Saturday, 20 October 2018

हिंदी कविता की लोकधर्मिता परंपरा शोध आलेख

हिंदी कविता की लोकधर्मिता परंपरा शोध आलेख

लोक साहित्य का अभिप्राय उस साहित्य से है जिसमें लोक समाहित हों और जिसकी रचना लोग करता है अर्थात लोक पर आधारित साहित्य, लोक द्वारा रचित साहित्य ही लोक साहित्य कहलाता है और जो लोक में अपनी विशेषताओं के आधार पर प्रसिद्धि प्राप्त कर ले । लोक साहित्य उतना ही प्राचीन है जितना कि मानव इसलिए उसमें जनजीवन की प्रत्येक अवस्था, वर्ग, समय और प्रकृति सभी विद्यमान है ।
डॉ सत्येंद्र के अनुसार लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग जो अभिजात्य संस्कार शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है । (लोक साहित्य विज्ञान , डॉ सत्येंद्र पृष्ठ-3)

हमारे साहित्य की स्थापित परंपरा जनवादी लोकधर्मी परंपरा है । इस परंपरा ने कभी भी अपने आपको युग से पृथक नहीं किया बल्कि युग के अनुरूप ही अपने आप को ढालती चली गई और विकसित हुई । आज की कविता के संदर्भ में जब लोक की बात होती है तो सबसे बड़ा खतरा लोग की समझ का खड़ा हो जाता है । लोक के प्रति एक सुसंगत नजरिया न होना आज की कविता के लिए संकट खड़ा कर रहा है ।
लोक और शास्त्रों का अंतर्द्वंद
लोकगीत की परंपरा
साहित्य का बदलता स्वरूप
लोक साहित्य पर संकट बड़ा
अमीर खुसरो की पहेलियाँ
कबीर का काव्य कहाँ रहा
नागार्जुन का सामाजिक दर्पण
बिंबों का प्रतिमान छिपा ।।

अमीर खुसरो उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गाँव में सन्1255 ई.को हुआ । यह दरबारी कवि होने के साथ-साथ लौकिक परंपरा के भी पक्षधर थे । संगीत के क्षेत्र में इन्होंने तबला एवं सितार से भारतीय परंपराओं का परिचय कराया । रागख्याला और रागतराना के भी बहुत बड़े विद्वान रहे । उन्होंने जनता के मनोरंजन के लिए पहेलियाँ लिखी । आदिकाल में खुसरों ने खड़ी बोली का प्रयोग काव्यभाषा में किया । खड़ी बोली का प्रथम कवि इन्हें ही माना जाता है । हिंदी साहित्य को ब्रज भाषा और खड़ी बोली के साथ-साथ फारसी के मिश्रण के द्वारा एक अनोखी पद्धति दी ।
उदाहरण-
चूक भई कुछ वासों ऐसी ।
देश छोड़ भयो परदेस (ब्रज भाषा)

कि ताबे हिज्राँ न दारम , ऐ जाँ !
न लेहु काहे लगाय छतियाँ (फारसी)
अमीर खुसरो अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी कवि एवं निजामुद्दीन औलिया के परम शिष्य थे ।
अगर हम संत कबीर की बात करें तो वह ज्ञानाश्रयी शाखा अर्थात संत काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं । संत कवि कबीर की रचनाओं का संकलन 'बीजक' में है और इसके संकलनकर्ता धर्मदास हैं। कबीर की भक्ति उनका दर्शन तथा उनकी कविता सामाजिक चेतना से ही ओतप्रोत है । कबीर मूलत: निरक्षर  होने के कारण कबीर पुस्तक ज्ञान से कोसों दूर थे । इन्होंने सत्संगों के माध्यम से ज्ञान अर्जित किया इसलिए इनके दर्शन को बहुश्रुत दर्शन कहा गया । कबीर अनुभूति जन्य ज्ञान की ही वकालत करते थे ।
उदाहरण-
तोरा-मोरा मनवा कैसे इक होय
तू कहता कागज की लेखी
मैं कहता आँखन देखी

कबीर एक युग प्रवर्तक थे । सैद्धांतिक रूप से कबीर को किसी एक मत से संबंधित नहीं किया जा सकता । उनके अनुरूप जगत में जो कुछ भी है, वह भ्रम ही है । अंत में सब ब्रह्म में ही विलीन हो जाता है । कबीर जबरदस्त व्यंग्यकार थे । कबीर ने हिंदू और मुसलमान दोनों मतों में पाए जाने वाले आडंबरों का विरोध किया है । कबीर धर्म के नाम पर लड़ने वाले हिंदू और मुसलमानों को बावला मानते थे ।
वे कहते हैं -
संतो देखहु जग बौराना
हिंदू कहें मोहि राम पियारा
तुरक कहें रहिमाना
आपस में दोऊ लरि-लरि
मरम न काहू जाना

