में नैतिक मूल्य का बीजारोपण करना क्योंकि नैतिक मूल्य संस्कृति से प्राप्त होते हैं और संस्कृति का वाहन उस संस्कृति की भाषा है इसलिए जिस संस्कृति को हम बच्चों के लिए उचित मानते हैं उस संस्कृति को पूर्ण रूप से व्यक्त करने वाली भाषा ही शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए इस प्रकार हम कह सकते हैं अंग्रेजी भाषा से शिक्षा तो दी जा सकती है परंतु अपनी संस्कृति और संस्कार नहीं दिए जा सकते । अंग्रेजी भाषा से हमारे बच्चों में पाश्चात्य संस्कृति पनप रही है अगर हम यही शिक्षा भारतीय भाषाओं में दें तो शिक्षा से भारतीय संस्कृति बच्चों पर अपना असर डालेगी ।

अपनी भाषा और संस्कृति को छोड़कर 
हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे 
फिर वही अंग्रेजी के गुलाम बन 
पलायन का रास्ता अपनाते जाएंगे ।

आज शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण अभिभावक बच्चों को सूरज की जगह SUN और चांद की जगह MOON पढ़ाते हैं सूरज और चांद का प्रयोग करने पर कभी-कभी बच्चों को डांट भी लगते हैं तभी तो बच्चों के अंदर हिंदी के प्रति उदासीनता का भाव पनपता जा रहा है अगर बच्चा या विद्यार्थी हिंदी में बात करता है तो उसे मूर्ख या अनपढ़ समझा जाता है और कभी-कभी तो उसे दूसरों की अवहेलना का भी शिकार होना पड़ता है । बच्चों में संस्कारों का ह्वास होता जा रहा है । निजी स्कूलों में भी भाषाओं का प्रयोग बहुत ही अंतर ला रहा है अंग्रेजी में वार्तालाप करने वाले विद्यार्थी प्रशंसा का पात्र बने रहते हैं वही हिंदी में बात करने वाले विद्यार्थियों को नजरअंदाज किया जाता है । निजी स्कूलों में तो हिंदी भाषा में बात करने पर जुर्माना भी लगा दिया जाता है । इस प्रकार का व्यवहार किस तरह तर्कसंगत हो सकता है कि हम अपने ही देश में रहकर अपनी ही सभ्यता संस्कृति और भाषा का अपमान कर रहे हैं तभी तो आज हिंदी की स्थिति वह नहीं हो पाई है जो होनी चाहिए थी । पाश्चात्य संस्कृति से भारतीय संस्कृति लाख गुना बेहतर है क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति सुख का भ्रम देती है और भारतीय संस्कृति सुख देती लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हम ऐसी श्रेष्ठ संस्कृति को खो रहे हैं क्योंकि हम उस संस्कृति के वाहक अपनी मातृभाषा को छोड़कर भोगवादी भाषा अंग्रेजी अपना रहे हैं ।

हिंदी की स्थिति :

हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा की काली छाया  का प्रकोप फैल रहा है जिससे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि उसके नाम में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है अर्थात आजकल हिंदी को हिंग्लिश बना दिया गया है । हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी भावी पीढ़ी मातृभाषा का रसवाद नहीं कर पाएगी । हिंदी पर अंग्रेजी की कुहास चादर चढ़ गई है जो भारत देश के अस्तित्व पर एक गहरा प्रहार है । हमें हिंदी भाषा को विश्व में सिरमौर बनाना है तो आने वाली पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति आदर सम्मान की भावना पैदा करनी होगी । मैं स्वयं कुछ समय से यह अनुभव कर रही हूँ कि हर रोज हिंदी का विकृत रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है ; कभी समाचार पत्र के माध्यम से, कभी पत्रिकाओं के माध्यम से और कभी चलचित्रों के माध्यम से हिंदी को इंग्लिश के साथ मिलाकर हिंग्लिश बनाकर हमारे समक्ष पेश कर देते हैं । मानो हिंदी भाषा भाषा नहीं एक मजाक हो । भाषा में बढ़ते प्रदूषण का कारण मीडिया से ज्यादा हम स्वयं हैं, समाज हैं, विद्यालय हैं और शिक्षक स्वयं हैं जो अपनी मातृभाषा को विखंडित होने से नहीं बचा पा रहे हैं । अभी भी हम औपनिवेशिक संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित हैं अगर हम अपने आस-पास नजर घुमाएँ तो पाते हैं कि माता- पिता स्वयं अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर उन्हें हीनता का बोध कराते हैं । ऐसी मानसिकता और सोच के लिए समाज, राष्ट्र, माता-पिता और विद्यालय सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि और बढ़ावा देते हैं । आज की शिक्षा व्यवस्था हिंदी भाषा के ह्वास का कारण है जहाँ हिंदी मात्र एक विषय बन कर रह गया है और अंग्रेजी ने भाषा का रूप ले लिया है । 

