Saturday, 26 August 2017

**बहू हमारी ‘गृह लक्ष्मी’**

नई बहू के आने का इंतजार और खुशियों का एहसास

 विधा- कविता

* रोशन की बाबुल अँगनाई,
उषा-सी प्रभात तुम लाईं,
कलरव गीत सुनाया तुमने,
किलकारी जब कंठ समाई।

* बेटी का फर्ज़ सहज निभाया,
अब अपने घर भी आना है,
दोनों सदनों का मान है रखकर,
तुम्हें अपना फर्ज़ निभाना है।

* खुशियाँ बरसानी तुमने हैं,
अपना घर स्वर्ग बनाना है,
आदर-सत्कार बड़ों को देकर,
अपना सर्वस्व बनाना है।

* बहू नहीं तुम बेटी बनकर,
आओगी संग-साथ हमारे,
नहीं आने हम देंगे आँसू,
बाबुल की आँखों में भी तब।

* खुश होकर जब तुम आओगी,
खुशियाँ ही संग में लाओगी,
हमें पता है तुम घर में,
सभी अपने फर्ज़ निभाओगे।

* मात-पिता की छवि मिलेगी,
सास-ससुर के प्यार में,
बरसेगा भाई-बहन का प्यार,
नंद देवर के संग-साथ में।

* तंडुल कलश सजा रखा है,                                 द्वार बाँधनी बंधी भवन में,                                     गृह प्रवेश करने को आतुर,             कुमकुम,मेहंदी,सुरभी के संग।

*कुमकुम के शुभ कदमों के संग,                         सबके रंग में मिल जाना है,                                    घी, मेहंदी के छापो के संग,                               भंडार समृद्ध बनाना है।

* बाती दीपक के संग रहकर,                               जग रोशन जैसे करती है,                                 अंधकार को भी जैसे वह,                                 प्रकाश किरण से भरती है।

* तुमको वैसी प्रभा है बनना,
गृह प्रवेश इसी सोच से करना,
धन-धान्य बरसाना है,
लक्ष्मी स्वरूपा बनकर आना है।

Wednesday, 23 August 2017

‘हिंदी की आत्म कथा’

*हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

*हिंदी है जन-जन की भाषा
हिंदी मेरे हिंद की भाषा
हिंदी का सम्मान करो तुम
हिंदी पर अभिमान करो तुम ।।।

‘हिंदी की आत्म कथा’

विधा- कविता

*उठ कर गिरी हूँ,
गिरकर उठी हूँ,
यही संघर्ष मेरा,
अभी भी निरत है।

*अस्तित्व कायम रखकर,
कटाक्ष सबके सहकर,
सर्वस्व कायम रखकर,
श्लाघनीय बनी हूँ।

*हाँ,हूँ मैं वही,
राजभाषा तुम्हारी,
राष्ट्रभाषा कहलाती,
क्षितिज से मिली हूँ।

*तुम्हे व्यक्त करती,
तुम्हें भाव देती,
कलुष तम को हटाती,
चली आ रही हूँ।

*क्षितिज छोड़ प्राची सम,
अरुण हो चली हूँ,
शून्य तक पहुँच,
उच्च शिखर तक बढ़ी हूँ।

*अनेक भाषाओं की जननी,
मैं अकेली खड़ी हूँ,
सहोदरी भाषा कहलाती,
सब पर भारी पड़ी हूँ।

*हिंदी से हिंग्लिश
बनाया गया है।
अस्तित्व एेसे मेरा
मिटाया गया है।

*फिर भी दिखती हूँ,
इंग्लिश के आगे अभी भी,
अस्तित्व अपना कायम,
बनाया हुआ है।

*एक ही दिन मुझको,
यह सम्मान दिलाते हो,
क्यों हिंदी दिवस,
रोज नहीं तुम मनाते हो।

*विश्व हिंदी दिवस से,
क्या तुम हो दर्शाते,
वो आदर-सत्कार,
क्या मुझको दिलाते।

*सम्मान यह मेरा,
तभी ही बढे़गा,
सर्वमान्य बनाओगे,
तभी हिंद चलेगा।

*एक ही दिन सम्मान से ,
न हासिल कुछ होगा,
सर्वमान्य बनाना है,
तो संघर्षरत रहना होगा।

*प्रण कर लो अभी से,
सुधार तभी यह होगा,
कार्यस्थलों पर साक्षात्कार,
हिंदी में ही गर होगा।

