** मैं अभिनेत्री हूँ **
रंगमंच की शोभा कहलाती ।
नाटक फिल्मों में हूँ आती ।
जीवन मेरा शूल की शैय्या,
चौबीस घंटे व्यस्त हूँ रहती ।
लोगों का मनोरंजन करती,
तानों को नतमस्तक रखती ।
कास्टिंग काउच की शिकार भी होती,
जीवन जीते फिर भी ऐसे…जैसे झाँसी रानी होती ।
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।
चेहरे को अपने रंग लेती,
झूठा जीवन मैं हूँ जीती ।
कभी खुशी के भाव दिखाती,
कभी गम के अश्क़ बहाती ।
जीवन की सच्चाई को सबके,
रू-ब-रू मैं हूँ करवाती ।
स्वअस्तित्व को त्याग के अपने,
सबके अस्तित्व को हूँ दर्शाती ।
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।
कभी कहीं पर माँ बन जाती,
कहीं कभी बन जाती सास ।
बेटी, बहू, बहन किरदार,
किन्नर, वैश्या नटनी, नार ।
सभी पात्रों को हूँ दर्शाती,
पद्मावती कभी बन जाती ।
सभी की सच्ची जीवन गाथा,
पर्दे पर हूँ लेकर आती ।
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।
कभी पूजी भी जाती हूँ,
कभी दुत्कारी जाती हूँ ।
अच्छे बुरे किरदार से ही मैं,
दिलों पे सबके छाती हूँ ।
कभी नायिका बन जाती,
पात्र खलनायिका मैं कर जाती ।
मगर कभी अपनी सच्चाई,
लोगों को न दिखला पाती ।
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती ।
दिखता जो है बिकता वो है,
जीवन मेरा झूठा सच है ।
मन में दर्द समेटे हूँ मैं,
घर मेरा वीरान बहुत है ।
सुंदर हूँ तब तक हूँ मैं बस,
बाद में खोटा सिक्का हूँ ।
बाहर शोर भीतर सन्नाटा,
न मेरी कोई तमन्ना है ।
जीवन मेरा कोरा पन्ना,
ये ही सच बस अपना है ।
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मै स्वांग हूँ रचती।
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