Sunday, 23 September 2018

वीमेन पावर सोसायटी दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

सूचना

 वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान की संस्थापक / अध्यक्ष और वीमेन पावर सोसायटी दिल्ली प्रदेश की राष्ट्रीय अध्यक्ष 'नीरू मोहन 'वागीश्वरी' की ओर से एनसीआर के प्रत्येक जन के लिए सूचना प्रेषित की जा रही है । हमारी संस्था महिलाओं और बच्चों के लिए कार्य करती है महिला उत्थान बाल विकास कार्य के लिए अग्रसर संस्थान का कार्यभार राष्ट्रीय स्तर पर फैला हुआ है ।
संस्थान के कार्यों से जुड़ने के लिए संपर्क करें । हमें संस्थान हेतु प्रशिक्षित और कार्य के प्रति कर्मठ युवाओं की आवश्यकता है जो संस्थान के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य करें । हमारी संस्था स्वयंसेवी संस्था है ; जो युवा चाहे वह महिला हो या पुरूष स्वार्थ रहित होकर कार्यों में आत्मिक रूप से योगदान दे सकें तो सादर आमंत्रित हैं।

निवेदक
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

संस्थापक / अध्यक्ष - वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान  

दिल्ली प्रदेश राष्ट्रीय अध्यक्ष -वीमेन पावर सोसायटी

समाजसेविका,  साहित्यकारा, शिक्षाविद् 

neerumohan6@gmail.com



जो संस्थान से जुड़ना चाहते हैं वह अपना परिचय दिए गए मेल आई डी पर भेज दें । जिसमें सम्मिलित हो :

नाम -

जन्म तिथि -

आयु -

स्थायी पता-

संपर्क सूत्र-

शिक्षा -

सम्प्रति-

फोटो -

मेल आई डी -

आधार कार्ड फोटो कॉपी -


मेल आई डी -

mohanjitender22@gmail.com


 उद्देश्य

1. रक्तदान, नेत्रदान, स्वास्थ्य शिविर, जल संरक्षण, जल


2. प्रदूषण, प्रकृति सहकार, वृक्षारोपण, स्वच्छता एवं हरियाली संबर्धन, घर-घर तुलसी अभियान, 


3. नारी शिक्षा, नारी सम्मान, नारी सशक्तिकरण, बेटी जन्म प्रोत्साहन 


4. मेधावी प्रतिभा सम्मान, किसान सम्मान, जैविक खेती, प्रकृति बचाओ, 


5. वस्त्र वितरण, गरीब लड़कियों की शादी में आर्थिक सहायता, असहाय एवं निर्धनों को इलाज में आर्थिक सहयोग, गरीब परिवार के बच्चों व बड़ो के इलाज में आर्थिक सहयोग

 

6. योग-ध्यान-साधना शिविर जैसे अनगिनत सामाजिक कार्यों से जन सेवा का व्रत।


7. प्राकृतिक त्रासदी में पीड़ित परिवारों तक जाकर राहत सामग्री वितरण, शहीद परिवारों को सम्मान।


जनहितकारी कार्यों के लिए   I A S  व  I P S अधिकारियों द्वारा अनेकों बार सम्मानित।

Women power society

*मोनिका अरोड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष

* नीरू मोहन 'वागीश्वरी' प्रदेशाध्यक्ष




नीरू मोहन 'वागीश्वरी' के तीन काव्य संग्रह

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'  तीन काव्य संग्रह

सभी प्रिय पाठकों , आदरणीय जन और मेरे शुभचिंतकों जिनको मेरी तीनों कृतियों का इंतज़ार था आज आपके समक्ष हैं ।
प्राप्त करने हेतु संपर्क करें

* 25 सितम्बर से 30 अक्टूबर तक डाक खर्च में छूट ।

* विमोचन दिल्ली में जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित !

* वरिष्ठ साहित्यकारों से मिलने का सुअवसर ।

* पाठकों के लिए एक सम्मानित मंच जहाँ चयनित श्रेष्ठ 20 पाठकों को काव्य पाठ का सुअवसर ।

* सभी 20 चयनित पाठकों का मंच द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान ।

* भविष्य हेतु नवीन योजना की घोषणा जिसमें पाठकों और नवोदित कवियों को मंच प्रदान करने का प्रयास।

* मंच द्वारा प्रत्येक वर्ष निशुल्क गद्य, पद्य संग्रहों की घोषणा ।

संपर्क करें

mohanjitender22@gmail.com

प्रेषक

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Saturday, 22 September 2018

साहित्य कला संस्कृति में भारतीय अवधारणा

लेख

साहित्य कला संस्कृति में भारतीय अवधारणा

भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है जहाँ पर प्रत्येक जाति और धर्म भाषा से संबंध रखने वाले लोग रहते हैं । साहित्य देश का इतिहास बताता है , कला पक्ष विचार बनाता है , संस्कृति जीवन शैली दर्शाती है इन तीनों का समावेशी किसी भी देश का भूत, वर्तमान और भविष्य बतलाता है; क्योंकि तीनों एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूसरा पक्ष अधूरा-सा प्रतीत होता है । जब देश के साहित्य की बात करते हैं तो साहित्य वह नहीं है जो एक-दो दिन में लिखा जाता है । साहित्य का इतिहास सदियों पुराना है ।
आदि काल से लेकर आज के परिवेश तक विचारों में बहुत बदलाव आया है । भारतीय कला संस्कृति प्रधान होने से धर्म प्रधान हो गई है कहते हैं कि वास्तव में धर्म ही भारतीय कला का प्राण है । भारतीय कला अाध्यात्मिक भावनाओं से सदा अनुप्राणित रहती है । भारतीय कला को सामान्य जीवन की सच्ची दिग्दर्शिका कहा जाता है । भारतीय कला जहाँ एक और वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है वहीं दूसरी और भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्व बनाकर रखती है।

