** पेंसिल मेरी बोलती है **
जब मैं कुछ भी लिखती हूँ,
मेरी पेंसिल बोलती है ।
सर-सर, सर-सर आवाज़ है करती,
झट से अक्षर लिख देती है ।
मेरी सोच पहचान है जाती ।
झट कागज पर उतर यह जाती ।
पाठ स्मरण जब करती हूँ,
पास पेंसिल रखती हूँ ।
मेरी सच्ची साथी है यह,
समझ सब यह जाती है ।
हर सत्र में मेरी पेंसिल,
प्रथम स्थान दिलवाती है ।
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