Sunday, 31 May 2020

Tuesday, 26 May 2020

वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की ऑनलाइन वेबगोष्ठी(वेबिनार) का हुआ सफल समापन:

वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की ऑनलाइन वेबगोष्ठी(वेबिनार) का हुआ सफल समापन:
चतुर्थ एवं समापन दिवस  : 24 मई,2020
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग,मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार नई दिल्ली तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 21 मई से 24 मई,2020 तक  वेबगोष्ठी (वेबिनार) का आयोजन किया जा रहा है। 
उक्त वेब गोष्टि का शीर्षक "सामाजिक एवं वैज्ञानिक शोध अध्ययन में भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली की भूमिका" रखा गया था ।  आज वेबगोष्टि अपने उद्देश्यों को पूरा करते हुए सफल  हुई।
वेबगोष्ठी के चतुर्थ एवं समापन दिवस 24 मई,2020 को तकनीकी सत्रों में वेबगोष्टि संचालन का कार्य इंजी जयसिंह रावत, स.वैज्ञानिक अधिकारी ने किया तथा कार्यक्रम प्रभारी श्री शिव कुमार चौधरी ,स. निदेशक ने चतुर्थ दिवस की वेबगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की।
आयोग अध्यक्ष  प्रो अवनीश कुमार जी ने सभी विद्वानों और सहभागियों का वेबगोष्टि में सक्रिय भाग लेने के लिए हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत  किया। 
     वेब गोष्टि के लिए लगभग 2000 से अधिक  ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन प्राप्त हुए थे।  प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय दिवस की भाँति चतुर्थ/समापन दिवस भी विभिन्न तकनीकी सत्रों में औसतन 700 से अधिक सहभागियों ने इस वेबगोष्टि मे ऑनलाइन सहभागिता दिखाई। 
   आज चतुर्थ एवं समापन दिवस 24 मई,2020 को निम्नलिखित विद्वान वक्ताओं को संसाधक/विषय विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया है :-
(1) प्रो एम. वैंकटेश्वर ,प्रोफेसर(भाषा विज्ञान) ओस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
  प्रो एम. वैंकटेश्वर ने भाषा विज्ञान में तकनीकी शब्दावली पर रुचिकर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

(2) प्रोफेसर ममता चंद्रशेखर, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष(राजनीति विज्ञान विभाग) देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर (वर्तमान में एस ए वी राजकीय वाणिज्य एवं कला महाविद्यालय, इंदौर)
प्रोफेसर ममता चंद्रशेखर जी ने राजनीति विज्ञान के परिपेक्ष्य में तकनीकी शब्दावली  पर बहुत ही रुचिकर व्याख्यान(ppt) दिया।

(3) डॉ संतोष खन्ना, पूर्व वरिष्ठ अधिकारी,लोकसभा सचिवालय, दिल्ली
डॉ संतोष खन्ना जी ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वैधानिक स्वीकार्यता तथा इसके अनुप्रयोग पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया।

(4) आयोग अध्यक्ष  प्रो अवनीश कुमार जी ने  वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली निर्माण सिद्धान्त ,अनुप्रयोग, समस्याएँ एवं निराकरण पर सारगर्भित व्याख्यान (PPT)प्रस्तुत किया 

(5) डॉ गजेंद्र प्रताप सिंह , असिस्टेंट प्रोफेसर , 
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय(JNU),दिल्ली
     डॉ गजेंद्र प्रताप सिंह जी ने गणितीय मॉडल और वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली पर लाभप्रद, ज्ञानवर्धक एवं सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया।
       
आज चतुर्थ दिवस भी सभी विद्वान वक्ताओं के उपयोगी एवं रुचिकर व्याख्यान प्रस्तुत करने से  सहभागियों ने गहरी रुचि दिखाते हुए चैटबॉक्स में अपने फीडबैक एवं विचार व्यक्त किये। सहभागियों द्वारा तकनीकी शब्दावली और शोध अध्ययन से जुड़े विषयों पर पूछे गए प्रश्नों का समाधान भी किया गया।
   चतुर्थ दिवस के तकनीकी सत्र के अंत मे आयोग अध्यक्ष प्रो अवनीश कुमार जी वेबगोष्टि को सफल बनाने के लिए आज आमंत्रित सभी वक्ताओं और सहभागियों का आभार व्यक्त किया 
   चतुर्थ दिवस के समापन सत्र मे आयोग अध्यक्ष महोदय  प्रो. अवनीश कुमार,वेबगोष्टि प्रभारी अधिकारी श्री शिव कुमार चौधरी,सहायक निदेशक एवं वेबगोष्टि संचालक
 श्री जयसिंह रावत,स.वैज्ञानिक अधिकारी ने आमंत्रित सभी अतिथियों/ विद्वानों/विशेषज्ञों/वक्ताओं , सहभागियों तथा विश्विद्यालय के कुलपति महोदय ,समस्त फैकल्टी स्टाफ और वेबगोष्टि से जुड़े पूरे टेक्निकल एक्सपर्ट्स जिन्होंने ऑनलाइन वेबगोष्टि को व्यवस्थित तरीके से अपने उद्देश्य तक पहुँचाया, सभी का आभार एवं धन्यवाद व्यक्त किया ।
   बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ,झाँसी से स्थानीय समन्वयक प्रोफेसर एस.पी. सिंह , निदेशक (अकादमिक)  द्वारा विश्वविद्यालय की ओर से आज के समापन दिवस और चार दिवसीय वेबगोष्टि का प्रतिवेदन एवं आभार व्यक्त किया गया। 
लगभग चार घंटे चली ऑनलाइन वेब गोष्ठी के संकलित फोटो चित्र प्रस्तुत।

मजदूरों का महानायक …सोनू

मजदूरों का महानायक …सोनू

सोनू मेरा प्यारा बेटा , सभी का प्यारा सोनू , सोनू तू न सबसे प्यारा है और सब को प्यारा । सूरज की पहली किरण को देखकर सोनू को मां की कही यही बातें याद आ रही थीं । सोनू सोच रहा था पूरा देश महामारी से बेहाल है और प्रवासी मजदूरों का तो और भी बुरा हाल है उनके पास तो सिर छिपाने के लिए जगह भी नहीं है अपने शहरों , गावों और अपनो से दूर जहां अब कोई भी उनका अपना नहीं है कैसे रहेंगे । जिन्हें उनके मालिकों ने भी जहां वह करते थे निकाल दिया गया है वह भी बिना कोई पैसे और तनख्वाह दिए । वह सोच रहा था कि कैसे ये अपने घर अपनों के पास पहुंचेंगे और यह भी नहीं पता कि यह स्थिति कब तक रहने वाली है । अगर ये अपने अपने गावों पहुंच जाएंगे तो खेतीबाड़ी तो करके अपना गुजारा पानी कर लेंगे और कहने को अपनी छत भी होगी । अगर सच में मां की बात और विश्वास और अपने नाम के अर्थ को सार्थक करना है तो इस महामारी काल में उन लोगों की मदद की जाए जिनकी सही अर्थों में मदद की जरूरत है।

