Friday, 20 October 2017

बचपन की दिपावली

*बचपन की दिवाली पर गुलजार की लिखी यह पूरानी कविता है*

अब चुने में नील मिलाकर पुताई का जमाना नहीं रहा।चवन्नी,अठन्नी का जमाना भी नहीं रहा।फिर भी यह कविता आप सब के लिए पेश है--

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस  पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं  ....

दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं
चवन्नी -अठन्नी  पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

बिजली की झालर छत से लटकाते हैं
कुछ में मास्टर  बल्ब भी  लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी  खाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं
बार-बार बस गिनते जाते है
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं
प्रसाद की  थाली   पड़ोस में  देने जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं 
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
सामान  से नहीं ,समय देकर सम्मान  जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....🙏

Tuesday, 17 October 2017

दिपावली ####खुशियों की क्यारी

दीपों का जगमग त्योहार
दीपज्योत्स्ना करें प्रकाश
मावस के तम को हर लेती
दीप आवाली जब घड़ लेती
उत्साह उमंग उल्लास है लाती
हर जन को संदेश दे जाती

कुटिल विचारों का त्याग करके
सत्य धर्म पर चलना है
रोशन जग को करते-करते
दीपों से तम हरना है
बम पटाखे त्यजकर हमको
पर्यावरण सुरक्षित करना है
कर लो प्रण यह आज अभी से
पर्यावरण के रक्षक बनना
ध्वनि प्रदूषण कभी न करना
जीव जंतु के सखा है बनना
वायु दूषित कभी न करना
पर्यावरण संरक्षक बनकर
प्रकृति दोहन कभी न करना
सोचो इसके लिए क्या करना
धन का उचित प्रयोग तुम करना
पटाखों की खरीद न करना
दीन-दरिद्र के दुख तुम हरना
दिवाली पर देती संदेश
सुख-समृद्धि तुम कायम रखना

Monday, 16 October 2017

नई शिक्षा नीति

विषय - नई शिक्षा नीति

नीति चाहे नई हो या पुरानी उसका उद्देश्य केवल विद्यार्थियों का सर्वाँगिण विकास होना चाहिए । क्योंकि आज जिनके भविष्य को हम संवारने की बात कर रहें है वही कल देश के भविष्य के निर्माता की भूमिका निभाएँगे । कहा भी गया है कि भवन निर्माण करते समय अगर एक भी ईंट गलत लग जाती है तो भवन का गिरना संभंव है और अगर ईंट और नींव दोनों मज़बूत होंगी तो दुनिया की कोई भी शक्ति उका बाल भी बांका नहीं कर सकती ।
शिक्षा किसी राष्ट्र अथवा समाज की प्रगति का मापदंड है । जो राष्ट्र शिक्षा को जितना अधिक प्रोत्साहन देता है वह उतना ही विकसित होता है । किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति इस पर निर्भर करती है कि वह राष्ट्र अपने नागरिकों में किस प्रकार की मानसिक अथवा बौद्धिक जागृति लाना चाहता है । नई नीतियों के अनुसार वह अनेक सुधारों और योजनाओं को कार्यान्वित करने का प्रयास करता है जिससे भावी पीढ़ी को लक्ष्य के अनुसार मानसिक एवं बौद्‌धिक रूप से तैयार किया जा सके। नयी शिक्षा-नीति में परीक्षा की विधि एवं पूर्व परीक्षा विधि की तरह परीक्षा भवन में बैठ बैठकर रटे रटाए प्रश्नोत्तर लिखने तक सीमित नहीं रह गई है, अपितु विद्यार्थियों के व्यावहारिक अनुभव को भी परीक्षा का आधार बनाया गया है। इसमें प्रत्याशी अपने व्यावहारिक स्तर के मूल्यांकन के आधार पर कोई पद, व्यवसाय या उच्चतम अध्ययन को चुनने के लिए बाध्य होगा। नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य है कि शिक्षा इंसान को बंधनों से मुक्त करे और उसे सक्षम बनाए। इसमें इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि शिक्षा रट्टा मार परंपरा से मुक्त हो जिसमें शिक्षा को स्कूल की चारदीवारी के बाहर की दुनिया से जोड़ने की बात कही गयी है। हम एक अद्भुत दुनिया में रह रहे हैं। यहाँ पर कुछ लोग वास्तविक गांवों को मिटाने और डिजिटल विलेज बसाने की बात करते हैं। भारत में चुनिंदा टेक्नोक्रेट चाहते हैं कि शिक्षा पर उनका कब्जा हो जाए और टीचर की जगह टेक्नॉलजी को रिप्लेस कर दिया जाए। मगर यह बात सौ फ़ीसदी सच है कि कोई तकनीक एक अच्छे टीचर की जगह कभी भी नहीं ले सकती।
भारत में इंटरनेशनल सेमीनार के नाम पर शब्दावाली का एक खेल हो रहा है, इस सेमीनार में हिस्सा लेने वाले लोग गाँव के स्कूलों की ज़मीनी वास्तविकताओं से अनभिज्ञ हैं। लेकिन स्कूल में इंटरनेट, वीडियो और स्मार्टफ़ोन पर इस्तेमाल होने वाले सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करने की बहुत सी मनगढ़ंत वजहें गिनाते वक़्त उनका आत्मविश्वास देखने लायक होता है। हालांकि स्कूल में तकनीकिकरण को बढ़ावा देने वाले कुछ समर्थक स्वीकार करते हैं कि तकनीक शिक्षक के सहायक की भूमिका निभा सकती है। लेेकिन तकनीक पर इससे ज़्यादा भरोसा शिक्षा को उस मानवीय ऊष्मा से वंचित कर देगा, जिसकी झलक अभी स्कूलों में दिखाई देती है। बुनियादी तौर पर शिक्षकों से यह कहने की कोशिश हो रही है कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाएगा के साथ-साथ कैसे पढ़ाया जाएगा? यह तय करने की जिम्मेदारी भी बाकी लोगों पर होगी। किसी स्कूल में क्या शिक्षक की भूमिका मात्र ऊपर से आने वाले निर्देशों का अनुसरण करने की होगी? अगर ऐसा होता है तो शिक्षक अब अपने ही बच्चों के बीच अज़नबी होने को मजबूर होगा। और बच्चों के बारे में कहा जाएगा कि उनको तो वीडियो गेम और इंटरनेट पर पढ़ना, प्रोजेक्ट बनाना पसंद है ऐसे में शिक्षक की जरूरत क्या है? लेकिन ज़मीनी वास्तविकताएं काफी अलग है। ऐसे में सवाल उठता है कि तकनीक का अत्यधिक लोभ हमें एक ऐसे अंधे रास्ते की तरफ न मोड़ दे…जहां से कोई वापसी नहीं होगी।
***नीतियाँ बनाने वालो
बच्चों के भविष्य से न खिलवाड़ करो ।
नैतिक मूल्यों और संस्कारों की जड़
तुम ऐसे न बर्बाद करो ।
खुशहाली तभी मिलेगी
जब भावी पीढ़ी का ख्याल रखोगे ।
शिक्षा और शिक्षार्थी को राजनीति से दूर रखोगे ।