भारतीय कला को जानने के लिए वेद , शास्त्र , पुराण और पुरातत्व के प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पड़ता है । भारतीय कला शाश्वत सत्य का प्रतीक है; क्योंकि 'सत्य शिवम सुंदरम' की भावना से युक्त होने के कारण उसमें नित्य नवीनता दिखती है भारतीय कला में सौंदर्य के साथ-साथ आंतरिक सौंदर्य के भाव की प्रधानता है । जीवन ऊर्जा का महासागर है जहाँ अंतः चेतना जागृत होती है जो ऊर्जा जीवन को कला के रूप में भारती है । कहा भी गया है…
साहित्य संगीत कला विहीन: साक्षात् पशु: पुच्छ विषाणहीन:
भारत की कला बहुत गहराइयों में ले जाती है । यह भारतीय कला की विशेषता है । हमारी संस्कृति में अध्यात्म है और कल्चर अध्यात्म से कोसों दूर है । संस्कृति आंतरिक है । हमारी संस्कृति का मूल आधार… आत्मा क्या है ? इससे है । हमारे लिए सत्य के प्रति निष्ठा जिसमें है वह संस्कृति है ; जिसमें सत्य, निष्ठा, सुचिता , क्षमा , धैर्य आदि गुण हैं । वास्तव में हमारी कला सभ्यता के साथ-साथ चलती है जिसमें संस्कृति विद्यमान होती है । संस्कृति हजारों वर्षों में आती है और हजारों वर्षों तक टिकती है जन्म जन्मांतर तक चलती है । जन्म से लेकर मृत्यु तक जिसका साथ नहीं छूटता है संस्कृति है । भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं इसलिए भारतीय संस्कृति को किसी एक भाषा में चिह्नित नहीं किया जा सकता । भारतीय साहित्य की एकता भाषा गत नहीं अपितु विचारों और भावनाओं की एकता है । अनेक साहित्यकारों ने विभिन्न भाषाओं में लिखा और अपने विचार अभिव्यक्त किए हैं उदाहरण प्रेमचंद ने उर्दू और हिंदी दोनों भाषा मैं साहित्य सृजन किया है । भारतीय साहित्य परंपरा की एकता और विविधता का इतिहास है ।भारतीय साहित्य में राष्ट्र का स्वर गूँजायमान होता है । शोक, हर्ष , क्रोध , घृणा , प्रेम , वात्सल्य जैसे अनेक भाव मानव हृदय में समान रूप से पाए जाते हैं परिणाम स्वरूप साहित्य का मूलभूत ढांचा सभी भाषाओं में एक-सा ही दिखाई देता है ।

साहित्य, कला, संस्कृति तीन स्तंभ भारत की शान ।
इन्हीं से विद्यमान है अखंड भारत की अखंड पहचान ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Friday, 21 September 2018

मंथन नारी शक्ति सम्मान

किसी भी व्यक्ति के "शख्स से शख्शियत" बनने की यात्रा है कोई भी  अवॉर्ड , पुरस्कार या  सम्मान, और जब उसे कोई विशिष्ट पद या सम्मान ,देश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा किसी विशिष्ट कार्यक्रम में प्रदान किया जाता है तो इस सम्मान में चार चांद लग जाते हैं।  यह उन्हीं व्यक्तियों को मिलता है जो साधारण से असाधारण बनने की शक्ति, जज्बा, जुनून,  प्रतिभा और हौसला रखते हैं।

