Tuesday, 31 December 2019
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं! 2022
Friday, 26 July 2019
कला निकेतन
आचार विचार संस्कार सभ्य मानव की पहचान
आचार विहीन मानुष है पुंछ रहित पशु समान
विद्या नीति ज्ञान कला सब जिसके पास अपार
वहीं बनाता जीवन में अपनी अलग पहचान
करता जो बड़ों का आदर खूब आशीष है पाता
उसके आगे दुश्मन भी नतमस्तक हो जाता
राह सुगम बन उसकी जाती क्षितिज उसे मिल जाता
दूर गगन से कोमल अंबुद हाथ उसके आ जाता
यही आचार विचार हमारा नीति शास्त्र सीखता
नैतिक मूल्यों को पाकर के जीवन सफल हो जाता
इसीलिए प्रतिज्ञा कर लो पढ़ लो लिख लो जीवन रंग लो
कला निकेतन विद्यालय को उपलब्धि की राह समझ लो
कक्षा में कभी शोर ना करना अनुशासन का पालन करना
विद्यालय की दीवारों को , गन्दा तुम कभी ना करना
पानी पीकर नल बंद करना व्यर्थ इसे कभी ना करना
शौचालय की स्वच्छता का पूरा - पूरा ध्यान भी रखना
सदा सत्य की राह पे चलना शिक्षक डॉक्टर सेवक बनना
अपने देश का मान बढ़ाना मात - पिता का गौरव बनना
नैतिक मूल्यों को अपनाकर स्वयं को अपने पारस करना
कला निकेतन विद्यालय का ध्वज सदैव गगन तक रखना ।
नई दिल्ली दिनांक : 27 जुलाई 2018 कला निकेतन इंटरनेशनल स्कूल गाज़ीपुर में विषय : विद्यालय स्तर पर नीति शास्त्र / आचार शास्त्र का महत्व एवं उपयोगिता पर आधारित भाषण प्रतियोगिता आयोजित हुई । संगोष्ठी का आरंभ मां वागीश्वरी की पूजा अर्चना और दीप प्रज्ज्वलन की परंपरा से हुआ । इस संगोष्ठी में कला निकेतन इंटरनेशनल स्कूल और कला निकेतन विद्या भवन स्कूल के कुल 60 से अधिक अध्यापकों ने सहभागिता की और उक्त विषय पर अपने - अपने विचार प्रस्तुत किए । श्री आर एस सिंह जी , डॉ. नीरू मोहन वागीश्वरी जी एवं श्री ओ पी राय जी ने विषय से संबंधित अपने - अपने विचार व्यक्त किए । विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में नैतिक मूल्यों का महत्व एवं इन मूल्यों को विद्यार्थियों में किस प्रकार स्थापित किया जाए चर्चा का मुख्य अंश रहा क्योंकि आज के परिवेश में बच्चों में मूल्य और संस्कार समाप्त होते जा रहे हैं । पारंपरिक परिवेश लुप्त होता जा रहा है । ऐसे में विद्यार्थियों में हो रहे व्यवहारिक परिवर्तन की जांच करना, उन्हें उचित अनुचित का ज्ञान करना , उन्हें सन्मार्ग की ओर ले जाना हम सभी का दायित्व है क्योंकि आजकल विद्यार्थी भावी देश का कर्णधार है ।
कला निकेतन इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित इस उच्चस्तरीय संगोष्ठी में श्री आर. एस. सिंह प्रधानाचार्य गवर्नमेंट ब्वॉयज सीनियर सैकंडरी स्कूल सीमापुरी, डॉ. नीरू मोहन वागीश्वरी साहित्यकार/शिक्षाविद्/ समाजसेविका ने निर्णायक की भूमिका निभाई । विद्यालय के संस्थापक श्री ओ. पी. राय जी ने विद्यालय की ओर से दोनों विद्यालयों के प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विजेता अध्यापकों को नकद राशि प्रदान कर प्रोत्साहित एवं सम्मानित किया गया इसी के साथ दो सांत्वना पुरस्कार भी घोषित किए और उन्हें भी नकद राशि प्रदान कर प्रोत्साहित किया ।
वागीश्वरी संस्थान की ओर से भी विजेता अध्यापकों को प्रमाणपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया । सुंदर और सफल आयोजन एवं संचालन हेतु प्रधानाचार्या श्रीमती शिमला राय जी ने विद्यालय से जुड़े नए एवं पुराने सभी अध्यापकों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी । कार्यक्रम प्रीतिभोज के साथ संपन्न हुआ ।
Tuesday, 9 July 2019
मुख्य अंश
मुख्य अंश / विशिष्टता
१. पीएचडी अंतिम वर्ष ( हिंदी साहित्य )
२. हिंदी एवं अंग्रेजी टंकण का ज्ञान
३. तीन एकल काव्य संग्रह प्रकाशित
* पद्मांजलि ( नारी के मनोभावों का सजीव चित्रण )
* नवप्रवर्तन ( बाल साहित्य )
* बूंद - बूंद सागर ( जापानी काव्य शैली पर आधारित हाईकु संग्रह )
४. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय एवं दो दिवसीय कार्यशाला और संगोष्ठियों में सहभागिता
५. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर सम्मानित
६. हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी द्वारा भाषा गौरव शिक्षक सम्मान से सम्मानित
७. पद्मश्री आदरणीय रमाकांत शुक्ल जी द्वारा सम्मानित एवं पुस्तकों का विमोचन
८. १० से अधिक शोध पत्र प्रकाशित
९. २० से अधिक साझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित
१०. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित
११. विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों का हिंदी विषय से संबंधित ज़ोनल / जिला स्तर पर अति उत्तम प्रदर्शन
Tuesday, 21 May 2019
वागीश्वरी संस्थान की लहर अब हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक …
नई दिल्ली : दिनांक - 19/05/2019 आईटीओ हिंदी भवन में भारत उत्थान न्यास के मंच पर वागीश्वरी संस्थान से औपचारिक रूप से जुड़े शिक्षक, मीडिया प्रभारी, समाजसेवी …सभी को वागीश्वरी संस्थान की संस्थापक एवम् राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नीरू मोहन वागीश्वरी और आदरणीय डॉ. रमाकांत शुक्ल जी के कर कमलों द्वारा नियुक्तिपत्र प्रदान किए गया ।
डॉ. कामिनी वर्मा एसोसिएट प्रोफ़ेसर भदोई को संस्थान ने राष्ट्रीय शिक्षा सलाहकार के पद पर कार्यरत किया ।
शशिधर शुक्ला जी दिल्ली राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख , अंजलि मुद्गल राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी, किरण शर्मा, पुष्प लता , प्रीति जैन, निशि जिज्ञासु जिला स्तर पर , दलजीत कौर दिल्ली उपाध्यक्ष, दिपांक्षी मोहन ने उपाध्यक्ष एवं प्रीति सनोरिया जी ने महासचिव के रूप में कार्यभार संभाला ।
सम्मानित लेखक /साहित्यकार एवम् समाजसेवक
सादर प्रणाम
विषय : वागीश्वरी उत्कृष्ट महिला सम्मान 2019
आपको यह जानकारी देते हुए अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है कि वागीश्वरी चयन समिति द्वारा आपका चयन वागीश्वरी उत्कृष्ट महिला सम्मान 2019 हेतु हुआ है । वागीश्वरी संस्थान आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है ।
(1) आपको अपना पंजीकरण शुल्क एवं सहयोग राशि 30 मई 2019 तक जमा करना है ।
(2) बैंक में आपके द्वारा जमा की गई राशि की पर्ची दिए गए वाट्सप no 9810956507, और ई मेल vssss048@gmail.com पर भेजना अनिवार्य है ।
(3) आपको बैंक में सहयोग राशि जमा करने के बाद फोन कर के पंजीकरण की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करना अनिवार्य है ।
(4) यदि दिए गए दिशा निर्देश का पालन आप नही करते तो किसी भी असुविधा की जिम्मेदारी वागीश्वरी न्यास की नहीं होगी ।
(5) इस सम्मान की सहयोग राशि सभी के लिए 2100 रुपए है । आपके द्वारा किया गया सहयोग संस्थान द्वारा किए जाने वाले सामाजिक कार्यों में योगदान दे सकता है ।
शुल्क जमा करने का विवरण-
बैंक का नाम : पंजाब नेशनल बैंक, मयूर विहार फेज - 2
खाता न. : 4408000100213762
RTGS/NEFT IFS Code :PUNB0440800
Email. vssss048@gmail.com
Whatsapp: 9810956507
वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान ( भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड राष्ट्रीय न्यास )
Monday, 13 May 2019
भारत उत्थान न्यास
वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवम् सामाजिक संस्थान के सहयोग और डॉ. वागीश्वरी के मंच संचालन से भारत उत्थान न्यास द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ सफल क्रियान्वन …
नई दिल्ली : दिनांक - 19-05-2019, दिन रविवार
हिंदी भवन आईटीओ में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 18 राज्यों के विद्वानों को किया गया सम्मानित ।
Friday, 10 May 2019
ग्रीष्मा कालीन अवकाश …क्यों नहीं 10वीं एवं 12वीं के विद्यार्थी भी हकदार ???
ग्रीष्मा कालीन अवकाश …क्यों नहीं 10वीं एवं 12वीं के विद्यार्थी भी हकदार ???