सोनू अपने घर वालों से बात करता है कि सभी अपनी अपनी तरह से इस स्थिति से उबरने के लिए देश की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं और जरूरतमंदों के लिए राशन और रोटी पानी की व्यवस्था भी कर रहे हैं और बहुत से ऐसे है जो प्रधानमंत्री covid १९ सेवा कोश में अपनी चादर के अनुसार पैसे  जमा कर रहे हैं । 
सोनू कहता है अगर हमें इन प्रवासी मजदूरों की सच्ची मदद करनी है तो क्यों न जितना संभव हो सके हम इनको इनके घर पहुंचा दें जिससे ये अपने आप को सुरक्षित महसूस करें क्योंकि अपनी जन्मदात्री मिट्टी और अपनों का साथ मुसीबत से उबरने की ताकत देता है ।
सोनू तभी फैसला कर लेता है कि वह अपनी सेवा इसी प्रकार देगा और जहां तक संभव हो सकेगा वह इनको घर वापिस भेजने में इन मजदूरों की मदद करेगा । 
बस फिर क्या सोनू अपना मिशन शुरू कर देता है और मजदूरों के लिए वातानुकूलित बसों का इंतजाम, रास्ते के लिए खाने पीने का प्रबंध और सफर में इस्तेमाल होने वाली अवश्य सामग्री का प्रबंधक करवाता है और मजदूरों का मसीहा बन इस सदी के korona वर्ष 2020 के महानायक के रूप में covid १९ कर्मवीर योद्धा की भूमिका में सभी का मन जीत लेता है ।
मजदूरों को रवाना करता हुआ दोस्तों क्या आप सभी से फिर मुलाकात होगी , क्या आप लौटकर आयेंगे ।
सभी मजदूर सोनू का धन्यवाद करते हुए , जहां आप जैसे लोग हो वहां दोबारा आने का मन जरूर करेगा । सोनू बस से नीचे उतरता है सभी को हाथ हिला कर विदा करते हुए जल्दी मिलेंगे दोस्तों… सभी बसे दूर ओझल हुई चली जाती हैं सोनू लबी सांस लेता है और अगले दिन की तैयारी शुरू कर देता है ।
 
यह कहानी हमें संदेश देती है कि दूसरों की सेवा में ही परम सुख की प्राप्ति होती है । 
रचनाकार
डॉ नीरू मोहन ' वागीश्वरी '
शिक्षाविद् / प्रेरक वक्ता/ समाजसेविका / लेखिका/कवयित्री

Friday, 22 May 2020

हम मजदूर हैं … हमारे पास व्यवहार की दौलत है ।

हम मजदूर हैं … हमारे पास व्यवहार की दौलत 

आज फिर ठेकेदार नहीं आया । कोई भी मजदूर ढंग से काम ही नहीं कर रहा । ठेकेदार होता है तो किसी के हाथ पैर नहीं रुकते चाय भी तीन टाइम चाहिए और साथ में नाश्ता पानी भी । इस ठेकेदार से ठेका वापिस ले लेता हूं किसी दूसरे को देता हूं । नुकसान ही तो उठाना पड़ेगा । देखो तो ज़रा 7 दिन हो गए कोई खेर खबर ही नहीं है ।   ये एक 1 साल के काम को 2, 3 साल लगा देगा । 
कहते हुए सूरज सभी मजदूरों पर भड़क रहा था । 7 दिन हो गए थे सूरज को यूं ही मजदूरों पर भड़कते हुए । 
आज किसी को चाय नाश्ता नहीं मिलेगा । सारा समय बीड़ी फूकने और  चाय पानी में ही लगा देते हो । काम तो 2, 3 धंटे ही करते हो दिहाड़ी पूरे दिन की चाहिए ।
मजदूर गिरधारी को सूरज की बात सुनकर गुस्सा आ जाता है । साहब ऐसे मत कहिए । काम और मेहनत की रोटी खाते हैं । आप खुद ही देखिए कितनी ठंड पड़ रही है । दस माले तक मेरी मेहरारू, बालक और ये मजदूर ईंट सीमेंट चढ़ाते हैं । ट्रक वाला तो रात को बाहर सड़क पर ही छोड़ जाता है आज सुबह 5 बजे तक सारा सामान सड़क से अंदर तक डाल है अभी ऊपर भी चढ़ाना है । बच्चों का खेल थोड़ी ना है ठंड में हाथ सुन हो जाते हैं । आप तो साहब हैं ना आपको क्या पता ?  साहब हमारी मेहनत पर यूं पानी ना फेरो । 
सूरज तिलमिलाकर काम करते हो तो पैसे भी लेते हो मुफ़्त में थोड़ी न करते हो ।
गिरधारी दुखी मन से , हां साहब हम मजदूर है न इसीलिए आपका हक बन ही जाता है हमें कुछ भी कहने का । हम भी आपकी तरह पढ़े - लिखे होते तो हम भी आपकी तरह बाबू सेठ होते । हमारा तो नसीब ही यही है दूसरों के घरोंदे बनाते हैं और अपना ठोर ठिकाना ही नहीं है । जब से गांव से आए हैं खानाबदहोश की तरह घूमते रहते हैं जहां काम मिल जाता है वहीं डेरा डाल लेते हैं । बाकी ठेकेदार की मेहर । 
गिरधारी की बात अनसुनी करते हुए सूरज फोन सुनने लगता है । अरे ठेकेदार साहब कहां गुम हो गए आप , 7 दिनों से कोई खेर खबर ही नहीं , साइट पर भी सभी अपनी मनमानी कर रहे हैं ।भाई ऐसे तो काम नहीं चलेगा काम करना है तो सही तरह करो नहीं तो मैं ठेका वापिस ले लूंगा, बहुत है अभी भी काम को लेने वाले । मैंने तो आपसदारी देखी मगर अब क्या कर सकता हूं ?
अब बताओ कहां हो ?
सूरज साहब मैं जयपुर में फंसा हूं आपको तो पता है कोरोना अब भारत में भी आ गया है यहां आवाजाही बिलकुल बंद हो गई है । सुनाई में आ रहा है कि सभी जगह लॉक डाउन हो गया है ।
आप ऐसा करिए मेरे मजदूरों को 7 दिन की दिहाड़ी दे दो बेचारे समय रहते अपने - अपने घर तो पहुंच ही जाएंगे ।150 रुपए रोज के हिसाब से एक मजदूर की 7 दिन की दिहाड़ी 1050 रुपए बनती है आप 1500 - 1500 सभी को दे देना इनकी थोड़ी मदद ही हो जाएगी । बाकी हिसाब आकर करता हूं यहां का माहौल देखकर निकालने की कोशिश करता हूं ।
सूरज ठीक है कहते हुए फोन काट देता है । गिरधारी सभी से कह दो काम बंद कर देंगे । आज से अभी काम बंद रहेगा सरकार का ऐलान किया है कि सभी काम धंधे covid १९ के चलते अभी बंद रहेंगे । सभी अपनी 7 दिन की दिहाड़ी लेे लो और साइट खाली कर दो ।
सूरज सभी को 1500 की जगह 1000 रुपए देकर कहता है कि 50 रुपए चाय पानी के काट लिए । गिरधारी मन में … गरीबों की मेहनत का पैसा लेकर कितना भर लेगा सभी यहीं पर रह जाना है । 
गिरधारी मजदूरों से , अपना अपना डेरा हटाओ और सामान बांधो ।
रामू मजदूर गिरधारी से कहता है कि अब वह कहां जाएंगे । गिरधारी कहता है गांव ही चलते है पता नहीं कब तक का बंद हो । सभी मान जाते हैं । सूरज अपनी गाड़ी में बैठकर निकाल जाता है ।
गिरधारी मन ही मन शहर के पैसे वाले लोग कितने रूखे होते हैं मदद तो करने से रहे मजदूरों का भी पैसा खा जाते हैं चलों अपना - अपना व्यवहार ।
सभी 20 मजदूर एक साथ हो लेते हैं जिसमें महिलाएं और बच्चे भी हैं । कुछ दूरी पर भीड़ दिखाई देती है गाड़ी तो सूरज साहब की लग रही है गिरधारी कहता है । रामू   ये तो सूरज साहब की ही गाड़ी है नज़दीक जाकर भीड़ को हटाते हुए । अरे ये तो अपने सूरज साहब हैं । खून से लथपथ दर्द से तड़पता सूरज थोड़े होश हवास में सड़क पर पड़ा है कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा । गिरधारी सूरज को अपने मजदूर भाइयों की मदद से अस्पताल तक पहुंचता है और उसके घर ख़बर कर देता है । सूरज कुछ बोल नहीं पा रहा है परन्तु आंखो ही आंखों में गिरधारी और अन्य मजदूरों से मानो माफ़ी मांग रहा है । 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परोपकरिता ही सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य है । पैसा समाप्त हो जाता है परन्तु दूसरों के साथ किया गया आपका व्यवहार सदैव साथ और याद रहता है इसलिए दूसरों के काम आईए  किसी कि मेहनत का हक छीनकर हम सुख प्राप्त नहीं कर सकते ।