"मंथन नारी शक्ति अवार्ड" इसी श्रृंखला का एक हिस्सा है।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी' जिनके नाम में ही रोशनी, भगवान कृष्ण और विद्या की देवी विद्यमान हो यानी सरस्वती हो, उनके लिए क्या कहा जा सकता है। जिनके नाम में ही सत्य, शालीनता, मिठास, मोहकता, आकर्षण यह सब एक साथ हो तो क्या कहने। नीरू मोहन जी का कार्यक्षेत्र लेखन और शिक्षण रहा है और अंतिम स्वास ही अपने लेखन और शिक्षण को जारी रखना चाहती हैं। इनका मानना है कि समाज में हो रहे गलत कामों के प्रति आवाज उठाने का एक बहुत सशक्त माध्यम है कलम, और वह इसका बखूबी  इस्तेमाल कर भी रही है ,और आज साहित्य जगत में एक जाना माना नाम भी है। अपनी कहानियों, लेखों, कविताओं के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों को मिटाने की कोशिश करती रहती हैं, और समाज में जनचेतना का कार्य निरंतर करती चली आ रही है। नीरू जी का व्यक्तित्व ऐसा है कि वह अपने निदंको, आलोचकों को भी अपना गुरु मानती हैं ।वह उन सब का धन्यवाद करती हैं कि जिन्होंने उन्हें हतोत्साहित किया, क्योंकि उन्होंने उनकी नकारात्मकता को अपनी प्रेरणा शक्ति बनाया और उसी को आलंबन बनाकर आगे बढ़ कर दिखाया ।वे अपनी उपलब्धियों को अपना सर्वस्व मानती हैं तथा उन्हें हमेशा से ही अपने जीवन  के रंगीन अध्याय मानती हैं। कामकाजी भारतीय नारी के जीवन में कामकाजी और गृहस्थ जीवन में बहुत सी मुसीबतें आती हैं जिनको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद यदि कोई स्त्री समाज में एक मुकाम हासिल करते हैं तो निश्चय ही वह वंदनीय है। इसके लिए हम नीरू जी को हार्दिक बधाई देते हैं।

हम नीरू मोहन 'वागीश्वरी' जी  को "मंथन नारी रत्न अवार्ड" प्रदान करने हेतु गौरवान्वित है एवं अवार्ड प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं प्रदान करते हैं ।
हम ईश्वर से उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

भाव, विचार प्रस्तुति
  डॉ विदुषी शर्मा

स्वच्छ भारत अभियान (कविता )

स्वच्छ भारत अभियान (कविता )

15 सितंबर से 20 सितंबर तक स्वच्छता अभियान से संबंधित सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से छाया चित्र और चलचित्र प्राप्त हुए। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वाकई में स्वच्छता अभियान एक ही दिन की सार्थकता रखता है यह मैं इसलिए कह रही हूँ कि कुछ चित्रों में लोग स्वयं कूड़ा फैला रहे थे और फिर उसे साफ कर रहे थे , कुछ चलचित्रो में डिब्बों में भरा हुआ कूड़ा साफ़ जगह पर डालकर  बुहार रहे थे और सबसे आगे वही लोग थे जो कूड़ा फैला रहे थे और दिखावे के लिए झाड़ू लगा रहे थे , कुछ चित्रों में हाथ में नाम के लिए झाड़ू ली गई थी मानो झाड़ू का भी अपमान हो रहा हो । बिना झुके बिना कोई ज़हमत उठाए प्रभुत्वजन हवा में ही झाड़ू मार रहे थे, कुछ आँखों पर काला चश्मा और महिलाएँ महंगी साड़ी और पुरूष स्वेत वस्त्रों में दिखाई दिए यह कौन-सा और कैसा स्वच्छता अभियान है अभियान वह नहीं जो एक ही दिन शुरू और एक ही दिन में खत्म हो जाए यह तो मात्र खानापूर्ति है ।
इसी को देख कुछ विचार सागर की लहरों की तरह आए और कलम की नोक पर छा गए जो कविताके रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ ।

स्वच्छ भारत अभियान

स्वच्छ भारत अभियान ।
सिर्फ एक दिन का है कार्यकाल ।
कूड़ा डाल सड़क पर स्वयं ।
करें फिर उसी कूड़े पर श्रमदान ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?

सफाई करते हुए फोटो डाली जाती है ।
सिमटे हुए कूड़े को उड़ेल
झाड़ू लगाई जाती है ।
नई झाड़ू खरीद बुहारी लगाई जाती है ।
एक ही दिन स्वच्छता अभियान से जुड़ने की रसम निभाई जाती है ।
फिर अगले दिन उसी कूड़े के ढेर को लांघ दिनचर्या गुजारी जाती है ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?

सरकारी ऐलान आते ही
विचार बनाया जाता है ।
सोच…एक दिन प्रचार हेतु
झाड़ू उठाया जाता है ।
भिन्न-भिन्न मुद्राओं में
फोटो खिंचवाया जाता है ।
स्वयं के प्रचार हेतु वही फोटो
जन-जन में बांटा जाता है ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?

घर में जो चम्मच भी न उठाते हैं ।
स्वच्छता अभियान में योगदान देने हेतु
झाड़ू भी लगाते हैं ।
दूसरों की नजरों में सम्मान पाने हेतु
प्रचार करवाते हैं ।
फिर अगले ही दिन
अपनी कुर्सी से चिपके नजर आते हैं ।
क्या यही है स्वच्छता अभियान ?