वार्षिक परीक्षा के उपरांत जितनी खुशी नई कक्षा में जाने की होती है उससे कहीं दोगुनी ख़ुशी ग्रीष्मकालीन अवकाश के आगमन की होती है । पूरे साल विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक और सगे - संबंधी इन्हीं दिनों का इंतजार करते हैं । सभी के अधूरे कार्य , मिलना - जुलना , नाना - नानी के घर जाना , सगे संबंधियों से मिलना सभी कुछ पहले से ही तय कर लिया जाता है और बच्चों में तो ग्रीष्मकालीन अवकाश का ज्यादा ही जोश दिखाई देने लगता है । अगर हम 30 दशक पीछे जाते है तो पाते हैं कि हमारे समय मैं गर्मियों की छुट्टियों का कुछ अलग ही मजा था ऐसा नहीं कि हमे काम नहीं मिलता था और ऐसा भी नहीं कि हम पूरा दिन खेलते रहते थे बस हमारे समय में पढ़ाई की इतनी मारा मारी नहीं थी आंटी विद्यालयों ने बच्चों और शिक्षकों को कोहलू का बैल समझ रखा है जितना काम लेना है लिए जाओ बच्चों के स्तर पर ये देखे बिना कि सामने वाले में इतना सामर्थ्य है भी या नहीं । अाज नर्सरी का बच्चा भी ट्यूशन पढ़ता है क्या जरूरत है इसकी ? क्या बच्चों से हम उनका बचपन नहीं छीन रहे ?
आज विद्यालयों ने अपनी मनमानी करनी आरंभ कर दी है चाहे सीबीएसई की गाइडलाइन हो या फिर विद्यालय के अपने नियम कानून । शिक्षा के मंदिरों में भी प्रतिस्पर्धा की दौड़ लगी है । जहां तक प्राइवेट विद्यालय की बात करें तो ग्रीष्मकालीन अवकाश दसवीं और बारहवीं के बच्चों को नहीं प्रदान किया जाता । उपचारात्मक कक्षाएं या यूं कहें कि उनकी एक्स्ट्रा क्लासेज लगा दी जाती है । आज तक यह नहीं समझ आया है कि 10 /15 दिन एक्स्ट्रा क्लास लगा कर क्या संपूर्ण पाठ्यक्रम की पूर्ति हो जाती है । बच्चों को और अध्यापकों को ग्रीष्मकालीन अवकाश न देना या उपचारात्मक कक्षाओं के नाम पर उन्हें अवकाश के समय बुला लेना कहां तक तर्कसंगत है । पूरे साल भर एक शिक्षक जिस तरह से कार्य करता है वह किसी से छिपा नहीं है गैर सरकारी, प्राइवेट और इंटरनेशनल स्कूलों में जितनी मासिक आय दी जाती है उससे कहीं अधिक अध्यापकों से कार्य लिया जाता है । पय कमिशन के नाम पर जो अाय उन्हें दी जाती है उससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है । पूरे साल की मेहनत के पश्चात उत्तम परीक्षा परिणाम देने के बावजूद कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता हां परीक्षा परीणाम संतोषजनक न मिलने पर संबंधित अध्यापिका को कटघरे में जरूर खड़ा कर लिया जाता है ।
जहां तक ग्रीष्मकालीन अवकाश की बात करें तो ग्रीष्मकालीन अवकाश चाहे सरकारी या प्राइवेट स्कूल के विद्यार्थी एवम् शिक्षक हो सभी को समान रुप से मिलना चाहिए । छुट्टियों के हकदार सभी हैं पूरे साल की भागदौड़ के बाद सभी को आराम चाहिए । सरकार को चाहिए कि एक नियम के तहत यह निश्चित करें कि सभी विद्यालयों को चाहे वे सरकारी, गैर-सरकारी प्राइवेट या इंटरनेशनल स्कूल हो सभी को इन नियमों का पालन करना अनिवार्य होगा । कुछ गाइडलाइन ऐसी रखी जाए जो सामान्य रूप से सभी स्कूलों के लिए लागू हो जिससे प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को रोका जा सके । इस विषय पर वागीश्वरी न्यास भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड (एनजीओ) की संस्थापक डॉ. वागीश्वरी की बातचीत कई शिक्षिकाओं से हुई जिनमें सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों के शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी थे जिनकी समस्याएं सम्मान थी ।
उपचारात्मक कक्षाओं के नाम पर सिर्फ़ औपचारिकताएं ही पूरी की जाती हैं जिनको आप सभी शिक्षक बेहतर जानते होंगे परंतु कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि नौकरी का सवाल होता है । आपकी इसी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है । कई शिक्षिकाओं से बात करके यह अनुभव हुआ कि आज विद्यालयों में चाहे वह अंदरुनी स्तर पर हो या वरिष्ठ वर्ग पर … राजनीति ने घर कर लिया है । आज काम की महत्ता के स्थान पर चाटुकारिता की महत्ता है ।
सभी शिक्षको और बच्चों की ओर से वागीश्वरी संस्थान शिक्षा विभाग से अनुरोध करता है कि तीस दिन का ग्रीष्मकालीन अवकाश अध्यापकों एवम् 10वीं 12वीं के विद्यार्थियों को निश्चित रूप से मिलना चाहिए यही वह समय है जो विद्यार्थियों और अध्यापकों को नई स्फूर्ति और उमंग का एहसास कराता है और सभी नए जोश के साथ पूरा सत्र कार्य करते हैं ।