अच्छे बने , अच्छे कर्म करें और दूसरों के काम आएं ।

धन्यवाद 
डॉ नीरू मोहन ' वागीश्वरी '







Wednesday, 20 May 2020

थोक के भाव … covid - 19 अवॉर्ड

थोक के भाव … covid - 19 अवॉर्ड
बिल्कुल फ्री, पहले आओ पहले पाओ …कोविड - 19 बस अब कुछ ही दिनों का है उम्मीद बांधी यही हुई है उसके बाद नहीं मिलेगा मौका । आलू , प्याज , टमाटर , गोभी , धनिया नहीं मिलेगा आज मेरी रेहड़ी पर मिलेगा कोविड 19 कर्मवीर योद्धा, रक्षक, जागरूक अनेकों अवॉर्ड । आइए ले जाइए एक नहीं दो नहीं जितने आप चाहे बिल्कुल फ्री भीकू शहर की गलियों में अपनी रेहड़ी लिए यही आवाज लगा रहा था ।
यह तो शहर है यहां तो मुफ़्त की चीज़ के लिए भीड़ लगा ही लेते है लोग । सरकार ने लॉक डाउन 4.0 में छूट क्या दे दी लोग देखो अपने घर छोड़ गलियों और सड़कों पर दिख रहे हैं कुछ ही पल में उसकी रेहड़ी के चारों तरफ भीड़ लग जाती है ।
 पहला आदमी - भैया भीकू आज सब्ज़ी तरकारी की जगह ये क्या लेे आए ?
दूसरा आदमी - इसे कोन लेगा , इस कागज़ के टुकड़े का क्या काम ?
तीसरा आदमी - अरे हां भीकू तुम्हें इससे क्या फायदा मुफ़्त में देकर तुम्हें क्या मिलेगा ?
भीकू - साहब केसी बात करते हो इन अवॉर्ड्स के लिए तो लोग तरसते हैं कोविद -19 में इनकी बहुत डिमांड है । इसको फ्रेम कराकर घर पर लगाना फिर देखना लोग बिना कुछ करे कैसे सलाम ठोकते हैं ।
दूसरा आदमी - अरे वाह भीकू ! अच्छा तो चलो मुझे ये कोविड़ योद्धा, कर्मवीर, सेवानिष्ठ , जागरूक और एक कोई भी अपनी पसंद का निकाल दो । 
भीकू - बाबूजी ये अभी नहीं मिलेगा ये तो अभी डिस्प्ले के लिए हैं । अपना नाम, पता, फोन नंबर ,एक सुंदर - सी फोटो काम धंधा सब की जानकारी दे दो । दो चार दिन लगेंगे घर बैठे ही मिल जाएगा ।
पहला आदमी - घर बैठे ही कैसे, तुम्हें सब के घर कैसे पता चलेगी । 
पहली महिला - अरे , पागल बना रहा है ये ।
भीकू - बहन जी पागल क्यों बनाऊंगा ? आपसे कोई पैसे थोड़ी न ले रहा हूं । बिना कुछ सेवा किए आपको अवॉर्ड मिल रहा है और क्या चाहिए । आंखे खोलकर देखो तो हमारे देश में अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स , सड़कों पर पुलिस कर्मी , गुरुद्वारों में सच्चे सेवक रात दिन सेवा कर रहे हैं  हमारे देश के अन्य सहयोगी वर्ग, समाजसेवी, शिक्षक जो सच्ची सेवा में लगे हैं अवार्ड तो उनको मिलना चाहिए ।
मेरा बस चलता न तो मैं ये सभी अवॉर्ड उन्हीं सच्चे सेवकों को देता ।
तीसरा आदमी - अरे छोड़ो बहनजी लेना है तो लो न , बहस मत करो अभी भीड़ देखकर पुलिस वाले आ जाएंगे । अभी कोरिना ख़तम नहीं हुआ है सिर्फ़ लॉक डाउन में ढील दी गई है । 
दूसरी महिला - अरे भैया ये अवॉर्ड क्या कोई भी के सकता है ।
भीकू - हां बहनजी कोई भी ।

सफेद कोट पहने रेहड़ी से भीड़ को हटाती हुई एक महिला ।

ये क्या यहां भीर क्यों लगा रखी है ? सभी पढ़े - लिखे हो लॉक डाउन 4.0 चल रहा है । तुम सभी को और सतर्क रहना चाहिए । माना सरकार ने बाज़ार खोल दिए हैं मगर सावधानी अपनाने को माना नहीं किया । तुम किसी ने भी मास्क नहीं लगाया और ना ही दस्ताने पहने हैं । और तुम ये रेहड़ी हटाओ । न तुम्हारी रेहड़ी पर सब्ज़ी है न तरकारी न अन्य कोई घरेलू सामान फिर भीड़ किस बात की ।
भीकू - मैडम जी अवॉर्ड हैं आपका भी लिस्ट में नाम लिख दूं ।
सफेद  कोट वाली महिला -  नहीं भाई मुझे अवॉर्ड देना है तो अपनी रेहड़ी हटा लो बेकार की भीड़ मत इकट्ठी करो । मैं एक नर्स हूं सेवाभाव बिना स्वार्थ के करती हूं यही मेरा कर्म, धर्म दोनों है । मेरे मरीज़ ठीक हो जाएं कोरोना देश से बाहर हो जाए । मेरे लिए यही अवॉर्ड है । 
तुम इन लोगो को ही अवॉर्ड दो जो समझदार होते हुए भी शान से भीड़ लगाए अवॉर्ड पाना चाहते हैं । 

