** कभी नहीं थकती **
गांव की पगडंडियों से होकर गुजरती है ।
रेगिस्तान की गरम रेतीली जमीन पर कदम रखती है ।
कभी सिर पर मटकी तो कभी लकड़ी लेकर चलती है ।
कभी खेतों में काम करती तो कभी ईंटें ढोती है ।
कभी पैदल ही मीलों चली जाती कभी नहीं थकती निरंतर चलती है ।
कभी धूप के थपेड़े सहती कभी आंधियों से होकर गुजरती है ।
जीवन की कठिनाइयाँ अकेले ही सहती है ।
निरंतर जीवन में संघर्ष करती है उफ…नहीं करती है ।
घर की पूरी जिम्मेदारी भी सहजता से उठा लेती है ।
कभी पाँव में काँटा चुभे तो स्वयं ही निकाल लेती है ।
यही नारी की कहानी है …
हर रोज़ बोझा उठाना हर रोज़ काम करना है ।
आँधी हो या तूफान अपने बच्चों का पेट उसे ही भरना है ।
…क्योंकि
वह नारी है कभी नहीं थकती है ।
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