उपचारात्मक कक्षाएं सही मायने में विद्यार्थियों की पाठ्यक्रम से संबंधित समस्याओं का उपचार करती हैं तो नहीं इन कक्षाओं में बुला कर आगे का पाठ्यक्रम पूर्ण कराया जाता है और जो बच्चे नहीं आ पाते या किसी कारणवश उपस्थित नहीं हो पाते तो वह इस लाभ से वंचित हो जाते हैं और स्कूल खुलने पर भी उनको उनकी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता । उपचारात्मक कक्षाओं का फायदा तभी है जब कक्षा में 90% से 100% उपस्थिति हो । 50% बच्चों को पढ़ा कर और आगे का पाठ्यक्रम शुरू करवा कर न तो समस्याओं का उपचार किया जा सकता और न ही उनका समाधान ।
ग्रीष्मकालीन अवकाश सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों और अध्यापकों को अनिवार्य रूप से मिलने चहिएं ।
अगर वागीश्वरी संस्थान के माध्यम से यह विचार शिक्षा मंत्रालय या शिक्षा विभाग को पहुंच गया हो तो विचार अवश्य किया जाए । यह आवाज़ सभी की तरफ से है ।
डॉ. नीरू मोहन वागीश्वरी
संस्थापक ( vssss )
work shop पहलादपुर
[ डॉ. नीरू मोहन वागीश्वरी🌸: #एक और मील का पत्थर किया #स्थापित
#वागीश्वरी #साहित्यिक, #सांस्कृतिक एवम् #सामाजिक संस्थान की ओर से शैक्षिक स्तर पर न्यू मदर लैंड पब्लिक स्कूल में आज दिनांक : 08-05-2019 बुधवार कार्यशाला का आयोजन किया गया । कार्यशाला में विद्यार्थियों की सक्रियता और भागीदारी की जांच हेतु प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया गया और विजेताओं को संस्थान कि ओर से प्रमाण पत्र देकर प्रोत्साहित किया गया । विद्यालय प्रशासन ने कार्यशाला के सफल आयोजन हेतु पूर्ण योगदान दिया । संस्थान की ओर से विद्यालय को अवलोकन रिपोर्ट धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्रमाणपत्र और उपहार स्वरूप पुस्तकालय हेतु वागीश्वरी जी द्वारा लिखित पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया । वागीश्वरी संस्थान की संस्थापक डॉ. नीरू मोहन 'वागीश्वरी' और उनके संस्थान से औपचारिक रूप से जुड़े दिल्ली के सदस्यों ने कार्यशाला को सफल बनाया ।
#प्रीति #जैन जी पूर्वी दिल्ली जिला अध्यक्ष, #अंजलि #मुद्गल जी राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी, #दलजीत #कौर जी राष्ट्रीय उपसचिव, #दीपांक्षी #मोहन दिल्ली उपाध्यक्ष के पूर्ण सहयोग से आयोजन सफल हुआ । डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी ' संस्थान के सभी सदस्यों का हृदय से आभार व्यक्त करती हैं । भविष्य में अबैक्स, वैदिक मैथ्स और कंप्यूटर एप्लिकेशन से संबंधित कार्यशालाओं के आयोजन की भी संभावनाएं हैं । कुछ छाया चित्र आपके समक्ष ।
Monday, 6 May 2019
work shop सब्ज़ी मंडी
नई दिल्ली : हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु और विद्यार्थियों में भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान उत्पन्न करने के लिए वागीश्वरी संस्थान की ओर से 2804 सब्ज़ी मंडी राजपूताना हॉल दिल्ली 110007 में हिंदी लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें 50 से अधिक बच्चों ने भाग लेकर हिंदी भाषा के प्रति अपनी रुचि और रुझान प्रस्तुत किया प्रतियोगिता में 4 वर्ष से लेकर 16 वर्ष तक की आयु के बच्चों ने भाग लिया ।बच्चों में अपने पसंदीदा विषयों पर लेख प्रस्तुत किए । कनिष्क वर्ग के बच्चों ने भी अनेक विषयों पर अपनी क्षमतानुसार अनेक विषयों पर निबंध लिखे । कनिष्क और वरिष्ठ वर्ग दोनों में से प्रथम द्वितीय तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर संस्था की तरफ से प्रोत्साहित किया गया ।
संस्थान की महासचिव प्रीति सनोरिया जी और अन्य सदस्य उषा गोयल जी एवं राखी सागर जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । बच्चों के द्वारा कलात्मक चार्ट और वगीश्वरी संस्थान का बैनर भी तैयार किया गया । निर्णायक महोदया डाॅ. नीरू मोहन वागीश्वरी जी ने बच्चों के इस कार्य की बहुत सराहना की और कहा कि आज के बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है जरूरत है तो उन्हें सही मार्गदर्शन और मार्गदर्शन की जिससे वह अपनी प्रतिभा का सही और उचित जगह पर प्रयोग कर सके और आत्मविश्वासी बन सके ।
बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए डॉक्टर नीरू मोहन वगीश्वरी का यह प्रयास सराहनीय है ।
अमैटी स्वीकृति पत्र
कार्यशाला आयोजन हेतु अनुरोध पत्र
श्रीमान निदेशक महोदय
अमेटी इंटरनेशनल कॉलेज
मानेसर गुरुग्राम
हरियाणा
विषय : हिंदी विषय से संबंधित कार्यशाला एवम् काव्य प्रतियोगिता हेतु स्वीकृति पत्र।
महोदय
सादर नमस्कार ,
हिंदी भाषा उत्थान, बाल विकास और महिला उत्थान को समर्पित वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान एक गैर सरकारी संस्था है ।
हमारा लक्ष्य विद्यार्थियों और समाज के अन्य वर्गों में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान उत्पन्न करना है । विद्यार्थियों में इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हमारी संस्था आपके सहयोग की अभिलाषी आपके शिक्षण संस्थान में कार्यशाला आयोजित करने की इच्छुक है जिसकी अवधि 1 से 2 घंटे की होगी ।
भविष्य में आपके संस्थान में हम ' मुझ में है कवि ' नाम से एक काव्य प्रतियोगिता करने के भी इच्छुक हैं जिससे उन विद्यार्थियों को मंच मिल पाएं जिनकी लेखनी सिर्फ डायरी तक ही सीमित रह जाती है उनकी अनुभूतियां बंद किताब की तरह किसी कोने में अकेली सिसकती रहती हैं ।
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में …
वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान ( रजि. )
डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '
संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष
Wednesday, 1 May 2019
song
बेटियां होती सच्ची
मां की होती हैं प्यारी
प्यार लुटाती अपना सब पर
बन जाती हैं न्यारी
तभी तो कहते बेटी होती
आंगन की किलकारी
रोते हुए मां बाबा को
पल में हंसना हैं सिखलाती
कभी तो लाठी बनकर
घर की छत का धर्म निभाती
राजदुलारी सबकी बन
ममता का शहर बसाती
लड़की है तो क्या ग़म है
लड़का बनकर दिखलाती
काम सभी कर जाती
अव्वल लड़कों से है आती
बेटियां होती हैं सच्ची
ग़म में हंसना सिखलातीं
दवा खिलाती, चोट सहलातीं
बेटे का फर्ज़ निभाती
एक आंख गर बेटा बनता
बेटी दुजी बन जाती
दोनों आंखों के तारे
फिर क्यों … फिर क्यों
बेटियां कोख़ में मारी जातीं
मारी जातीं
लहर उठी बदलाव की अब है
बंद कभी न होगी
बेटियां जन्मेंगी अब सारी
कोख़ में न दम तोड़ेगी
बदलाव यही बदलेंगे जमाना
बेटियों को हमने है बचना
बेटियों को हमने है बचना
Tuesday, 23 April 2019
भारत में हिंदी की स्थिति
आलेख
भारत में हिंदी की स्थिति
हिंदी हमारी शान, हिंदी हमारी जान,
हिंदी से है संसार, हिंदी से हिंदुस्तान,
हिंदी है मन में, हिंदी है तन में,
हिंदी से ही सार्थक…
होती हमारी पहचान ।।
हम सभी ने पर्यावरण प्रदूषण का नाम सुना है और हम देख भी सकते हैं कि पर्यावरण किस प्रकार से दिन-ब-दिन प्रदूषित होता जा रहा है । प्रदूषण चाहे कोई भी हो पर्यावरण या भाषिक हर स्थिति में असर देश पर या देश में रहने वाले समस्त देशवासियों पर पड़ता है । आज हमारे देश में हिंदी भाषा प्रदूषित होती जा रही है और इसका असर देश की प्रगति, विकास और देश के सम्मान पर पड़ रहा है । हिंदी हमारी मातृभाषा है और जहाँ माता का सम्मान नहीं होता वहाँ सुख समृद्धि नहीं रहती है । यह सच है कि जो देश अपनी मातृभाषा का सम्मान नहीं करता उस देश का पतन निश्चित है । यह पतन सांस्कृतिक, नैतिक और साहित्यिक किसी भी रूप में हो सकता है । हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा की काली छाया का प्रकोप फैल रहा है जिससे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि उसके नाम में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है अर्थात आजकल हिंदी को हिंग्लिश बना दिया गया है । हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी भावी पीढ़ी मातृभाषा का रसवाद नहीं कर पाएगी । हिंदी पर अंग्रेजी की कुहास चादर चढ़ गई है जो भारत देश के अस्तित्व पर एक गहरा प्रहार है ।