भीकू सफेद कोट वाली मैडम की बात सुनते ही अपनी रेहड़ी को 100 की रफ्तार से लिए चला जा रहा है और सड़क के किनारे एक लकड़ी के बने ऑफिस के पास जाकर रोक देता है । 
ये लो साहब अपने मुफ़्त के अवॉर्ड मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी 200 रुपए की दिहाड़ी का काम । मेरी रेहड़ी पर सब्जी ही बिकती अच्छी लगती है ।
और हां मेरी ओर से एक निवेदन है कि अवॉर्ड उन्हें दीजिए जो इसके सच्चे हकदार हैं कहते हुए भीकू रेहड़ी से सारा सामान उतारकर ऑफिस के बाहर रखकर रेहड़ी लिए आगे बढ़ जाता है ।

संदेश कहानी में ही निहित है कि किसी भी सम्मान का हकदार वही व्यक्ति है जिससे सम्मान संबंधित है । दूसरों को सम्मानित करने की सच्ची भावना तभी सफल है जब सही व्यक्ति को सम्मान मिले ।
 देश दे उन कर्मवीरों और सच्चे योद्धाओं को मेरी ओर से सलाम और सम्मान जो दिन - रात सेवाभाव से निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं । जो सही रूप से सच्चे वॉरियर्स हैं । उन सभी को करबद्ध नमन !
डॉ नीरू मोहन ' वागीश्वरी '








Sunday, 17 May 2020

ईर्ष्या… सोशल मीडिया वाली ( कहानी )

माधुरी  सोशल मीडिया आजकल सोशल मीडिया नहीं रहा मुझे लगता है आज कल सोशल मीडिया उन लोगों के लिए बड़ा कारगर साबित है जो दूसरों के प्रति इर्ष्या रखते हैं क्योंकि उनके लिए यह माध्यम बहुत ही आसान माध्यम हैं जिसके द्वारा वह अपनी गंदी सोच और नकारात्मक प्रतिक्रिया दर्शा देते और इसके बारे में बिल्कुल नहीं सोचते की सामने वाले को कैसा लगेगा कहते हुए निशा रसोई में चली जाती है । 
निशा और माधुरी हॉस्टल में एक साथ रहती हैं । निशा को लिखने का बहुत शौक है वह अपने आसपास के माहौल से प्रभावित होकर कोई ना कोई शिक्षाप्रद कहानी या कविता रोज ही रच डालती है और उसे सोशल मीडिया पर प्रकाशित कर देती है । 25 साल की निशा दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही है । उसके लेखन को लोग बहुत पसंद करते हैं उसकी तारीफ भी करते हैं मगर कुछ ऐसे भी शुभचिंतक हैं जो उससे मन ही मन जलते हैं चिढ़ते हैं । 
निशा की मां को गुजरे 20 साल हो गए हैं बचपन में ही निशा की मां का देहांत हो गया था । निशा और उसके पापा ही पूरा परिवार हैं । जीवन पथ पर उसे बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ा है । 
माधुरी… निशा आज किस विषय पर लिखने का सोचा है । यार माधुरी मैं सोच रही हूं आज मैं अपने उन मित्रों के बारे में  लिखूं जो मुझसे बहुत प्यार करते हैं और इतना प्यार करते हैं कि मेरी मेहनत और लगन उन्हें दिखाई नहीं देती है और मैं उनकी इर्ष्या का पात्र बन जाती हूं । मेरी उपलब्धियां उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला उत्पन्न कर  देती हैं । सामने से तो अपनापन झलकाते हैं पर पीछे से छुरा घोंपने का मौका ढूंढते हैं । 
मजबूत इरादों और सकारात्मक सोच की धनी निशा हर परिस्थिति को एक चुनौती की तरह लेती है । सोशल मीडिया पर निशा के बहुत ही अच्छे मित्र भी हैं और उन सभी के बीच वह कुछ गिने चुने भी हैं जो निशा से ईर्ष्या का भाव रखते हैं जिन्हें निशा बहुत अच्छी तरह जानती है । निशा जो भी लिखती और पोस्ट करती वह सभी अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया देना नहीं भूलते । 
माधुरी … निशा छोड़ यार ये सब वही होते है जिनमें भावनाएं और संवेदनाएं नहीं होती । किसी रचना की संवेदनाओं को वो ही समझ सकता है जिसको ज्ञान होता है । अज्ञानी तो बिना पढ़े ही अपनी प्रतिक्रिया थंब डाउन करके दर्शा देते हैं ध्यान रखना निशा जिनके पास जो होता है न वो वही देते हैं दूसरे को । तुम्हारे पास ज्ञान है तो ज्ञान बांट रही हो दूसरे के पास सिर्फ़ एक अंगूठा है वो भी नीचे की ओर झुका हुआ हंसती हुई माधुरी निशा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहती है - निशा तुम युवाओं के लिए प्रेरणा हो, यूं आर दा बेस्ट कहते हुए निशा के मुंह में अपने हाथों से बनाया हुआ हलवा खिलाते हुए एक यादगार सेल्फी खींच लेती है ।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर इरादे अच्छे हो तो रास्ते में आए पत्थर भी रास्ता दिखा देते हैं और वही पत्थर मील का पत्थर साबित होते हैं । ईर्ष्या का भाव रखने वाला दूसरों को नहीं स्वयं को हानि पहुंचाता है । अपने मित्रों की उपलब्धियों से खुश होना सीखिए अगर आप किसी को प्रोत्साहित नहीं कर सकते तो अपनी निरर्थक प्रतिक्रिया के माध्यम से किसी को हतोत्साहित भी मत कीजिए ।

धन्यवाद 






discription

Inspirational story //गुल्लू और बर्फ़ का गोला// सुविचार, बाल कहानियां, Motivational, Emotional and Family stories and NCERT Book s tutorial by VSS हिंदी प्रेरणात्मक कहानियां //डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '//

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Saturday, 16 May 2020

बेटी … सिर्फ शब्द नहीं संसार है( कहानी )

बेटी … सिर्फ़ शब्द नहीं संसार है
आज तो चारों सड़क छाप आवारा लड़कों ने हद ही कर दी रोज़-रोज़ ऐसे कैसे चलेगा । मेरा तो आने-जाने का एक वही रास्ता है… सोचते हुए सोनाली अपनी बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़ ही रही थी यकायक उसका दुपट्टा सीढ़ियों पर अटक जाता है । सोनाली थोड़ा थमती है… डरते हुए पीछे देखती है… कोई नहीं है । जल्दी से रेलिंग से दुपट्टा छुड़ाया और सीधा अपने माले की ओर बिना रुके चढ़ती चली गई । कमरे का दरवाजा खोला और झट से बंद कर दिया । मां को याद करते हुए आने वाले कल के बारे में सोच रही है । किसी को कैसे कहे , कोई भी तो नहीं है इस अनजान शहर में अपना कहने के लिए । गांव में तो सभी एक दूसरे के सुख-दुख , हारी परेशानी साथ में रहते हैं । यह शहर है , यहां ऐसा नहीं है । यहां तो सभी …चाहे वह अपना है या अनजाना मजबूरी का फायदा उठाते हैं, मजाक उड़ाते हैं या डराते हैं । हौसला कोई नहीं बढ़ाता और न ही कोई मुसीबत में साथ देता है । सोनाली को मुंबई आए अभी सिर्फ़ 6 महीने ही हुए हैं । नौकरी से जो मिलता है उससे कॉलेज की फीस भर देती है और कुछ मां के पास गांव भेज देती है… घर में सबसे बड़ी जो है । दो छोटी बहनें हैं जो मां के साथ ही गांव में रहती हैं । बापू थोड़ा-सा खेती का टुकड़ा छोड़कर गए हैं । उनको परलोक सिधारे अभी एक ही साल हुआ है तब से घर की जिम्मेदारी मां और सोनाली दोनों ही उठाती हैं ।

