Wednesday, 11 March 2020

सुनहरी धूप… संस्कारों की (लघुकथा)

सुनहरी धूप… संस्कारों की 
सुबह के इंतज़ार में निशा पूरी रात करवटें बदलती रही । 4:00 बज गए हैं… माधव ने कहते हुए करवट ली । थोड़ी देर सो भी जाओ, मुझे पता है तुम्हारी नींद कहां उड़ गई है । मैं समझ सकता हूं । मार्च के महीने में तुम्हारी यह बेचैनी हर साल आती है जब से तुम्हारा बेटा विलायत गया है तब से हर साल उसके आने की खुशी में यह बेचैनी तुम्हारे चेहरे पर झलकती है । बातें करते-करते कब उजाला हो गया पता ही नहीं चला । पक्षियों का कलरव वातावरण में मिठास घोलने लगा । प्रभात की पहली किरण मानो नया सवेरा लेकर निशा के अंतर्मन में एक नई उमंग पैदा कर रही है । निशा … उठो माधव नहा धो लो । अरे , क्या निशा .… तुम भी न… गौरव ही तो आ रहा है ; वह भी सिर्फ 1 साल बाद …मजाक उड़ाते हुए रोज तो उससे बात करती हो फिर भी । माधव तुम्हें क्या पता एक बेटे के आने की खुशी एक मां के लिए क्या होती है? हां भई, वो तो सिर्फ तुम्हारा ही बेटा है न । मेरा……तोओओओ… अरे नहीं माधव! मुझे पता है तुम अपनी खुशी और प्यार जाहिर नहीं करते ; मगर मुझसे ज्यादा तुम गौरव से प्यार करते हो । अरे नहीं भई … मैं मां बेटे के प्यार के बीच में नहीं आता । चलो, अब बताओ क्या बना रही हो ? अपने लाड़ले के लिए । महेश… (गौरव का चाचा) अरे भैया आज तो हम सभी को पता है… चाची (राधिका) स्वर से स्वर मिलाकर बोली वही गौरव के सबसे स्पेशल और हमारे भी… दाल - चावल हींग के तड़के वाले और उसके साथ ताजे दूध की रबड़ी मेवा भरी । विलायत में रहकर भी हमारा गौरव पूरा भारतीय है । अपनी सभ्यता संस्कृति और संस्कारों को भूला नहीं है । 

इतने में दरवाजे की घंटी बजती है । घर में गौरव के आने की खुशी, सभी दरवाजे की तरफ दौड़ते हैं और जैसे ही दरवाजा खोलते हैं, दरवाजे पर सीमा (गौरव की चचेरी बहन) अंदर प्रवेश करती है । क्या हुआ? कहते हुए… सभी की बेचैनी और उत्साह भांप लेती है । ओह! गौरव भैया का इंतजार हो रहा है ; उनकी तो फ्लाइट लेट है ; वह भी 6 घंटे । सभी के मुंह से… क्या…… इतने में गौरव कमरे में प्रवेश करता है । सभी की खुशी का ठिकाना नहीं है । गौरव सभी के चरण स्पर्श करता है । दादा - दादी की तस्वीर के समक्ष जाकर उनका आशीर्वाद लेता है इससे पता चलता है कि गौरव विलायत में रहकर भी अपने संस्कारों को नहीं भूला है । पूरा दिन बातें चलती हैं, हंसी मजाक, खाना-पीना बस पूरा परिवार गौरव की यह छुट्टियां भी हर साल की छुट्टियों की तरह यादगार बनाना चाहते हैं । यह परिवार एकता की मिसाल है जहां भाई - भाई से बहुत प्यार करता है । भारतीय संस्कारों की जड़े आज भी इस परिवार में देखी जा सकती हैं ।आज संयुक्त परिवार का उदाहरण है गौरव का परिवार ।रात कब हो जाती है पता ही नहीं चलता । खाने से निपट कर सभी आइसक्रीम का लुफ्त उठाते हैं । आज तो रतजगा है कहते हुए सभी हॉल में ही एक साथ सोने का मन बनाते हैं । बिस्तर बिछाया जाता है एक तरफ गौरव की चाची, मम्मी और चचेरी बहन और दूसरी और गौरव, माधव और मुकेश छह सदस्यों का पूरा वृत्त मानो पूरी पृथ्वी को समेटे हुए एक मिसाल प्रस्तुत कर रहा हो …एकता, सौहार्द, भाईचारे, और प्रेम की । 

गौरव …पापा आपको नहीं लगता अब यह घर छोटा पड़ता है ; क्यों न हम एक नया और बड़ा घर ले लें ? वैसे भी पापा मेरे सभी दोस्तों के घर बड़े हैं । कभी न कभी तो हमें बड़ा घर लेना ही है तो क्यों न हम अभी से इस के बारे में सोचें । माधव बेटे के मुंह से बड़े घर की बात सुनकर भौंचक्का रह जाथा है । सभी गौरव की तरफ देखने लगते हैं । राधिका, निशा और सीमा नि:शब्द एक दूसरे की ओर देखती हैं । माधव पहले मुकेश को देखता है फिर गौरव को और कहता है बेटा गौरव में अपने छोटे भाई से अलग नहीं रह सकता और न ही मैं कभी उसे छोड़ सकता हूं । यह पूरा परिवार तुम्हारे दादा - दादी का सुंदर सपना है और इस सपने को मैं टूटने नहीं दे सकता । गौरव पापा के मुंह से यह बात सुनकर कहता है… पापा मेरा मतलब वह नहीं है जो आप सोच या समझ रहे हैं । जैसे आप चाचू से अलग नहीं रह सकते वैसे ही मैं भी अपने पूरे परिवार के बिना नहीं रह सकता । मैं तो सिर्फ बड़े घर की बात कर रहा था जिसमें हम सभी मिलकर रहेंगे । मैं अलग होने की बात नहीं कर रहा था और न ही कभी कर सकता हूं …आप ही का बेटा हूं पापा । मेरे लिए जैसे आप हैं वैसे ही चाचू स्थान रखते हैं । गौरव की बात सुनकर माधव और मुकेश की आंखों में आंसू छलक आते हैं ; मानो उन्हें दुनिया की सारी खुशियां मिल गई हों। अपने बच्चों में पोषित होते परिवार के संस्कारों को सुनहरी धूप के उजाले की तरह चमकता देख रहे थे  दोनों । 

आज माधव जैसी परिवार गर हर समाज में स्थापित हो जाए तो संयुक्त परिवार की परंपरा को दोबारा से लाया जा सकता है । जो परंपरा आज आधुनिकता की दौड़ में धूमिल हो गई है , जहां संयुक्त परिवारों ने एकल परिवारों का रूप ले लिया है वहां आज समाज को बदलने के लिए हमारी आने वाली पीढ़ी को ही कोशिश करनी होगी । अगर हम संस्कारों और भावनाओं की इस डोर को मजबूत कर पाए तो समाज में ना ही वृद्ध आश्रम होंगे और ना ही किसी लड़की के साथ कोई गलत व्यवहार करेगा ना ही परिवारों में मनमुटाव होगा और ना ही कोई एक दूसरे से अलग होगा । कहते हैं जिस घर में संस्कार हैं देवता का वास है और जहां देवता का वास है वह घर स्वर्ग के समान है ।

No comments:

Post a Comment