हमें हिंदी भाषा को विश्व में सिरमौर बनाना है तो आने वाली पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति आदर सम्मान की भावना पैदा करनी होगी । मैं स्वयं कुछ समय से यह अनुभव कर रही हूँ कि हर रोज हिंदी का विकृत रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है ; कभी समाचार पत्रों के माध्यम से, कभी पत्रिकाओं के माध्यम से और कभी चलचित्रों के माध्यम से हिंदी को इंग्लिश के साथ मिलाकर हिंग्लिश बनाकर हमारे समक्ष पेश कर देते हैं । मानो हिंदी भाषा भाषा नहीं एक मजाक हो । भाषा में बढ़ते प्रदूषण का कारण मीडिया से ज्यादा हम स्वयं हैं, समाज हैं, विद्यालय हैं और शिक्षक स्वयं हैं जो अपनी मातृभाषा को विखंडित होने से नहीं बचा पा रहे हैं । अभी भी हम औपनिवेशिक संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित हैं अगर हम अपने आस-पास नजर घुमाएँ तो पाते हैं कि माता- पिता स्वयं अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर उन्हें हीनता का बोध कराते हैं । ऐसी मानसिकता और सोच के लिए समाज, राष्ट्र, माता-पिता और विद्यालय सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि और बढ़ावा देते हैं । आज की शिक्षा व्यवस्था हिंदी भाषा के ह्वास का कारण है जहाँ हिंदी मात्र एक विषय बन कर रह गया है और अंग्रेजी ने भाषा का रूप ले लिया है । इसको प्रदूषण नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? इसे 'भाषा प्रदूषण' संज्ञा देना कोई अचरज नहीं होगा । मैं मानती हूँ कि अंग्रेजी कुछ गिने-चुने रोजगारों के लिए आवश्यक हो सकती है मगर संपूर्ण समाज के लिए नहीं क्योंकि समाज की 90 फी़सदी जनता हिंदी में ही अपने विचारों का आदान प्रदान करती है ।
आज हमारे आस-पास ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि हम लोभ, लालचवश स्वेच्छा से अंग्रेजी को ग्रहण करते हैं । हमारी मानसिकता के अनुसार लाखों रुपयों का वेतन अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने से प्राप्त होता है । हम मानने लगे हैं कि सफलता अंग्रेजी जानने बोलने से प्राप्त होती है । आज हम गुलाम किसी देश के नहीं आज हम गुलाम स्वयं अपनी सोच के हैं …हम गुलाम स्वेच्छा से अंग्रेजी भाषा के हैं । आज ड्राईवर और चपरासी की नौकरी के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है । माँ अपने बच्चों को चाँद की जगह 'मून' और बंदर की जगह 'मंकी' पढ़ाती है बच्चा अगर इन शब्दों को हिंदी में बोले तो माँ की प्रतिक्रिया होती है कि यह चाँद नहीं 'मून' है अर्थात् बच्चों को धरातल से ही हिंदी के ज्ञान से विमुख किया जाता है । आज शादी ब्याह, जन्मोत्सव इत्यादि की पत्रिका और निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापे जाते हैं चाहे घर में किसी को अंग्रेजी आती हो या न आती हो मगर विवाह पत्रिका, निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही होने चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषा आज शान का प्रतीक मानी जाती है जिसके कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है और इसका श्रेय हमारे देशवासियों को जाता है जो अपनी मातृभाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं । साल में एक बार 14 सितंबर को पूरे देश में यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । एक ही दिन हमें हिंदी की औपचारिकता क्यों करनी पड़ती है ? क्या हमारी मातृभाषा के सम्मान के लिए एक ही दिन है ? क्या हम हर दिन हिंदी दिवस के रूप में नहीं मना सकते ? क्या हम हर दिन अपनी मातृभाषा को सम्मान नहीं दे सकते हैं ? यह सभी प्रश्न हमें चिंता में डालते हैं । एक समय था जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे मगर आज हम अंग्रेज़ी के गुलाम होते जा रहे हैं । किसने कहा एक माँ अपने बच्चे को हिंदी नहीं अंग्रेज़ी में सब कुछ सिखाए ? किसने कहा एक कर्मचारी को अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है ? किसने कहा कि निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही हो ? क्या सरकार ने …देश की शासन व्यवस्था … नहीं किसी ने नहीं …यह सब हमारे लोभ, लालच और अंग्रेज़ी भाषा की हवा ने कहा जो ऊँची तरक्की, ऊँचा वेतन और चका-चौंध की छवि को दर्शाता है । भारतीय हिंदी भाषी होना क्या हीनता की निशानी है ? अब आप ही बताइए… क्या यह स्वेच्छा से गुलामी स्वीकार करना है या नहीं …?