*सफल संघर्ष मेरा,
तभी ही बनेगा,
जन-जन का अगर,
साथ मुझको मिलेगा।

*अग्निपथ पर खड़ी हूँ,
ज्वाला-सी बनी हूँ,
साथ सबको लिए,
सहोदरी में बनी हूँ।
सहोदरी में बनी हूँ।

*हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

*हिंदी है जन-जन की भाषा
हिंदी मेरे हिंद की भाषा
हिंदी का सम्मान करो तुम
हिंदी पर अभिमान करो तुम ।।।
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Wednesday, 16 August 2017

अनुभव पत्रिका में मेरी कविता 'बारिश की बूँदें'

अनुभव पत्रिका में मेरी कविता
'बारिश की बूँदें' प्रकाशित
'नीरू मोहन'

Tuesday, 15 August 2017

प्रकाशित रचना

नवपल्लव पत्रिका में मेरी रचित रचना
'नीरू मोहन'

Monday, 14 August 2017

** आजाओ माखनचोर एक बार फिर जग में **

** सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ !

यह कविता स्वतंत्र भारत की गाथा सुनाती है ।
कृष्ण को याद करके भारत का हाल बताती है |

* आजाओ माखन चोर
एक बार फिर जग में
हाल दुष्कर है सृष्टि का
हर पल प्रतिपल में

* मची है चीत्कार
चहुँ ओर जग में
भ्रष्टाचार व्याप्त है
यहाँ हर मन में

* आजाओ माखन चोर
एक बार फिर जग में

* अराजकता, चीरहरण, भ्रष्ट आचरण
दिखता हर कूँचे सड़क पर
हर डग पर खड़ा कुशासन
रिश्ते झूठे हैं अब इस जगत में

* दुर्योधन, दुशासन, कंस का जमाना
फिर से आ गया वही सदियों पुराना
घूंसखोरी चली है अकड़ के
न्याय है ही नहीं इस जगत में

* आजाओ माखन चोर
एक बार फिर जग में

* माखन-मिश्री वह टोली हठखेली
नहीं दिखती है अब मानव मन में
गौ-धन  का  बुरा यहाँ हाल है
गौ-हत्या करें , पापी जग में

* भविष्य नौनिहालों का लगा दांव पर
बन बैठे हैं नाग कालिया हर घाट पर
एक बार कृपया कर जाओ
संसार का दुख हर ले जाओ

* आजाओ माखन चोर
एक बार फिर जग में

* कौरवों का अभी भी यहाँ राज है
पांडवों का जीना दुष्वार है
सच्चा कर्म आकर सिखा जाओ
एक बार फिर मंथन कर जाओ

* युद्धभूमि हर घर में सजी है
भाई-भाई में कटुता भरी है
अहम् अपना यहाँ सर्वस्व है
दुख दरिद्रता का राज सर्वत्र है

आजाओ माखनचोर
एक बार फिर जग में
तार दो हर जन को सत्कर्म से
एक बार फिर से आकर मेरे कान्हा
पढ़ा जाओ गीता का पाठ इस जग में

लिया जन्म तूने इस जग में जब
छटा काली छटी थी अष्टमी पर 
एक बार मेरे कान्हा आजाओ
इस सृष्टि को सँवार जाओ

* आजाओ माखनचोर
एक बार फिर जग में
हाल दुष्कर है सृष्टि का
हर पल प्रतिपल में

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Sunday, 13 August 2017

'कि और 'की' का प्रयोग ** सुगम सरल हिंदी व्याकरण

*** अध्यापिका हूँ बच्चों की परेशानी भांप जाती हूँ |
कहाँ उन्हें है आती परेशानी जल्दी
पहचान जाती हूँ |

***आज तक के अनुभव से है यह पाया |
कहाँ लगाएँ 'कि' और 'की' बच्चों को आज तक नहीं समझ आया |

***पहली से बारहवीं तक के छात्रों का है यह हाल |
पता नहीं है 'कि' और 'की' का सही स्थान |

***नीरू कहती मत होना बच्चों कभी परेशान |
'कि' और 'की' की स्थिति पहचानने में कभी मत खाना मात |

*** 'कि' से पहले आता है हमेशा क्रिया शब्द याद रखना यह बात |
'की' को हमेशा लगाना संज्ञा और सर्वनाम के बाद |

****** 'कि' *****

***'कि' एक संयोजक शब्द है कहलाता |
जोड़ता दो वाक्य और वाक्यांशों को और अपना स्थान है बनाता |

***वाक्य बनाते समय बनता है अगर कोई प्रश्न |
वहाँ 'कि' लग जाता है |
मुख्य वाक्य को आश्रित वाक्य से जोड़ देता है,
और अपना स्थान बनाता है|