अगले दिन ऑफिस में नंदिनी… सोनाली क्या सोच रही हो? कल भी तुम ऐसे ही खामोश बैठी थी । तुम्हारा कई दिनों से काम में भी मन नहीं लग रहा कोई परेशानी है तो बताओ । 7:00 भी बज गए हैं ऑफिस बंद होने का टाइम हो चला है । चलो साथ ही निकलते हैं । दोनों ऑफिस से बाहर साथ निकलती हैं । नंदिनी सोनाली से विदा लेते हुए… ठीक है सोनाली कल मिलते हैं ध्यान से जाना । सोनाली … आज न मिले वह चारों सड़क छाप । घबराहट तो हो रही है । डर भी लग रहा है । मुंबई है न किसी को मार भी दो तो पता भी न चले । मां ने बताया भी था कि शहरों का माहौल अच्छा नहीं होता और खासकर सर्दियों में तो 8 बजे से ही शहर की सड़कें सूनी हो जाती हैं सोचते हुए सोनाली अपनी ही धुन में चल रही है उसे पता ही नहीं चला कि कब उन चारों आवारा लड़कों ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया । उसे कुछ आवाज सुनाई देती है पीछे मुड़कर जैसे ही देखती है तो चारों उसके बिल्कुल पीछे थे । वह सहमी – सी वही रुक जाती है । उसके होश हवास उड़
जाते हैं । वह लंबी – लंबी सांस लेने लगती हैं । चारों ओर अंधेरा है, सुनी सड़क है । चारों लड़के उसके नजदीक आते हैं और उसको घेरकर उसके आगे – पीछे चक्कर लगाने लगते हैं । कोई उसका दुपट्टा पकड़ता है तो कोई कुर्ती । आज तो मैडम जी का नाम पता करके ही रहेंगे । एक लड़का उसका दुपट्टा पकड़ कर… क्या मैडम जी, ज़रा बता दो न… नाम ही तो पूछ रहे हैं इतने दिन हो गए । कब तक तड़पाओगी । सोनाली घबराई हुई वहीं सड़क पर नीचे बैठ जाती है । चारों लड़के उसके चारों तरफ घूमते हुए कुछ भी अनाप-शनाप बोल रहे हैं । मैडम जी नाम बताओ , नाम क्या है , नाम ही तो पूछा है । सोनाली हिम्मत करते हुए उठती है । सभी चक्कर लगाना छोड़ देते हैं । सोनाली नीचे मुंह किए सिकुड़ी – सी, सहमी – सी खड़ी है । हां जी मैडम जी , नाम क्या है ? बता दो ज़रा । कहां से आई हो, कहां जाना है हम छोड़ देते हैं मगर …पहले नाम पता करना है । सोनाली कुछ सोचती है उनमें से एक लड़के के नजदीक जाती है और कान मे कहती है… बेटी । दूसरे के नजदीक जाती है कान में कहती है …मां । तीसरे के नजदीक जाती है और उसके भी कान में कहती है… बहन । जैसे ही चौथे लड़के के नजदीक जाने लगती हैं वह अपने कदम पीछे हटा लेता है । सोनाली उन चारों को देखती है और अपने कदम बड़ी निडरता से आगे बढ़ाती हुई अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ती है ।

इस कहानी के माध्यम से मैं समाज के उन पंगु मानसिकता वाले लोगों को जो नारी का सम्मान नहीं करते यही संदेश देना चाहूंगी कि मां, बेटी और बहन इन शब्दों में असीम शक्ति है । इन शब्दों की शक्ति की सार्थकता को समझो । नारी सृष्टि को जन्म देती है, सभ्यता को पालती है, संस्कारों को पोषित करती है । नारी ही मां, बेटी, बहन, बहू के रूप में इस संसार को चलती है । बेटी शब्द में पूरा संसार छिपा है । बेटी शब्द नहीं पूरा संसार है ।
बेटियों का सम्मान करो ।
धन्यवाद






गुल्लू और बर्फ़ का गोला ( कहानी )

गुल्लू और बर्फ़ का गोला ( बाल कहानी )

आज फिर बर्फ़ के गोले वाला गुल्लू की झुग्गी के बाहर रोज़ाना की तरह खड़ा था । उसकी रेहड़ी के चारों तरफ़ बच्चे थे मगर आज भी उसकी मां के पास ₹20 नहीं थे जिससे वह अपने गुल्लू को बर्फ़ का गोला खरीद देती ।  पति की मृत्यु के बाद शाम की रोटी का इंतजाम करना ही दूबर होता है उसके लिए…। गुल्लू बाहर क्यों खड़ा है, भीतर आ जा । धूप से लूं लग जाएगी । यह बर्फ़ का गोला अच्छा नहीं है । गर्मी में खाने से बीमार हो जाते हैं ।माई तू तो सर्दी में भी यही कहती है । मुझे पता है तेरे पास पैसे नहीं है इसलिए तो मना कर रही है । बापू के मरने के बाद तू अकेली हो गई है न… तू चिंता मत कर मैं बड़ा होकर बहुत पैसा कमाऊंगा और फ्रिज भी लूंगा जिससे तू मुझे रोज बर्फ़ का गोला खिलाना । मां मुस्कुराती हुई गुल्लू के माथे को चूम लेती है… और मन ही मन भगवान तेरा ही आसरा है । सबकी इच्छा पूरी करने वाला एक तू ही है । मां की यह बात सुनकर गुल्लू भगवान की फोटो के पास जाता है और हाथ जोड़कर पता नहीं क्या फुसफुसाता है और मां के पास आकर सो जाता है । गरीब मजदूरों का जीवन ऐसा ही होता है भगवान ही उनकी नैया के खिवैया होते हैं । 
सारे बच्चे बर्फ़ का गोला खा रहे हैं और गुल्लू झुग्गी की चौखट पर खड़ा है अचानक तेज हवाएं चलने लगती हैं बिन मौसम बारिश और ओलावृष्टि सारी गली और सड़क को गलीचे की तरह भरकर शिमला बना देती है । गुल्लू खुले में आता है और मुट्ठी में बहुत सारी बर्फ़ भरकर सीधे भीतर झुग्गी में मां के पास आकर… मां मां बर्फ़ का गोला । यह कहां से लाया । मां बाहर … कहते हुए मां को बाहर खींचकर लेे आता है । बर्फ के गोलेवाला ओट में खड़ा है आसमान से झनझन - झनझन ओले बरस रहे हैं पूरी सड़क सफेद चादर ओढ़े हुए चांदनी बरसा रही है । गुल्लू के हाथ में गोला और गोलेवाले को देखकर मां आसमान में देखती है और मन ही मन मुस्काती है ।गोलेवाला अपनी रेहड़ी छोड़कर रंगीन बोतलों को लिए गुल्लू के गोले को मीठा और रंगीन बना देता है । आज गुल्लू और गुल्लू की मां का विश्वास जीत गया ।
 इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ईश्वर में आस्था का प्रतिफल सदैव हितकर होता है । 
डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '
शिक्षाविद्/ प्रेरकवक्ता/ लेखिका / कवयित्री/समाजसेविका

