Thursday, 8 February 2018

कभी नहीं थकती

** कभी नहीं थकती **

गांव की पगडंडियों से होकर गुजरती है ।

रेगिस्तान की गरम रेतीली जमीन पर कदम रखती है ।

कभी सिर पर मटकी तो कभी लकड़ी लेकर चलती है ।

कभी खेतों में काम करती तो कभी ईंटें ढोती है ।

कभी पैदल ही मीलों चली जाती कभी नहीं थकती निरंतर चलती है ।

कभी धूप के थपेड़े सहती कभी आंधियों से होकर गुजरती है ।

जीवन की कठिनाइयाँ अकेले ही सहती है ।

निरंतर जीवन में संघर्ष करती है उफ…नहीं करती है ।

घर की पूरी जिम्मेदारी भी सहजता से उठा लेती है ।

कभी पाँव में काँटा चुभे तो स्वयं ही निकाल लेती है ।

यही नारी की कहानी है …
हर रोज़ बोझा उठाना हर रोज़ काम करना है ।

आँधी हो या तूफान अपने बच्चों का पेट उसे ही भरना है ।
…क्योंकि
वह नारी है कभी नहीं थकती है ।

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