ग्रीष्मा कालीन अवकाश …क्यों नहीं 10वीं एवं 12वीं के विद्यार्थी भी हकदार ???
वार्षिक परीक्षा के उपरांत जितनी खुशी नई कक्षा में जाने की होती है उससे कहीं दोगुनी ख़ुशी ग्रीष्मकालीन अवकाश के आगमन की होती है । पूरे साल विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक और सगे - संबंधी इन्हीं दिनों का इंतजार करते हैं । सभी के अधूरे कार्य , मिलना - जुलना , नाना - नानी के घर जाना , सगे संबंधियों से मिलना सभी कुछ पहले से ही तय कर लिया जाता है और बच्चों में तो ग्रीष्मकालीन अवकाश का ज्यादा ही जोश दिखाई देने लगता है । अगर हम 30 दशक पीछे जाते है तो पाते हैं कि हमारे समय मैं गर्मियों की छुट्टियों का कुछ अलग ही मजा था ऐसा नहीं कि हमे काम नहीं मिलता था और ऐसा भी नहीं कि हम पूरा दिन खेलते रहते थे बस हमारे समय में पढ़ाई की इतनी मारा मारी नहीं थी आंटी विद्यालयों ने बच्चों और शिक्षकों को कोहलू का बैल समझ रखा है जितना काम लेना है लिए जाओ बच्चों के स्तर पर ये देखे बिना कि सामने वाले में इतना सामर्थ्य है भी या नहीं । अाज नर्सरी का बच्चा भी ट्यूशन पढ़ता है क्या जरूरत है इसकी ? क्या बच्चों से हम उनका बचपन नहीं छीन रहे ?
आज विद्यालयों ने अपनी मनमानी करनी आरंभ कर दी है चाहे सीबीएसई की गाइडलाइन हो या फिर विद्यालय के अपने नियम कानून । शिक्षा के मंदिरों में भी प्रतिस्पर्धा की दौड़ लगी है । जहां तक प्राइवेट विद्यालय की बात करें तो ग्रीष्मकालीन अवकाश दसवीं और बारहवीं के बच्चों को नहीं प्रदान किया जाता । उपचारात्मक कक्षाएं या यूं कहें कि उनकी एक्स्ट्रा क्लासेज लगा दी जाती है । आज तक यह नहीं समझ आया है कि 10 /15 दिन एक्स्ट्रा क्लास लगा कर क्या संपूर्ण पाठ्यक्रम की पूर्ति हो जाती है । बच्चों को और अध्यापकों को ग्रीष्मकालीन अवकाश न देना या उपचारात्मक कक्षाओं के नाम पर उन्हें अवकाश के समय बुला लेना कहां तक तर्कसंगत है । पूरे साल भर एक शिक्षक जिस तरह से कार्य करता है वह किसी से छिपा नहीं है गैर सरकारी, प्राइवेट और इंटरनेशनल स्कूलों में जितनी मासिक आय दी जाती है उससे कहीं अधिक अध्यापकों से कार्य लिया जाता है । पय कमिशन के नाम पर जो अाय उन्हें दी जाती है उससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है । पूरे साल की मेहनत के पश्चात उत्तम परीक्षा परिणाम देने के बावजूद कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता हां परीक्षा परीणाम संतोषजनक न मिलने पर संबंधित अध्यापिका को कटघरे में जरूर खड़ा कर लिया जाता है ।
जहां तक ग्रीष्मकालीन अवकाश की बात करें तो ग्रीष्मकालीन अवकाश चाहे सरकारी या प्राइवेट स्कूल के विद्यार्थी एवम् शिक्षक हो सभी को समान रुप से मिलना चाहिए । छुट्टियों के हकदार सभी हैं पूरे साल की भागदौड़ के बाद सभी को आराम चाहिए । सरकार को चाहिए कि एक नियम के तहत यह निश्चित करें कि सभी विद्यालयों को चाहे वे सरकारी, गैर-सरकारी प्राइवेट या इंटरनेशनल स्कूल हो सभी को इन नियमों का पालन करना अनिवार्य होगा । कुछ गाइडलाइन ऐसी रखी जाए जो सामान्य रूप से सभी स्कूलों के लिए लागू हो जिससे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को रोका जा सके । इस विषय पर वागीश्वरी न्यास भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड (एनजीओ) की संस्थापक डॉ. वागीश्वरी की बातचीत कई शिक्षिकाओं से हुई जिनमें सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों के शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी थे जिनकी समस्याएं सम्मान थी ।
उपचारात्मक कक्षाओं के नाम पर सिर्फ़ औपचारिकताएं ही पूरी की जाती हैं जिनको आप सभी शिक्षक बेहतर जानते होंगे परंतु कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि नौकरी का सवाल होता है । आपकी इसी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है । कई शिक्षिकाओं से बात करके यह अनुभव हुआ कि आज विद्यालयों में चाहे वह अंदरुनी स्तर पर हो या वरिष्ठ वर्ग पर … राजनीति ने घर कर लिया है । आज काम की महत्ता के स्थान पर चाटुकारिता की महत्ता है ।
सभी शिक्षको और बच्चों की ओर से वागीश्वरी संस्थान शिक्षा विभाग से अनुरोध करता है कि तीस दिन का ग्रीष्मकालीन अवकाश अध्यापकों एवम् 10वीं 12वीं के विद्यार्थियों को निश्चित रूप से मिलना चाहिए यही वह समय है जो विद्यार्थियों और अध्यापकों को नई स्फूर्ति और उमंग का एहसास कराता है और सभी नए जोश के साथ पूरा सत्र कार्य करते हैं ।
उपचारात्मक कक्षाएं सही मायने में विद्यार्थियों की पाठ्यक्रम से संबंधित समस्याओं का उपचार करती हैं तो नहीं इन कक्षाओं में बुला कर आगे का पाठ्यक्रम पूर्ण कराया जाता है और जो बच्चे नहीं आ पाते या किसी कारणवश उपस्थित नहीं हो पाते तो वह इस लाभ से वंचित हो जाते हैं और स्कूल खुलने पर भी उनको उनकी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता । उपचारात्मक कक्षाओं का फायदा तभी है जब कक्षा में 90% से 100% उपस्थिति हो । 50% बच्चों को पढ़ा कर और आगे का पाठ्यक्रम शुरू करवा कर न तो समस्याओं का उपचार किया जा सकता और न ही उनका समाधान ।
ग्रीष्मकालीन अवकाश सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों और अध्यापकों को अनिवार्य रूप से मिलने चहिएं ।
अगर वागीश्वरी संस्थान के माध्यम से यह विचार शिक्षा मंत्रालय या शिक्षा विभाग को पहुंच गया हो तो विचार अवश्य किया जाए । यह आवाज़ सभी की तरफ से है ।
डॉ. नीरू मोहन वागीश्वरी
संस्थापक ( vssss )