Friday, 15 May 2020

रेल की पटरी से… खेत की मेड़ तक ( कहानी )

रेल की पटरी से… खेत की मेड़ तक 
मेरी गोद के आंचल के साए में बड़े होकर मुझे नहीं पता था कि एक दिन तुम मुझे छोड़ कर शहर की ओर पलायन कर जाओगे । गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू , शीतल बयार और हरे-भरे पीले फूलों से लदे खेतों से तुम्हारा मन ऊब जाएगा । अमराईयों की डाल से आने वाली महक भी तुम्हें रोक नहीं पाएगी । यह तुम्हारा गांव पूरे विश्व का पेट भरता है हर मानव को रोटी देता है किसी को भूखा नहीं सुलता है फिर तुम्हें कैसे भूखा सुला सकता था । एक किसान के हाथों में ही ऐसा जादू है जो पूरे विश्व को रोटी खिलाने की हिम्मत रखता है उसी की मेहनत से खेतों में अन्न उगता है मगर आज तुम उस अन्न को उगाने वाले ही भूखे पेट, पैरों में छाले लिए, अपने घरों की तरफ पैदल ही निकल पड़े हो । मैंने तुम्हें बहत रोका मगर शहर की चकाचौंध ने तुम्हें आकर्षित कर ही लिया था । कहते हैं न कि विपदा के समय माता का आंचल और मां की गोद ही सुहाती है और हम वहीं सुरक्षित महसूस करते हैं ।
 कोरोना महामारी आपातकाल में सभी मजदूर अपने घरों की ओर पलायन कर रहे हैं अपने गांव की ओर वापस आ रहे हैं और तुम भी सभी के साथ अपने गांव लौट रहे हो । मैं बहुत खुश हूं । खेत - खलिहान और मैं तुम्हारी बाड़ देख रहे हैं । मेड पर बैठी हूं इंतजार में…  अरे छुट्टन के बाबू मेरे पीछे खड़े होकर क्या देख रहे हो ? छुट्टन, गिरिधर, बाला, गुल्लू, चमन की क्या खबर है ? मैं सबकी खबर लाया हूं । माई रास्ता बहुत लंबा हो गया है अब पता नहीं कब तक पूरा होगा । होगा भी या नहीं … निगल गई शहर की चकाचौंध और मनहूस रेल की पटरी हमारे बबुआ, छुट्टन, चमन, गिरधर को । पता चला पटरी हुई थी लाल… अंगों का था बुरा हाल, रोटियां थी बिखारी, और सांस थी उखड़ । चीख की आवाज भी नई आई सिर्फ ख़बर आई ।
 भूख की तड़प रोटियों की खनक उम्मीद की सड़क सुनी हो गई ।
रेल की पटरी से मेड़ तक का सफ़र समाप्त हो गया ।

डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '
शिक्षाविद्/ प्रेरक वक्ता / लेखिका/ कवयित्री/समाजसेविका
दिल्ली

Thursday, 14 May 2020

तेज़ाब (कहानी)

खिड़की से चिड़िया के चाहने की आवाज… आज 15 साल की रागिनी के मन में नई चेतना का बीज बो रही थी । आज वह बहुत खुश थी; उसके चेहरे से पट्टी खुलने वाली थी । पूरे 6 महीने हो गए थे अस्पताल में रहते हुए । डॉक्टर कमरे में प्रवेश करता है । रागनी कैसी हो ?रागिनी खुश है; परंतु अंदर ही अंदर डरी भी हुई है । नर्स आईना लिए खड़ी है । डॉक्टर रागिनी की पट्टी खोलते हुए… रागिनी तुम्हें नई जिंदगी मुबारक हो, जीवन में आगे बढ़ना, कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना । नर्स आईना नज़दीक लाती है । रागिनी की चीख निकल जाती है । वह आईने से अपना मुंह पीछे कर लेती है । सड़क पर पड़ी थी भीड़ के चारों ओर तड़पती, कोई भी मदद के लिए नहीं आया था । उस दिन तड़प को बिना नापे रागिनी बेहोश हो गई थी मगर वह दर्द आज महसूस हो रहा है । उसका पूरा जीवन झुलसे हुए चेहरे के साथ कैसे बीतेगा आज वह जीकर भी अपने आपको मरा हुआ महसूस कर रही है । तेजाब ने उसके मुंह को ही नहीं बल्कि उसके पूरे जीवन को झुलसा दिया है ।
रागिनी सुबह हो गई है कब तक सोती रहोगी । उठो नए सवेरे का सूरज उग गया है । रागिनी उठते ही झट मां के सीने से लग जाती है । 26 साल की रागिनी चर्म विशेषज्ञ है ।वह उन लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत है जो अपने आपको इस स्थिति में असहाय समझती हैं । आज रागिनी ने दिखा दिया कि तेज़ाब उस पर नहीं बल्कि उन सभी गंदी सोच वाले लोगों पर पड़ा है जो अपने इरादों को नाकाम होता देखते हैं । 
तेजाब डालने वाला पंगु और अपाहिज है… वह भी दिमाग से ।
डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '
शिक्षाविद्/प्रेरक वक्ता/लेखिका/ कवयित्री/समाजसेविका

Saturday, 2 May 2020

शिक्षा का माध्यम और हिंदी की स्थिति

शिक्षा का माध्यम और हिंदी की स्थिति

आज आधुनिकता की होड़ में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है । सभी निजी, गैर सरकारी यहां तक कि बहुत से सरकारी विद्यालयों में भी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से दी जाती है । आज हर अभिभावक के मन मस्तिष्क में केवल यही बात घर कर गई है कि अच्छी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों में ही मिलती है या दी जाती है; तो यकीनन हर अभिभावक उन्हीं स्कूलों में उसी भाषा में अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाना पसंद करेगा जिससे उसके बच्चे का भविष्य संवर सके या वह अच्छी नौकरी प्राप्त कर सके मगर इन सभी अभिलाषाओं के चलते वह अभिभावक यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के अपने कुछ फायदे हैं और कुछ नुकसान भी और यही बात अंग्रेजी भाषा के साथ ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं पर भी लागू होती है । ऐसी स्थिति में हमें देखना चाहिए जिसके नुकसान कम हैं और फायदे ज्यादा साथ ही हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति किस माध्यम से पूरी होगी भाषा शिक्षा का क्षेत्र अनुप्रायोगिक है इसमें विभिन्न विषयों के शिक्षण के लिए जिस भाषा का प्रयोग होता है शिक्षा का माध्यम कहलाती है  ।

शिक्षा का माध्यम कोई भी हो
हिंदी की स्थिति न गिरने पाए
प्रयास ऐसे करने होंगे हम सभी को 
हिंदी बोलने पर कोई न हिचकिचाए ।

