*कुछ लापरवाहों की लापरवाही का
करता है पूरा समाज भुगतान ।
स्कूलों से विश्वास उठ जाता है ।
अध्यापकों को भी बिन बात के
सताया जाता है ।
गुरू का स्थान निम्न हो जाता है ।
विद्यार्थी मनमानी पर उतर आते हैं ।
गुरुओं का सम्मान वो न कर पाते हैं ।
*उड़ाते हैं मजाक आज के शिष्य गुरूओं का
कैसे पाएँगे ज्ञान न गर करेंगे सम्मान गुरुओं का
एक समय था भगवान से ऊपर का दर्जा गुरूओं का
अंग शरीर का न्यौछावर शिष्य करते थे गुरु दक्षिणा का
*आज के विद्यार्थी न तो मान रखते हैं विद्यालय का न ही गुरुओं का
महज़ रोज की दिनचर्या का एक भाग बना है शिक्षा का
*बच्चों की छीक से भी अध्यापक को डर लगता है
छात्रों का सिर दर्द भी एक बहुत बड़ी समस्या का जिक्र करता है
*आज के विद्यार्थी झूठ का सहारा लेते हैं माता-पिता को स्वयं अच्छा दिखाकर अध्यापक को गुनहगार कहते हैं
*अध्यापक बेबस और लाचार अब लगता है
बच्चों के आगे उसका ज्ञान क्षीण लगता है
*ज्ञान का दीपक जलाता है और स्वयं जलता है
कभी स्कूल प्रबंध का तो कभी अभिभावकों का शिकार बनता है
*अपने शिष्यों को सही राह दिखाने की जद्दोजहद में केवल सिर्फ अध्यापक ही सूली पर क्यों चढ़ता है
*सुना तो खूब था कि दीपक स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी पहुँचाता है
फिर क्यों दीपक की अंधेरों में गुम हुआ जाता है
*आजकल के विद्यार्थी तो कम शिक्षक प्रताड़ित ज्यादा होते हैं
मानसिक रूप से वह रोज़ बच्चों का शिकार होते हैं
*समय वह आया है कि बच्चों की गलती को देखकर भी चुप्पी साँध लेते हैं
क्योंकि आजकल के विद्यार्थी अपने शिक्षक को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं
*नहीं होते हैं एकलव्य जैसे शिष्य आज इस दुनिया में
जो बिन गुरु के भी ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और गुरूदक्षिणा में अपने शरीर का अंग भी गुरू को भेट में दे देते हैं ।।
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