Friday 19 October 2018

चलो जलाएँ मन का रावण (कविता)

चलो जलाएँ मन का रावण

जल जाएगा पत्र का रावण
नहीं जलेगा मन दानव
फैलाए हुए है बाँहें इतनी
आगोश में लेने को अब अपनी

एक दिन का है शोर अब बाकी
राम की जय रावण अविजयधारी
सभी मनाएँ पर्व दशमी
गाएँ गाथा घर-घर न्यारी

मिटा नहीं अभी द्वेष हृदय से
भ्रष्ट सभी यहाँ राम वेश में
अत्याचार और अहंकार का
संगम हो रहा राम देश में

राम राज्य अब नहीं रहा
दोषारोपण चरम बोल रहा
दीन-हीन की छत का खप्पर
सारा भांडा फोड़ रहा

सुप्त अवस्था तंत्र में व्याप्त
प्रशासन का बुरा है हाल
कानून अंधा न्याय बना धंधा
जनता को कर रहा बेहाल

लाज बचाना हुआ है दूभर
पग-पग पर यहाँ खड़ा है रावण
राम राज्य कह रहें है जिसको
नहीं कहीं पर बेटा श्रावण

इस दशमी पर प्रण यह कर लो
कपट-कलह सब भस्म तुम कर दो
राम नहीं बन सकते गर तुम
राम के जैसे कार्य कर लो

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

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