आज हमारे आस पास ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि हम लोभ, लालचवश स्वेच्छा से अंग्रेजी को ग्रहण करते हैं । हमारी मानसिकता के अनुसार लाखों रुपयों का वेतन अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने से प्राप्त होता है । हम मानने लगे हैं कि सफलता अंग्रेजी जानने बोलने से प्राप्त होती है । आज हम गुलाम किसी देश के नहीं आज हम गुलाम स्वयं अपनी सोच के हैं …हम गुलाम स्वेच्छा से अंग्रेजी भाषा के हैं । आज ड्राइवर चपरासी की नौकरी के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है । माँ अपने बच्चों को चाँद की जगह 'मून' और बंदर की जगह 'मंकी' पढ़ाती है बच्चा अगर शब्दों को हिंदी में बोले तो माँ की प्रतिक्रिया होती है कि यह चाँद नहीं 'मून' है अर्थात् बच्चों को धरातल से ही हिंदी के ज्ञान से विमुख किया जाता है । आज शादी ब्याह, जन्मोत्सव इत्यादि की पत्रिका और निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापे जाते हैं चाहे घर में किसी को अंग्रेजी आती हो या न आती हो मगर विवाह पत्रिका, निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही होने चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषा आज शान का प्रतीक मानी जाती है जिसके कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है और इसका श्रेय हमारे देशवासियों को जाता है जो अपनी मातृभाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं । साल में एक बार 14 सितंबर को पूरे देश में यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । एक ही दिन हमें हिंदी की औपचारिकता क्यों करनी पड़ती है ? क्या हमारी मातृभाषा के सम्मान के लिए एक ही दिन है ? क्या हम हर दिन हिंदी दिवस के रूप में नहीं मना सकते ? क्या हम हर दिन अपनी मातृभाषा को सम्मान नहीं दे सकते हैं ? यह सभी प्रश्न हमें चिंता में डालते हैं । एक समय था जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे मगर आज हम अंग्रेजी के गुलाम होते जा रहे हैं । किसने कहा एक माँ अपने बच्चे को हिंदी नहीं अंग्रेजी में सब कुछ सीखाए ? किसने कहा एक कर्मचारी को अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है ? किसने कहा कि निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही हो ? क्या सरकार ने …देश की शासन व्यवस्था … नहीं किसी ने नहीं …यह सब हमारे लोभ, लालच और अंग्रेजी भाषा की हवा ने कहा जो ऊँची तरक्की, ऊँचा वेतन और चका-चौंध की छवि को दर्शाता है । भारतीय हिंदी भाषी होना क्या हीनता की निशानी है ? अब आप ही बताइए… क्या यह स्वेच्छा से गुलामी स्वीकार करना है या नहीं …?

हम स्वयं हिंदी की इस स्थिति के जिम्मेदार हैं । जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे तब भी अंग्रेजी का ऐसा और इतना बोल बाला नहीं था । अंग्रेजी थी मगर अंग्रेजी की गुलामी नहीं थी और न ही भारतीय भाषाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार की भावना थी । हमारे देश के नेता अंग्रेजी जानते थे बोलते थे और बहुत विद्वान थे मगर सभ्यता और संस्कृति के सम्मान का ध्यान रखते थे । किंतु आज का नेता वोट तो हिंदी में माँगता है, नारे हिंदी में लगाता है, पर्चें हिंदी में बाँटता है किंतु लोकसभा और विधानसभा में शपथ ग्रहण अंग्रेजी में करता है । यह कहाँ तक सही है ? क्या उसे हिंदी में शपथ ग्रहण करने में शर्म आती है या अंग्रेज़ियत के भूत ने पूरे देशऔर उसके शासन को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है । हिंदी भाषा के अस्तित्व पर यह गहरा आघात है ।


न जाने जो हिंदी; वह हिंदवासी नहीं,
अंग्रेज़ी का ज्ञान पाकर कोई देशवासी नहीं,
हिंदी में ज्ञान पाओ, हिंदी में गुनगुनाओ,
हिंदी में ही नेताओं को शपथ ग्रहण करवाओ ।।

यह एक भ्रम बुरी तरह से हमारे हिंद में फैलाया गया है और चल रहा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने लिखने वाले युवक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस का नतीजा यह हुआ है कि गरीब और आम आदमी अंग्रेजी भाषा की चक्की में पिसने को तैयार खड़ा हो गया है और वह स्वयं अपने बच्चों को बड़े से बड़े अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहता है जिससे उसकी संतान को सफलता प्राप्त हो सके । परंतु यह वास्तविकता नहीं है हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं और उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं । हिंदी भाषा का सर्वस्व कायम रखना है तो हमें स्वयं की सोच में बदलाव लाना होगा अंग्रेजी जानना, पढ़ना और बोलना बुरा नहीं है परंतु अपनी भाषा को पीछे रख कर नहीं ……आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता नजर आता है । आज लोग अपने बच्चों को प्राइवेट या कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं । आज का युवा उच्च शिक्षा तो ग्रहण कर लेता है परंतु दो लाईन शुद्ध हिंदी न लिख पाता है और न ही बोल पाता है । आज का विद्यार्थी हिंदी नहीं पढ़ना चाहता । बारहवीं के विद्यार्थियों को आज मात्राओं का ज्ञान नहीं है । बारहवीं में आकर भी ि , ी ु , ू े , ै की मात्राओं के प्रयोग में सक्षम नहीं है । इसका जिम्मेदार कौन है …?
हम, आप या विद्यार्थी स्वयं हम से तात्पर्य शिक्षक, आप से तात्पर्य…अभिभावक से है । आज हमें युवाओं के मन में नयी चेतना जगानी होगी । अंग्रेजी के संक्रमण को रोकना होगा । 

निष्कर्ष

भाषा चाहे कोई भी हो वह मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है क्योंकि मानव सभ्यता को विकसित और गतिमान बनाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है और वह संप्रेक्षण भाषा से ही संभव है मुख से उच्चारित होने वाली ध्वनि की एक अनुपम व्यवस्था भाषा कहलाती है भाषा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है हिंदी , संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है । आज हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्यों आज हिंदी को बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं ? क्या भाषा भी किसी के संरक्षण की मोहताज है ? हम भारतवासी होकर हमारा क्या यह कर्तव्य नहीं कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें और उसे विश्व पटल पर लाएं ।

इसके लिए अनेकों प्रयास बहुत सी स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से किए जा रहे है उनमें से हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के प्रयास अति सराहनीय है । संस्थान के माध्यम से प्रतिवर्ष दिल्ली और एनसीआर के सभी विद्यालयों से प्राप्त आवेदन के आधार पर सेकंडरी स्तर पर हिंदी विषय में 90 % और उससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों भाषा प्रहरी सम्मान, और 100% अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भाषा दूत सम्मान से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है साथ - ही साथ संबंधित शिक्षकों को भी सम्मानित किया जाता है । कार्यक्रम का आयोजन बहुत ही वृहद स्तर पर किया जाता है जिसमें दिल्ली एनसीआर के 150 से अधिक विद्यालय के 2500 से अधिक विद्यार्थी सम्मानित होते हैं । हिंदी उत्थान हेतु हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी के प्रयास यही तक सीमित नहीं हैं बल्कि संस्थान की मासिक पत्रिका भी भारतीय भाषाओं के प्रसार में मुख्य भूमिका निभा रही है । 2019 के मोरशियस अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में भी संस्थान के संस्थापक श्री सुधाकर पाठक जी भारत सरकार की ओर से आमंत्रित थे जो संस्थान के लिए एक गौरव का विषय है । हिंदी भाषा को        राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी के अथक प्रयास जल्द ही अपने मुकाम पर पहुंच एक नया मील का पत्थर स्थापित करेंगे ।

अपनी भाषा में एक एहसास है ।
हिंदी देश का स्वाभिमान है ।

हिंदी से भविष्य और वर्तमान है ।
हिंदी भावों का महाजाल है ।

भावों का समंदर रहता है इसमें ।
एहसास से गुथा एक धागा है जिसमें ।

जोड़ देता है मन से मन को पल में कहीं भी । 
टूटते दिलों को जोड़ देता है दूर से ही ।

भावनाओं की भाषा  सौहार्द बनाती है ।
लिपि भाषा को  लिखना सिखाती है ।

भाषा से ही ज्ञान समृद्ध, विशाल मुमकिन है ।
भाषा नहीं तो शब्दों का महाजाल बुनना मुश्किल है ।

देश विदेश में भी इसका परचम लहराया है ।
सबने हिंदी को मन से अपनाया सौभाग्य हमारा है ।

अभिमान है हमें…हम हिंदुस्तानी हैं। 
गौरवान्वित हैं हम… कि हम हिंदी भाषी हैं ।

डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '



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