हम स्वयं हिंदी के प्रदूषण के जिम्मेदार हैं । जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे तब भी अंग्रेज़ी का ऐसा और इतना बोल बाला नहीं था । अंग्रेज़ी थी मगर अंग्रेज़ी की गुलामी नहीं थी और न ही भारतीय भाषाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार की भावना थी । हमारे देश के नेता अंग्रेज़ी जानते थे बोलते थे और बहुत विद्वान थे मगर सभ्यता और संस्कृति के सम्मान का ध्यान रखते थे । किंतु आज का नेता वोट तो हिंदी में माँगता है, नारे हिंदी में लगाता है, पर्चें हिंदी में बाँटता है किंतु लोकसभा और विधानसभा में शपथ ग्रहण अंग्रेज़ी में करता है । यह कहाँ तक सही है ? क्या उसे हिंदी में शपथ ग्रहण करने में शर्म आती है या अंग्रेज़ियत के भूत ने पूरे देशऔर उसके शासन को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है । हिंदी भाषा के अस्तित्व पर यह गहरा आघात है ।
न जाने जो हिंदी; वह हिंदवासी नहीं,
अंग्रेज़ी का ज्ञान पाकर कोई देशवासी नहीं,
हिंदी में ज्ञान पाओ, हिंदी में गुनगुनाओ,
हिंदी में ही नेताओं को शपथ ग्रहण करवाओ ।।
यह एक भ्रम बुरी तरह से हमारे हिंद में फैलाया गया है और चल रहा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने लिखने वाले युवक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस का नतीजा यह हुआ है कि गरीब और आम आदमी अंग्रेजी भाषा की चक्की में पिसने को तैयार खड़ा हो गया है और वह स्वयं अपने बच्चों को बड़े से बड़े अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहता है जिससे उसकी संतान को सफलता प्राप्त हो सके । परंतु यह वास्तविकता नहीं है हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं और उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं । हिंदी भाषा का सर्वस्व कायम रखना है तो हमें स्वयं की सोच में बदलाव लाना होगा अंग्रेजी जानना, पढ़ना और बोलना बुरा नहीं है परंतु अपनी भाषा को पीछे रख कर नहीं ……आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता नजर आता है । आज लोग अपने बच्चों को प्राइवेट या कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं । आज का युवा उच्च शिक्षा तो ग्रहण कर लेता है परंतु दो लाईन शुद्ध हिंदी न लिख पाता है और न ही बोल पाता है । आज का विद्यार्थी हिंदी नहीं पढ़ना चाहता । बारहवीं के विद्यार्थियों को आज मात्राओं का ज्ञान नहीं है । बारहवीं में आकर भी ि , ी ु , ू े , ै की मात्राओं के प्रयोग में सक्षम नहीं है । इसका जिम्मेदार कौन है …?
हम, आप या विद्यार्थी स्वयं हम से तात्पर्य शिक्षक, आप से तात्पर्य…अभिभावक से है । आज हमें युवाओं के मन में नई चेतना जगानी होगी । अंग्रेजी के संक्रमण को रोकना होगा । प्रदूषित होती हिंदी को बचाना होगा । यह कार्य हम तभी कर सकते हैं जब हम जागरुक हो , हिंदी का महत्व समझें और अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की भावना रखें । आज अनेक संस्थाएँ हिंदी विकास और विस्तार के लिए कार्य कर रही हैं जिनका एकमात्र ध्येय हिंदी को उच्च स्तर तक पहुँचाना और उसके ह्वास को रोकना है । आज हिंदी भाषा अकादमी और वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवम् सांस्कृतिक संस्थान जैसे अनेक संस्थान है जो राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार और विस्तार का कार्य करने में लगनशील है तथा हिंदी को भारत में ही नहीं विश्व स्तर पर सिरमोर बनाने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं । भारत के नागरिक होने के नाते हमें भी हिंदी उत्थान में अपना पूर्ण योगदान देने हेतु संकल्पबध होना होगा और हिंदी भाषा के उत्थान के लिए सदैव प्रयासरत् रहना होगा तभी हम हिंदी पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को रोक पाएँगे और हिंदी पर पड़ रही काली छाया 'हिंग्लिश' को समाप्त कर पाने में सक्षम होगें ।
हिंदी है जन-जन की भाषा ।
हिंदी मेरे हिंद की भाषा ।
हिंदी का सम्मान करो ।
हिंदी पर अभिमान करो।
निष्कर्ष