आज का शायर गाता है -
"मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"
यह सांप्रदायिकता आज भी मानव समाज का महान अभिशाप बनी हुई है इसी धर्मांधता के विरुद्ध आज से 500 वर्ष पूर्व कबीर ने संपूर्ण शक्ति से अपनी आवाज बुलंद की थे ।

उसी प्रकार केदारनाथ सिंह जिनकी शिक्षा हिंदू विश्वविद्यालय बनारस में हुई  बिम्ब विधान पर शोध कार्य संपन्न कर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तभी से आप अध्यापनरत रहे । वह कविता, समीक्षा और संगीत के प्रति विशेष रुचि रखते थे । केदारनाथ की सबसे पहले की कविताओं में बिंब विधान है । कवी का उस समय का अनुभव था कि बिंब विषय को मूर्त बनाते हैं । प्रारंभिक रचनाओं में बिम्बों और प्रतीकों के प्रति अत्यधिक मोह के कारण इनके काव्य में कहीं कहीं दुरूहता और अस्पषता्ट लक्षित होती है । किंतु तनिक कल्पना के उपयोग के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें भी ऐसी सूक्ष्म रेखाएँ हैं जो बोध को विशेष अर्थ प्रदान करती हैं । उन्होंने अपनी कविताओं में अधिकतर मुक्तक छंद का प्रयोग किया है जिसमें लयात्मकता का प्राय: अभाव है । भाषा में उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग बाहुल्य चिंत्य है ।

वहीं वैद्यनाथ मिश्र अर्थात नागार्जुन एक प्रतिभा संपन्न कवि सफल पत्रकार उपन्यासकार और समीक्षक है । 'योगधारा' ,  'प्रेत का बयान' तथा 'सतरंगी पंखों वाली' इनके कविता संग्रह हैं । सहजता नागार्जुन के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है उनका काव्य लोक चेतना और यथार्थ अनुभव से अनुप्राणित है । प्राय: इन्होंने स्वाधीन भारत के शोषित किसान और निर्धन वर्ग की पीड़ाओं को अपनी कविताओं का विषय बनाया है । उनकी भाषा में सच्चाई और यथार्थ अनुभूति के साथ-साथ अतीव तीखे, गहरी व्यंग हैं ।
'प्रेत का बयान' में एक भूख से मृत प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के माध्यम से स्वाधीन भारत में 'गरीबी हटाओ' की दुहाई देने वालों पर कितना तीव्र करुण व्यंग है -

साक्षी है धरती साक्षी है आकाश
और और और और और भले
नाना प्रकार की व्याधियाँ हों भारत में
किंतु उठा कर देखों बांह
किट-किट करने लगा प्रेत
किन्तु
भूख या क्षुधा नाम हो जिसका
ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको

नागार्जुन की व्यंग्य क्षमता उनके समकालीन कवियों में अलग से पहचानी जाती है । नागार्जुन के माध्यम से समाज के उपेक्षित वर्ग किसान,  मजदूर, रिक्शाचालक आदि को सशक्त प्रखर वाणी मिली है । इनके साहित्य का केंद्र बिंदु बहुधा प्रकृत साधारण, लघु मानव रहा है और ऐसे विषयों को साहित्य की कोटी में समाविष्ट किया गया है, जिन्हें अन्य साहित्यकार उन्हें साहित्येतर समझकर आशंकित भाव से उनसे किनारा कर रहे हैं । किंतु इतना तो नि:संदिग्ध है, कि वे लोक-जीवन व क्षुद्र समझे जाने वाले सामान्य जनजीवन के प्रति आजीवन अपनी प्रतिबद्धता निभाते रहे और विशेषत: उनके बोध स्तरोपयोगीलोकवाणी के माध्यम से उनके साहित्य में सामान्य जनजीवन व लोकजीवन सदा संपृक्त रहे ।