***पहले वाक्य के अंत में और दूसरे वाक्य के प्रारंभ में लग जाता है |
इसका प्रयोग विभाजन के लिए या के स्थान पर भी किया जाता है |

****** 'की'******

***'की' के बाद स्त्रीलिंग शब्द का प्रयोग किया जाता है |
संज्ञा और सर्वनाम का किसी से संबंध जोड़ना हो ,
तो वहाँ 'की' लग जाता है |

***दो शब्दों को जोड़ने और संबंध स्थापित करने का कार्य भी 'की' ही करता है |

****'ताले की चाबी खो गई'
उदाहरण से पूर्ण स्पष्ट हो जाता है |ताले और चाबी का संबंध 'की'
लगाकर जोड़ा जाता है |

***अगर रखोगे हमेशा यह बातें याद कभी नहीं भूलोगे 'कि' और 'की' का सही स्थान |

***छात्रों कभी भी न होना निराश |
***'नीरू' करेगी हमेशा सुगम
हिंदी व्याकरण का ज्ञान तुम्हारे लिए आसान |
कभी न भूलना 'कि' और 'की' का सही स्थान |
याद रखना और सुदृढ़ बनाना हिंदी व्याकरण का ज्ञान |

** झंडा ऊँचा रहे हमारा **

मातृभूमि पर हर भारतवासी कुर्बान
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जिसकी मिट्टी की खुशबू भी

चंदन के जैसी लगती है ।।

जिसकी ठंडी और शीतल वात

मलय की भाँति बहती है ।।

जिसके लोगों में अपनापन

उनका अस्तित्व बनाता है ।।

एकता और भाईचारा

हर कदम पर मुस्काता ।।

****वही है भारत देश महान
हम सबका प्यारा हिंदुस्तान ।।

जिसके शीर्ष पर हिमालय

हिमताज पहन खड़ा है।।

जिसके क्षितिज के छोर पर

अरुणकर प्रकाश भरा है ।।

उषा की किरण उगाता अरुण

जहाँ नया सवेरा लाता हैं ।।

रात्रि के तम में भी जहाँ

रोशन जग हुआ जाता है ।।

****वही है भारत देश महान
हम सबका प्यारा हिंदुस्तान ।।

जहाँ तिरंगे के तीन रंग की

आन-बान-शान निराली है ।।

जहाँ वीरों की कुर्बानी

वतन पर ज़ाया न जाती है ।।

जहाँ हर कोम, धर्म, जाति

भाईचारें का सूत्र बनाता है ।।

अनेकता में एकता का सूत्र जहाँ

हर पग पर बांधा जाता है ।।

****वही है भारत देश महान
हम सबका प्यारा हिंदुस्तान ।।

देते हैं अपनी जान वतन पर

हर वीर वह भारतवासी है ।।

दुश्मनों को धूल चटाने वाले

सरहद के वीर हिंदुस्तानी हैं ।।

धरती पर करे जो जान निसार

पाषाण जिगरधारी बलिहारी है ।।

अपनी मिट्टी के मान की खातिर

जहाँ न्यौछावर हर देशवासी है ।।

****वही है भारत देश महान
हम सबका प्यारा हिंदुस्तान ।।

वंदे मातरम !

Saturday, 12 August 2017

***भारत की शान 'तिरंगा'***

वंदे मातरम!

विधा  : हाइकु
विषय : तिरंगा

तिरंगा मान
भारत का सम्मान
शीश कुर्बान

भारत महान
तिरंगा पहचान 
जान निसार

तिरंगा ऊँचा
लहर लहराए
नभ की शान

वीर बलिदान
तिरंगे की शान
रखेंगे मान

केसरी,हरा
श्वेत अंबर पर
दिखे तिरंगा

जान निसार
तिरंगे का मान
रखें जवान

हिंदीवासी गाएँ                                             राष्ट्रगान की शान                                             राष्ट्रीय गान ।।

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

**जय हिंद,जय भारत***

उन वीरों को शत-शत नमन जिनके बलिदानों की खातिर आज हम स्वतंत्र भारत की खुली हवा में सांस ले रहे हैं ।।

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

स्वतंत्र है देश हमारा
इस मिट्टी के हम वासी हैं ।।
भारत देश की शान की खातिर
हर राही के हम साथी हैं ।।
सीमा की रक्षा पर जो वीर
तैनात हैं भारतवासी हैं ।।
उनके हर कतरे-कतरे पर
हम हिंदवासी आभारी हैं ।।

'जय हिंद,जय भारत'