हाइकु जापानी साहित्य की काव्य विधा का लघु रूप है, जो प्रमुख रूप से प्रकृति से संबधित किसी विचार या घटना को लघुतम रूप में शब्दों में व्यक्त करना सिखाती है । तीन पंक्तियों में पाँच सात पाँच क्रम से सत्रह अक्षरों को कुछ इस प्रकार व्यक्त किया जाता है कि पढ़ने वाला वाह-वाह कर उठे । यह सब कवि की विचार अभिव्यक्ति के कौशल एवं माँ शारदे की परम कृपा से ही गागर में सागर भरने वाले गुण को चरितार्थ करता है ।
नीरू मोहन 'वागीश्वरी' जी के हाइकु मेरे समक्ष हैं । काव्य की लघुतम विधा में उनका मन ऊँची वैचारिक उड़ान भरता है, फलत जीवन के पारिवारिक, सामाजिक, व्यवसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों से संबधित विषयों के हाइकु कागज के कैनवस पर उतरकर विविध रंगो की इंद्रधनुषी छटा बिखेरते हैं ।
सामाजिक परिवेश की विविध घटनाओं को मन मंजूषा में नपा तुला आकार देते हुए नीरू मोहन जी ने अपने मन के भावों को सरल सार्थक शब्दों में शिल्प का सौंदर्य बढ़ाते हुए उकेरा है । कागज के कैनवस पर सुकवयित्री नीरू मोहन जी ने
मात्र तीन पंक्तियों के सत्रह अक्षरों में अपने वैचारिक दर्शन को समेटा है जिसे पाना हर किसी के बस की बात नहीं । प्रस्तुत हाइकु श्रोता और पाठक को अपने आप में बाँधने की क्षमता रखते हैं ।
यह संग्रह विषय अनेकता का उत्कृष्ट दर्शन समेटे हैं । सभी विषयों पर इनके हाइकुओं में सकारात्मक विचारों, वैचारिक परिपक्वता एवं भारतीय संस्कृति का दर्शन है व नैतिक मूल्यों एवं संस्कारों के संवहन की प्रेरणा है, जिन्हें सुधी पाठक बार-बार पढ़ना चाहेंगे ।नीरू मोहन जी के ये भावपूर्ण हाइकु साहित्य जगत में उन्हें श्रेष्ठ हाइकुकार के रूप में प्रतिष्ठित करने में सफल होंगे । कवयित्री / लेखिका नीरू मोहन जी की उत्तरोतर सफलता के लिए माँ वीणापाणी से यही कामना है ।
नीरू मोहन
हाइकुकार रूप
रहे अनूप
मैं नीरू मोहन जी को उनके प्रथम हाइकु संग्रह के लिए हृदय की गहराई से मुबारकबाद देता हूँ और माँ शारदे से प्रार्थना करता हूँ कि माँ शारदे सदैव अपनी कृपा नीरू मोहन जी पर बनाए रखें ।
शुभेच्छु
डा महेन्द्र शर्मा मधुकर
अध्यक्ष (हरियाणा प्रांत )
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह
दूरभाष.9868938188
शीत की भोर
हर्षित वन्य जीव
भावविभोर
गुरू ही देव
दे अनुपम ज्ञान
सुखी सदैव
श्रेष्ठ संतान
बुढापा खुशहाल
बढ़ाए मान
नारी उत्थान
नयी सोच के साथ
होगा कल्याण
टूटते रिश्ते
कौन संवारे अब
रहे पीसते
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