लोक साहित्य संस्कृति की अमूल्य निधि है । महात्मा गाँधी के निम्नलिखित शब्द जिसमें लोक साहित्य के सांस्कृतिक पक्ष की महत्ता प्रकट की गई है सिर्फ चिरस्मरणीय है ।
'हाँ, लोकगीतों की प्रशंसा अवश्य करूँगा क्योंकि मैं मानता हूँ कि लोकगीत समूची संस्कृति के पहरेदार होते हैं ।
गुजराती मनीषी काका कालेलकर ने लोक साहित्य के सांस्कृतिक पक्ष को इन शब्दों में व्यक्त किया है -
'लोक साहित्य के अध्ययन से उनके उद्धार से हम कृत्रिमता का कवच तोड़ सकेंगे और स्वाभाविकता की शुद्ध हवा में फिरने, डोलने की शक्ति प्राप्त कर सकेंगे । स्वाभाविकता से आत्म शुद्धि संभव है । अंत में हम यही कह सकते हैं कि लोकसाहित्य जनसंस्कृति का दर्पण है तो अत्युक्ति न होगी । कहते हैं कि संस्कृति की आधारशिला पुरातन होती है ।

संदर्भ
हिंदी साहित्य युग प्रवृतियाँ ( डॉ शिवकुमार शर्मा) पृष्ठ - ११०, १६६, १६९, ५६७, ५७४, ५७५
वेब

Friday, 19 October 2018

चलो जलाएँ मन का रावण (कविता)

चलो जलाएँ मन का रावण

जल जाएगा पत्र का रावण
नहीं जलेगा मन दानव
फैलाए हुए है बाँहें इतनी
आगोश में लेने को अब अपनी

एक दिन का है शोर अब बाकी
राम की जय रावण अविजयधारी
सभी मनाएँ पर्व दशमी
गाएँ गाथा घर-घर न्यारी

मिटा नहीं अभी द्वेष हृदय से
भ्रष्ट सभी यहाँ राम वेश में
अत्याचार और अहंकार का
संगम हो रहा राम देश में

राम राज्य अब नहीं रहा
दोषारोपण चरम बोल रहा
दीन-हीन की छत का खप्पर
सारा भांडा फोड़ रहा

सुप्त अवस्था तंत्र में व्याप्त
प्रशासन का बुरा है हाल
कानून अंधा न्याय बना धंधा
जनता को कर रहा बेहाल

लाज बचाना हुआ है दूभर
पग-पग पर यहाँ खड़ा है रावण
राम राज्य कह रहें है जिसको
नहीं कहीं पर बेटा श्रावण

इस दशमी पर प्रण यह कर लो
कपट-कलह सब भस्म तुम कर दो
राम नहीं बन सकते गर तुम
राम के जैसे कार्य कर लो

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Wednesday, 17 October 2018

अटल बिहारी वाजपेयी व्यक्ति और अभिव्यक्ति

शोध आलेख :-
अटल बिहारी वाजपेयी : व्यक्ति और अभिव्यक्ति

एक ध्रुवतारा अमर… प्रकाश था अलौकिक,

छिप गया है बदलों की ओट में ।

अटल था वाणी से, कर्तव्यों से न डिगा था ,

कर्मयोगी था वह …कलम का पुजारी ।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कलम के पुजारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल जी को संपूर्ण विश्व की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि !

किसी एक प्रतिष्ठित महापुरुष अथवा महिला की जीवनी के संबंध में लिखना इतना सरल नहीं होता जितना प्रतीत होता है लेखक को बड़ी सावधानी के साथ अपने प्रतिष्ठित व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखकर अत्यंत सतर्कता से लिपि बंद करना पड़ता है लिखने से पूर्व लिखने का मन बनाना पड़ता है और मन बनाने से पहले सामग्री जुटाने पड़ती है उसके संबंध में जो कुछ भी मिले जुटाकर आत्मसात करना पड़ता है ।

भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर सन 1924 को उत्तर प्रदेश के प्राचीन स्थल बटेश्वर में पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के परिवार में हुआ बटेश्वर आगरा जनपद में पड़ता है इनके पिता मध्य प्रदेश की रियासत ग्वालियर में अध्यापक थे स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की माता का नाम श्रीमती कृष्णा वाजपेयी था उनके पिता श्री हिंदी और ब्रज भाषा के कवि थे । भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की और कानपुर के डी.ए.वी कॉलेज से एम ए राजनीति शास्त्र की परीक्षा प्रथम श्रेणी में । कानपुर में ही वह एल.एल.बी की परीक्षा दे रहे थे लेकिन संघर्ष कार्य करते हुए पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपर्क में आए तो उन्होंने इन्हें भारतीय जनसंघ के प्रचार-प्रसार में लगा दिया तथा जीवन पर्यंत विभिन्न पदों पर आरूढ़ रहे और अंततः दो बार सन् 1996 और सन् 1998 - 2004 तक वह भारत के प्रधानमंत्री भी रहे ।

भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार भी थे । एक असाधारण कवि होने के साथ-साथ एक समर्थ पत्रकार भी रहे उनके पिता स्वर्गीय कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी एक समर्थ रचनाकार थे और ग्वालियर रियासत के जाने-माने कवि थे अपने पिता के समकालीन मंचीय रचनाकारों में माननीय अटल बिहारी वाजपेई की बहुत ख्याती रही । उनकी प्रथम कविता 'ताजमहल' बहुत चर्चित रही इसमें शोषण के विरुद्ध उनकी आवाज मुखर हुई है।
उनकी रचनाओं में उनके संघर्षमय जीवन, स्वतंत्र्योंत्तर विषम परिस्थितियां, भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार, राष्ट्रव्यापी आंदोलन आदि सामाजिक एवं राष्ट्रीय व्याधिकीय पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है । उनकी रचनाओं में उल्लेखनीय है - 'मृत्यु या हवा' , 'अमर बलिदान' , 'कैदी कविराय की कुंडलियां' , 'संसद में तीन दशक' , 'अमर आग है' , 'कुछ लेख और कुछ भाषण' , 'सेक्युलरवाद' , 'राजनीति की रपटीली राहें' , 'बिंदु-बिंदु विचार' , और 'मेरी इक्यावन कविताएं' ।

वस्तुत: चाहे तो उनका राजनीति क्षेत्र हो, अथवा साहित्यिक क्षेत्र दोनों ही क्षेत्रों में उनकी असीम उपलब्धियाँ हैं । उन्होंने भारतीय राष्ट्र भारतीय संस्कृति और विश्व संस्कृति के उत्थान के लिए बहुआयामी भूमिका निभाई जितना ऊँचा उनका राजनीतिक जीवन उससे कहीं अधिक ऊँचा उनका साहित्यिक जीवन रहा उनकी समग्र वैश्विक भूमिका रही उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बेजोड़ हैँ । उनका योगदान समय की शिला पर अंकित है भारत ही नहीं विश्व निर्माण में उनकी भूमिका रही, यही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध और शांति को स्थापित करने के लिए उन्होंने 'वासुधैव कुटुंबकम्' की भावना से सदैव कार्य किया । एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता होने के साथ-साथ सिद्धाहस्त कवि एवं गीतकार भी थे । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत के गौरव को बढ़ाया । चाहे कारगिल युद्ध अथवा पोखरण में परमाणु परीक्षण, उन्होंने कहीं भी अहंकार अथवा हठधर्मिता का परिचय नहीं दिया । वह शांति एवं सहयोग के महापुजारी थे फलत: उन्हें सन् 2014 में 'भारत रत्न' का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देकर विभूषित किया गया यही नहीं उन्हें 'श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार' और 'पदम विभूषण' पुरस्कारों से भी विभूषित किया गया । अस्तु! न केवल भारतीय राष्ट्र के लिए अपितु समग्र विश्व के लिए उनकी कल्याणकारी दृष्टि एवं सर्व हितकारी योजनाएँ अनिर्वनीय हैं । दुख है 16 अगस्त 2018 को वे गोलोकवासी हो गए ।

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा है- "भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है - ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो ।"

साहित्यकार स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में उन्होंने स्पष्ट घोषणा की - "मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं । वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का संकल्प हैं । वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष हैं ।" 

भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में उनका आत्ममंथन है - "क्रांतिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रांतिकारियों के साथ हमें न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रांतिकारियों को भूल रहे हैं । आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ ।
वस्तुतः भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक असाधारण सांस्कृतिक श्लाका महापुरुष हैं ।

निष्कर्ष -

कवि सुबह की सुरतिया कालजई होती है जो प्रति क्षण अपने नायक के चंचल मन की समान आकाश पाताल में भ्रमण कर अतीत जीवन की गहराइयों से मोतियों चलती रहती है ।
उनका भारतीयता से ओतप्रोत व्यक्तित्व किसे नहीं मोहता । वे राजभाषा हिंदी के प्रबल पक्षधर थे । देश-विदेश में व्याख्यान हिंदी में ही देते थे । वह मूलतः साहित्यकार थे, उन्हें साहित्य विरासत में  अपने परिवार से मिला । कविता बचपन से ही उनकी घुट्टी में पिलाई गई थी । भारतीयता,  राष्ट्रीयता, मानवता, उदारता की भावभूमि पर सृजना के स्वरों को मुखरित करने वाले पंडित अटल बिहारी वाजपेई सच्चे अर्थों में माँ शारदा के वरद पुत्र हैं । अटल जी की वाणी में जो सम्मोहन क्षमता थी वह अभी तक तो किसी की भी वाणी में नहीं आ सकी यही कारण है कि उनके भाषणों में बुद्धिजीवी, साहित्यसेवी तथा अन्य सामान्य जन समान रूप से आनंद लेते थे । वह गद्य को जो पद्यात्मकता प्रदान करते थे वह श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे । अटल जी का समग्र व्यक्तित्व पूनम की चाँदनी जैसा मन भावन है उनका चुंबकीय व्यक्तित्व जनमानस में रस के स्थाई भाव की तरह बिखरा हुआ है । वे अपनी स्वच्छ सोच और निष्ठा प्रधान विचारधारा के कारण उपमेय से उपमान हो गए हैं । आकाश के सप्तऋषि मंडल को आप देखते ही होंगे । वह ध्रुव नक्षत्र की परिक्रमा किया करता है । अटलजी भारतीय राजनीति में गगन के ध्रुव नक्षत्र की तरह हमेशा विद्यमान रहेंगे ।