Friday, 13 October 2017

विषय -वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बच्चे विधा- हाइकु

विषय -वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बच्चे
विधा- हाइकु

* नैतिक मूल्य
रह गए है कम
शिक्षा का अंत

* भावी पीढ़ी है
अंधकार में लुप्त
शिक्षा त्रुटिपूर्ण

* छात्र हुए है
अनुशासन हीन
शिक्षक मूढ़

* भेड़चाल है
देश बदहाल है
शिक्षा कहाँ है

* सुप्त शासन
अपना राज-काज
स्कूल आबाद

* गूढ़ निर्बल
मूढ़ है सिरमौर
शिक्षा बेमोल

रचनाकार - नीरू मोहन

Tuesday, 3 October 2017

श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

**मैं और मेरे पापा**

माँ का प्यार कैसा होता है ।
पापा के सीने से लगकर ही यह जाना है ।

माँ की सूरत तो नहीं देखी है । हर वक्त पापा को ही अपने करीब पाया है ।

महसूस न होने दी कमी माँ की आज तक ।
पापा ने मुझे बड़े नाज़ों से पाला है ।

पापा ही हैं जिन्होंने मुझे उँगली पकड़कर चलना सिखाया है । पापा ही है वो जिन्होंने जिम्मेदारी और संस्कारों का पाठ पढ़ाया है ।

क्या हुआ ?नहीं हैं अगर
माँ आज हमारे साथ,
माँ और पिता का प्यार दोनों मैंने उन्ही से ही पाया है ।

डर लगता था जब मुझे रात को, सीने से पापा ने ही मुझे लगाया है ।
भूख लगती थी मुझे तो पापा ही हैं वो जिन्होंने अपना निवाला भी मुझे खिलाया है ।

चोट लगती थी मुझे कभी
तो दर्द पापा को होता था ।
मुँह से तो कुछ न कहते पर दर्द आँखों से बयाँ होता था ।

उँगली पकड़कर पापा की
चलना मुझे अच्छा लगता है ।
पापा का प्यार मुझे ईश्वर का अनमोल तोहफा लगता है ।

पापा के साये में मुझे
माँ का भी साया छुपा लगता है ।
माँ तो नहीं है जीवन के इस सफ़र में हमारे साथ,
पर पापा का साथ पाकर कुछ भी अधूरा सा नहीं लगता है ।

पापा ! संघर्ष आपका
व्यर्थ न मैं होने दूँगा ।
बड़ा हो जाऊँ जल्दी से बस,
पलकों पर अपनी बिठाकर बुढ़ापे का सहारा मैं ही बनूँगा ।

नहीं महसूस होने दूँगा उस दिन
माँ की कमी आपको ।
बेटे का फर्ज़ अदा करके
बुढ़ापे में कभी अकेला महसूस न होने दूँगा ।