Tuesday 6 June 2017

**वर्तनी विचार और शब्द विचार** करो सभी अब ऐसे याद** सुगम सरल हिंदी व्याकरण

वर्तनी विचार और शब्द विचार |

 सुगम सरल करो व्याकरण ज्ञान |

****** वर्तनी *****

* लेखन में प्रयुक्त लिपि चिन्हों के व्यवस्थित रूप को कहते हैं वर्तनी |
वर्तन करना जिसका अर्थ |
बोली जैसे जाती है |
लिखी भी वैसे जाती है |
जिस ध्वनि का जिस क्रम में होता उच्चारण
उसी क्रम में होता उसका लेखन ||
**उदाहरण- फूलदान न की नदाफलू

***** परसर्ग ******

* संज्ञा शब्दों के परसर्ग चिह्न अलग लिखे जाते |
सर्वनाम शब्दों के परसर्ग चिह्न मिलाकर आते |
सर्वनाम और परसर्ग के बीच-ही,तक, भी,तो,मात्र,भर का निजात हो जाए |तब विभक्ति को सर्वनाम से अलग कर जाए |
संज्ञा – जैसे- सीता ने , राम को सर्वनाम – जैसे- उसको , उसका सर्वनाम और परसर्ग – जैसे- आप ही के लिए , मुझ तक पर

******* क्रिया पद *******

*संयुक्त क्रिया की सभी क्रियाओं को लिखो अलग-अलग |
तभी कर पाओगे वाक्य को सरल |
जैसे:- पढ़ा जाता है, दौड़ता गया बढ़ते चले जा रहे थे |

******* योजक चिन्ह *****

योजक चिन्ह का प्रयोग भाषा में स्पष्टता के लिए किया है जाता |
इसमें प्रयोग के लिए योजक चिन्ह प्रयोग में लाया है जाता |
*द्वंद समास के पदों में योजक चिन्ह अवश्य है लगाया जाता |
जैसे:- राम-लक्ष्मण, सुख-दुख
*तत्पुरुष समास में योजक का प्रयोग भ्रम अवस्था में ही प्रयोग किया जाता जैसे:- भू-तत्त्व
*सा, सी से पहले योजना का प्रयोग अवश्य ही होगा |
जैसे:- हनुमान-सा भक्त
चाकू-सा तीख
व्याकरण हमें यह बोध कराता |

******* अव्यय *******

तक,साथ, निकट, पास आदि अव्यय अलग लिखे जाते |
उदाहरण:- मेरे साथ, यहाँ तक, समुंद्र के निकट यही दर्शाते |
अव्ययों के साथ विभक्ति चिह्न भी आते परंतु नियमानुसार अव्यय हमेशा अलग ही लिखे जाते |
जैसे:- तुम्हारे ही लिए,उस तक का *सम्मानसूचक अव्यय श्री तथा जी भी अलग लिखे जाते |
जैसे:- श्री जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी जी |
प्रति, यथा, मात्र, अव्यय मिलकर लिखे जाते |
जैसे:- यथाशक्ति, प्रतिदिन, प्राणीमात्र यह शब्द यही है बतलाते |

******* अनुस्वार ******

*अनुस्वार स्पर्श व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग की अंतिम नासिक्य व्यंजन ध्वनि है |उच्चारण के स्तर पर अनेक रुप से यह बनी है |
लेखन के लिए प्रयुक्त केवल एक ही स्वर ( ं ) चिह्न है |
*यदि पंचम वर्ण जब दूसरे पंचम वर्ण के साथ संयुक्त हो जाए |
य व ह से पहले आए
तब वह अनुस्वार में नहीं बदला जाए उदाहरण:- अन्य, सम्मेलन, तुम्हारा जन्म से यह पता चल जाए |

****** अनुनासिक ******

*यह स्वरों का गुण कहलाता |
चाँद बिंदु चिह्न ( ँ ) लिए आता |स्वरों की मात्रा शिरोरेखा से ऊपर जब होती |
तो केवल बिंदु ( ं )ही रह जाता |शब्दों में इसका प्रयोग अवश्य किया जाता |
अन्यथा शब्दों का संपूर्ण अर्थ ही बदल जाता |

****** शब्द विचार *******

*वर्णों के मिलने से जो ध्वनि समूह स्वतंत्र और निश्चित अर्थ बतलाता है |होता वह भाषा का आधार |
जी हाँ ,वही शब्द कहलाता है |

*शब्द के होते भेद चार
अर्थ, व्युत्पत्ति, उत्पत्ति, प्रयोग के आधार पर बनता शब्द भंडार
अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद हैं होते |
सार्थक,निरर्थक शब्द जो कहलाते |
सार्थक के भी चार प्रकार एकार्थक, अनेकार्थक, समानार्थक, विपरीतार्थक जिनका आधार |

*निरर्थक शब्द बिना अर्थ के होते |
नहीं होता इनका कहीं भी इस्तेमाल

*बनावट/व्युत्पत्ति के आधार पर भी शब्द के भेद दो होते |
मूल या रूढ़ शब्द और व्युत्पन्न शब्द यही वह होते |
मूल शब्द के टुकड़े नहीं होते |
व्युत्पन्न शब्द दो तरह के होते |
योगिक, योगरूढ़ यह कहलाते |
शब्दों का भंडार बढ़ाते |
जब मूल शब्द में अन्य शब्द जोड़ा जाता |
योगिक शब्द वह बनाता |
जो योगिक होते हुए भी एक अर्थ में रूढ़ हो जाते |
योगिक रूढ़ शब्द वह कहलाते |
लंबोदर, नीलकंठ, दशानन इत्यादि शब्द योगरूढ़ शब्द है कहलाते |

*चार भेद उत्पत्ति का आधार बताते |तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी इसमें है आते |

संस्कृत के वह शब्द जो मूल रूप में हिंदी प्रयोग में लाए जाते तत्सम कहलाते | जैसे- कृषक, ग्रह

हिंदी में जो बदले रूप में पाए जाते तद्भव शब्द वह कहलाते |
जैसे- हाथ(हस्त) आग(अग्नि)

परिस्थिति एवं आवश्यकता के कारण लोक भाषा में आए शब्द देशज शब्द कहलाये |
रोटी, पेट, भौं-भौं देशज शब्द में आए

विदेशी भाषाओं से हिंदी में जो आए विदेशी शब्द है कहलाए |
स्कूल, दुकान, हाज़िर, कैंची, चाबी अंग्रेजी, फारसी, अरबी, तुर्की, पुर्तगाली से आए |

आठ भेद प्रयोग की दृष्टि से कहलाए संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया-विशेषण,संबंधबोधक,
समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक शब्द कहलाए ||

*खत्म हुआ है आज का पाठ
करलो अब बच्चों स्वम अभ्यास ||

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