वर्तमान युग में सभी अभिभावकों का एकमात्र ध्येय या मांग अंग्रेजी भाषा में बच्चों को शिक्षा दिलाना रह गया है ; क्योंकि आज अंग्रेजी को वर्चस्व और रोजगार की भाषा माना जाता है । शिक्षा का माध्यम अपनी मातृभाषा भी हो सकती है और अन्य भाषाएं भी । भाषा किसी न किसी उद्देश्य या प्रयोजन के संदर्भों में सीखी अथवा सिखाई जाती हैं ; लेकिन मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का मुख्य उद्देश्य अपने समाज और देश में संप्रेषण प्रक्रिया को सुदृढ़, व्यापक और सशक्त बनाना होता है ।वस्तुत : मातृभाषा एक सामाजिक यथार्थ है जो व्यक्ति को अपने भाषायी समाज के अनेक सामाजिक संदर्भों से जोड़ती है और उसकी सामाजिक अस्मिता का निर्धारण करती है ।

शिक्षा का जो माध्यम हमारी सोच हमारे समाज हमारे देश के आदर्श और जरूरतों के अनुरूप हो उसे ही अपनाना चाहिए इस आधार पर विदेशी भाषा के मुकाबले अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करना अधिक लाभदायक और उचित है शिक्षा का उद्देश्य है मानव में नैतिक मूल्य का बीजारोपण करना क्योंकि नैतिक मूल्य संस्कृति से प्राप्त होते हैं और संस्कृति का वाहन उस संस्कृति की भाषा है इसलिए जिस संस्कृति को हम बच्चों के लिए उचित मानते हैं उस संस्कृति को पूर्ण रूप से व्यक्त करने वाली भाषा ही शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए इस प्रकार हम कह सकते हैं अंग्रेजी भाषा से शिक्षा तो दी जा सकती है परंतु अपनी संस्कृति और संस्कार नहीं दिए जा सकते । अंग्रेजी भाषा से हमारे बच्चों में पाश्चात्य संस्कृति पनप रही है अगर हम यही शिक्षा भारतीय भाषाओं में दें तो शिक्षा से भारतीय संस्कृति बच्चों पर अपना असर डालेगी ।

अपनी भाषा और संस्कृति को छोड़कर 
हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे 
फिर वही अंग्रेजी के गुलाम बन 
पलायन का रास्ता अपनाते जाएंगे ।

आज शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण अभिभावक बच्चों को सूरज की जगह SUN और चांद की जगह MOON पढ़ाते हैं सूरज और चांद का प्रयोग करने पर कभी-कभी बच्चों को डांट भी लगते हैं तभी तो बच्चों के अंदर हिंदी के प्रति उदासीनता का भाव पनपता जा रहा है अगर बच्चा या विद्यार्थी हिंदी में बात करता है तो उसे मूर्ख या अनपढ़ समझा जाता है और कभी-कभी तो उसे दूसरों की अवहेलना का भी शिकार होना पड़ता है । बच्चों में संस्कारों का ह्वास होता जा रहा है । निजी स्कूलों में भी भाषाओं का प्रयोग बहुत ही अंतर ला रहा है अंग्रेजी में वार्तालाप करने वाले विद्यार्थी प्रशंसा का पात्र बने रहते हैं वही हिंदी में बात करने वाले विद्यार्थियों को नजरअंदाज किया जाता है । निजी स्कूलों में तो हिंदी भाषा में बात करने पर जुर्माना भी लगा दिया जाता है । इस प्रकार का व्यवहार किस तरह तर्कसंगत हो सकता है कि हम अपने ही देश में रहकर अपनी ही सभ्यता संस्कृति और भाषा का अपमान कर रहे हैं तभी तो आज हिंदी की स्थिति वह नहीं हो पाई है जो होनी चाहिए थी । पाश्चात्य संस्कृति से भारतीय संस्कृति लाख गुना बेहतर है क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति सुख का भ्रम देती है और भारतीय संस्कृति सुख देती लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हम ऐसी श्रेष्ठ संस्कृति को खो रहे हैं क्योंकि हम उस संस्कृति के वाहक अपनी मातृभाषा को छोड़कर भोगवादी भाषा अंग्रेजी अपना रहे हैं ।

हिंदी की स्थिति :

हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा की काली छाया  का प्रकोप फैल रहा है जिससे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि उसके नाम में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है अर्थात आजकल हिंदी को हिंग्लिश बना दिया गया है । हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी भावी पीढ़ी मातृभाषा का रसवाद नहीं कर पाएगी । हिंदी पर अंग्रेजी की कुहास चादर चढ़ गई है जो भारत देश के अस्तित्व पर एक गहरा प्रहार है । हमें हिंदी भाषा को विश्व में सिरमौर बनाना है तो आने वाली पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति आदर सम्मान की भावना पैदा करनी होगी । मैं स्वयं कुछ समय से यह अनुभव कर रही हूँ कि हर रोज हिंदी का विकृत रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है ; कभी समाचार पत्र के माध्यम से, कभी पत्रिकाओं के माध्यम से और कभी चलचित्रों के माध्यम से हिंदी को इंग्लिश के साथ मिलाकर हिंग्लिश बनाकर हमारे समक्ष पेश कर देते हैं । मानो हिंदी भाषा भाषा नहीं एक मजाक हो । भाषा में बढ़ते प्रदूषण का कारण मीडिया से ज्यादा हम स्वयं हैं, समाज हैं, विद्यालय हैं और शिक्षक स्वयं हैं जो अपनी मातृभाषा को विखंडित होने से नहीं बचा पा रहे हैं । अभी भी हम औपनिवेशिक संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित हैं अगर हम अपने आस-पास नजर घुमाएँ तो पाते हैं कि माता- पिता स्वयं अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर उन्हें हीनता का बोध कराते हैं । ऐसी मानसिकता और सोच के लिए समाज, राष्ट्र, माता-पिता और विद्यालय सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि और बढ़ावा देते हैं । आज की शिक्षा व्यवस्था हिंदी भाषा के ह्वास का कारण है जहाँ हिंदी मात्र एक विषय बन कर रह गया है और अंग्रेजी ने भाषा का रूप ले लिया है । 

आज हमारे आस पास ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि हम लोभ, लालचवश स्वेच्छा से अंग्रेजी को ग्रहण करते हैं । हमारी मानसिकता के अनुसार लाखों रुपयों का वेतन अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने से प्राप्त होता है । हम मानने लगे हैं कि सफलता अंग्रेजी जानने बोलने से प्राप्त होती है । आज हम गुलाम किसी देश के नहीं आज हम गुलाम स्वयं अपनी सोच के हैं …हम गुलाम स्वेच्छा से अंग्रेजी भाषा के हैं । आज ड्राइवर चपरासी की नौकरी के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है । माँ अपने बच्चों को चाँद की जगह 'मून' और बंदर की जगह 'मंकी' पढ़ाती है बच्चा अगर शब्दों को हिंदी में बोले तो माँ की प्रतिक्रिया होती है कि यह चाँद नहीं 'मून' है अर्थात् बच्चों को धरातल से ही हिंदी के ज्ञान से विमुख किया जाता है । आज शादी ब्याह, जन्मोत्सव इत्यादि की पत्रिका और निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापे जाते हैं चाहे घर में किसी को अंग्रेजी आती हो या न आती हो मगर विवाह पत्रिका, निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही होने चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषा आज शान का प्रतीक मानी जाती है जिसके कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है और इसका श्रेय हमारे देशवासियों को जाता है जो अपनी मातृभाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं । साल में एक बार 14 सितंबर को पूरे देश में यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । एक ही दिन हमें हिंदी की औपचारिकता क्यों करनी पड़ती है ? क्या हमारी मातृभाषा के सम्मान के लिए एक ही दिन है ? क्या हम हर दिन हिंदी दिवस के रूप में नहीं मना सकते ? क्या हम हर दिन अपनी मातृभाषा को सम्मान नहीं दे सकते हैं ? यह सभी प्रश्न हमें चिंता में डालते हैं । एक समय था जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे मगर आज हम अंग्रेजी के गुलाम होते जा रहे हैं । किसने कहा एक माँ अपने बच्चे को हिंदी नहीं अंग्रेजी में सब कुछ सीखाए ? किसने कहा एक कर्मचारी को अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है ? किसने कहा कि निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही हो ? क्या सरकार ने …देश की शासन व्यवस्था … नहीं किसी ने नहीं …यह सब हमारे लोभ, लालच और अंग्रेजी भाषा की हवा ने कहा जो ऊँची तरक्की, ऊँचा वेतन और चका-चौंध की छवि को दर्शाता है । भारतीय हिंदी भाषी होना क्या हीनता की निशानी है ? अब आप ही बताइए… क्या यह स्वेच्छा से गुलामी स्वीकार करना है या नहीं …?