अगर यह है स्वच्छता अभियान तो क्यों है देश में हर जगह कूड़े का पहाड़ ?
क्या इसका जवाब है आपके पास ?
नहीं…
क्योंकि यह स्वच्छता अभियान है सिर्फ एक दिन सिर्फ एक दिन का महाजाल ।

नीरू महन 'वागीश्वरी'

Thursday, 20 September 2018

भारत उत्थान न्यास आमंत्रण

आज दिनाँक 19-09-2018 'भारत उत्थान न्यास' शोध संस्थान द्वारा अतिथि वक्ता और सारस्वत सम्मान हेतु आमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ । कार्यक्रम की अग्रिम बधाई प्रेषित करते हुए न्यास से जुड़े समस्त शिष्ट और विशिष्ट जन का धन्यवाद करती हूँ ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Wednesday, 12 September 2018

सम्मान कब मिलेगा (कहानी)

कहानी

सत्य को दर्शाती, इतिहास भी बताती, वर्तमान की दशा दिखाती, और भविष्य का चित्र बनाती सबको अपनी कहानी सुनाती अपने अधिकार की बात है करती सम्मान पाने की चाह लिए निकल पड़ी है खुली सड़क पर साथ आपका पाने अब…

शीर्षक
सम्मान कब मिलेगा

बिंदी माथे से खिसकी हुई, पल्लू भी सिर से सरका हुआ था; चेहरे की रंगत मानो पीली पड़ गई हो । एक बीमार, लाचार उठने के लिए प्रयासरत् , उड़ने के लिए बेचैन सखियों के बीच सहोदरी कहलाने वाली सभी को ध्वनि देने वाली आज असहाय सी रास्ता ढूंढ रही है । अपने ही देश में स्वयं जगह बनाने की कोशिश में निकल पड़ी है …साथी-संगी होते हुए भी किसी का साथ नहीं है सोच में डूबी वहाँ बैठी एक सखी से बात करती पूछ ही लेती है ।
बहन ! तुम कैसी हो ? तुम्हारा भी क्या वही हाल है जो मेरा हो गया है ? कोई मुझको अपना नहीं रहा है ? कोई मुझ में बात नहीं कर रहा है ? सभी मुझे हीन दृष्टि से देखते हैं । अगर कोई मुझे अपनाने की बात करता है या मुझे कोई गुनगुनाता है तो उनका स्वर वही बंद कर दिया जाता है…और उनसे पूछा जाता है कि क्या वह पढ़े लिखे नहीं हैं ? क्या कहूँ बहुत ही बुरा हाल बना दिया है मेरा मेरे ही लोगों ने उठने की भी सोचती हूँ तो वही मादा विदेसिन बाज़  फिर से मुझे झपट्टा मार देती है और मेरा मुँह नोच लेती है फिर क्या अपने  ही देस में मुँह छिपाएँ अंजान और अजनबी बनी हुई हूँ । मुझे लगता है जब तक मैं स्वयं को स्वयं से ही शक्तिशाली नहीं बनाऊँगी, स्वयं के लिए नहीं लड़ूँगी तब तक न तो मेरा भला होगा, न ही विकास और न ही सम्मान मिलेगा ; क्योंकि मैंने सुना है जो स्वयं से हार मान लेते हैं और हारकर पीछे हो जाते हैं उन्हें सफलता नहीं मिलती ।

सखी ! क्या कहना चाहती हो तुम ? क्या तुम समाज से लड़ोगी ? नहीं, मैं लड़ाई नहीं करूँगी, मैंने लड़ाई करना सीखा ही नहीं, यह मेरे संस्कारों में ही नहीं है । मेरे देश की मिट्टी ने मुझे लड़ना या यूँ कहूँ हिंसा से हक प्राप्त करना नहीं है सिखाया । मैं अपना हक प्राप्त करने के लिए अपने ही लोगों के बीच जाऊँगी, बच्चों की प्यार और लगाव की चाह में उनके मन में उतरूंगी और उन्हें अपनी अहमियत , ख़ासियत बताऊँगी । सखी ! इस संघर्ष में क्या तुम सब मेरा साथ दोगी ; उस मादा विदेसिन बाज़ का सामना करने और उसे खदेड़ने में जिसने मेरा यह हाल किया है और मुझे बदनाम करके आज मेरी ही जगह ले ली है । मुझे अपना स्थान प्राप्त करना है । मैं अपना स्थान किसी को नहीं दे सकती ।

क्या तुम्हें याद वो दिन हैं जब विदेशियों ने हमारे देश पर आक्रमण कर उसपर अपना राज स्थापित कर लिया था वर्षों की गुलामी के पश्चात हम आज़ाद तो हो गए मगर तब से आज तक मुझे उठने का मौका ही नहीं दिया गया मैं उठ ही नहीं पाई और आज तो यह हाल है कि विद्यालयों से लेकर कार्यालयों तक मुझे हीन दृष्टि से देखा जाता है, मुझमें संवाद नहीं किया जाता जो, मुझमें संवाद करते हैं उन्हें अनपढ़ समझा जाता है ।

बहन ! तुम सबने मेरी कहानी तो सुन ली मगर अपना-अपना नाम नहीं बताया मुझे तुम सब का साथ चाहिए क्या तुम मेरा साथ दोगी । हाँ बहन ! हम इस संघर्ष में तुम्हारे साथ हैं हमारा भी हाल तुम्हारे ही जैसा है तुम हमारी सहोदरी हो । इतने में बघेली आती है और पीड़िता से उसका नाम पूछती हुए कहती है कि बहन तुम चिंता मत करो हम सबको अपना नाम तो बताओ तुम्हारी यह दुर्दशा हमसे देखी नहीं जाती । सकुचाई सी भीगे नयनों में नीर लिए चेहरे से आँचल हटाकर कहती है…

मैं … मैं 'हिंदी' हूँ ; जो आज तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है अंग्रेजी ने मुझमें मिलकर मेरा अस्तित्व ही मिटा दिया है मुझे हिंदी से हिंग्लिश बना कर छोड़ दिया है मेरा अस्तित्व खतरे में है आज मुझे स्वयं का सम्मान चाहिए और यह सम्मान मुझे एक दिन सम्मान देकर नहीं मिलेगा । मेरा सम्मान तभी बढ़ेगा जब हर रोज मुझे सम्मान दिया जाए, मेरा प्रयोग किया जाए । मेरा प्रयोग कर लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें न कि अपनी ही संतानों को मेरा प्रयोग न करने के लिए कहकर उन्हें हतोत्साहित करें । जब तक जन-जन मुझे नहीं अपनाएगा मुझे सम्मान नहीं मिलेगा । मुझे राजभाषा का सम्मान तभी मिल पाएगा जब हिंदुस्तान हिंदी को अपनाएगा और तभी हिंदुस्तान हिंदी भाषी कहलाएगा ।

हिंदी में भाव हैं
हिंदी में अहसास है
हिंदी में विचार है
हिंदी में संचार है
हिंदी के बगैर कुछ नहीं
हिंदी हमारा स्वाभिमान है ।।

हिंदी दिवस की असीम और अनंत बधाई !

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Friday, 7 September 2018

व्यथा (कहानी)

कहानी

शीर्षक

** व्यथा **

यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है किसी भी व्यक्ति विशेष या संस्थान की भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए कहानी में पात्रों के नाम व स्थान बदल दिए गए हैं ।
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उषाकाल… सभी अपने-अपने कार्य स्थलों पर जाने के लिए तैयार, देरी के कारण बस छूटने की परेशानी, चाय बनने के पश्चात भी पी न पाने की लाचारी सिर्फ़ इसलिए कि विद्यालय पहुँचने में देर न हो जाए … रोज की तरह शुभ दिन की चाह लिए शीला भी निकल पड़ी अपने विद्यालय की ओर । शीला विज्ञान विषय की अध्यापिका है सभी विद्यार्थी शीला को बहुत प्यार करते हैं सभी को उनका समझाया बहुत पसंद आता है बच्चों के कहे अनुसार…उन्हें विज्ञान विषय में कोई भी परेशानी नहीं आती क्योंकि बच्चों की माने तो उनकी प्रिय अध्यापिका अपने विषय में प्रवीण हैं । शीला अपना कार्य बहुत ही मेहनत, लगन और स्वार्थ रहित होकर करती है वह सभी बच्चों को अपने स्वयं के बच्चों की तरह प्यार करती है और उनकी परेशानियों को और विषय संबंधित समस्याओं को बड़ी आसानी से सुलझा देती है सभी बच्चे शीला से बहुत प्यार करते हैं शीला बच्चों की प्रिय अध्यापिका है ।

छोटे से शहर रामनगर मध्य प्रदेश का विद्यालय जिसमें प्रातः की शुरुआत शुभ हो भी जाए परंतु पूरा दिन कैसे बीतेगा अच्छी खबरें मिलेगी या बुरी खबरें मिलेगी किसी को नहीं पता । रोज़ कोई न कोई समस्या विद्यालय के समक्ष प्रस्तुत हो ही जाती है चाहे वह अध्यापक से संबंधित हो या फिर विद्यार्थियों से संबंधित हो । अध्यापक यह सोचकर कि आज कोई भी समस्या का सामना न करना पड़े, कोई भी कांड न हो…ऐसा सोचकर विद्यालय में प्रवेश करते हैं । किसी बच्चे को क्या कहना है, कैसे व्यवहार करना है, किस तरह से बात करनी है, किसी विद्यार्थी को कोई बात बुरी न लग जाए; बस यही सोचकर कक्षा में प्रवेश करती हैं ??  विद्यालय में शिक्षक भयभीत हैं , विद्यालय प्रशासन से नहीं बल्कि बच्चों और उनके अभिभावकों के व्यवहार से …देखा जाए तो शायद आज सभी स्कूलों की यही समस्या है । विद्यालय में शिक्षण कार्य करना आसान नहीं रह गया है अपना सम्मान दांव पर लगा होता है । गलती न होने के बावजूद आप मुज़रिम बनकर कटघरे में खड़े होते हैं । विद्यालय में हर श्रेणी के चार या पाँच विभाग पर अंतिम विभाग उद्दंड बच्चों का है जो पढ़ाई में अच्छे नहीं हैं या पढ़ाई ही नहीं करना चाहते जिनका परीक्षा परिणाम 10% से 20% है । इन विभागों में ऐसे भी कुछ छात्र और छात्राएँ हैं जो अपनी पिछली कक्षा में अनुत्तीर्ण थे या फिर सभी विषयों में एक, दो या तीन अंक लेकर आए थे फिर भी छठी से सांतवी में प्रवेश पा गए । सातवीं कक्षा की छात्रा रश्मि कक्षा में अपशब्दों का इस्तेमाल करती है अपनी अध्यापिकाओं का कहना नहीं मानती । अभिभावक से कई बार बात हुई है मगर रश्मि के माता-पिता यह स्वीकार ही नहीं करते कि उनकी बेटी के व्यवहार में कमी है हाल तो यह है कि कक्षा में समस्त विद्यार्थीगण की कुछ न कुछ व्यवहारगत समस्याएँ हैं फिर भी सभी एक साथ बैठे हैं कोई सुधारे भी तो कैसे और किसे क्योंकि सभी एक से एक अव्वल दर्जे के हैं । झूठ तो सभी की जु़बान पर प्रथम ग्रंथी पर विराजमान रहता है । ऐसे में कक्षा अध्यापिका और विषय अध्यापिकाएँ करें तो क्या करें । उन सभी उद्दंड विद्यार्थियों को संभालना मुश्किल हो जाता है कक्षा अध्यापिका शीला भी बड़े धैर्य और संयम से इन बच्चों को संभालने का कार्य करती है । सभी शिक्षक इन विद्यार्थियों के व्यवहार से परेशान है यह बच्चे न तो स्वयं पढ़ना चाहते हैं और न ही दूसरों को पढ़ने देना चाहते हैं । पूरा दिन कक्षा को जंगल बनाकर रखते हैं जैसे जंगल में जानवरों को मनमानी करने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है उसी प्रकार से कक्षा में सभी विद्यार्थी अभद्र असहनीय व्यवहार करते हैं । कोई बच्चा किसी को मारता है, कोई किसी को पीटता है, कोई किसी को अपशब्द कहता है, कोई प्रेम खेल खेलता है और कोई किसी छात्रा के साथ गलत व्यवहार करता है यह आम बात हो गई है मगर शीला कुछ नहीं कर पाती । बच्चों से माफीनामा लिखवा लेती है और अभिभावकों को सूचित कर देती है परंतु अभिभावकों की तरफ से भी बच्चों के सुधार हेतु कोई भी कार्यवाही नहीं की गई बल्कि इस दिशा में विद्यालय प्रशासन ने ही कदम उठाया और इन सभी बच्चों की काउंसलिंग करवाई काउंसलिंग होने के पश्चात भी इन बच्चों के व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया । रश्मि भी कक्षा की छात्राओं के साथ सही शब्दों का प्रयोग नहीं करती या यूं कहें कि अपशब्दों का प्रयोग करती है ।

एक दिन तो उसने अपनी कक्षा की एक अन्य सहपाठी को यहाँ तक कह दिया कि वह उसे …खत्म कर देगी । एक छात्रा ऐसी बात अपनी किसी दूसरी अन्य छात्रा सहपाठी से कहे तो यह बहुत ही बड़ी बात है ऐसे में भी अध्यापक के हाथ बंधे रहते हैं क्योंकि आज एक अध्यापक को यह भी अधिकार नहीं है कि वह बच्चों को यह भी कह दे कि तुमने ऐसा क्यों किया या इस तरह के अपशब्दों का इस्तेमाल अपने सहपाठी के साथ क्यों किया । माता-पिता को इस विषय से अवगत कराया गया और उनको इस चीज की जानकारी दे दी गई परंतु अभिभावकों की तरफ से भी कोई उचित कार्यवाही या बच्चे को समझाने हेतु कदम नहीं उठाया गया । बच्चे का व्यवहार अभी भी ज्यों का त्यों ही है । रश्मि झूठ अभी भी बोलती है और अन्य सहपाठियों के साथ अपशब्दों का इस्तेमाल करती है । बच्चों को विद्यालय में अगर यही कह दिया जाए कि उनके माता-पिता को बुलाकर बातचीत करेंगे तो ऐसे में बच्चे कुछ न कुछ गलत जानकारी अपने माता पिता को प्रेषित कर देते हैं बस बच्चे अपनी पटकथा सोचनी और रचनी शुरू कर देते हैं जो रश्मि ने किया माता-पिता के समक्ष अपने हर गलत कार्य से मुकर गई और कक्षा की एक अन्य छात्रा वंदना पर ही इल्ज़ाम लगा दिया कि गलती वंदना की है । यह मामला यहीं नहीं रुका …।