संदर्भ
प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी
जगदीश विद्रोही
बलवीर सक्सेना

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Tuesday, 2 October 2018

VSSSS/ WPS की प्रथम बैठक

आज दिनांक दो 2 अक्टूबर 2018 वीमन पावर सोसायटी दिल्ली और वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में वीमन पावर सोसायटी #दिल्ली #प्रदेश #अध्यक्ष और #संस्थापक #अध्यक्ष वागीश्वरी साहित्यिक , सास्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान #नीरू #मोहन #वागीश्वरी की अध्यक्षता में संस्थान की प्रथम बैठक दिल्ली स्थित V3S मॉल में आयोजित की गई जिसमें संस्थान के 11 सदस्यों ने भाग लिया । इस बैठक का उद्देश्य : बाल विकास, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला उत्थान, हिंदी भाषा उत्थान और प्रसार, पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण निवारण उपाय रहा । समाज में फैली बुराईयों और समस्याओं को हम आम जन किस प्रकार से दूर कर सकते हैं , ज़मीनी स्तर के लोग किन-किन समस्याओं से जूझ रहे है उनकी समस्याएँ और समस्याओं का निवारण कैसे हो इस दिशा में रूपरेखा बनाई गई और उस पर कार्य भी शुरू हो गया है । सरकार कहती तो है… विकास हो रहा है मगर किस स्तर पर मालूम नहीं …मगर विकास हो ज़रूर रहा है …जी हाँ हो रहा है सरकार के अंदरूनी और ऊपरी स्तर पर आम जनता तक कब और कैसे आएगा । आएगा भी या नहीं पता नहीं । मेरा मानना है जब तक ज़मीनी स्तर पर कार्य नहीं होगा विकास हो रहा है कहना अतिश्योक्ति होगा । आज भी सड़के खुदी हैं उन्हें बनाया नहीं जा रहा , गलियों, सड़कों और चौराहों पर कूड़े के ढेर जमा है कोई उठाने वाला नहीं है, पर्यावरण प्रदूषण आज चरम पर है । अनगिनत ऐसी समस्याएँ जो हमारी सोच से भी परे हैं स्वत: परिस्थितिवश जन्म ले रही हैं उनकी पहचान और निवारण के लिए किसी न किसी को तो पहल करनी ही होगी तो आप और हम क्यों नहीं । अब घरों में बैठने का समय नहीं है हाथ से हाथ मिलाकर चलने का और बदलाव लाने का समय है तो आप भी इ अभियान में हमारे साथ जुड़ सकते हैं । हमें हर जन का सहयोग चाहिए । बदलाव एक दिन में तो लाया नहीं जा सकता यह आप सभी जानते हैं मगर वर्तमान को सँवारकर भविष्य का रूप निखारा और सुरक्षित बनाया जा सकता है जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए हम कुछ छोड़ सकें ।

आज की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष WPS/संस्थापक अध्यक्ष VSSSS
#नीरू #मोहन #वागीश्वरी
*आभा पालीवाल जी उपाध्यक्ष WPS
*सीमा जी यूनिट अध्यक्ष WPS
*अंजली मुद्गल मीडिया प्रभारी WPS
*निधि मुकेश भार्गव सदस्या VSSSS / WPS
*दीपांशी वेब डिजाइनर VSSSS / WPS
*शाज़ीदा जी सदस्या VSSSS /WPS
* हिना जी सदस्या VSSSS / WPS
* प्रियंका सदस्या VSSSS / WPS
* दलजीत कौर सदस्या VSSSS / WPS

सभी सदस्यों को बैठक के सफल आयोजन हेतु हार्दिक बधाई !