हम स्वयं हिंदी की इस स्थिति के जिम्मेदार हैं । जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे तब भी अंग्रेजी का ऐसा और इतना बोल बाला नहीं था । अंग्रेजी थी मगर अंग्रेजी की गुलामी नहीं थी और न ही भारतीय भाषाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार की भावना थी । हमारे देश के नेता अंग्रेजी जानते थे बोलते थे और बहुत विद्वान थे मगर सभ्यता और संस्कृति के सम्मान का ध्यान रखते थे । किंतु आज का नेता वोट तो हिंदी में माँगता है, नारे हिंदी में लगाता है, पर्चें हिंदी में बाँटता है किंतु लोकसभा और विधानसभा में शपथ ग्रहण अंग्रेजी में करता है । यह कहाँ तक सही है ? क्या उसे हिंदी में शपथ ग्रहण करने में शर्म आती है या अंग्रेज़ियत के भूत ने पूरे देशऔर उसके शासन को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है । हिंदी भाषा के अस्तित्व पर यह गहरा आघात है ।


न जाने जो हिंदी; वह हिंदवासी नहीं,
अंग्रेज़ी का ज्ञान पाकर कोई देशवासी नहीं,
हिंदी में ज्ञान पाओ, हिंदी में गुनगुनाओ,
हिंदी में ही नेताओं को शपथ ग्रहण करवाओ ।।

यह एक भ्रम बुरी तरह से हमारे हिंद में फैलाया गया है और चल रहा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने लिखने वाले युवक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस का नतीजा यह हुआ है कि गरीब और आम आदमी अंग्रेजी भाषा की चक्की में पिसने को तैयार खड़ा हो गया है और वह स्वयं अपने बच्चों को बड़े से बड़े अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहता है जिससे उसकी संतान को सफलता प्राप्त हो सके । परंतु यह वास्तविकता नहीं है हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं और उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं । हिंदी भाषा का सर्वस्व कायम रखना है तो हमें स्वयं की सोच में बदलाव लाना होगा अंग्रेजी जानना, पढ़ना और बोलना बुरा नहीं है परंतु अपनी भाषा को पीछे रख कर नहीं ……आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता नजर आता है । आज लोग अपने बच्चों को प्राइवेट या कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं । आज का युवा उच्च शिक्षा तो ग्रहण कर लेता है परंतु दो लाईन शुद्ध हिंदी न लिख पाता है और न ही बोल पाता है । आज का विद्यार्थी हिंदी नहीं पढ़ना चाहता । बारहवीं के विद्यार्थियों को आज मात्राओं का ज्ञान नहीं है । बारहवीं में आकर भी ि , ी ु , ू े , ै की मात्राओं के प्रयोग में सक्षम नहीं है । इसका जिम्मेदार कौन है …?
हम, आप या विद्यार्थी स्वयं हम से तात्पर्य शिक्षक, आप से तात्पर्य…अभिभावक से है । आज हमें युवाओं के मन में नयी चेतना जगानी होगी । अंग्रेजी के संक्रमण को रोकना होगा । 

निष्कर्ष

भाषा चाहे कोई भी हो वह मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है क्योंकि मानव सभ्यता को विकसित और गतिमान बनाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है और वह संप्रेक्षण भाषा से ही संभव है मुख से उच्चारित होने वाली ध्वनि की एक अनुपम व्यवस्था भाषा कहलाती है भाषा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है हिंदी , संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है । आज हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्यों आज हिंदी को बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं ? क्या भाषा भी किसी के संरक्षण की मोहताज है ? हम भारतवासी होकर हमारा क्या यह कर्तव्य नहीं कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें और उसे विश्व पटल पर लाएं ।

इसके लिए अनेकों प्रयास बहुत सी स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से किए जा रहे है उनमें से हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के प्रयास अति सराहनीय है । संस्थान के माध्यम से प्रतिवर्ष दिल्ली और एनसीआर के सभी विद्यालयों से प्राप्त आवेदन के आधार पर सेकंडरी स्तर पर हिंदी विषय में 90 % और उससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों भाषा प्रहरी सम्मान, और 100% अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भाषा दूत सम्मान से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है साथ - ही साथ संबंधित शिक्षकों को भी सम्मानित किया जाता है । कार्यक्रम का आयोजन बहुत ही वृहद स्तर पर किया जाता है जिसमें दिल्ली एनसीआर के 150 से अधिक विद्यालय के 2500 से अधिक विद्यार्थी सम्मानित होते हैं । हिंदी उत्थान हेतु हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी के प्रयास यही तक सीमित नहीं हैं बल्कि संस्थान की मासिक पत्रिका भी भारतीय भाषाओं के प्रसार में मुख्य भूमिका निभा रही है । 2019 के मोरशियस अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में भी संस्थान के संस्थापक श्री सुधाकर पाठक जी भारत सरकार की ओर से आमंत्रित थे जो संस्थान के लिए एक गौरव का विषय है । हिंदी भाषा को        राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी के अथक प्रयास जल्द ही अपने मुकाम पर पहुंच एक नया मील का पत्थर स्थापित करेंगे ।

अपनी भाषा में एक एहसास है ।
हिंदी देश का स्वाभिमान है ।

हिंदी से भविष्य और वर्तमान है ।
हिंदी भावों का महाजाल है ।

भावों का समंदर रहता है इसमें ।
एहसास से गुथा एक धागा है जिसमें ।

जोड़ देता है मन से मन को पल में कहीं भी । 
टूटते दिलों को जोड़ देता है दूर से ही ।

भावनाओं की भाषा  सौहार्द बनाती है ।
लिपि भाषा को  लिखना सिखाती है ।

भाषा से ही ज्ञान समृद्ध, विशाल मुमकिन है ।
भाषा नहीं तो शब्दों का महाजाल बुनना मुश्किल है ।

देश विदेश में भी इसका परचम लहराया है ।
सबने हिंदी को मन से अपनाया सौभाग्य हमारा है ।

अभिमान है हमें…हम हिंदुस्तानी हैं। 
गौरवान्वित हैं हम… कि हम हिंदी भाषी हैं ।

डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '