नई बहू के आने का इंतजार और खुशियों का एहसास
विधा- कविता
* रोशन की बाबुल अँगनाई,
उषा-सी प्रभात तुम लाईं,
कलरव गीत सुनाया तुमने,
किलकारी जब कंठ समाई।
* बेटी का फर्ज़ सहज निभाया,
अब अपने घर भी आना है,
दोनों सदनों का मान है रखकर,
तुम्हें अपना फर्ज़ निभाना है।
* खुशियाँ बरसानी तुमने हैं,
अपना घर स्वर्ग बनाना है,
आदर-सत्कार बड़ों को देकर,
अपना सर्वस्व बनाना है।
* बहू नहीं तुम बेटी बनकर,
आओगी संग-साथ हमारे,
नहीं आने हम देंगे आँसू,
बाबुल की आँखों में भी तब।
* खुश होकर जब तुम आओगी,
खुशियाँ ही संग में लाओगी,
हमें पता है तुम घर में,
सभी अपने फर्ज़ निभाओगे।
* मात-पिता की छवि मिलेगी,
सास-ससुर के प्यार में,
बरसेगा भाई-बहन का प्यार,
नंद देवर के संग-साथ में।
* तंडुल कलश सजा रखा है, द्वार बाँधनी बंधी भवन में, गृह प्रवेश करने को आतुर, कुमकुम,मेहंदी,सुरभी के संग।
*कुमकुम के शुभ कदमों के संग, सबके रंग में मिल जाना है, घी, मेहंदी के छापो के संग, भंडार समृद्ध बनाना है।
* बाती दीपक के संग रहकर, जग रोशन जैसे करती है, अंधकार को भी जैसे वह, प्रकाश किरण से भरती है।
* तुमको वैसी प्रभा है बनना,
गृह प्रवेश इसी सोच से करना,
धन-धान्य बरसाना है,
लक्ष्मी स्वरूपा बनकर आना है।