रोजमर्रा की तरह आज भी विद्यालय का दिन शुरू हुआ सभी विषयों की अध्यापिकाएँ कक्षा में अपने-अपने कालांश में आईं और अपना-अपना विषय पढ़ाया । रश्मि का कार्य अधिकतर अधूरा रहता था और उसे गृह कार्य करने की भी आदत नहीं थी गणित का कार्य कभी भी पूरा नहीं करती थी । गणित अध्यापिका के अतिरिक्त समय देने के पश्चात भी रश्मि ने अपना कार्य पूर्ण नहीं किया गणित अध्यापिका ने रश्मि को कमर पर थप्पड़ मार दिया …रश्मि ने कक्षा में तो कुछ  प्रतिक्रिया नहीं दर्शाई परंतु घर जाकर अपनी मम्मी को अध्यापिका की शिकायत की उसके मारने की बात से भी अवगत कराया रश्मि का व्यवहार सही नहीं है वह झूठ बोलती है और उसे पता है कि मम्मी को वह किसी भी तरह से अपने काबू में ले सकती है मम्मी को वह कुछ भी कहे मम्मी उसकी बात को सही मानेगी । इसी का फायदा रश्मि ने उठाया और कमर में दर्द की बात कही रश्मि की मम्मी ने शिक्षक अभिभावक बैठक में कक्षा अध्यापिका से कहा कि गणित की अध्यापिका ने रश्मि को कमर पर मारा है उसकी कमर में दर्द रहता है आप गणित अध्यापिका से बातचीत करिएगा और उन्हें कहिएगा कि बच्चे पर हाथ न उठाएँ । बैठक समाप्त होने के पश्चात कक्षा अध्यापिका शीला ने गणित अध्यापिका से बातचीत की गणित अध्यापिका का कहना था कि रश्मि कार्य पूर्ण नहीं करती उसके लिए उन्होंने मारा नहीं मगर कार्य पूर्ण करने के लिए रश्मि को डांटा ज़रूर था । उस दिन इस विषय को आम समझकर प्रधानाचार्य के समक्ष नहीं रखा गया । मगर कहते हैं न कि मुसीबत कहकर नहीं आती । रश्मि के माता-पिता को रिश्तेदारों ने भड़काया कि आप ऐसा करने पर शिक्षक की शिकायत कर सकते हैं या उसके खिलाफ़ पुलिस कार्यवाही कर सकते हैं या विद्यालय से मुआवजा मांग सकते हैं या फिर विद्यालय से इलाज का खर्चा मांग सकते हैं । इसी का फायदा माता-पिता ने उठाया हो सकता है कि रश्मि को कमर में दर्द किसी और परेशानी के कारण हुआ हो मगर अभिभावकों ने इस बात को अध्यापिका की बात से जोड़कर विद्यालय प्रशासन को ब्लैकमेल करने की कोशिश की, कि रश्मि का पूरा इलाज अब विद्यालय करवाएगा । इस समय विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ने बहुत ही धैर्य से काम लिया और रश्मि को डॉक्टरी जांच के लिए भेज दिया जिसमें डॉक्टरों ने रश्मि को बिल्कुल सही और स्वस्थ करार दिया कि रश्मि को इस तरह की कोई परेशानी नहीं है मगर यहाँ पर प्रधानाचार्य जी ने गणित अध्यापिका के साथ कुछ सख्ती दर्शाई और शायद यह विद्यालय प्रशासन के लिए सही भी था जिससे कि वह भविष्य में आने वाली विपदाओं से बच पाए क्योंकि गणित अध्यापिका के सख्त व्यवहार के विषय में अन्य अभिभावकों ने भी विद्यालय प्रशासन को सूचित किया था और शिकायत भी की थी ।

आजकल बच्चों को कुछ भी कहने पर विद्यालय और शिक्षक के खिलाफ अभिभावक कार्यवाही कर सकते हैं चाहे गलती स्वयं उन्हीं के बच्चे की ही क्यों न हो । अध्यापकों की विद्यार्थियों के प्रति भावनात्मक सम्वेदनाओं को समझने की कोई कोशिश नहीं करता किसी को परवाह नहीं है कि अध्यापक अपने विद्यार्थियों के लिए अपने स्वयं के बच्चों  से बढ़कर सोचता है और उनके जीवन निर्माण में , उनके भविष्य निर्माण में वह हर तरह से योगदान देने के लिए हमेशा अग्रसर रहता है । विद्यालय भी नहीं चाहता कि वह किसी भी तरह की परेशानी में पड़े जिसका फायदा उठाते हैं ऐसे माता-पिता जो अपने बच्चों को सुधारना नहीं चाहते बल्कि अपने बच्चों के भविष्य निर्माण में और चरित्र निर्माण में बाधक बने रहते हैं तभी तो आज की पीढ़ी किसी का आदर सत्कार नहीं करती और शायद अपने अनुभव के आधार पर मैं भी यही कहूँगी कि आज सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति में शिक्षक है भविष्य निर्माण करने वाले आज स्वयं के वर्तमान और भविष्य को ही नहीं जानते उन्हें भी नहीं पता कि वर्तमान में उनके साथ क्या हो जाए और  भविष्य में क्या होने वाला है । उनके साथ किस समय क्या हो जाए नहीं पता …जिस प्रकार रश्मि के माता-पिता के समक्ष शीला को विद्यालय प्रशासन ने अपमानित किया… उच्च स्वर में वार्तालाप करके सिर्फ़ इसलिए कि उसने इस सब की सूचना विद्यालय प्रशासन को नहीं दी थी हालांकि विद्यालय प्रशासन गणित अध्यापिका के व्यवहार संबंधित विषय से अवगत थे क्योंकि गणित अध्यापिका के व्यवहार की जानकारी अभिभावकों ने इससे पहले भी दी थी । परिणाम… गणित अध्यापिका को विद्यालय से निष्कासित कर दिया जाता है और कक्षा अध्यापिका से क्षमा याचिका पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं ।

जब तक विद्यालय प्रशासन अभिभावकों के समक्ष अपने शिक्षकों का सम्मान नहीं करेगा तब तक न तो उन्हें बच्चों से और न ही उनके अभिभावकों से सम्मान प्राप्त हो पाएगा । शिक्षक केवल सम्मान की रोटी खाते हैं न कि अपमान की । जब तक  सम्मान मिलेगा वह स्वयं कार्य करना पसंद करेंगे और सम्मान नहीं मिलेगा तो वह शायद अपने पद को स्वयं भी छोड़ सकते हैं। स्वाभिमान सब को प्रिय होता है । इस घटना के पश्चात शीला भी विद्यालय में काम करना नहीं चाहती थी मगर उसने  विद्यालय से त्यागपत्र नहीं दिया क्योंकि अगर इन परेशानियों से एक शिक्षक जो भावी पीढ़ी का भविष्य निर्माता है हार मान लेगा तो शायद ज्ञान की ज्योंति ज़्यादा समय तक कायम नहीं रह पाएगी । ज्ञान गंगा के सदैव प्रवाह के लिए शिक्षकों को सदैव सकारात्मक रहना होगा नहीं तो विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार में डूब जाएगा ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Tuesday, 4 September 2018

शिक्षक एक बहती नदी (लेख)

विश्व के समस्त शिक्षकों को शिक्षक दिवस की अनंत बधाई …
आज आपके समक्ष मेरा यह लेख कुछ प्रश्न लिए हुए है ।

**एक बहती नदी है शिक्षक**

ज्ञान देने वाला…शिक्षक
शिखर तक पहुँचाने वाला… शिक्षक
भविष्य निर्माता…शिक्षक
शिष्यों के लिए एक दर्पण…शिक्षक
ज्ञान सागर…शिक्षक
समस्त गुण जिसमें समाहित…कुशल शिक्षक

क्या शेष हैं आज ऐसे शिक्षक

शिक्षक दिवस शिक्षकों के लिए अत्यंत गर्व करने और गौरवान्वित होने का दिन है । शिष्यों के लिए उनके गुरू पूजनीय होते हैं और जिन शिक्षकों / गुरूओं से उन्हें सही ज्ञान , मार्गदर्शन , और स्नेह प्राप्त होता है वह गुरू प्रत्येक विद्यार्थी के लिए पूजनीय होता है । आज के दौर में सम्मान प्राप्त करना एक खेल और सम्मान देने वालों के लिए सम्मान देना एक व्यवसाय हो गया है इस बात से सभी भलीभांति परिचित हैं । फेसबुक के माध्यम से बहुत सी ऐसी ही जानकारी जो हम नहीं जानते सहजता से प्राप्त हो जाती है अब चाहे वह जानकारी किसी व्यक्ति, वस्तु या फिर किसी भी स्थान से संबंध रखती हो । फेसबुक के ही माध्यम से कुछ ऐसे शिक्षक रू-ब-रू हुए जिनका लेखन कौशल प्रवीण नहीं फिर भी वह संस्थाओं द्वारा शिक्षक सम्मान के लिए चयनित हैं; उनके स्वयं के लेखन में जो वह फेसबुक पर पोस्ट करते हैं अनंत त्रुटियाँ होती हैं । यहाँ मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं बल्कि मेरा आशय गुणवत्ता से है । कुछ सवाल जो बार-बार मेरे मस्तिष्क और मन से बाहर आने के लिए मचल रहे हैं … सम्मानों को लेकर हैं खासकर शिक्षक सम्मान को लेकर ।
* क्या शिक्षक सम्मान हेतु चयनित वह व्यक्ति होना चाहिए जो जनमानस में लोकप्रिय है ?
* क्या वह शिक्षक जिसने अन्य क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा सम्मान प्राप्त किए हैं ?
* क्या वह शिक्षक जो अपने विद्यार्थियों का प्रिय है और अपने कार्यों के प्रति वचनबद्ध ?
*क्या वह शिक्षक जो अपने विषय का ज्ञाता है और सही ज्ञान देता है जिससे भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन हो और वह अपने जीवन में हमेशा सफल बनें
या वह शिक्षक जो चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा सम्मान बटोरे जाएँ ? जितने सम्मान, उतनी ख्याति और जितनी ख्याति उतना आतिथ्य यही हो रहा है । सक्षम व्यक्ति या तो सामने नहीं आते क्योंकि वह प्रसिद्ध नहीं और आते भी हैं तो उनके पास सम्मानों को प्राप्त करने के लिए उतनी धनराशि नहीं जिससे वह सम्मान पा सकें परिणाम स्वरूप ऐसी स्थिति में अनुपयोगी थाली में छप्पन भोग वाली कहावत सार्थक होती है ।

कहते हैं,जो राष्ट्र अपने देश के शिक्षकों का सम्मान करता है|
उसका भविष्य सदैव उज्ज्वल रहता है|
ज्ञान हमें शक्ति देता है|
प्रेम हमें परिपूर्णता देता है|
पुस्तकें वह साधन है,
जिसके माध्यम से हम,
विभिन्न संस्कृतियों के बीच,
पुल का निर्माण कर सकते हैं|
एक शिक्षक के लिए सफलता का सबसे बड़ा संकेत…. यह कह पाना है कि "बच्चे अब ऐसे काम कर रहे हैं जैसे कि मेरा कोई अस्तित्व ही न रहा हो|"

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'