भाषा चाहे कोई भी हो वह मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है क्योंकि मानव सभ्यता को विकसित और गतिमान बनाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है और वह संप्रेक्षण भाषा से ही संभव है मुख से उच्चारित होने वाली ध्वनि की एक अनुपम व्यवस्था भाषा कहलाती है भाषा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है हिंदी , संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है । आज हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्यों आज हिंदी को बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं ? क्या भाषा भी किसी के संरक्षण की मोहताज है ? हम भारतवासी होकर हमारा क्या यह कर्तव्य नहीं कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें और उसे विश्व पटल पर लाएं ।
अपनी भाषा में एक एहसास है ।
हिंदी देश का स्वाभिमान है ।
हिंदी से भविष्य और वर्तमान है ।
हिंदी भावों का महाजाल है ।
भावों का समंदर रहता है इसमें ।
एहसास से गुथा एक धागा है जिसमें ।
जोड़ देता है मन से मन को पल में कहीं भी ।
टूटते दिलों को जोड़ देता है दूर से ही ।
भावनाओं की भाषा सौहार्द बनाती है ।
लिपि भाषा को लिखना सिखाती है ।
भाषा से ही ज्ञान समृद्ध, विशाल मुमकिन है ।
भाषा नहीं तो शब्दों का महाजाल बुनना मुश्किल है ।
देश विदेश में भी इसका परचम लहराया है ।
सबने हिंदी को मन से अपनाया सौभाग्य हमारा है ।
अभिमान है हमें…हम हिंदुस्तानी हैं।
गौरवान्वित हैं हम… कि हम हिंदी भाषी हैं ।
डॉ. नीरू मोहन 'वागीश्वरी'
Friday, 12 April 2019
उड़ी ……उड़ चली …सपनो में लगाके पंख
रुकी न …अब…बह चली पवन बन , नदी संग - संग
घटाएं जो घिरी थी सब …पलभर में हुईं ओझल
सूरज ने जो तानी है …सुनहरी प्रभा चादर
नए सपनों के रंग आशाओं के संग
हौसलों की उड़ाने , उजालों के संग
कुछ पाने की आशा मन में लिए
हाथों को खोले … अब
उड़ने को चली नभ तक … सपनों के लगा के पंख
उड़ी ……उड़ चली क्षितिज को पाने अब
सूरज ने जो तानी है सुनहरी प्रभा चादर
अभिमान बनूंगी मैं _ सहारा बनूंगी मैं_बेटे से न पाया जो मान बनूंगी मैं ।
बेटी हूं मैं … न सोचने दूंगी ये , बेटे से भी ज्यादा नाम करूंगी मैं ।
बेटे की चाह न फिर जीवन में करोगे तुम, बेटी के जन्म पे शोक करोगे न तुम ।
मांगोगे दुआ हर पल बेटी से भरे आंगन , सूरज ने जो तानी है सुनहरी प्रभा चादर ।
उड़ने को हूं बेचैन , न रोक मुझे बादल
पा लूंगी हर मंजिल , होंसले सब बुलंद है अब ।
ममता दया करुणा साहस सब कुछ मेरे अंदर
मां बहन बहू बेटी … जलधि नध और सागर
सम्पूर्ण धारा मुझसे … जन्नी … दूं नवजीवन
सृष्टि की संवाहक , लक्ष्मी दुर्गा अंदर
बेटी हूं मैं जग की शिक्षा की हूं मैं खान
जननी संस्कारों की शिक्षित करती परिवार
सबको ये बताने सच … अनजान बने हैं जो
न कमतर है बेटी … वंश जिससे बने बेहतर
उड़ी… उड़ चली
सपनों के लगा के पंख
सूरज ने को तानी है
सुनहरी चादर नभ तक
Thursday, 11 April 2019
मैं भी चौकीदार …
मैं भी चौकीदार …
मैं भी भिखारी…
मैं भी चायवाला …
क्या है ये सब ?
एक नेता के कहने पर हम अपने आपको किसी भी संज्ञा से संबोधित कर लेते हैं क्यों ?
मैं पूछती हूं उन लोगों से जो अपने आपको कभी चौकीदार बना रहे हैं कभी चायवाला; अगर सच में वह इनमें से किसी से भी संबंधित होते तो क्या ये सब कह पाते ? शायद नहीं … यकीनन नहीं और अगर कोई उनको ये सब कह कर संबोधित भी करता तो सहन से बाहर होता तो क्यों किसी के कहने मात्र से सभी चौकीदार और चायवाले बन जाते है । नाम , शोहरत , वोट और रुतबा पाने के लिए । एक बार ये काम करके देखिए सच्चाई समक्ष होगी । जो जनता से इतने बड़े - बड़े वादे कर रहे हैं एक दिन भी चौकीदार और चायवाले नहीं बन सकते क्योंकि … उन की तरह आप मेहनत नहीं कर सकते , पसीना नहीं बहा सकते । कुर्सी पर बैठ कर कुछ भी बोला जा सकता है । इन स्थितियों को जी कर देखें असलियत से सामना हो जाएगा ।
मैं ये सब इसलिए कह रही हूं कि मीडिया, समाचारपत्र, पत्रकारों को माध्यम बनाकर आपसे पूछा जा रहा है कि आप किसको वोट देंगे । आपका पसंदीदा नेता कौन है । अरे भाई ! ये हम तुम्हे क्यों बताएं । ये हमारा अपना मत है । अपना वोट है । हम किसको वोट दे या देंगे ये जगजाहिर क्यों करना है ? जब मत पेटी से मतों की गिनती हो जाएगी सबको पता चल ही जाएगा कि पसंदीदा व्यक्तित्व या नेता कौन है ।