Thursday, 28 December 2017

हाइकु part 2

रहो सभी स्वस्थ
रक्तदान हो धर्म
है पुण्य कर्म

हंसवाहिनी
है बल-बुद्धि दात्री
ईप्सा सफल   

पुष्प सौरभ
मधुप मधुराए
प्राप्त गौरव

गहरे राज़
जलनीधि समाएँ
खुल न पाएँ

वन व सर
प्रकृति धरोहर
है मनोहर

राणा प्रसन्न
दे मीरा को माहुर
चाल विफल     

सागर तट
प्यासा है मुसाफिर
तृष्णा अतृप्त

जलधि जल
गहरा और खारा
सेलाब लाता

निर्झरी नीर
मधुर कहलाता
प्यास बुझाता

अमृत मन
मृदुभाषी संसर्ग
सुधा बरस

जीवन खेल
विरह और मेल
बढ़ाए प्रेम

क्षुब्धा न शांत
अन्नकूट आपार
लालच त्याग

मन से देखें
दृष्टिहीन ये जग
निर्मल मन

नग की बेल
है चाहती सहारा
बढ़ती ज्यादा

दल का दल
देश का रखवाला
सीमा रक्षक

दक्ष तपन
तीव्र ईर्ष्या अगन
भस्म सर्वस्व

तृष्णा बढ़ती
दुष्कर्म करवाती
मान घटाती

तमिस्र मिटे
विधा धन पा कर
ज्ञान प्रबल

आज के युवा
पढ़े-लिखे बेकार
देश का नाश

मौज मनाती
अनुसूचित जाति
नोट कमाती

पुजती नारी
मंदिर गृह द्वारे
लक्ष्मी है आवे   

असुर देव
नतशिर समस्त
नारी समक्ष        

नारी का क्रोध
ब्रह्मांड भी हिलाए
विनाश लाए    

जल ही प्राण
धरा हो खुशहाल
जीवनदान

बहती धारा
जीवन है हमारा
दिशा न पाए

झूठ का बीज
किसी काम न आए
दुर्गंध आए

गीता का सार
अब कौन सुनाए
अज्ञानी सारे

चोरी की माया
दूसरों की खुशियाँ
रास न आएँ

कानून अंधा
अन्याय का फ़ँसाना
कसता जाए

है दिशाहीन
नौकरशाही सारी
कौन बचाए

नवीन वर्ष   *
चहुँ ओर प्रकाश
नव प्रभात

नए विचार
नव वर्ष के साथ
मिले संमार्ग

प्रकृति गाए
सुरीला मलहार
विहग साथ

नव अंकुर
सकारात्मक भाव
करो प्रसार

देश सौहार्द
नव वर्ष के साथ
हो प्रसारित

देश के वीरों
नतमस्तक देश
तुम्हारे आगे

वीरों नमन
बलिदान तुम्हारे
आभारी हम

जन्म मरण
ईश्वर के हाथ में
कर्म किए जा

मन संभालो
बेकाबू हुआ जाए
दुर्गति पाए

धूल चटाता
बेलगाम तुरंग
हार दिलाता

घड़ी की सुई
कभी न थकती
संदेश देती

बर्फीली वात
बारिश की फुहार
प्यास बढ़ाए

नभ के पंछी
मदमस्त हुए जाएँ
नीड़ बनाएँ

बसंत आए
बसंती रंग छाए
विहग गाएँ

ऊँचा गगन
श्वेत है नभतल
इच्छा अनंत

जलधि धारा
लहर लहराए
उमंग छाए

बालू का ज़र्रा
रेत में मिल जाए
खेल खिलाए

बच्चों को भाता
समुद्र का किनारा
घर बनाना

डूबता रवि
है स्वर्णिम अधिक
शांत रश्मि

उषा फैलाए
उदित दिवाकर
धरा प्रसन्न             

सांझ ढले ही
गोधूलि-सी चाँदनी
मन लुभाए

गौ का गोबर
है शुभ कहलाता
पूजा है जाता

गौ मूत्र करे
रोगों का निवारण
स्वस्थ हो तन

राम सिया के
कंटक सारे काढ़े
वन के मार्ग

सुता हमारी
आँगन की दुलारी
सबकी प्यारी      

सुता-सुत हैं
मात-पिता की जान
प्यारी संतान   

लाज का पर्दा
नारी का अभिमान
सम्मान करो     

नोट बंदी थी
ये नेताओं की चाल
मचाई मंदी

हरित धरा
मन हुआ मयूरा
हर्ष से भरा

चित अशांत
देख देश का हाल
रोको विनाश

आज के युवा
बल-बुद्धि से प्रोत
संपूर्ण जोश

युवाओं जागो
अधर में है देश
इसे उबारो

खत्म करो ये
नेताओं का खेल
फैले शमन

देश के नेता
खूब मेवा हैं खाते
काम न आते

खंडित धागा
किसी काम न आता
गाँठ बनाता

टूटा बंधन
कड़वाहट लाता
जुड़ न पाता

उलझी डोर
सुलझाई न जाए
नष्ट हो जाए

जीवन मेरा
बालू का ज़र्रा बन
चमक रहा

चुनाव आएँ
नेता शोर मचाएँ
भूखे हो जाएँ

दीन का वोट
नेताओं को है भाए
दंगे कराएँ

घड़ी की सुई
मानव का जीवन
चलता जाए

नीला अंबर
ऊँचाई है दर्शाए
आशा जगाए

गोधूलि संध्या
विहग कलरव
प्रकृति रम्या

कनक बाली
कृषक बदहाली
पेट है खाली

शीत पवन
कोहरे की चादर
करे दमन

ओंस की बूंदे
मोती बन बिखरीं
जग प्रसन्न

वागीश माया
कलम की ताकत
देश जगाया

कपट त्यज
आत्मसात हो सत्य
सत्कर्म कर

पुष्प कंटक
रहते संग-संग
द्वेष को त्यज

बहुत प्यारे
सुत-सुता हमारे
घर के तारे     

जीवन साथी
सुख-दुख के संगी
बने सारथी     

सुप्त हैं नेता
है भ्रष्ट प्रशासन
कष्ट ही देता

जलधि तट
रेतीला घरौंदा ही
जल्द हो नष्ट

रेतीले स्वप्न
बिखर सभी जाते
मुट्ठी भी बंद

उदधि धारा
उफनती है जब
सैलाब लाती

जीवन नैया
भवंडर में फसती
बिना खिवैया

पर्णकुटिया
वनवास बिताया
रघु की माया      

शीतल चंदा
श्वेतांबर है नभ
धरा प्रसन्न

इंद्रधनुष
अंबर का गहना
वर्षा का फल

नेह बरसे
लाचारी है लाचार
देह तरसे

सिर पे कर्ज़ा
आँसू बन बरसा
मिले न दर्जा

आत्मदाह से
आत्महत्या करता
कृष मरता

कवि हमारे
पूरे देश के प्यारे
सत्य बताते

प्रभु भजन
प्राकृतिक सौंदर्य
उत्साही मन

नई उमंग
नव चेतना लिए
धरा प्रसन्न

नीम का वृक्ष
है रोग निवारक
दे मीठा फल

रोग हो नाश
नीम वृक्ष महान
करे कमाल

नीम दातुन
दंत रोग नाशक
अमूल्य रत्न

हर मर्ज़ पे
नीम करे कमाल
रोग समाप्त

नीम की छाया
जिस घर में छाई
जीवन दायी          

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